Wednesday, September 14, 2016

राफेल फाइटर प्लेन : एशिया का गेम-चेंजर

फ्रांस के साथ हुए सौदे में जो 36 राफेल (या रफाल) फाइटर प्लेन भारत को मिलने वाले हैं, वे अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से लैस हैं. खास है दुनिया की सबसे घातक समझे जाने वाली हवा से हवा में मार करन वाली 'मेटेओर' मिसाइल. ये मिसाइल चीन तो क्या किसी भी एशियाई देश के पास नहीं है. यानि राफेल प्लेन वाकई दक्षिण-एशिया में गेम-चेंजर साबित हो सकता है.

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, भारत ने राफेल सौदे में करीब 710 मिलियन यूरो (यानि करीब 5341 करोड़ रुपये) लड़ाकू विमानों के हथियारों पर खर्च किए हैं. गौरतलब है कि पूरे सौदे की कीमत करीब 7.9 बिलियन यूरो है यानि करीब 59 हजार करोड़ रुपये है.

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर के मुताबिक, राफेल सौदा आखिरी चरण में है और आखिरी मुहर लगनी बाकी है. सौदे से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, सौदे का प्रारुप तैयार किया जा रहा है और अगले कुछ दिनों में सौदे की घोषणा कर दी जायेगी. अभी ये सौदा इंटर गर्वमेंटल कमेटी के पास फाइनल होने के लिए भेजा गया है.

जानकारी के मुताबिक, वियोंड विज्युल रेंज ‘मेटेओर’ मिसाइल की रेंज करीब 150 किलोमीटर है. हवा से हवा में मार करने वाली ये मिसाइल दुनिया की सबसे घातक हथियारों में गिनी जाती है. इसके अलावा राफेल फाइटर जेट लंबी दूरी की हवा से सतह में मार करने वाली 'स्कैल्प' क्रूज मिसाइल और हवा से हवा में मार करने वाली 'माइका' मिसाइल से भी लैस है.

सूत्रों के मुताबिक, राफेल प्लेन में एक और खासयित है. वो ये कि इसके पायलट के हेलमेट में ही फाइटर प्लेन का पूरा डिस्पले सिस्टम होगा. यानि उसे प्लेन के कॉकपिट में लगे सिस्टम को देखने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी. उसका पूरा कॉकपिट का डिस्पले हेलमेट में होगा.

माना जा रहा है कि सौदे पर स्टैंप लगने के बाद पहला प्लने अगले 36 महीने में भारत पहुंच जायेगा. सभी 36 प्लेन अगले 66 महीने में भारतीय वायुसेना में शामिल होने के लिए तैयार हो जायेंगे.

जानकारी के मुताबिक, राफेल बनाने वाली कंपनी से भारत ने ये भी सुनिश्चित कराया है कि एक समय में 75 प्रतिशत प्लेन हमेशा ऑपरेशनली-रेडी रहने चाहिए. इसके अलावा भारतीय जलवायु और लेह-लद्दाख जैसे इलाकों के लिए खास तरह के उपकरण लगाए गए हैं.

राफेल का फुल पैकेज कुछ इस तरह है. 36 विमानों की कीमत 3402 मिलियन यूरो, विमानों के स्पेयर पार्टस 1800 मिलियन यूरो के हैं जबकि भारत के जलवायु के अनुरुप बनाने में खर्चा हुआ है 1700 मिलियन यूरो का. इसके अलवा पर्फोमेंस बेस्ड लॉजिस्टिक का खर्चा है करीब 353 मिलियन यूरो का.

Tuesday, September 13, 2016

सारागढ़ी की लड़ाई अब रुपहले परदे पर !


विश्व- प्रसिद्ध ऐतिहासिक ‘सारागढ़ी की लड़ाई’ पर जाने-माने फिल्मकार राजकुमार संतोषी फिल्म बनाने जा रहे हैं. आज राजधानी दिल्ली में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और सूचना एवम प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने फिल्म का मुहूर्त शॉट दिया. फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं रणदीप हुड्डा.

सारागढ़ी की लड़ाई 12 सितबंर 1897 को पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर सारागढ़ी चौकी पर लड़ी गई थी. इस लड़ाई में 21 सिख योद्धाओं ने 10 हजार अफगानी कबीलाईयों से मुकाबला किया था. हालांकि लड़ते लड़ते सभी 21 सिख सैनिक शहीद हो गए थे, लेकिन मरने से पहले उन्होनें 600 अफगानियों को मौत के घाट उतार दिया था. करीब साढ़े छह घंटे चली इस लड़ाई में बेहद बहादुरी से लड़े इन वीर सैनिकों ने अफगानी कबीलाईयों को नाकों चने चबा दिए थे. यही वजह है कि यूनेस्को ने इस लड़ाई को इतिहास की आठ (08) सर्वश्रेष्ठ बहादुरी की गाथाओं में जगह दी है.

राजकुमार संतोषी ने इस फिल्म का टाइटल दिया है ’21 द लास्ट स्टैंड---द बैटेल ऑफ सारागढ़ी’. फिल्म के मुहूर्त शॉट के लिए राजधानी दिल्ली में सेना के मानेकशॉ-सेंटर में रणदीप हुड्डा और बाकी 20 सैनिकों को अंग्रेजों की फौज की वर्दी में मुहूर्त शॉट लिया गया. खास बात ये है कि मुहूर्त शॉट की क्लैपिंग केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने की और कैमरे पर थे मनोहर पर्रीकर और राज्यवर्धन राठौर. राजकुमार संतोषी ने फिल्म के महूर्त के लिए 12  सितम्बर का ही दिन चुना--यानी जिस दिन ये लड़ाई वास्तव में लड़ी गयी थी आज से 119 साल पहले. 

सारागढ़ी की लड़ाई की बारे में कम ही लोग जानते हैं. यही वजह है कि राजकुमार संतोषी इस लड़ाई को फिल्मी पर्दे पर उतारकर देश के आमजन तक पहुंचाने चाहते हैं. इस मौके पर बोलते हुए राजकुमार संतोषी ने कहा कि इस फिल्म के जरिए देश की गौरवगाथा का तो लोगों को पता चलेगा ही साथ ही सिखों को भी बालीवुड में एक उचित स्थान मिलेगा, जो अभी तक सिर्फ कॉमेडियन या फिर छोटे मोटे रोल तक सीमित रह जाते हैं. इस फिल्म के जरिए सिखों की बहादुरी की सच्ची कहानी लोगों तक पहुंचेगी. मिलेट्री इतिहास के जानकारों के मुताबिक हमारे देश के कम लोग ही इस विश्व-प्रसिद्ध जंग से वाकिफ हैं. हालांकि कई देशों की फौज में इस लड़ाई को (ट्रेनिंग) कोर्स के दौरान पढ़ाया जाता है--की कैसे विपरीत परिस्तिथियों में भी अपना मोर्चा नहीं छोड़ते हैं और दुश्मन से डटकर मुक़ाबला करते हैं.  

1897 में जब ये लड़ाई लड़ी गई थी उस वक्त हिंदुस्तान (यानि आज के भारत और पाकिस्तान में) अंग्रेजों की हुकुमत थी. ये 21 सिख सैनिक अंग्रेजी फौज का हिस्सा थे. ये सैनिक सिख रेजीमेंट का हिस्सा थे और नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (आज के पाकिस्तान में) सारागढ़ी किले की चौकसी का काम करते थे. बताते हैं कि इस इलाकों को अंग्रेजी हुकुमत से आजाद कराने के लिए अफगानी कबीलाईयों ने सारागढ़ी चौकी पर हमला बोल दिया था. लेकिन मात्र 21 सैनिकों ने मरते दम तक इस चौकी को नहीं छोड़ा. राजकुमार संतोषी के मुताबिक, ये 21 सैनिक चाहते तो सरेंडर भी कर सकते थे, लेकिन उन्होनें अपना कर्तव्य निभाना ज्यादा जरुरी समझा.