Sunday, December 23, 2018

हिंद महासागर की सुरक्षा: भारत की बड़ी अंतर्राष्ट्रीय पहल

गुरूग्राम स्थित आईएफसी-आईओआर

मुंबई हमले‌ के दस साल बाद भारत ने समंदर में संदिग्ध गतिविधियों पर लगाम लगाने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पहल की है। भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर की सुरक्षा के लिए राजधानी दिल्ली के करीब गुरूग्राम में एक बहुराष्ट्रीय इंफोर्मेशन फ्यूजन सेंटर स्थापित किया है। इस सेंटर में हिंद महासागर की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी इकठ्ठा की जायेगी और फिर हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को भेजी जायेगी।

आज नौसेना प्रमुख की मौजूदगी में  रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस 'आईएफसी-आईओआर' सेंटर का उद्धाटन किया। इस दौरान बड़ी संख्या में कई देशों के राजदूत और मिलिट्री अटै्चे मौजूद थे।

इस फ्यूजन सेंटर का मकसद हिंद महासागर क्षेत्र में आतंकवाद, समुद्री लुटेरो, ड्रग्स और हथियारों की स्मगलिंग पर लगाम लगाना है। इस मौके पर बोलते हुए नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि आज के समय में नॉन-स्टेट एक्टर्स यानि आतंकी संगठनों पर काबू पाना बेहद जरूरी है जो विश्व-शांति के लिए बड़ा खतरा हैं।

भारतीय नौसेना के मुताबिक, इस‌ फ्यूजन सेंटर के लिए हिंद महासागर‌ क्षेत्र के कुल 36 देशों की नौसेनाओं के साथ करार किया जा रहा है। इनमे से 12 देशों के साथ ये करार लागू किया जा चुका है और‌ उनके साथ समंदर की सुरक्षा को लेकर जानकारी साझा करना आज से ही शुरू हो जायेगा। इससे अरब सागर, बंगाल की खाड़ी, फारस की खाड़ी, अदन की खाड़ी जैसे समंदर में कोई भी संदिग्ध जहाज या बोट दिखाई पड़ती है तो सदस्य देशों की नौसेनाओं कोइसके बारे में जानकारीदे दी जायेगी और जिस नौसेना का युद्धपोत या फिर नेवल बेस करीब होगा वो उसके खिलाफ जरूरी कारवाई करेगा।

भारत‌ इस‌ तरह का मल्टीलेटर्ल सेंटर बनाने वाला चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। अभी तक इस तरह के सेंटर्स सिंगापुर, मेडागास्कर और यूरोपीय यूनियन के तत्वाधान में मैडेटेरियन सी यानि भूमंडलीय सागर में पहले से ही स्थापित हैं।

आपको बता दें कि गुरूग्राम में भारतीय नौसेना का पहले से ही 'आईमैक' यानि इंफोर्मेशन मैनेजमेंट एंड एनेलसिस सेंटर है जो एक समय में ही हिंद महासागर से गुजरने वाले करीब 72 हजार जहाजों पर निगरानी रखता है। क्योंकि हिंद महासागर क्षेत्र बेहद बड़ा है और अकेली भारतीय नौसेना के लिए‌ इतने बड़े समंदर की सुरक्षा करना बेहद मुश्किल होता है, इसलिए अब इसी आईमैक‌ सेंटर में ही 'आईएफसी-आईओआर' स्थापित किया गया है।
जल्द ही सदस्य देशों के नेवल ऑफिसर्स और‌ लाईजेनिंग-ऑफिसर्स यहां तैनात होंगे।

हालांकि, इस‌ आईमैक सेंटर से दुनिया के किसी भी कोने से गुजर रहे जहाज पर भी नजर रखी जा सकती है। लेकिन आईएफसी-आईओआर फिलहाल हिंद महासागर से गुजरने वाले कामर्शियल, कार्गो और ऑयल-टैंकर जहाजों ('वाइट शिपिंग) पर ही नजर रखने का काम करेगा। ग्रे-हल्स यानि
युद्धपोतों पर ये निगरानी नहीं रखता है।‌

आकंडें बताते हैं कि हिंद महासागर से दुनिया के एक-तिहाई शिप गुजरते हैं और कंटेनर-शिप्स‌ का हिस्सा लगभग‌ पचास प्रतिशत है। साथ ही तेल और‌ पैट्रोलियम का करीब दो-तिहाई‌ कारोबार‌ यहीं से होकर गुजरता है।‌

मुंबई के 26/11 हमले के बाद समंदर में घूमने वाले सभी बड़े जहाज और बोट्स की निगरानी के लिए आईमैक सेंटर की स्थापना की गई थी। मुंबई पर हमला करने वाले आतंकी समंदर के रास्ते ही देश की सीमा में दाखिल हुए थे।

गौरतलब है कि आईमैक सेंटर से भारत कीकरीब चार हजार किलोमीटर लंबी कोस्टलाइन यानि तटों और हिंद महासागर से गुजरने वाले सभी कॉमर्शियल जहाजों पर निगरानी रखी जाती है। ये निगरानी, तटो पर लगे सीसीटीवी, जहाज पर लगे आईएएस यानि ऑटोमैटिक इंटीग्रेटड सिस्टम, कोस्ट-गार्ड और नेवी के 51 रडार स्टेशन सहित सैटेलाइट के जरिए निगरानी रखी जाती है।


Wednesday, November 21, 2018

बीआरओ मजदूर संगठनों ने लगाया‌ अनदेखी का‌ आरोप


चीन सीमा पर सड़क और दूसरी मूलभूत सुविधाओं को तैयार करने वाली संस्था, बीआओ के मजदूर संगठन अपनी मांगों को लेकर राजधानी दिल्ली में 48 घंटों की भूख-हड़ताल का ऐलान किया है. इस दौरान माना जा रहा है कि कई हजार मजदूर सीमा पर चल रहे काम रोक देंगे. इस बात की घोषणा खुद बीआरओ के लेबर यूनियन ने राजधानी दिल्ली में दी. खास बात ये है कि इनदिनों बीआरओ के डीजी भी  चीन सीमा पर चल रहे कामों की समीक्षा के लिए  अरूणाचल प्रदेश के दौरे पर हैं.

बॉर्डर रोड ऑर्गेनाईजेशन यानि बीआरओ की कैजुयल लेबर के संगठनों के प्रतिनिधियों ने आज राजधानी दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान दावा किया कि सीमा पर काम करने वाले मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय हैं. ना तो उन्हें लेबर लॉ़ के तहत कोई मूलभूत सुविधाएं दी जाती हैं और ना ही सोशल सिक्योरिटी एक्ट उनपर लागू होता है. यही वजह है कि काम के दौरान उन्हें ना तो रहने के लिए कोई सही हट दी जाती है और ना ही बिजली पानी की कोई सुविधा होती है. महिलाओं को मेटरनिटी-लीव तक नहीं मिलती है.

बीआरओ लेबरर्स यूनियन (नार्थ-ईस्ट) के अध्यक्ष, लेकी शेरिंग के मुताबिक वर्ष 2012 से वे अपनी मांगों को लेकर रक्षा मंत्रालय से लेकर श्रम मंत्रालय और सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय तक के दरवाजें खटखटा चुके हैं. लेकिन कहीं कोई सुनवाई ना होती देख वे चीन सीमा से दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर 48 घंटे (22-24 नबम्बर) की भूख हड़ताल करने जा रहे हैं.

आपको बता दें कि बीआरओ चीन, पाकिस्तान और म्यांमार सीमा पर सड़कों, हवाई पट्टी इत्यादि जैसी सैन्य सुविधाओं को तैयार करने वाला संगठन है जो सीधे रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है. सीमा सड़क संगठन इन कार्यों के लिए बड़ी तादाद में अस्थायी मजदूरों को
 काम देता है. ये मजदूर अधिकतर स्थानीय निवासी होते हैं जो 17-18 हजार फीट की उंचाई पर पहाड़ों में, जंगलों इत्यादि में ये काम बीआरओ की देखरेख में करते हैं. उंचे पहाड़ों पर सड़क बनाने के दौरान हर साल बड़ी तादाद में इन मजूदरों की दुर्घटना में मौत हो जाती है.

दरअसल, रक्षा मंत्रालय का कहना है कि बीआरओ के मजदूर डेली-बेसिस‌ (दैनिक-आधार) पर काम करते हैं प्रोजेक्ट्स के आधार पर और सीजिन के आधार पर इसलिए उन्हें स्थायी मजदूरों वाली सुविधाएं नहीं दी जा सकती।

इस बीच रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, चीन सीमा पर चल रहे सीमा संबधी कार्यों की समीक्षा के लिए बीआरओ के डीजी, लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह दो दिन (21-22 नबम्बर) के दौरे पर अरूणाचल प्रदेश गए हैं. इस दौरान उन्होनें ताकसिंग से ग्लेनसिनयाक-बीदक तक पैदल यात्रा की और मुश्किल हालात में चल रहे प्रोजेक्टस की जानकारी ली.

Wednesday, July 18, 2018

पत्नी से ज्यादा 'बॉन्डिंग' लड़ाकू विमान से थी फाइटर पायलट को !!

भारतीय वायुसेना का एक मिग21 एयरक्राफ्ट आज हिमाचल प्रदेश के कांगडा में क्रैश हो गया। इस दुर्घटना में पायलट मीत कुमार की मौत हो गई। स्कॉवड्रन लीडर मीत कुमार भारतीय वायुसेना के पोस्टर बॉय थे जो हाल ही में वायुसेना की एक डॉक्यूमेन्टरी में दिखाए पड़े थे। इस वीडियो में वो अपने इसी मिग21 लड़ाकू विमान को अपनी 'पत्नी से ज्यादा बॉन्डिंग' कहते हुए सुनाई पड़ते हैं।
https://youtu.be/cXOrLW1To0E

भारतीय वायुसेना के प्रवक्ता के मुताबिक, आज दोपहर करीब डेढ़ बजे मिग 21 लड़ाकू विमान हिमाचल प्रदेश के कांगडा में क्रैश हो गया। इस विमान ने पठानकोट एयरबेस से उड़ान भरी थी। दुर्घटना के वक्त ये लड़ाकू विमान एक 'रूटीन सोर्टी' पर थी। दुर्घटना में पायलट को ऐसी चोटें आईं जिनसे उनकी मौत हो गई। इस मामले में जांच के आदेश दे दिए गए हैं।

स्कॉवड्रन लीडर मीत कुमार पठानकोट स्थित 26 स्कॉवड्रन का हिस्सा थे और मिग21 लड़ाकू विमान उड़ाते थे। रशिया के इस विमान से उनकी बड़ी 'बॉंडिंग' थी। ऐसी बांडिंग जो उनकी पत्नी से ज्यादा थी। 'ए डेट विद एयर वॉरियर' नाम के एक छोटी डॉक्यूमेन्टरी में वो दिखाई पड़ते हैं। इसमें वो बता रहे हैं कि कैसे ये मल्टीरोल एयरक्राफ्ट रॉकेट और भारी बमबारी कर सकता है। ये डॉक्यूमेन्टरी भारतीय वायुसेना ने तैयार कराई थी। वो बता रहे हैं कि कैसे इस विमान को उड़ाने पर उन्हें 'ईश्वर की अनुभूति' होती है।

भारतीय वायुसेना में मिग21 विमान 60 के दशक से शामिल हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में मिग विमानों के लगातार दुर्घटना के चलते इन्हें फेस-आऊट किया जा रहा है। इन मिग21 विमानों का अपग्रडेशन भी किया गया है। जिन्हें अब बाइसन के नाम से वायुसेना में जाना जाता है। मिग21 की अब मात्र 02 स्कावड्रन ही भारतीय वायुसेना में हैं इन्हें भा जल्द ही रिटायर कर दिया जायेगा।

आज ही लोकसभा में दिए गए बयान में रक्षाराज्य मंत्री सुभाष भामरे ने बताया कि पिछले तीन सालों में (2015-जुलाई 2018) तक वायुसेना के कुल 26 लड़ाकू विमान क्रैश हुए जिनमें 40 एयर-वॉरयिर्स की मौत हुई है।

Friday, May 25, 2018

आखिर क्यों हुई मेजर गोगोई के खिलाफ जांच !


सेना के तेजतर्रार लेकिन विवादित ऑफिसर, मेजर लीतुल गोगोई के खिलाफ सेना ने जांच के आदेश दे दिए हैं. सेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश श्रीनगर के एक होटल में एक महिला के साथ जाने और वहां पर होटल स्टॉफ के साथ कहासुनी के आरोप में दिया है.

सेना ने बयान जारी करते हुए कहा है कि मेजर गोगोई के खिलाफ “जांच पूरी होने के बाद जरूरी कारवाई की जायेगी.” खुद थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने अपने कश्मीर दौरे के दौरान आज ऐलान किया कि अगर मेजर गोगोई के खिलाफ आरोप सिद्ध हुए तो उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कारवाई की जायेगी.

आपको बता दें कि बुधवार को मेजर लीतुल गोगोई उस वक्त विवादों में फंस गए थे जब श्रीनगर के होटल ममता में वे एक कश्मीरी लड़की के साथ पाए गए थे. होटल स्टॉफ के साथ उनकी और उनके साथ आए समीर नाम के एक शख्स की इसलिए कहासुनी हो गई थी क्योंकि होटल के कमरे में कश्मीरी लड़की को ले जाने से मना कर दिया था.

दरअसल, मेजर गोगोई ने श्रीनगर के डलगेट के करीब स्थित होटल ममता में ऑनलाइन एक डीलक्स कमरा बुक किया था. 23 मई की सुबह करीब साढ़े 10 बजे वे होटल के रिसेप्शन पर पहुंचे थे. वहीं पर उन्होनें अपना ड्राइविंग लाईसेंस दिखाकर चैक-इन किया था. सीसीटीवी फुटेज में वो सिर पर एक कैप लगाए दिख रहे हैं. लेकिन उनके कमरे में जाने के तुंरत बाद उनके साथ आए एक ड्राइवर और एक कश्मीरी लड़की ने कमरे में जाने की कोशिश की तो होटल स्टाफ ने उन्हें इसलिए कमरे में जाने से मना कर दिया क्योंकि उनके होटल में स्थानीय कश्मीरियों को जाने की मनाही है. इस बात को लेकर होटल स्टॉफ का मेजर गोगोई के साथ आए ड्राइवर समीर की कहासुनी हो गई. बताया जा रहा है कि मेजर गोगोई ने भी होटल स्टॉफ को बुराभला कहा था. जिसके बाद होटल मैनजेमेंट ने फोन कर पुलिस को बुला लिया था. पुलिस अपने साथ मेजर गोगोई, लड़की और ड्राइवर को थाने ले गई थी. जिसके बाद तीनों के बयान दर्ज किए गए थे. कश्मीर के आईजी ने इस मामले में एक एसपी रैंक के अधिकारी को पूरे मामले की जांच के आदेश दिए थे. बयान के बाद मेजर गोगोई को उनकी यूनिट में वापस भेज दिया गया था.

मेजर गोगोई वहीं अधिकारी हैं जिसने पिछले साल (9 अप्रैल 2017) को एक कश्मीरी को अपनी जीप के बोनट के आगे बांध दिया था. जीप पर बंधे हुए कश्मीरी की फोटो देश-विदेश में वायरल हो गई थी. मेजर गोगोई का तर्क था कि बड़गाम में एक पोलिंग बूथ पर जमकर पत्थरबाजी हो रही थी. मेजर गोगोई अपने जवानों के साथ वहां पहुंचे और पोलिंग अधिकारियों को वहां से सुरक्षित निकाल कर ले आए.  लेकिन उसके लिए उन्होनें एक कश्मीरी (जिसे पत्थरबाज बताया गया था) उसे अपने जीप के आगे बांध दिया था ताकि पत्थरबाज पोलिंग पार्टी पर पत्थर ना मार सके. उनकी इस कार्यशैली (और कार्यवाही) को लेकर काफी निंदा हुई थी (कि उन्होनें मानवधिकार का उल्लंघन किया है). लेकिन उस वक्त थलसेना प्रमुख ने उन्हें ‘चीफ कमंडेशन’ अवार्ड से सम्मानित करते हुए कहा था कि जिन परिस्थितियों में मेजर गोगोई ने पोलिंग अधिकारियों को भीड़ और पत्थरबाजों से बचाया था वही सबसे सही रास्ता था (क्योंकि अगर गोली चलाई जाती तो काफी लोगों की जान पर बन सकती थी). यानि सेना प्रमुख ने ना केवल उनका बचाव किया था बल्कि उनके कार्यवाही को पूरी तरह से सही बताया था.

लेकिन अब ठीक एक साल बाद मेजर गोगोई फिर से विवादों में फंस गए हैं. वो इनदिनों श्रीनगर के करीब बड़गाम में सेना की राष्ट्रीय राईफल्स (यानि आरआर) की 53 आरआर यूनिट में तैनात हैं. वे यहां पर कंपनी कमांडर के तौर पर तैनात हैं. असम के तिनसुकिया के रहने वाले मेजर गोगोई एक जवान के तौर सेना में शामिल हुए थे.  लेकिन बाद में उन्होनें सेना का एक आंतरिक एग्जाम क्वालीफाई किया और आर्मी कैडेट कॉलेज से पास होकर लेफ्टिनेंट के पद पर पहुंच गए. हालांकि उनकी तैनाती सेना में सर्विस कोर में हुई थी, लेकिन कॉम्बेट रोल के लिए वे सिख रेजीमेंट में चले गए और फिर कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन के लिए राष्ट्रीय राईफल्स में चले गए.

अब सवाल ये है कि वे जब बड़गाम में तैनात थे तो श्रीनगर के होटल में क्यों रूकने आए थे. हालांकि सेना ने इस पर खुलकर कुछ नहीं कहा है लेकिन सूत्रों के मुताबिक, वे इनदिनों छुट्टी पर थे. छुट्टी खत्म होने से ठीक पहले वे श्रीनगर पहुंच गए और होटल ममता में रूकने आ गए.

दूसरा सवाल ये है कि वो लड़की और ड्राइवर उनसे मिलने होटल में क्यों आए थे. हालांकि सेना ने अभी तक कुछ साफ नहीं कहा है क्योंकि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दे दिए गए हैं जो इन सभी सवालों के जवाब ढूंढेगी. लेकिन सूत्रों के मुताबिक, लीटुल गोगोई ने अपने अधिकारियों को बताया है कि वो लड़की बड़गाम की ही रहने वाली है और उनकी ‘सोर्स’ यानि मुखबिर थी. क्योंकि वे उससे बड़गाम में नहीं मिल सकते थे इसलिए श्रीनगर के होटल में मिलने के लिए बुलाया था.

कश्मीर घाटी में कई बार आतंकियों के खिलाफ बड़े इनपुट स्थानीय लड़कियों ने ही पुलिस और सेना को दिया है. लेकिन क्या ये लड़की वाकई मेजर गोगोई की सोर्स थी या नहीं ये सब जांच के बाद ही साफ हो पायेगा. 

Monday, May 21, 2018

बेहद जरूरी है अंतरिक्ष की निगहबानी: रक्षा मंत्री


स्पेस यानि अंतरिक्ष की निगहबानी बेहद जरूरी है ताकि अगर वहां कुछ घटनाक्रम हो तो भारत तैयार रहे। इस निगरानी के लिए 'आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस' काफी मददगार साबित हो सकती है। ये कहना है देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण का।

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण आज राजधानी दिल्ली में   'आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस इन नेशनल सिक्योरिटी एंड डिफेंस' नाम के सेमिनार में बोल रही थीं। रक्षा मंत्री के मुताबिक, हमें "अंतरिक्ष की अच्छे से मॉनिटरिंग करनी है ताकि अगर वहां कुछ हो जाए तो हम ऐसा ना हो कि कुछ कर ना पाएं।"

आपको यहां बता दें कि भारत के पड़ोसी देश चीन ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल तैयार कर ली है। 'ए-सैट' नाम की ये मिसाइल स्पेस में दुश्मन के सैटेलाइट को मार गिरा सकती है। चीन ने कुछ साल पहले इस ए-सैट मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। युद्ध की स्थिति में चीन अपने दुश्मन देश के सैटेलाइट को टारगेट कर नेवीगेशन और दूसरे कम्युनिकेशन को बंद कर सकता है।

यही वजह है रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने सशस्त्र सेनाओं, मिलिट्री साईंटिस्ट्स और आईटी प्रोफेनल्स की मौजूदगी में आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस यानि एआई के जरिए स्पेस की निगरानी करने पर जोर दिया। इस सेमिनार में वायुसेना के वायस चीफ, एयर मार्शल एस बी देव, थलसेना के उपप्रमुख सहित नौसेना, डीआरडीओं और प्राईवेट डिफेंस कंपनियों के प्रतिनिधि मौजूद थे।

रक्षा मंत्री ने कहा कि थलसेना, वायुसेना और नौसेना के साथ साथ 'आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस' आज के दौर में साइबर और न्युक्लिर वॉरफेयर को क्षेत्र में बेहद उपयोगी है।

आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस यानि एआई कम्पयूटर, मशीन्स और रॉबोट्स का एक ऐसा समूह होता है जो ठीक वैसा ही सोचता है जैसाकि एक आदमी का दिमाग सोचता है, लेकिन वो आदमी के दिमाग से कहीं ज्यादा तेज काम करता है। यहां तक की वो किसी भी गलती को तुरंत पकड़ लेता है। यही वजह है कि सेनाओं और दूसरे क्षेत्र जहां डाटा बहुत ज्यादा होता है वहां दुनियाभर में एआई का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। यूएस, चीन, रशिया और जर्मनी जैसे दुनियाभर में चुनिंदा ही देश हैं जहां सैन्य-क्षेत्र में आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है। चीन ने तो अपनेआप को 2030 तक एआई का ग्लोबल लीडर बनाने की घोषणा कर दी है।

सेमिनार में बोलते हुए रक्षा सचिव (उत्पादन) डॉ अजय कुमार ने कहा कि सीमा पर एक जवान के लिए अपनी ड्यूटी करना बेहद मुश्किल काम होता है। एक जवान के लिए चौबीसों घंटे निगरानी करने थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन अगर यही काम रोबोट या फिर कोई मशीन करती है तो वो ना तो थकेगी और ना ही किसी जवान की कीमती जान ही जायेगी। साथ ही मशीन नैनो-सेकेंड में अपना काम शुरू कर देगी।

इस मौके पर बोलते हुए एयर मार्शल एस बी देव ने कहा कि आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल युद्ध लड़ने, टारगेट हिट करने और वहां किया जा सकता है जहां हमारे हथियार चाहते हैं। हाल ही में संपन्न हुई गगनशक्ति एक्सरसाइज का जिक्र करते हुए एस बी देव ने कहा कि हमने एआई का इस्तेमाल बड़ी तादाद में आ रहे डाटा को फिल्टर करने के लिए किया था।

Friday, May 18, 2018

इतिहास रचकर भारत पहुंचा 'नाविका सागर परिक्रमा' महिलादल

पिछले आठ महीने में पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर भारतीय नौसेना की महिला टीम ने इतिहास रच दिया है। 'नाविका सागर परिक्रमा' की टीम अब भारत की समुद्री सीमा में दाखिल हो गई है। 21 मई को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा गोवा के तट पर महिला टीम और उनकी बोट, आईएनएसवी तारिणी का स्वागत करेंगी।

भारतीय नौसेना के मुताबिक, शुक्रवार को  तारिणी  की लोकेशन अरब सागर में गोवा से करीब 115 नॉटिकल मील थी (यानि करीब 212 किलोमीटर)। पिछले आठ महीने में तारिणी और भारतीय नौसेना की महिला टीम ने करीब 21 हजार छह सौ नॉटिकल मील का सफर पूरा किया है। टीम का नेत्तृव कर रही हैं लेफ्टिनेंट कमांडर, वतृिका जोशी। टीम की बाकी पांच सदस्य हैं लेफ्टिनेंट कमांडर स्वाथि पी, लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल, लेफ्टिनेंट पायल गुप्ता और लेफ्टिनेंट ऐश्वर्या बोडापट्टी।

10 सितबंर 2017 को गोवा के तट से ही पूरी दुनिया का चक्कर लगाने के लिए निकली तारिणी की टीम जाने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से राजधानी दिल्ली में मिली थीं। यहां तक की जब टीम समंदर में ही थी तो पीएम ने उनसे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए भी बात की थी। अपनी छोटी सी बोट (यॉट) तारिणी से दुनिया 'फतह' करने निकली इस टीम का मकसद है देश की नारी शक्ति का प्रदर्शन करना और युवाओं को नौसेना की रोमांचक दुनिया की तरफ आकर्षित करना।

अपने करीब आठ महीने की इस सागर परिक्रमा को तारिणी की टीम ने छह चरणों में पूरी की। इस दौरान उन्होनें पांच देशों की यात्रा की, चार महाद्वीप और तीन महासागर से होते हुए अपनी यॉट से इस अभियान को पूरा कर इतिहास रचा है। आजतक दुनियाभर में किसी महिला टीम ने ऐसा नहीं किया है।

अपने इस अभियान के दौरान तारिणी ने कुल पांच बंदरगाह पर विश्राम किया--फ्रिमेंटल (आस्ट्रेलिया), लियेलईटन (न्यूजीलैंड), अर्जन्टीना के करीब पोर्ट स्टेनैले (फॉकलैंड आईलैंड), केप टाउन (साउथ अफ्रीका) और मॉरीशस। जहां जहां तारिणी पहुंची, वहां उसकी टीम का जोरदार स्वागत हुआ। सभी स्थानीय गर्वनर, हाई कमीशन और लोगों ने तारिणी का जमकर स्वागत किया।

लेकिन इस दौरान तारिणी का यात्रा को काफी मुश्किल दौर से भी गुजरना पड़ा। प्रशांत महासागर में करीब छह मीटर उंची लहरें और 60 नॉट्स की हवाओं का सामना करना पड़ा। मॉरीशस पहुंचकर बोट का स्टेयरिंग तक टूट गया था। लेकिन भारतीय नौसेना की इन छह महिला अधिकारियों ने हार नहीं मानी और अपने अभियान को पूरा कर ही दम लिया। यही वजह है कि सोमवार को जब वे गोवा के तट पर पहुंचेंगी तो खुद रक्षा मंत्री उनकी आगवानी करने पहुंचेंगी।

Tuesday, May 15, 2018

भारतीय सेना को मिलेंगी दक्षिण कोरिया से तोपें

पूर्वी सुदूर देश, दक्षिण कोरिया से भारत के सैन्य संबंधों को नया आयाम मिलने जा रहा है। जल्द ही भारतीय सेना को दक्षिण कोरिया से 100 तोपें मिलने जा रही हैं। भारत की एल एंड टी कंपनी ने इसके लिए दक्षिण कोरिया की एक कंपनी से करार किया है। भारतीय सेना के एक बड़े अधिकारी ने एबीपी न्यूज को बताया कि कोरिया की 'के-9' तोप के ट्रायल सफल रहे हैं और जल्द ही इन्हें सेना के तोपखाने में शामिल कर लिया जायेगा। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए 814 नई तोपों के लिए आरएफआई (टेंडर प्रकिया) जारी कर दी है।

जानकारी के मुताबिक,  मेक इन इंडिया के तहत दक्षिण कोरिया की एक बड़ी कंपनी,हानवा-टेकविन भारत की एल एंड टी के साथ मिलकर भारतीय सेना के लिए 100 आर्टेलैरी-गन बना रही है। भारत में इन तोपों को 'के9 वज्र-टी' का नाम दिया गया है।

155x52 कैलेबर की ये तोपें पुणे के करीब तालेगांव में एल एंड टी के प्लांट में तैयार की जा रही हैं। इस प्रोजेक्ट में एल एंड टी और कोरियाई कंपनी, हानवा-टेकविन की 50-50 प्रतिशत भागेदारी है।

आपको यहां ये बता दें कि कुछ महीने पहले जब दक्षिण कोरियाई सरकार के निमंत्रण पर एबीपी न्यूज की टीम सियोल के करीब दक्षिण कोरियाई सेना के एक मिलिट्री-बेस पर गई थी तो वहां खासतौर से के-9 तोपों का फायर पॉवर डेमोंशट्रेशन दिखाया गया था। दक्षिण कोरिया की सेना वर्ष 1999 से इन तोपों का इस्तेमाल कर रही है।
भारतीय सेना के मुताबिक, टैंक नुमा ये खास तरह की 'के9 वज्र' तोप रेगिस्तानी इलाकों के लिए तैयार की गई है. बताते चलें कि भारत की एक लंबी सीमा जो पाकिस्तान से सटी हुई है वो राजस्थान के थार-रेगिस्तान से होकर गुजरती है. ये होवित्जर गन चालीस (40) किलोमीटर तक मार कर सकती है. साथ ही चार किलोमीटर की दूरी पर बने दुश्मन के बंकर और टैंकों को भी तबाह करने में सक्षम है. ये सेल्फ प्रोपेलड ट्रेक्ड तोपें हैं।

ये के-9 तोप दक्षिण कोरिया के साथ साथ यूएई, पोलैंड और फिनलैंड जैसे देश इस्तेमाल कर रही हैं.

भारतीय सेना के अधिकारी के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय
ने आर्टिलरी गन यानि तोपखाने के आधुनिकरण प्रक्रिया को तेज करते हुए 814 ट्रक माउंटेड आर्टिलरी गन के लिए रिक्वेस्ट ऑफ़ इनफ़ॉर्मेशन (आरएफआई) जारी किया है। ये तोपें 'बाय ग्लोबल' के तहत सेना के लिए खरीदी जाएंगी। यानि भारतीय कंपनियों किसी विदेशी कंपनी के साथ मिलकर ये तोपें सेना को मुहैया करा सकती हैं।

पंद्रह हज़ार करोंड से ज़्यादा की क़ीमत की ये 155 एमएम X 52 कैलिबर की तोपों भारतीय सेना की ताक़त को और बढ़ाएँगे। इस तरह की माउंटेड गन सिस्टम को बनाने के लिए पहले से ही कई विदेश कंपनियों ने भारतीय कंपनियों से क़रार कर इस पर काम भी शुरू कर दिया है।  भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के लिए सरकार स्वदेशी कंपनियों को तवज्जो दे रही है।

फिलहाल सेना आर्टिलरीं गन्स की कमी से जूझ रही है।  1999 में शुरू हुए सेना के आधुनिकीकरण के प्लान में आर्टिलरी तोपें सबसे अहम थीं, जिसमें साल 2027 तक 2800 तोपें भारतीय सेना में शामिल करने का लक्ष्य है।

इसके लिए 155 एमएम की अलग अलग कैलिबर की तोपें ली जानी है। इनमें से 1580 टोड तोप जो की गाड़ियों के ज़रिये खींची जाने वाली हैं और 814 ट्रक माउंटेड गन यानी गाड़ियों पर बनी तोपें हैं (जिनकी आरएफआई जारी की गई है)।

100 तोपें सेल्फ़ प्रोपेल्ड ट्रैक्ड हैं जो रेगिस्तानी इलाक़ों के लिए हैं (के9) और 145 अल्ट्रा लाईट होवित्जर तोपें (एम777 जो अमेरिका से ली जा रही हैं) हैं जिन्हें हैलिकॉप्टर के जरिए उन पहाड़ी इलाक़ों तक ले जाया जा सकता है जहाँ सड़कों के जरिए पहुँच पाना थोड़ी मुश्किल होता है।

Thursday, May 3, 2018

अजीत डोवाल की अगुवाई में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बनाने की तैयारी शुरू

देश की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और  सामरिक-रक्षा नीति को तैयार करने के लिए बनाई गई डिफेंस प्लानिंग कमेटी (डीपीसी) की आज पहली बैठक हुई. इस कमेटी के अध्यक्ष खुद नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर यानि एनएसए अजीत डोवाल हैं. आज रक्षा मंत्रालय में इसकी पहली बैठक हुई. देश की सुरक्षा और रक्षा मामलों से जुड़ी इस सबसे बड़ी कमेटी में तीनों सेनाओं के प्रमुख सहित रक्षा, विदेश और वित्त ( सचिव शामिल हैं.

जानकारी के मुताबिक, ये कमेटी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रटेजी का ड्राफ्ट तो तैयार करेगी ही साथ ही मौजूदा रक्षा नीति की समीक्षा भी करेगी. एबीपी न्यूज के पास रक्षा मंत्रालय का वो दस्तावेज है जिसमे इस कमेटी का स्वरूप और इसका कार्य-क्षेत्र निर्धारित किया गया है. इस दस्तावेज के मुताबिक, रक्षा मामलों से जुड़े सभी महत्वपूर्ण मामले इस कमेटी के दायरे में आएंगे.

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, ये कमेटी सीधे कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी यानि सीसीएस के अंतर्गत काम करेगी, जिसके अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं. ये कमेटी उन सभी मामलों को भी देखेगी जो रक्षा मंत्री द्वारा भेजे जायेंगे.

जानकारी के मुतााबिक, ये कमेटी इस बात पर काम करेगी कि आखिर शांति के समय में हमारी रक्षा नीति कैसी होगी और युद्ध के समय में कैसी होगी. डीपीसी इस बात की योजना तैयार करेगी कि हमाारी मिलिट्री-डिप्लोमेसी कैसी होगी. हमारी सेना के दूसरे देश की सेनाओं के साथ कैसे संबंध होंंगे.

इसके अलावा डीपीसी रक्षा उत्पादन यानि देश में हथियार और गोला-बारूद का उत्पादन कैसा हो और आर्म्स एंड एम्युनेशन के एक्सपोर्ट यानि निर्यात को भी देखेगी.

सूत्रों  के मुताबिक, इस कमेटी के जरिए रक्षा मंत्रालय से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को पूरा करने में तेजी आएगी. साथ ही तीनों सेनाओं के बीच समन्वय और एकीकरण में भी तेजी आयेगी.

चीफ ऑफ इंटीग्रेटड डिफेंस स्टॉफ (आईडीएस) इस कमेटी के सचिव होंगे और आईडीएस मुख्यालय ही डीपीसी का सचिवालय होगा.

Wednesday, May 2, 2018

शी-मोदी की मुलाकात से सुधरेंगे सैन्य संबंध !


हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हुई एतेहासिक मुलाकात का असर दोनों देशों के सैन्य संबंधों पर दिखने लगा है। दोनों देश विवादित सीमा पर 'कोर्डिनेटेड पैट्रोलिंग' के लिए तैयार हो गए हैं। इसके मायने ये हैं कि अब जब भी किसी विवादित इलाके में दोनों सेनाओं की टुकियां गश्त लगाने जाएंगी तो पहले दूसरे देश के स्थानीय कमांडरों को इसकी सूचना दे दी जायेगी।

सूत्रों की मानें तो हाल के दिनों में कई बार वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि एलएसी पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच तीखी नोंकझोंक और झड़प भी देखने को मिली हैं। इसलिए इस बात का फैसला लिया गया है कि अब विवादित क्षेत्रों में गश्त की जानकारी पहले से ही दूसरे देश के स्थानीय कमांडरों को दे दी जायेगी। इससे फेसऑफ यानि गतिरोध और झड़प पर रोक लग सकेगी।

इसके अलावा अब जो भी कोई सीमा विवाद होगा उसे 2003 में दोनों देशों के बीच हुई संधि के जरिए सुलझा़ा जायेगा।

सूत्रों के मुताबिक, ये कदम शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात के बाद उठाए गए हैं। इसके अलावा दोनों देशों के डीजीएमओ के बाद जल्द ही हॉटलाइन स्थापित की जायेगी ताकि सीमा पर स्थानीय स्तर पर हुए विवाद को बढ़ने ना दिया जाए और उसे समय रहते 'टॉप लेवल' पर सुलझा लिया जाए।

इसके अलावा दोनों देशों की सेनाओं के बीच होने वाले सालाना युद्धभ्यास को फिर से इस साल शुरू किया जायेगा। हैंड इन हैंड नाम के इस युद्धभ्यास को डोकलाम विवाद के बैद रद्द कर दिया गया था। इसके अलावा जल्द ही दोनों देशों की सेनाएं रशिया में एससीओ देशों की होने वाली एक्सरसाइज में एक साथ कदमताल करती दिखेंगी।

इस बीच आज दोनों देशों की सेनाएं के बीच लद्दाख के चुशुल में बॉर्डर पर्सनैल मीटिंग यानि बीपीएम का आयोजन किया गया। दोनों देशों के स्थानीय कमांडरों की मीटिंग के साथ साथ एक रंगारंग कार्यक्रम का भी आयोजन गया। अरूणाचल प्रदेश से सटे चीन के वाचा में भी दोनों देशों के सैन्य कमांडरों ने एके दूसरे से गिफ्ट-एक्सचेंज किए। 1 मई यानि लेबर डे को चीन में राष्ट्रीय पर्व माना जाता है। इसी के उपलक्ष्य में दौनों देशों की सेनाएं सीमा पर एक दूसरे से मीटिंग करती हैं। 

Thursday, April 12, 2018

पहली बार भारत और पाकिस्तानी सेना करेंगी एक साथ युद्धभ्यास: रूस में होगी एक्सरसाइज़

एक दूसरे के कट्टर दुश्मन देश भारत और पाकिस्तान की सेनाएं अब एक साथ युद्धभ्यास में हिस्सा लेंगी। अगस्त के महीने में रूस में एससीओ सदस्य देशों की बहुराष्ट्रीय मिलिट्री एक्सरसाइज होने जा रही है जिसमें पहली बार भारत और पाकिस्तान की सेनाएं भी इस युद्धभ्यास में शिरकत करेंगी।

जानकारी के मुताबिक, इस साल अगस्त महीने में शंघाई कोपरेशन आर्गेनाइजेशन (यानि एससीओ) देशों की पांचवी मिलिट्री एक्सरसाइज रूस में होने जा रही है। एससीओ देशों की सेनाएं इस युद्धभ्यास में एक दूसरे के साथ वॉर-ड्रिल करती हैं। क्योंकि पिछले ही साल भारत और पाकिस्तान एससीओ के सदस्य बने हैं इसलिए दोनों देशों की सेनाएं भी एक साथ कदमताल करती दिखेंगी। एससीओ मे भारत, पाकिस्तान और रूस सहित चीन, कजाकिस्तान, किर्गस्तान, तजाकिस्तान और उजबेकिस्तान सदस्य हैं।

वैसे भारत और चीन की सेनाएं भी सालाना हैंड इन हैंड नाम की द्विपक्षीय एक्सरसाइज करती हैं। हालांकि डोकलाम विवाद के बाद पिछले साल ये युद्धभ्यास रद्द कर दिया गया था, लेकिन इस साल हैंड इन हैंड एक्सरसाइज होने जा रही है। भारत और रूस की सेनाएं भी इंद्रा एक्सरसाइज करती आई हैं। पिछले साल ही भारतीय सेना के तीनों अंगों ने रूस की सेनाओं के साथ अबतक की सबसे बड़ी द्विपक्षीय एक्सरसाइज की थी।
लेकिन पाकिस्तान के साथ भारत ने आजतक किसी तरह का युद्धभ्यास नहीं किया है।

भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी से किसी से छिपी नहीं रही है। एलओसी पर आएदिन दोनों देशों की सेनाओं में गोलाबारी होती रहती है। भारत लगातार पाकिस्तानी सेना पर आतंकियों को एलओसी पर घुसपैठ कराने की मदद का आरोप लगाता रहता है। साथ ही कश्मीर घाटी में भी आतंकवाद को बढ़ावे देने में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआईएस का एक बड़ा हाथ हमेशा से रहा है

Monday, April 9, 2018

ब्रह्मोस को निर्यात करने के लिए तैयार भारत: रक्षा मंत्री

भारत जल्द ही अपने जंगी बेड़े की सबसे शक्तिशाली ब्रह्मोस मिसाइल को मित्र देशों को निर्यात करने के लिए तैयार है। इस बात का इशारा खुद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज राजधानी दिल्ली में किया।

डिफेंस एक्सपो से ठीक पहले आज राजधानी दिल्ली में
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सीआईआई द्वारा आयोजित एक सेमिनार में बोल रहीं थीं। रक्षा मंत्री के मुताबिक, कई देशों ने ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। हालांकि हमारे देश में हथियारों की खरीद-फरोख्त में एक लंबा समय लगता है बावजूद इसके कई देशों की इस मिसाइल में दिलचस्पी है और हम अपने मित्र-देशों को ब्रह्मोस बेचने को तैयार हैं।

रक्षा मंत्री ने कहा कि ये बात सही है कि हमे दुनिया के सबसे बड़े हथियारों के आयातक देश हैं लेकिन हमें इसे बदलना होगा और निजी क्षेत्र की कंपनियों को सेनाओं के लिए जरूरी सैन्य साजो-सामान उपलब्ध करना होगा। गौरतलब है कि 11 अप्रैल से चेन्नई में शुरू होने वाले डिफेंस एकस्पो में पहली बार भारत अपने आप को हथियार उत्पादन करने वाले देश के तौर पर प्रदर्शित करने जा रहा है। रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल हमारे देश में करीब 55 हजार करोड़ रूपये के सैन्य साजो सामान का उत्पादन हुआ। यही वजह है कि भारत अब देश में बने हथियारों को निर्यात करने जा रहा है।

ब्रह्मोस मिसाइस खरीदने में वियतनाम सहित दक्षिण अमेरिकी की दो देशों ने दिलचस्पी दिखाई है। माना जा रहा है कि वियतनाम से इस मिसाइल को देने के लिए कीमत पर बाचचीत चल रही है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि वियतनाम के संबंध कभी भी भारत के पड़ोसीे (और दुश्मन देश) चीन से अच्छे नहीं रहें हैं।

ब्रह्मोस दुनिया की चुनिंदा सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल में से एक है जिसे भारत ने रशिया के साथ तैयार किया है। 

Friday, April 6, 2018

भारत की 'गगनशक्ति' !

चीन और पाकिस्तान से एक साथ निपटने के लिए भारतीय वायुसेना अब तक का सबसे बड़ा युद्धभ्यास कर रही है. टू-फ्रंट वॉर के लिए भारतीय वायुसेना देशभर में इस एक्सरसाइज को थलसेना और नौसेना के साथ मिलकर कर रही है. इस युद्धभ्यास को गगन-शक्ति नाम दिया गया है. इसके अलावा सरकार ने वायुसेना की कम होती स्कॉवड्रन के मद्देनजर वायुसेना के लिए 110 लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला किया है. इसके लिए रक्षा मंत्रालय ने आज टेंडर प्रक्रिया शुरु कर दी.
वायुसेना के एक बड़े अधिकारी ने आज बताया कि वायुसेना के करीब 1100 लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, कमान और स्कॉवड्रन इस वक्त एकदम अलर्ट स्थिति में हैं और वायुसेना प्रमुख के आदेश मिलते ही इस युद्धभ्यास को रियल-सिनएरियो में शुरू कर दिया जायेगा. ये अलर्ट 8 अप्रैल से 21 अप्रैल तक रहेगा. एक्सरसाइज को दो चरणो में किया जायेगा. पहले चरण में ये पश्चिमी थियेटर यानि पाकिस्तान से सटी सीमा पर किया जायेगा और दूसरे चरण में उत्तरी थियेटर यानि चीन सीमा पर किया जायेगा.
इसके लिए वायुसेना के सभी एयरबेस और अड्डों के साथ साथ सिविल एयरपोर्ट, सरहदों पर बनी एएलजी यानि एडवांस लैंडिग ग्राउंड और हवाई पट्टियां अलर्ट पर रहेंगी. इसके अलावा सिविल एवियशन विभाग के अधिकारी, एचएएल और बीईएल के अधिकारियों और तकनीकी स्टॉफ भी वायुसेना की इस एक्सरसाइज में मदद करेगी. वायुसेना के करीब 300 अधिकारी और करीब 15 हजार वायुकर्मी हिस्सा ले रहे हैं. भारतीय रेल से भी इस एक्सरसाइज में मदद ले जा रही है. एक्सप्रेस हाईवे पर भी लैडिंग के लिए सिविल प्रशासन की मदद ली जायेगी.
जानकारी के मुताबिक, इस एक्सरसाइज के लिए सभी तरह की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. यानि अलग-अलग तरह के वॉर-फ्रंट इस युद्धभ्यास में बनाए दर्शाए जायेंगे. यानि सुरक्षात्मक और आक्रमक परिस्थिति तो होंगी ही साथ ही अगर पहले पाकिस्तान हमला करता है तो किस तरह उसका जवाब दिया जायेगा. और अगर पाकिस्तान की मदद के लिए चीन आगे आता है तो फिर भारत उसका मुकाबला कैसे करेगा. वायुसेना को 48 घंटे के भीतर अपने ऑपरेशन्स को शुरू कर देगा. ये ऑपरेशन्स दिन और रात में किए जाएंगे. खासतौर से वैपेन डिलीवरी पर वायुसेना का पूरा जोर रहेगा. यानि कि लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टर्स की बमबारी और मिसाइलों का सटीक निशाना हो. वायुसेना की स्पेशल फोर्सेज़ यानि गरूण कमांडोज़ को स्पेशल ऑपरेशन्स की तैयारी की जायेगी,
नौसेना की मदद से समंदर में भी इस एक्सरसाइज को अंजाम दिया जायेगा. नौसेना की मदद से लॉंग रेंज मेरिटाइम पैट्रोलिंग की जायेगी. ये सब रक्षा मंत्रालय के ज्वाइंट ऑपरेशन्ल डॉकट्रिन की तहत अंजाम दिया जायेगा.
इस एक्सरसाइज के लिए सुखोई और दूसरे लड़ाकू विमानों को असम से सीधे भुज और राजस्थान के रेगिस्तान से सीधे चीन सीमा पर भेजने की तैयारी दी जायेगी ताकि वायुसेना के कम हो रहीं स्कॉवड्रन के बावजूद ऑपरेशन्स में कोई कमी ना हो. इसके अलावा एयरक्राफ्ट्स को ज्यादा से ज्यादा उड़ान भरने के लिए तैयार रखा जायेगा. एचएएल और बीईएल के इंजीनियर्स और टेक्नीशियन्स को एयरबेस पर ही तैनात किया जायेगा ताकि अगर लड़ाकू विमान और रडार सिस्टम में कोई गड़बड़ी हो तो तुरंत उसे सुधार लिया जाए. पूरी एक्सरसाइज नेटवर्क सेंट्रिक होगी. यानि सैटेलाइट के जरिए पूरी एक्सरसाइज को दिल्ली स्थित वायुसेना मुख्यालय से कंट्रोल किया जायेगा.
प्रोटोकॉल के तहत पाकिस्तान को इस एक्सरसाइज की जानकारी दे दी गई है जबकि चीन से भी संपर्क साधा जा सकता है.
हालांकि आज ही रक्षा मंत्रालय ने वायुसेना की कम हो रहीं स्कॉवड्रन को ध्यान में रखते हुए 110 लड़ाकू विमानों को खरीदने के लिए ग्लोबल टेंडर की प्रक्रिया शुरु कर दी है. इनमें से 15 प्रतिशत फाइटर जेट्स सीधे खरीदे जाएंगे और बाकी 85 प्रतिशत मेक इन इंडिया के तहत देश में ही तैयार किए जाएंगे. इसके लिए स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप के तहत कोई भी भारतीय कंपनी किसी विदेशी कंपनी से करार कर इस टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा ले सकती है.
साथ ही इनमें से 25 प्रतिशत टू-इऩ सीटर जेट्स होगें (यानि ट्रेनिंग के लिए) और बाकी 75 प्रतिशत सिंगल-सीटर हैं.

Wednesday, April 4, 2018

दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश का ठप्पा हटाने की जुगत में भारत!


दुनिया के सबसे बड़े हथियारों के आयातक देश का ठप्पा झेल रहा भारत अब हथियारों को निर्यात करने जा रहा है. इसके लिए जल्द ही रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक डिफेंस एक्सपर्ट एजेंसी का गठन किया जायेगा. साथ ही 11 अप्रैल से चेन्नई में होने जा रहे डिफेंस-एक्सपो में भी भारत अपने आप को सैन्य साजों-सामान के उत्पादन देश के बारे में दुनिया को दिखाने जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 अप्रैल को डिफेंस एक्सपो का विधिवत उद्घाटन करेंगे.

राजधानी दिल्ली में आज डिफेंस एक्सपो के लिए आयोजित प्रेस काफ्रेंस में रक्षा सचिव (उत्पादन) अजय कुमार ने बताया कि पिछले (बीते) साल भारत में करीब 55 हजार करोड़ रूपये के हथियारों और दूसरे सैन्य साजो-सामान का उत्पादन किया गया. जिनमें पनडुब्बियों से लेकर चेतक हेलीकॉप्टर, तेजस, सुखोई और जैगुआर फाइटर जेट्स और ब्रह्मोस, आकाश और पिनाका मिसाइल शामिल हैं. इसीलिए अब भारत अपने को हथियारों के उत्पादक और निर्यातक देश के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहता है. यहां तक की भारत की छोटी और मध्यम दर्जे की निजी कंपनियां भी बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी दुनिया की बड़ी कंपनियों को उनके उत्पादनों में मदद करती आई हैं. एक भारतीय कंपनी तो इजरायल को उसके हथियार बनाने में मदद करती है.

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, कई देशों ने ब्रह्मोस सहित कई सैन्य प्लेटफार्मस को खरीदने की इच्छा जताई है. इसीलिए पहली बार डिफेंस एक्सपो की संकल्पना को बदल दिया गया है. अभी तक भारत में आयोजित होने वाली अंतर्राष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनी में सिर्फ देश-दुनिया की आर्म्स कंपनियों को प्लेटफार्म दिया जाता था. लेकिन पहली बार चेन्नई में आयोजित होने वाले डिफेंस एक्सपो (11-14 अप्रैल) में भारत का अलग प्वेलियन होगा जिसमें भारत के सैन्य साजो-सामान को दर्शाया जायेगा.

गौरतलब है कि हाल ही में ग्लोबल एजेंसी, सिपरी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का आयतक देश है. माना जाता है कि दुनियाभर के आर्म्स ट्रेड का 12 प्रतिशत अकेला भारत ही करता है.

ये पहली बार है कि डिफेंस एक्सपो को चेन्नई में आयोजित किया जा रहा है. पिछली बार डिफेंस एक्सपो को गोवा में आयोजित किया गया था. उससे पहली तक डिफेंस एक्सपो हमेशा दिल्ली में आयोजित किया जाता रहा था. दो साल में एक बार होने वाला पहला डिफेंस एक्सपो 1999 में हुआ था

इस साल डिफेंस एक्सपो में देश-विदेश की 671 कंपनियां हिस्सा ले रही हैं जिनमें 517 भारतीय हैं. जो देश इस साल हिस्सा ले रहे हैं वे हैं अमेरिका, इंग्लैंड, अफगानिस्तान, चेक गणराज्यस फिनलैंड, इटली, म्यांमार, नेपाल, कोरिया, सेशल्स और वियतनाम शामिल हैं. जानकारी के मुताबिक, चीन को भी डिफेंस एक्सपो में शिरकत के लिए न्यौता दिया गया था लेकिन अभी तक चीन की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.

इस साल डिफेंस एकस्पो में हिस्सा लेनी वाली विदेशी कंपनियों में गिरावट आई है। जहां इस साल कुल देश-विदेश की  617 कंपनियां हिस्सा ले रही हैं वहीं 2016 में करीब 900 कंपनियों ने हिस्सा लिया था।
जानकारी के मुताबिक, इस साल शिरकत करने वाली स्वदेशी कंपनियों में बढ़ोत्तरी हुई है। माना जा रहा है कि इस बार करीब 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। लेकिव रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक ये गिरावट मात्र 10 प्रतिशत है क्योंकि विदेशी 
कंपनियों अपने-अपने देश के पवैलियन में अपने स्टॉल लगा रही हैं। जबकि इससे पहले तक वे स्टॉल लगाती थीं।

डिफेंस एकस्पो के दौरान दक्षिण कोरिया के साथ भारत का एक साझा कमीशन बनाया जायेगा और रशिया के साथ सैन्य-उद्दोग सहयोग पर एक बड़ा करार किया जायेगा.

इस बार डिफेंस एक्सपो में थलसेना, वायुसेना और नौसेना का पॉवरप्ले डेमो भी देखने को मिलेगा.

Wednesday, March 21, 2018

सेना का 'समाजवाद': पोर्टरों को मिलेगी सैनिकों जैसी सुविधाएं

बॉर्डर पर सेना के लिए सामान और रसद ढोने वाले स्थानीय पोर्टरों को अब सैनिकों की तरह मासिक वेतन, मेडिकल और कैंटीन की सुविधा मिल सकेगी। सेना ने इसको लेकर रक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देश पर नीति निर्धारित कर दी है। इसको लेकर हाल ही में सेना ने ये पॉलिसी जारी की।

सेना मुख्यालय के अधिकारियों के मुताबिक, उंचे पहाड़ों बर्फीले इलाकों और दुर्गम क्षेत्रों में सीमा-चौकियों पर जरूरी सामान भेजने के लिए सेना स्थानीय लोगों की मदद लेती है। लेकिन अभी तक ये 'अन-ऑर्गेनाइजड' सेक्टर की तरह काम करते थे। जिसके चलते सेना उन्हें उनके काम के मुताबिक मेहनताना देती थी। लेकिन ना तो उन्हें कोई छुट्टी मिलती थी और ना ही चोट लगने या फिर काम के समय मौत हो जाने से किसी तरह का कोई मुआवजा मिलता था और ना ही परिवार को किसी तरह की क्षतिपूर्ति की जाती थी।

लेकिन अब सेना इन पोर्टरों को जिले के लेबर ऑफिसर की देखरेख में ही अपने साथ काम पर लगाईगी। अब हर पोर्टर को महीने की 18 हजार रूपये तनख्वाह दी जायेगी। इसके अलावा सैनिकों की तरह ही मेडिकल सुविधा दी जायेगी। साथ ही सैनिकों की तरह एक हजार रूपये तक के लिए कैंटीन का फायदा भी उठा सकेंगे। इसके अलावा अब जो भी पोर्टर सेना के साथ काम करेगा उसे प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना का फायदा मिल सकेगा। अभी तक उन्हें इस तरह की कोई सुविधी नहीं मिल पाती थी। जबकि वे बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में सेना के लिए काम करते थे। पोर्टर हफ्ते में छह दिन काम करेंगे और गैजेटेड छुट्टियां भी मिलेंगी।

सेना मुख्यालय के मुताबिक, एलओसी हो या चीन सीमा वहां ऐसे दुर्गम इलाके हैं जहां पर कोई सड़क की सुविधा नहीं है। वहां पर ट्रैकिंग के जरिए ही चौकियों तक सैन्य साजो सामान और रसद पहुंचाया जाता है। इन इलाकों में भारी बर्फबारी भी होती है। क्योंकि बहुत बार  जब सैनिकों की यहां तैनाती होती है तो वे वहां के जलवायु और इलीके से वाकिफ नहीं होते हैं। ऐसे में ये स्थानीय पोर्टर ही इन सैनिकों के लिए गाइड की तरह काम करते हैं और सामान भी ढोते हैं। ये अपने सिर पर ही ये सामान ढोते हैं या फिर पोनी, खच्चर या फिर याक पर ये सामान ढोते हैं।

सेना मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, अकेले उत्तरी कमान में करीब 14-15 हजार पोर्टर सेना के साथ कार्यरत हैं। इन पोर्टरों पर सेना इस कमान में ही हर साल 250 करोड़ रूपये खर्च करती है। ये पैसा सीमावर्ती इलाकों की अर्थव्यवस्था को खड़ा करने में काफी मददगार साबित होती है। उत्तरी कमान की जिम्मेदारी पूरे जम्मू-कश्मीर की है जिसमें पाकिस्तान से सटी पूरी एलओसी, करगिल, सियाचिन और लद्दाख से सटी चीन सीमा है। सेना के मुताबिक करीब इतने ही पोर्टर्स पूर्वी कमान में तैनात है। पूर्वी कमान के अंतर्गत सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश से सटी चीन सीमा है।

जानकारी के मुताबिक, हाल ही में एक लद्दाखी पोर्टर को लेकर विवाद खड़ा हो गया था, जब फ्रोस्ट-बाइट यानि बर्फीले इलाकों में होने वाली बीमारी के बाद सेना ने उसे सेवा से हटा दिया था। एक लंबे समय तक काम करने के बाद भी उसपर इलाज के लिए कोई पैसा नहीं था। बाद में वो पोर्टर दिल्ली कैंट में अपने इलाज के लिए पैसा जुटाने के लिए भीख मांगता पाया गया था। सेना ने बाद में उसे एक एनजीओ की मदद से इलाज कराया था। साथ ही कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी सेना से पोर्टर्स की हालत को लेकर सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद ही सेना और रक्षा मंत्रालय ने इस पॉलिसी को जारी किया है तो कि पोर्टर्स की सेवा भी मिलती रही और मुश्किल के वक्त में उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी ना हो।

Wednesday, March 14, 2018

'विंटेज' पड़ चुके हैं भारत के सैन्य साजो-सामान: संसदीय रिपोर्ट


सेना ने रक्षा बजट को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. रक्षा मामलों पर संसद की स्थाई समिति से सहसेना प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल शरथचंद ने कहा है कि हालिया रक्षा बजट से सैन्य आधुनिकीकरण की उम्मीदों को झटका लगा है. वायस चीफ के मुताबिक, मेक इन इण्डिया के लिए 25 सैन्य परियोजनाओं को सूचीबद्ध किया गया थालेकिन उनको अमलीजामा पहनाने के लिए पर्याप्त बजट नहीं है. नतीजतन कुछ परियोजनाएं बंद हो सकती हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल शरथचंद ने मेजर जनरल (रिटायर) बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली संसद की रक्षा मामलों की स्थायी समिति से कहा है कि सेना का 68% सैन्यसाज़ोसामान विंटेज श्रेणी का है यानि पुराना पड़ चुका है. जबकि 24 प्रतिशित हथियार और मशीनरी कोआधुनिक और बाकी 08 प्रतिशत को ही स्टेट ऑफ द आर्ट कहा जा सकता है. रिपोर्ट में उनके हवाले से ही कहा गया है कि जबकि किसी भी सेना के लिए बेहद जरुरी है कि एक-तिहाई सैन्य मशीनरी विंटेज, एक तिहाई आधुनिक और एक तिहाई स्टेट ऑफ द आर्ट श्रेणी की होनी चाहिए.

 संसद की स्थायी समिति की इस रिपोर्ट को मंगलवार को संसद के पटल पर रखा गया. मेजर जनरल बीसी खंडूरी (सेवानिवृत्त)उत्तराखंड के भाजपा सांसद हैं और समितिके प्रमुख हैं. समिति ने 2018-19 के लिए सेना के अनुमानित पूंजी बजट के गैर-आवंटन पर गहरी चिंता व्यक्त की.

सहसेनाध्यक्ष ने संसदीय समिति से कहा है कि 123जारी परियोजनाओं और आपातकालीन खरीद के लिए29,033 करोड़ रूपए दिए जाने हैं, लेकिन 2018-19 के सैन्य बजट में आधुनिकीकरण के लिए 21,338करोड़ रुपये का आवंटन किया गया जो नाकाफी है। वाइस चीफ ने समिति से कहा है कि चीन से सटी सीमा पर सड़कों और ढांचागत सुविधाओं के लिए सेना की मांग से 902 करोड़ रुपये कम मिले हैं।

सेना के वाइस चीफ ने समिति से कहा, "सेना के लिए पूंजीगत बजट आवंटन ने उम्मीदों को धराशायी कर दिया, क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण खर्च में बढ़ोतरी के लिए यह पर्याप्त नहीं थाऔर करों को भी पूरा नहीं किया." उन्होनें कहा कि बजट '10-आई के लिए भी पर्याप्त नहीं है यानि 10-दिवसीय तीव्र संघर्ष या आपातकालीन खरीद के लिए सेना की भाषा.

समिति ने कहा कि "इस निराशाजनक स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्थिति काफी चिंताजनक है.
रिपोर्ट में टू-फ्रंट वॉर को हकीकत मानते हुए कहा गया है कि चीन और पाकिस्तान अपनी सेनाओं के आधुनिकिकरण में जुटें हुए हैं और हमें भी इस तरफ ध्यान रखना होगा. रिपोर्ट में चीन अब सैन्य स्पर्धा में अमेरिका बनना चाहता है. जबकि हमारे हथियार, मशीनरी, गोला-बारूद और वॉर-स्टोर बेहद पुराने और जंग खा चुके हैं और कमी भी है. रिपोर्ट में वायुसेना को भी टू-फ्रंट वॉर से निपटने के लिए जरूरी साजों-सामान मुहैया करने की सिफारिश की गई है.  

Tuesday, March 13, 2018

आखिर क्यों है भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का खरीददार !

ग्लोबल एजेंसी, सिपरी द्वारा जारी आंकड़ो के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का आयातक देश है. दुनियाभर में हथियारों की खरीद में भारत का हिस्सा करीब 12 प्रतिशत है. आंकड़ो के मुताबिक, भले ही भारत की नजदीकियां अमेरिका से बढ़ रही हों, लेकिन हथियारों के मामले में भारत का सबसे भरोसेमंद साथी, रूस ही है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस  रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि सिपरी कि मानें तो 'एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी तरफ चीन से चल रही तनातनी के चलते भारत को लगातार ज्यादा हथियारों की जरूरत पड़ रही है.' 

सिपरी द्वारा जारी आंकड़ो के मुताबिक, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का निर्यातक है. अमेरिका का हथियारों के निर्यात में कुल 34 फीसदी भागेदारी है. दूसरे नंबर पर रशिया है. सिपरी ने ये आंकड़े 2012-17 यानि कुल पांच साल के हिसाब से जारी किए हैं.

सिपरी के आंकड़ों में सबसे ज्यादा चौकान्ने वाले आंकड़े चीन को लेकर हैं. चीन हथियारों के आयात और निर्यात दोनों में ही पांचवे नंबर पर है. यानि चीन अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए हथियार रूस, फ्रांस और यूक्रेन जैसे देशों से खरीद भी रहा है और जो खुद तैयार कर रहा है उन्हें पाकिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देशों को बेच भी रहा है.

जारी किए गए आंकड़ो के मुताबिक, भारत का सबसे ज्यादा हथियारों का इम्पोर्ट रूस से होता है. भारत में विदेशों से आने वाले हथियारों में रूस का कुल हिस्सा करीब 62 प्रतिशत है जबकि अमेरिका से मात्र 15 प्रतिशत है और तीसरे नंबर पर इजरायल 11 प्रतिशत है. आपकों कुछ समय पहले एबीपी न्यूज ने बताया था कि किस तरह पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल-स्ट्राइक के बाद भारत ने रूस से रातों-रात बड़ी मात्रा में गोला-बारूद खऱीदा था. सिपरी के ये आंकडे उसी को बंया करते हैं.

सिपरी के आंकड़ो के मुताबिक, पाकिस्तान अब विदेशों से कम हथियार खरीद रहा है. जहां हथियारों के आयात में भारत का हिस्सा 12 प्रतिशत है तो पाकिस्तान का हिस्सा मात्र 2.8 प्रतिशत है, जबकि चीन का हिस्सा 4 प्रतिशत है. भारत के बाद सबसे ज्यादा हथियार सऊदी अरब विदेशों से खरीदता है. इसके बाद नंबर आता है मिश्र और यूएई का. पांचवा स्थान चीन का है.

सिपरी के मुताबिक, अगर वर्ष 2008-12 की तुलना वर्ष 2012-17 से करते हैं तो देखा गया है इस दौरान हथियारों की खरीद-फरोख्त में करीब 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.   

गौरतलब है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज ही कहा था कि रक्षा क्षेत्र में स्वावलंबन बनने के लिए बेहद जरूरी है कि सरकारी रक्षा उपक्रमों को फिर से पुर्नजीवित किया जाए और निजी कंपनियों की भागीदारी को रक्षा क्षेत्र में बढ़ाया जाए.

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण आज राजधानी दिल्ली में फिक्की द्वारा गोला-बारूद पर आयोजित एक सेमिनार में बोल रहीं थीं. इस मौके पर बोलते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि पिछले कई दशकों से सरकार ने सरकारी उपक्रमों में निवेश किया. लेकिन रक्षा क्षेत्र में स्वावलंबन बनने के लिए बेहद जरूरी है कि सरकारी उपक्रम और ओएफबी (यानि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड्स) को पुर्नजीवित किया जाए और उनके काम करने में तेजी लाई जाए.

उन्होने कहा कि काफी समय से निजी कंपनियां भी रक्षा क्षेत्र में आने की कोशिश कसर रही हैं, मैं उनका स्वागत करती हूं. निर्मला सीतारमण के मुताबिक, रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों को आमंत्रित करने के लिए ही सरकार ने हाल में दो रक्षा-औद्योगिक कोरिडोर्स बनाने का फैसला किया है. इनमें से एक कोयम्बटूर-बेंगलुरू-चेन्नई में बनाया जायेगा, तो दूसरा उत्तर प्रदेश के बुंदलेखंड में बनाया जायेगा.  

Sunday, February 4, 2018

दुनिया को गुरिल्ला युद्ध सिखाने वाली शिवाजी की पलटन के 250 साल पूरे


भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट में से एक मराठा लाईट इंफेंट्री रविवार यानि 4 फरवरी को अपना 250वां स्थापना दिवस मना रही है. भारतीय सेना की इस रेजीमेंट का गठन छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया था. बाद में अंग्रेंजों ने मराठा पलटन की गुरिल्ला-रणनीति से प्रभावित होकर इसे अपनी सेना का हिस्सा बना लिया था. लेकिन आज भी इस रेजीमेंट का स्थापना दिवस उसी दिन यानि 4 फरवरी को मनाया जाता है जिस दिन 1670 में शिवाजी  ने अपनी खास छापेमारी-युद्धकला से पहली बार सिंहगढ़ किले पर कब्जा किया था. आज यही गुरिल्ला युद्धकला दुनियाभर की 32 देशों की सेनाओं की ही एक खास रणशैली है.

मराठा लाइट इंफेंट्री के ढाई सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में रेजीमेंटल सेंटर बेलगाम (कनार्टक) सहित पूरे भारतवर्ष में जहां जहां यूनिट्स तैनात हैं खास कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. मराठा रेजीमेंट की हर यूनिट में आज भी शिवाजी की मूर्ति और तस्वीर जरूर मौजूद रहती है.

मराठा-लाई के ढाई सौ साल (250) पूरे होने के मौके पर भारतीय सेना शिवाजी महाराज पर एक किताब रिलीज करने जा रही है जिसमें उन्हें ‘नेवल विज़नरी’(NAVAL VISIONARY) माना गया है. क्योंकि माना जाता है कि शिवाजी ने ही भारत में आधुनिक काल की नौसेना के जंगी बेड़े की स्थापना की थी. यही वजह है कि मराठा-लाई के सभी पोस्टर्स पर मराठा नौसेना के सबसे प्रमुख एडमिरल, कान्होजी आंग्रे को भी दर्शाया गया है.

मराठा लाइट इंफेंट्री की आज भी कई यूनिट्स नौसेना और वायुसेना के जंगी बेंड़े के साथ तैनात रहती हैं. यही वजह है कि हाल ही में जब भारत ने रशिया के साथ सबसे बड़ी एक्सरसाइज, इन्द्रा की तो उसमें थलसेना का नेतृत्व मराठा रेजीमेंट ने ही किया था. यहां तक की इस साल 26 जनवरी को जब गणतंत्र दिवस परेड में 10 देशों के राष्ट्रध्यक्षों के सामने कदम-ताल करनी थी तो मराठा रेजीमेंट को भी चुना गया था. क्योंकि मराठा लाई के सैनिक सबसे तेज कदमों से मार्च-पास्ट करते हैं. वे 140 कदम प्रति मिनट के हिसाब से कदम-ताल करते हैं. मराठा लाई ही एक मात्र ऐसी भारतीय रेजीमेंट है जो हमेशा विश्राम की मुद्रा में रहती है. उसे सावधान-विश्राम कहने की जरुरत नहीं होती है.

कर्तव्य, मान और साहस...ये तीनों आर्दश-वाक्य जुड़े हैं भारतीय सेना की मराठा लाइट इंफेंट्री रेजीमेंट से. क्योंकि ये तीनों विशेषताएं छत्रपति शिवाजी से जुड़ी हुई हैं. यही वजह है कि इस रेजीमेंट का युद्धघोष ही है 'बोलो छत्रपति शिवाजी महाराज की जय.' और इस रेजीमेंट का हर सैनिक अपने को शिवाजी का साहसिक सैनिक मानकार अपने कर्तव्य और मान के लिए कुछ भी कर गुजर सकता है. मराठा लाइट इंफेंट्री यानि मराठा-लाई 4 फरवरी को अपना स्थापना दिवस इसलिए मनाती है क्योंकि इसी दिन 1670 में शिवाजी ने सिंहगढ़ किले पर अपना पताका फहराया था. इसके लिए उन्होनें एक खास प्राणी, घोरपड़ की मदद ली थी. घोरपड़ के पैरों में रस्सी बांधकर शिवाजी के सैनिक इस किले पर चढ़ गए थे.

हालांकि छत्रपति शिवाजी ने मराठा सैनिकों को 17वी शताब्दी में ही एकत्रित कर अपनी सेना खड़ी कर ली थी,लेकिन मराठा रेजीमेंट की स्थापना अंग्रेजों ने 1768 में की थी. यही वजह है कि मराठा रेजीमेंट की स्थापना के इस वर्ष ढाई सौ साल पूरे हो गए हैं. 1841 में अफगान-युद्ध में गुरिल्ला युद्धकला का इस्तेमाल कर मराठा सैनिकों ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे. जिसके बाद अंग्रेजों ने मराठा रेजीमेंट को मराठा लाइट इंफेंट्री (यानि‘मराठा-लाई’) की उपाधि दी थी, जिसके कारण ये भारतीय सेना की पहली ऐसी लाइट रेजीमेंट बनी थी. यहां तक की आजादी के बाद भी जब भारतीय सेना ने अपनी खास स्पेशल फोर्स रेजीमेंट बनाई गईं तो मराठा-लाई की दो यूनिट्स को पैरा-एसएफ में तब्दील कर दी गई. ये हैं 4 पैरा और 21 पैरा. ये 21 पैरा वही है जिसने वर्ष 2015 में म्यांमार सीमा पर उग्रवादियों के कैंप्स पर पहली सर्जिकल स्ट्राइक की थी. आज दुनिया की करीब 32 देशों की सेनाओं में गुरिल्ला-वॉरफेयर को खास तौर से सिखाया जाता है.

मराठा लाइट इंफंट्री भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट में से एक तो है ही साथ ही सबसे सम्मानित भी है. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाने के साथ-साथ आजादी के बाद भी 1962 में चीन से जंग हो या फिर 1965 या 1971 सभी में मराठा रेजीमेंट ने अपनी बहादुरी और बलिदान से देश का नाम रोशन किया है. मराठा रेजीमेंट की एक यूनिट हमेशा जम्मू-कश्मीर में काउंटर-टेरिरज्म ऑपरेशन यानि आपरेशन रक्षक में शामिल राष्ट्रीय राईफल्स (आरआर) में तैनात रहती है. यहां पर आपको ये भी बता दें कि 60 के दशक में नागा-विद्रोह को कुचलने में भी मराठा रेजीमेंट ने खास भूमिका निभाई थी. 1947 से अबतक इस रेजीमेंट ने 05 महावीर चक्र, 05 अशोक चक्र, 14 क्रीति चक्र, 58 शोर्य चक्र और 44 वीर चक्र हासिल किए हैं. यही वजह है कि मराठा रेजीमेंट को 'जंगी-पलटन' के नाम से भी जाना जाता है.