Sunday, February 4, 2018

दुनिया को गुरिल्ला युद्ध सिखाने वाली शिवाजी की पलटन के 250 साल पूरे


भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट में से एक मराठा लाईट इंफेंट्री रविवार यानि 4 फरवरी को अपना 250वां स्थापना दिवस मना रही है. भारतीय सेना की इस रेजीमेंट का गठन छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया था. बाद में अंग्रेंजों ने मराठा पलटन की गुरिल्ला-रणनीति से प्रभावित होकर इसे अपनी सेना का हिस्सा बना लिया था. लेकिन आज भी इस रेजीमेंट का स्थापना दिवस उसी दिन यानि 4 फरवरी को मनाया जाता है जिस दिन 1670 में शिवाजी  ने अपनी खास छापेमारी-युद्धकला से पहली बार सिंहगढ़ किले पर कब्जा किया था. आज यही गुरिल्ला युद्धकला दुनियाभर की 32 देशों की सेनाओं की ही एक खास रणशैली है.

मराठा लाइट इंफेंट्री के ढाई सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में रेजीमेंटल सेंटर बेलगाम (कनार्टक) सहित पूरे भारतवर्ष में जहां जहां यूनिट्स तैनात हैं खास कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. मराठा रेजीमेंट की हर यूनिट में आज भी शिवाजी की मूर्ति और तस्वीर जरूर मौजूद रहती है.

मराठा-लाई के ढाई सौ साल (250) पूरे होने के मौके पर भारतीय सेना शिवाजी महाराज पर एक किताब रिलीज करने जा रही है जिसमें उन्हें ‘नेवल विज़नरी’(NAVAL VISIONARY) माना गया है. क्योंकि माना जाता है कि शिवाजी ने ही भारत में आधुनिक काल की नौसेना के जंगी बेड़े की स्थापना की थी. यही वजह है कि मराठा-लाई के सभी पोस्टर्स पर मराठा नौसेना के सबसे प्रमुख एडमिरल, कान्होजी आंग्रे को भी दर्शाया गया है.

मराठा लाइट इंफेंट्री की आज भी कई यूनिट्स नौसेना और वायुसेना के जंगी बेंड़े के साथ तैनात रहती हैं. यही वजह है कि हाल ही में जब भारत ने रशिया के साथ सबसे बड़ी एक्सरसाइज, इन्द्रा की तो उसमें थलसेना का नेतृत्व मराठा रेजीमेंट ने ही किया था. यहां तक की इस साल 26 जनवरी को जब गणतंत्र दिवस परेड में 10 देशों के राष्ट्रध्यक्षों के सामने कदम-ताल करनी थी तो मराठा रेजीमेंट को भी चुना गया था. क्योंकि मराठा लाई के सैनिक सबसे तेज कदमों से मार्च-पास्ट करते हैं. वे 140 कदम प्रति मिनट के हिसाब से कदम-ताल करते हैं. मराठा लाई ही एक मात्र ऐसी भारतीय रेजीमेंट है जो हमेशा विश्राम की मुद्रा में रहती है. उसे सावधान-विश्राम कहने की जरुरत नहीं होती है.

कर्तव्य, मान और साहस...ये तीनों आर्दश-वाक्य जुड़े हैं भारतीय सेना की मराठा लाइट इंफेंट्री रेजीमेंट से. क्योंकि ये तीनों विशेषताएं छत्रपति शिवाजी से जुड़ी हुई हैं. यही वजह है कि इस रेजीमेंट का युद्धघोष ही है 'बोलो छत्रपति शिवाजी महाराज की जय.' और इस रेजीमेंट का हर सैनिक अपने को शिवाजी का साहसिक सैनिक मानकार अपने कर्तव्य और मान के लिए कुछ भी कर गुजर सकता है. मराठा लाइट इंफेंट्री यानि मराठा-लाई 4 फरवरी को अपना स्थापना दिवस इसलिए मनाती है क्योंकि इसी दिन 1670 में शिवाजी ने सिंहगढ़ किले पर अपना पताका फहराया था. इसके लिए उन्होनें एक खास प्राणी, घोरपड़ की मदद ली थी. घोरपड़ के पैरों में रस्सी बांधकर शिवाजी के सैनिक इस किले पर चढ़ गए थे.

हालांकि छत्रपति शिवाजी ने मराठा सैनिकों को 17वी शताब्दी में ही एकत्रित कर अपनी सेना खड़ी कर ली थी,लेकिन मराठा रेजीमेंट की स्थापना अंग्रेजों ने 1768 में की थी. यही वजह है कि मराठा रेजीमेंट की स्थापना के इस वर्ष ढाई सौ साल पूरे हो गए हैं. 1841 में अफगान-युद्ध में गुरिल्ला युद्धकला का इस्तेमाल कर मराठा सैनिकों ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे. जिसके बाद अंग्रेजों ने मराठा रेजीमेंट को मराठा लाइट इंफेंट्री (यानि‘मराठा-लाई’) की उपाधि दी थी, जिसके कारण ये भारतीय सेना की पहली ऐसी लाइट रेजीमेंट बनी थी. यहां तक की आजादी के बाद भी जब भारतीय सेना ने अपनी खास स्पेशल फोर्स रेजीमेंट बनाई गईं तो मराठा-लाई की दो यूनिट्स को पैरा-एसएफ में तब्दील कर दी गई. ये हैं 4 पैरा और 21 पैरा. ये 21 पैरा वही है जिसने वर्ष 2015 में म्यांमार सीमा पर उग्रवादियों के कैंप्स पर पहली सर्जिकल स्ट्राइक की थी. आज दुनिया की करीब 32 देशों की सेनाओं में गुरिल्ला-वॉरफेयर को खास तौर से सिखाया जाता है.

मराठा लाइट इंफंट्री भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट में से एक तो है ही साथ ही सबसे सम्मानित भी है. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाने के साथ-साथ आजादी के बाद भी 1962 में चीन से जंग हो या फिर 1965 या 1971 सभी में मराठा रेजीमेंट ने अपनी बहादुरी और बलिदान से देश का नाम रोशन किया है. मराठा रेजीमेंट की एक यूनिट हमेशा जम्मू-कश्मीर में काउंटर-टेरिरज्म ऑपरेशन यानि आपरेशन रक्षक में शामिल राष्ट्रीय राईफल्स (आरआर) में तैनात रहती है. यहां पर आपको ये भी बता दें कि 60 के दशक में नागा-विद्रोह को कुचलने में भी मराठा रेजीमेंट ने खास भूमिका निभाई थी. 1947 से अबतक इस रेजीमेंट ने 05 महावीर चक्र, 05 अशोक चक्र, 14 क्रीति चक्र, 58 शोर्य चक्र और 44 वीर चक्र हासिल किए हैं. यही वजह है कि मराठा रेजीमेंट को 'जंगी-पलटन' के नाम से भी जाना जाता है.