Wednesday, March 21, 2018

सेना का 'समाजवाद': पोर्टरों को मिलेगी सैनिकों जैसी सुविधाएं

बॉर्डर पर सेना के लिए सामान और रसद ढोने वाले स्थानीय पोर्टरों को अब सैनिकों की तरह मासिक वेतन, मेडिकल और कैंटीन की सुविधा मिल सकेगी। सेना ने इसको लेकर रक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देश पर नीति निर्धारित कर दी है। इसको लेकर हाल ही में सेना ने ये पॉलिसी जारी की।

सेना मुख्यालय के अधिकारियों के मुताबिक, उंचे पहाड़ों बर्फीले इलाकों और दुर्गम क्षेत्रों में सीमा-चौकियों पर जरूरी सामान भेजने के लिए सेना स्थानीय लोगों की मदद लेती है। लेकिन अभी तक ये 'अन-ऑर्गेनाइजड' सेक्टर की तरह काम करते थे। जिसके चलते सेना उन्हें उनके काम के मुताबिक मेहनताना देती थी। लेकिन ना तो उन्हें कोई छुट्टी मिलती थी और ना ही चोट लगने या फिर काम के समय मौत हो जाने से किसी तरह का कोई मुआवजा मिलता था और ना ही परिवार को किसी तरह की क्षतिपूर्ति की जाती थी।

लेकिन अब सेना इन पोर्टरों को जिले के लेबर ऑफिसर की देखरेख में ही अपने साथ काम पर लगाईगी। अब हर पोर्टर को महीने की 18 हजार रूपये तनख्वाह दी जायेगी। इसके अलावा सैनिकों की तरह ही मेडिकल सुविधा दी जायेगी। साथ ही सैनिकों की तरह एक हजार रूपये तक के लिए कैंटीन का फायदा भी उठा सकेंगे। इसके अलावा अब जो भी पोर्टर सेना के साथ काम करेगा उसे प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना का फायदा मिल सकेगा। अभी तक उन्हें इस तरह की कोई सुविधी नहीं मिल पाती थी। जबकि वे बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में सेना के लिए काम करते थे। पोर्टर हफ्ते में छह दिन काम करेंगे और गैजेटेड छुट्टियां भी मिलेंगी।

सेना मुख्यालय के मुताबिक, एलओसी हो या चीन सीमा वहां ऐसे दुर्गम इलाके हैं जहां पर कोई सड़क की सुविधा नहीं है। वहां पर ट्रैकिंग के जरिए ही चौकियों तक सैन्य साजो सामान और रसद पहुंचाया जाता है। इन इलाकों में भारी बर्फबारी भी होती है। क्योंकि बहुत बार  जब सैनिकों की यहां तैनाती होती है तो वे वहां के जलवायु और इलीके से वाकिफ नहीं होते हैं। ऐसे में ये स्थानीय पोर्टर ही इन सैनिकों के लिए गाइड की तरह काम करते हैं और सामान भी ढोते हैं। ये अपने सिर पर ही ये सामान ढोते हैं या फिर पोनी, खच्चर या फिर याक पर ये सामान ढोते हैं।

सेना मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, अकेले उत्तरी कमान में करीब 14-15 हजार पोर्टर सेना के साथ कार्यरत हैं। इन पोर्टरों पर सेना इस कमान में ही हर साल 250 करोड़ रूपये खर्च करती है। ये पैसा सीमावर्ती इलाकों की अर्थव्यवस्था को खड़ा करने में काफी मददगार साबित होती है। उत्तरी कमान की जिम्मेदारी पूरे जम्मू-कश्मीर की है जिसमें पाकिस्तान से सटी पूरी एलओसी, करगिल, सियाचिन और लद्दाख से सटी चीन सीमा है। सेना के मुताबिक करीब इतने ही पोर्टर्स पूर्वी कमान में तैनात है। पूर्वी कमान के अंतर्गत सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश से सटी चीन सीमा है।

जानकारी के मुताबिक, हाल ही में एक लद्दाखी पोर्टर को लेकर विवाद खड़ा हो गया था, जब फ्रोस्ट-बाइट यानि बर्फीले इलाकों में होने वाली बीमारी के बाद सेना ने उसे सेवा से हटा दिया था। एक लंबे समय तक काम करने के बाद भी उसपर इलाज के लिए कोई पैसा नहीं था। बाद में वो पोर्टर दिल्ली कैंट में अपने इलाज के लिए पैसा जुटाने के लिए भीख मांगता पाया गया था। सेना ने बाद में उसे एक एनजीओ की मदद से इलाज कराया था। साथ ही कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी सेना से पोर्टर्स की हालत को लेकर सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद ही सेना और रक्षा मंत्रालय ने इस पॉलिसी को जारी किया है तो कि पोर्टर्स की सेवा भी मिलती रही और मुश्किल के वक्त में उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी ना हो।

Wednesday, March 14, 2018

'विंटेज' पड़ चुके हैं भारत के सैन्य साजो-सामान: संसदीय रिपोर्ट


सेना ने रक्षा बजट को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. रक्षा मामलों पर संसद की स्थाई समिति से सहसेना प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल शरथचंद ने कहा है कि हालिया रक्षा बजट से सैन्य आधुनिकीकरण की उम्मीदों को झटका लगा है. वायस चीफ के मुताबिक, मेक इन इण्डिया के लिए 25 सैन्य परियोजनाओं को सूचीबद्ध किया गया थालेकिन उनको अमलीजामा पहनाने के लिए पर्याप्त बजट नहीं है. नतीजतन कुछ परियोजनाएं बंद हो सकती हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल शरथचंद ने मेजर जनरल (रिटायर) बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली संसद की रक्षा मामलों की स्थायी समिति से कहा है कि सेना का 68% सैन्यसाज़ोसामान विंटेज श्रेणी का है यानि पुराना पड़ चुका है. जबकि 24 प्रतिशित हथियार और मशीनरी कोआधुनिक और बाकी 08 प्रतिशत को ही स्टेट ऑफ द आर्ट कहा जा सकता है. रिपोर्ट में उनके हवाले से ही कहा गया है कि जबकि किसी भी सेना के लिए बेहद जरुरी है कि एक-तिहाई सैन्य मशीनरी विंटेज, एक तिहाई आधुनिक और एक तिहाई स्टेट ऑफ द आर्ट श्रेणी की होनी चाहिए.

 संसद की स्थायी समिति की इस रिपोर्ट को मंगलवार को संसद के पटल पर रखा गया. मेजर जनरल बीसी खंडूरी (सेवानिवृत्त)उत्तराखंड के भाजपा सांसद हैं और समितिके प्रमुख हैं. समिति ने 2018-19 के लिए सेना के अनुमानित पूंजी बजट के गैर-आवंटन पर गहरी चिंता व्यक्त की.

सहसेनाध्यक्ष ने संसदीय समिति से कहा है कि 123जारी परियोजनाओं और आपातकालीन खरीद के लिए29,033 करोड़ रूपए दिए जाने हैं, लेकिन 2018-19 के सैन्य बजट में आधुनिकीकरण के लिए 21,338करोड़ रुपये का आवंटन किया गया जो नाकाफी है। वाइस चीफ ने समिति से कहा है कि चीन से सटी सीमा पर सड़कों और ढांचागत सुविधाओं के लिए सेना की मांग से 902 करोड़ रुपये कम मिले हैं।

सेना के वाइस चीफ ने समिति से कहा, "सेना के लिए पूंजीगत बजट आवंटन ने उम्मीदों को धराशायी कर दिया, क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण खर्च में बढ़ोतरी के लिए यह पर्याप्त नहीं थाऔर करों को भी पूरा नहीं किया." उन्होनें कहा कि बजट '10-आई के लिए भी पर्याप्त नहीं है यानि 10-दिवसीय तीव्र संघर्ष या आपातकालीन खरीद के लिए सेना की भाषा.

समिति ने कहा कि "इस निराशाजनक स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्थिति काफी चिंताजनक है.
रिपोर्ट में टू-फ्रंट वॉर को हकीकत मानते हुए कहा गया है कि चीन और पाकिस्तान अपनी सेनाओं के आधुनिकिकरण में जुटें हुए हैं और हमें भी इस तरफ ध्यान रखना होगा. रिपोर्ट में चीन अब सैन्य स्पर्धा में अमेरिका बनना चाहता है. जबकि हमारे हथियार, मशीनरी, गोला-बारूद और वॉर-स्टोर बेहद पुराने और जंग खा चुके हैं और कमी भी है. रिपोर्ट में वायुसेना को भी टू-फ्रंट वॉर से निपटने के लिए जरूरी साजों-सामान मुहैया करने की सिफारिश की गई है.  

Tuesday, March 13, 2018

आखिर क्यों है भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का खरीददार !

ग्लोबल एजेंसी, सिपरी द्वारा जारी आंकड़ो के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का आयातक देश है. दुनियाभर में हथियारों की खरीद में भारत का हिस्सा करीब 12 प्रतिशत है. आंकड़ो के मुताबिक, भले ही भारत की नजदीकियां अमेरिका से बढ़ रही हों, लेकिन हथियारों के मामले में भारत का सबसे भरोसेमंद साथी, रूस ही है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस  रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि सिपरी कि मानें तो 'एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी तरफ चीन से चल रही तनातनी के चलते भारत को लगातार ज्यादा हथियारों की जरूरत पड़ रही है.' 

सिपरी द्वारा जारी आंकड़ो के मुताबिक, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का निर्यातक है. अमेरिका का हथियारों के निर्यात में कुल 34 फीसदी भागेदारी है. दूसरे नंबर पर रशिया है. सिपरी ने ये आंकड़े 2012-17 यानि कुल पांच साल के हिसाब से जारी किए हैं.

सिपरी के आंकड़ों में सबसे ज्यादा चौकान्ने वाले आंकड़े चीन को लेकर हैं. चीन हथियारों के आयात और निर्यात दोनों में ही पांचवे नंबर पर है. यानि चीन अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए हथियार रूस, फ्रांस और यूक्रेन जैसे देशों से खरीद भी रहा है और जो खुद तैयार कर रहा है उन्हें पाकिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देशों को बेच भी रहा है.

जारी किए गए आंकड़ो के मुताबिक, भारत का सबसे ज्यादा हथियारों का इम्पोर्ट रूस से होता है. भारत में विदेशों से आने वाले हथियारों में रूस का कुल हिस्सा करीब 62 प्रतिशत है जबकि अमेरिका से मात्र 15 प्रतिशत है और तीसरे नंबर पर इजरायल 11 प्रतिशत है. आपकों कुछ समय पहले एबीपी न्यूज ने बताया था कि किस तरह पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल-स्ट्राइक के बाद भारत ने रूस से रातों-रात बड़ी मात्रा में गोला-बारूद खऱीदा था. सिपरी के ये आंकडे उसी को बंया करते हैं.

सिपरी के आंकड़ो के मुताबिक, पाकिस्तान अब विदेशों से कम हथियार खरीद रहा है. जहां हथियारों के आयात में भारत का हिस्सा 12 प्रतिशत है तो पाकिस्तान का हिस्सा मात्र 2.8 प्रतिशत है, जबकि चीन का हिस्सा 4 प्रतिशत है. भारत के बाद सबसे ज्यादा हथियार सऊदी अरब विदेशों से खरीदता है. इसके बाद नंबर आता है मिश्र और यूएई का. पांचवा स्थान चीन का है.

सिपरी के मुताबिक, अगर वर्ष 2008-12 की तुलना वर्ष 2012-17 से करते हैं तो देखा गया है इस दौरान हथियारों की खरीद-फरोख्त में करीब 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.   

गौरतलब है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज ही कहा था कि रक्षा क्षेत्र में स्वावलंबन बनने के लिए बेहद जरूरी है कि सरकारी रक्षा उपक्रमों को फिर से पुर्नजीवित किया जाए और निजी कंपनियों की भागीदारी को रक्षा क्षेत्र में बढ़ाया जाए.

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण आज राजधानी दिल्ली में फिक्की द्वारा गोला-बारूद पर आयोजित एक सेमिनार में बोल रहीं थीं. इस मौके पर बोलते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि पिछले कई दशकों से सरकार ने सरकारी उपक्रमों में निवेश किया. लेकिन रक्षा क्षेत्र में स्वावलंबन बनने के लिए बेहद जरूरी है कि सरकारी उपक्रम और ओएफबी (यानि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड्स) को पुर्नजीवित किया जाए और उनके काम करने में तेजी लाई जाए.

उन्होने कहा कि काफी समय से निजी कंपनियां भी रक्षा क्षेत्र में आने की कोशिश कसर रही हैं, मैं उनका स्वागत करती हूं. निर्मला सीतारमण के मुताबिक, रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों को आमंत्रित करने के लिए ही सरकार ने हाल में दो रक्षा-औद्योगिक कोरिडोर्स बनाने का फैसला किया है. इनमें से एक कोयम्बटूर-बेंगलुरू-चेन्नई में बनाया जायेगा, तो दूसरा उत्तर प्रदेश के बुंदलेखंड में बनाया जायेगा.