Thursday, January 22, 2015

फ्रॉम रशिया विद लव !



कम ही लोग जानते हैं कि रशिया ऐसा पहला देश था जिसने भारत को सबसे पहले स्वतंत्र देश के रुप में मान्यता दी थी. जी हां, रुस ने भारत को आजादी की आधिकारिक घोषणा से पहले, यानि अप्रैल 1947 में ही स्वतंत्र देश मान लिया था—यानि ब्रिटेश राज से (पूरी) आजादी (अगस्त 1947) मिलने से चार महीने पहले ही मित्र-राष्ट्र घोषित कर दिया था. इतना ही नहीं अपनी एंबेसी यानि दूतावास भी दिल्ली में स्थापित कर दिया था. 
 
       इतिहास गवाह है कि रुस से हमारे संबंध सिर्फ 70 साल पुराने नहीं बल्कि करीब 500 साल पुराने हैं. रशिया के ज़ार (राजा) ने अपना पहला मिशन मुगलकाल में ही भारत भेज दिया था. 1695 में मुगल शासक औंरगजेब के दरबार में रुस का पहला दूत आया था और उसे प्रशस्ति-पत्र भी मिला था. इससे पहले एक रुसी व्यापारी अफांसे निकितिन तो 15वीं सदी में ही भारत पहुंच गया था--यानि वास्को डिगामा से भी पहले. जानकारी तो ये भी मिलती है कि मुगल शासन की भारत में नींव रखने वाले बाबर ने भी अपना एक दूत रशिया भेजा था.

      आजादी के बाद भारत और रुस के रिश्ते और अधिक प्रगाढ़ हुए. एक नए राष्ट्र को जिस भी चीज की जरुरत पड़ी, चाहे वो हथियार हों, टैंक, फाइटर एयरक्राफ्ट, मिसाइल, पनडुब्बियां या युद्धपोत या फिर कोई दूसरी सैन्य सहायता , टैक्नोलोजी हो, ऊर्जा हो या फिर कर्ज, रुस ने भारत को दिल खोल कर दिया. इस बात का अंदाजा बेहद आसानी से लगाया जा सकता है कि अगर रुस ने हमारी सहायता ना की होती तो हमारे देश का (भारी) उद्योग कैसा होता—होता भी यहां नहीं. भारत भले ही अपनेआप के गुटनिरपेक्ष देश की श्रेणी में रखता हो, लेकिन दुनिया जानती है कि शीत-युद्ध के दौरान भारत किसके ज्यादा करीब था. 1971 युद्ध में पाकिस्तान की मदद करने आ रहा अमेरिका का एयरक्राफ्ट कैरियर अगर बंगाल की खाड़ी से भाग खड़ा हुआ था तो वो सिर्फ इसलिए की रुस की पनडुब्बियां उसने नेस्तानबूत करने वहां पहुंच गईं थीं. ऐसी थी कभी भारत की रुस से दोस्ती--और पाकिस्तान की अमेरिका से. लेकिन शीत-युद्ध के खत्म होने और सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत के रुस से संबंधों में थोड़ा लचीलापन आ गया.

       शीत-युद्ध के खात्मे के बाद और 90 के दशक के आखिरी सालों में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार बनने के बाद भारत का रुझान अमेरिका की तरफ होने लगा. एक बार फिर मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रवादी सरकार बनने के बाद भारत और अमेरिका के रिश्तों में गर्मजोशी आ गई है. प्रधानमंत्री मोदी के गणतंत्र दिवस परेड में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को बतौर चीफ-गेस्ट बुलाने और न्यौता स्वीकार करने से दुनियाभर में दोनों देशों के संबधों की चर्चा जोरो पर हैं.
 
रुसी रक्षा मंत्री दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के लॉन में गार्ड ऑफ ऑनर लेते हुए

      गणतंत्र दिवस को अब महज चंद दिन बचे हैं. पूरा देश अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के इंतजार में आंखे लगाए बैठा है. ऐसे में ओबामा की यात्रा से ठीक पहले रशिया के रक्षा मंत्री का भारत दौरा कई मायने में अहम हो जाता है. रुस के रक्षा मंत्री सर्जई शोयगु तीन दिन (21-23 जनवरी) के भारत दौरे पर आए हुए हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या रुस को भारत के अमेरिका के करीब जाने का डर सता रहा है. क्या भारत से ऐतिहासिक सैन्य रिश्तों को एक बार फिर मजबूत करने पर जोर दे रहा है रशिया.

     कुछ दिनों पहले ही रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भी भारत के दौरे पर आए थे. लेकिन उनकी यात्रा ने इतनी सुर्खियां नहीं बंटोरी थी, जितनी ओबामा की यात्रा पर घर-घर में चर्चा हो रही है.

        ऐसे में भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का वो हालिया (22 जनवरी का) बयान गौर करने वाला है जो उन्होनें रुस और अमेरिका पर दिया है. मनोहर पर्रिकर से जब अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की यात्रा से भारत की अपेक्षाओं के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, अगर हम अपने बड़े मित्र देशों से अच्छे संबंध रखते हैं तो हमारी बहुत से समस्याएं खुद-ब-खुद दूर हो जाती हैं.दूसरा सवाल जब रक्षा मंत्री से रशिया के डिफेंस मिनिस्टर की यात्रा के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, मैने उनसे कई प्रोजेक्टस पर धीमी चल रही चाल को तेज करने के लिए कहा है...मैंने उनसे एफजीएफए (फिफ्थ जेनेरशन फाइटर एयरक्राफ्ट) के खरीदने के बारे में भी बात की है और क्योंकि हम उनके कई विमान और मशीनरी इस्तेमाल करते है तो उनके स्पेयर पार्टस भी मेक इन इंडियाके तहत ही भारत में बनाने का आग्रह किया है.
        
      रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के इन दोनों बयानों से साफ हो जाता है कि भारत के लिए ये दोनों महाशक्तियां अब क्या मायने रखती हैं. शीतयुद्ध के वक्त अमेरिका और रुस (सोवियत संघ) दोनों ही सुपर-पॉवर थीं. लेकिन शीतयुद्ध के खत्म होने के बाद दुनिया में सिर्फ एक ही महाशक्ति बची है, और वो है अमेरिका-यानि बड़ा देश. और इस बड़े देश से मित्रता करने में हमें कई फायदे हैं. पहला तो ये कि पाकिस्तान समर्थित प्रॉक्सी-वॉर पर लगाम लगाई जा सकती है. यानि पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद पर अमेरिका पाकिस्तान के कान खींच सकता है. दूसरा ये कि चीन जैसे बड़े (शक्तिशाली) देश को सीधे भिड़त से दूर रखा जा सकता है. तीसरा, ये कि यूएन की सुरक्षा-परिषद में स्थायी सदस्य बनने का मौका मिल सकता है और दुनिया में शक्तिशाली देशों की श्रेणी में भारत का नाम भी शुमार हो सकता है.


       वहीं रुस से पिछले करीब 70 सालों के संबंधों में अब वो तीव्रता नहीं रही है. उसकी चाल सुस्त पड़ गई है. उसमें तेजी लाने की जरुरत है. भले ही भारत की सैन्य ताकत का अभिप्राय बन चुके मिग, सुखोई, मी-17, आईएनएस विक्रमादित्य हमें रुस से ही प्राप्त हुए हैं, लेकिन वहीं सी-17 ग्लोबमास्टर, पी8-आई, चिनूक और अपॉचे जैसे अटैक हेलीकॉप्टर हमें अमेरिका से मिल चुके हैं या मिलने वाले हैं. यानि अब हम सिर्फ अपनी सैन्य जरुरतों के लिए रुस तक ही सीमित नहीं है.   

        रुस भी अब भारत को ही अपने हथियार, विमान और हेलीकॉप्टर नहीं बेचता है. वो भारत के धुर-विरोधी और दुश्मन पाकिस्तान को भी हेलीकॉप्टर बेच रहा है. क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि रोल बदल रहे हैं. शीतयुद्ध के वक्त रुस और भारत की दोस्ती वैसी ही थी जैसी पाकिस्तान और अमेरिका की हुआ करती थी. लेकिन अब उल्टा हो गया है. भारत जितना करीब अमेरिका के आ गया है, पाकिस्तान उतना तो नहीं लेकिन धीरे-धीरे रशिया से सैन्य संबंध स्थापित करना शुरु कर दिया है.  हाल ही में रुस के रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान की यात्रा की थी और अफगानिस्तान में और अपने देश के आंतकियों से निपटने के लिए अटैक हेलीकॉप्टर देने का वादा किया था.
      जानकारों की मानें तो आज के वैश्विक दौर में (शीत-युद्ध के बाद) जब दुनिया में कोई ग्रुप या धड़े नहीं बचे हैं तो हर कोई (देश) हर किसी देश के साथ संबंध बनाने में विश्वास रखता है. इसीलिए अगर कभी भारत के लिए बेहद ही रुखा व्यवहार रखने वाला अमेरिका आज हमारे इतने करीब आ गया है, तो हमें रुस के पाकिस्तान को हथियार या हेलीकॉप्टर बेचने पर ज्यादा आपत्ति नहीं होनी चाहिए. वैसे भी भारत के लिए सुपर-पॉवर अमेरिका से दोस्ती रखना एक बेहतर विकल्प है क्योंकि हमने रुस से अपने संबंधों को कभी खत्म नहीं किया है. यहां ये बात दीगर है कि भले ही दूसरे देशों के साथ हमारे संबंधों में उतार-चढ़ाव आता रहा हो लेकिन रशिया से प्यार की दोस्ती हमेशा बरकरार है.

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