Friday, January 9, 2015

कदम-कदम बढ़ाए जा...

पीएम मोदी ने अपने मन की बात तीनों सेनाओं के सामने रखी कि इस साल की परेड में तीनों सेनाओं की तरफ से एक-एक टुकड़ी महिलाओं की होगी


वर्ष 1950 में भारत के गणतन्त्र राष्ट्र घोषित होने के बाद से ही हर साल 26 जनवरी को दिल्ली के राजपथ पर गणतन्त्र-दिवस परेड का आयोजन किया जाता है. माना जाता है कि भारत की गणतन्त्र-दिवस परेड दुनियाभर में सबसे बेहतरीन है. अगर कोई दूसरा देश है जो भारत को सार्वजनिक रुप से अपने शक्ति-प्रर्दशन में टक्कर देता है तो वो है चीन. 
 
     हर साल भारत की आन-बान-शान का नमूना होती है गणतन्त्र दिवस परेड. अलग-अलग राज्यों, मंत्रालयों और विभागों की रंग-बिरंगी झांकियां और कला-संस्कृति की अनूठी मिसाल पेश करती है ये परेड. जमीन पर अगर परेड में साथ ही होते हैं टैंक, तोप, मिसाइल और आधुनिक रक्षा-प्रणाली तो आसमान में होते है एयरफोर्स के आधुनिक फाइट एयरक्राफ्ट. लेकिन इन सबसे बढ़कर होती है वीर जवानों के कदम-ताल करती परेड. आर्मी, एयरफोर्स, नेवी, अर्द्धसैनिक-बल और पुलिस के जवान जब राजपथ पर मार्च-पास्ट करते हैं तो वहां बैठे लोगों ही नहीं बल्कि टीवी के जरिए लाइव प्रसारण देखने वाले लाखों भारतवासी मंत्रमुग्ध हो उठते हैं. जो कोई भी इस परेड को देखता है तो वो अनायस ही कह उठता है “...कदम-कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाए जा...

   लेकिन इस साल यानि वर्ष 2015 की गणतन्त्र दिवस परेड कई मायनों में अलग है और देशवासियों के साथ-साथ दुनियाभर की निगाहें 26 जनवरी की तरफ लगी हुई है.
पहली तो ये दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र, अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा इस साल गणतन्त्र दिवस परेड के मुख्य-अतिथि हैं. ये पहली बार है कि कोई अमेरिका का राष्ट्रध्यक्ष इस परेड की शान बढ़ाने आ रहा है. दुनियाभर में बेहद लोकप्रिय राजनेता समझे जाने वाले बराक ओबामा के भारत दौरे से साफ जाहिर हो जाता है कि दुनिया के (सामरिक) मान-चित्र पर भारत का महत्व कितना बढ़ रहा है.

    लेकिन बराक ओबामा का सुरक्षा-प्रोटोकोल उनके परेड़ में शामिल होने के बीच में अड़ंगा पैदा कर रहा है. दरअसल, सुरक्षा के मद्देनजर ओबामा किसी दूसरे मुल्क में किसी भी स्थान (सार्वजनिक स्थान पर) 20 मिनट से ज्यादा नहीं बैठ सकते हैं. जबकि गणतन्त्र दिवस परेड डेढ़ से दो घंटे तक चलती है. इसबार की परेड और ज्यादा चलने की उम्मीद है. रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो इस बार परेड की समय-सीमा ढाई घंटे की है. ऐसे में या तो ओबामा को हर 20 मिनट पर अपना स्थान बदलना पड़ेगा या फिर उन्हे परेड से उठकर जाना पड़ेगा. लेकिन दोनों ही सूरत में ये देश के महामहिम राष्ट्रपति का अपमान करने जैसा है. क्योंकि अब तक की मान्यता ये है कि जबतक राष्ट्रपति राजपथ पर होने वाली परेड में शामिल (बैठे) रहते हैं तबतक ना तो कोई भी वहां से उठकर जा सकता है और ना ही अपना स्थान बदल सकता है.
  
    मुश्किल ये भी आ रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जब भी किसी दूसरे देश की यात्रा पर जाते हैं तो अपनी खास कैडेलिक कार साथ लेकर जाते हैं. ये कार ना केवल आधुनिक हथियारों से लैस है बल्कि उसमें एमरजेंसी की हालत से निपटने के लिए खास पैनिक बटन भी मौजूद रहता है जिसका सीधा कनेक्शन यूएस के स्ट्रेटजिक कमांड से जुड़ा हुआ है. जबकि अब तक की परेड  परंपरा पर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि परेड का मुख्य-अतिथि राष्ट्रपति की लैमोजिन कार में ही सवार होकर राजपथ पहुंचता है.

     जानकारों की मानें तो ओबामा की सुरक्षा-प्रोटोकोल से जुड़े मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझा लिया जायेगा.

     लेकिन इस साल की परेड का सबसे बड़ा आकर्षण अगर अमेरिकी राष्टपति बराक ओबामा हैं तो हमारे देश की महिला-शक्ति भी इस साल की परेड का एक दूसरा (अहम) आकर्षण है. पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि थलसेना, वायुसेना और नौसेना की परेड की कमान महिला टुकड़ियां संभालेंगी. यानि तीनों सेनाओं की टुकड़ियों के सबसे आगे होगी महिला टुकड़ियां. महिला अधिकारियों से परेड का संचालन कराने का आईडिया किसी और का नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया है. दरअसल, जैसे ही ये बात तय हुई है कि इस साल की परेड में बराक ओबाम मुख्य-अतिथि होंगे, प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों सेनाओं को ये विचार दिया कि इस बार परेड में क्या नया हो सकता है. और इसी नए सोच के साथ पीएम मोदी ने अपने मन की बात तीनों सेनाओं के सामने रखी कि इस साल की परेड में तीनों सेनाओं की तरफ से एक-एक टुकड़ी महिलाओं की होगी.

    दरअसल, ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने इससे पहले गणतन्त्र-दिवस परेड में भाग नहीं लिया हो. कई बार महिला अधिकारियों ने पूरी की पूरी टुकड़ी का संचालन किया है. पैरा-मिलिट्री यानि सीआरपीएफ की महिला टुकड़ियों ने पहले भी परेड में हिस्सा लिया है. लेकिन वहां महिलाओं की पुूरी की पूरी बटालियन हैं. लेकिन इस बार नया ये है कि तीनों सेनाओं की पूरी टुकड़ी ही महिलाओं की होगी. एक टुकड़ी में करीब 148 जवान और अधिकारी होते हैं. इस लिहाज से तीनों सेनाओं की 148-148 महिला अधिकारी परेड में हिस्सा लेंगी.


    इसके लिए तीनों सेनाओं को खासी मशक्कत करनी पड़ी है. क्योंकि भारत में अभी भी सेनाओं में महिलाओं का अनुपात बेहद कम है. सेना में महिलाएं की नियुक्ति (तीनों अंगों में) सिर्फ अधिकारी पद के लिए होती है. यानि महिलाएं लेफ्टिनेंट के पद से ऊपर ही नियुक्त की जा सकती हैं. पैदल-सैनिक के तौर पर उनकी नियुक्ति नहीं होती है. साथ ही वे सेना के उन्हीं पदों और विभागों के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं जो सीधे युद्ध से ना जुड़े हों. वर्ष 2006 में एकीकृत रक्षा स्टाफ और 2011 में ट्राई-सर्विस हाई लेवल कमेटी (यानि तीनों सेनाओं की उच्च-कमेटी) अपनी-अपनी रिपोर्ट में साफ कर चुकी हैं कि महिलाएं गैर-युद्ध वाली पोस्टिंग के लिए ही उपयुक्त हैं. जैसे सेना की मेडिकल कोर, शिक्षा कोर, ज्यूडिशयल ब्रांच (जज-एडवोकेट जनरल यानि जैग) इत्यादि. यहां तक की महिलाओं को एयरफोर्स में लड़ाकू विमानों के पायलट के तौर पर ही उपयोगी नहीं माना गया है. यानि महिलाएं फायटर-पायलट भी नहीं बन सकती हैं.

    सेना के शिक्षा और जैग ब्रांच को छोड़ दें तो महिलाएं सीमित समय के लिए ही सेनाओं में काम कर सकती हैं यानि शोर्ट सर्विस कमीशन (SHORT SERVICE COMMISSION). ऐसे में अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होगा कि तीनों सेनाओं में महिलाओं का अनुपात किया है. रक्षा मंत्रालय के आंकड़ो पर नजर डालें तो पता चलेगा कि थलसेना में महिलाओं की कुल संख्या है मात्र 1300. भारतीय सेना की कुल संख्या है करीब 13 लाख (जिनमें से करीब 37 हजार पुरुष अधिकारी हैं). यानि महिलाओं का पुरुष अधिकारियों से अनुपात है 1:28. इसका अर्थ सीधा-सीधा ये है कि 28 पुरुष अधिकारियों में एक महिला है. इसी तरह से वायुसेना में महिलाओं की संख्या है 1334 जिसका अनुपात है 1:8 (पुरुष अधिकारियों की संख्य है करीब 11 हजार). अगर नेवी की बात करें तो महिलाओं की संख्या है मात्र 337 जबकि भारतीय नौसेना की कुल संख्या है 60 हजार (करीब 8 हजार अधिकारी).

     ऐसे में तीनों सेनाओं को गणतंत्र दिवस परेड के लिए अपनी-अपनी 148 महिलाओं को चुनना एक टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. क्योंकि परेड के लिए चुनने के लिए मात्र महिला होना ही काफी नहीं है. इस परेड के लिए कड़ी मेहनत से गुजरना पड़ता है. सभी को एक के साथ एक कदमताल करना पड़ता है. साथ ही अगर पिछली सभी परेड का इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि हर टुकड़ी में मार्च-पास्ट करने वाले सभी जवान लगभग एक कद-काठी और रंग-रुप के होते हैं. ऐसे में इतनी कम महिलाओं की संख्या में एक-जैसी कद-काठी की महिला अधिकारियों को ढूंढना एक टफ-जॉब साबित हो रहा है. लेकिन तीनों सेनाएं प्रधानमंत्री के इस विचार को पूरा करने में लगातार लेफ्ट-राइट-लेफ्ट कर रही हैं.

    जब हम बात कदम से कदम मिलाने की करते हैं तो परेड में सभी जवानों के हाथ भी एक साथ उठने और नीचे जाने चाहिए. लेकिन इस बार की परेड में एक विवाद भी खड़ा हो गया है. दरअसल, परेड की रिहर्सल के दौरान पाया गया कि वायुसेना और नौसेना के जवान मार्च-पास्ट करते वक्त अपना हाथ कंधे के ऊपर तक ले जा रहे हैं. जबकि थलसेना के जवान कंधे तक ही अपना हाथ लेकर जाते हैं. परेड के सुपरवाईजरी अधिकारियों ने इस तरफ ध्यान दिया तो एयरफोर्स और नेवी के जवानों ने साफ कर दिया कि उन्हे इसी तरह (कंधे से ऊपर हाथ ले जाने की) प्रेक्टिस कराई गई है.

          मामले ने तूल पकड़ा तो थलसेना ने 1961 के रक्षा नियम (डिफेंस सर्विस रेग्यूलेशन एक्ट) का हवाला देते हुए रक्षा मंत्रालय में तीनों सेनाओं के बड़े अधिकारियों की मीटिंग बुलाई. लेकिन मीटिंग बेनतीजा निकली. यानि परेड के मात्र 12-13 दिन पहले तक, तीनों सेनाओं के हाथ से हाथ बढ़ाने पर विवाद कायम हैं. ऐसे में अब रक्षा मंत्रालय को हस्तेक्षप करना पड़ सकता है.
 
   साथ ही पहली बार नौसेना भी अपनी ताकत का प्रर्दशन गणतन्त्र दिवस परेड में करनी वाली है. अभी तक आसमान में वायुसेना के फाइटर प्लेन ही कलाबाजियां करते हुए देखे जा सकते थे, लेकिन इस बार नौसेना के एवियशन विंग के खास जहाज इस परेड की शोभा बढ़ाएंगे.


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