Friday, April 10, 2015

यमन से घर वापसी का 'रोमांच' और ऑपरेशन राहत



अमूल विज्ञापन में यमन वापसी के अभियान को इस तरह सराहा गया
खाड़ी देश, यमन में (गृह) युद्ध जैसे मुश्किल हालात में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए जहां एक तरफ पूरी दुनिया में भारत (और भारत सरकार) की वाह-वाह हो रही है तो अपने देश में एक पूर्व-सैन्य जनरल और केन्द्रीय मंत्री के बयान ने बवाल खड़ा कर दिया है. ऐसे में मुश्किल ये है कि सरकार और सेनाओं द्वारा चलाए जा रहे अभियान की सराहना की जाए या फिर एक मुंहफट मंत्री के बयान को तवज्जो दी जाए.

       दरअसल, पिछले तीन-चार महीने से यमन में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई थी. शिया समर्थित हुती विद्रोहियों ने (सुन्नी) सरकार के खिलाफ जंग छेड़ रखी है. विद्रोहियों ने यमन की राजधानी सना पर कब्जा कर लिया है और राष्ट्रपति तक देश छोड़कर पड़ोसी देश सऊदी अरब भाग खड़े हुए हैं. एक के बाद एक हुती विद्रोहियों ने ऐडन (अदन बंदरगाह) और दूसरे बड़े शहरों पर अपना कब्जा जमा लिया है. शिया समुदाय के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए सऊदी अरब और दूसरे अरब देशों ने हुअती विद्रोहिओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सऊदी-अरब के नेतृत्व में खाड़ी देशों ने अरब-वर्ल्ड्स के नाम से अपना अलग एक संगठन तैयार कर लिया है और यमन पर हमले करने शुरु कर दिए हैं. 

       दूसरी तरफ शिया-बहुल ईरान भी इस युद्ध में हुती विद्रोहियों का साथ देने का मन बना रहा है. ऐसा हुआ तो मध्य-पूर्व एशिया एक बार फिर बड़े युद्ध की आग में फंस सकता है—जैसा कि 1991 के खाड़ी-युद्ध और ईरान-इराक युद्ध के दौरान हुआ था. यमन में सऊदी सेना की गोलाबारी जारी है. लोग अपने घरों को छोड़कर भाग खड़े हुए हैं. विदेशी-मूल के लोग अपने-अपने देश वापस जा रहे हैं. सभी देश इस कोशिश में हैं कि अपने लोगों को सुरक्षित यमन से वापस बुला लिया जाए.

      जनवरी के महीने से ही भारत के विदेश मंत्रालय और यमन स्थित दूतावास ने अपने नागरिकों को देश छोड़कर जाने की एडवायजरी जारी कर दी थी. लेकिन वहां बड़ी तादाद में काम करने वाली नर्स और दूसरे लोग इस आस में रहे कि हो सकता है कि यमन के हालात सुधर जाएं. यमन में भारतीय मूल के 5500 से ज्यादा लोग रहते हैं. लेकिन स्थिति बद से बदतर होती गई. आखिरकार 30 मार्च को विदेश मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से यमन में फंसे लोगों को निकालने के लिए मदद मांगी. रक्षा मंत्रालय ने नौसेना और वायुसेना को इस काम में लगाया और अभियान को नाम दिया ऑपरेशन-राहत (ऑप-राहत).
मानचित्र पर ऑपरेशन राहत . साभार:भारतीय नौसेना

     नौसेना के युद्धपोत अदन की खाड़ी, फारस की खाड़ी और अरब सागर के दूसरे हिस्सों में समुद्री-डाकुओं से निपटने के लिए इस क्षेत्र में कड़ी निगरानी रखते हैं. नौसेना के एक ऐसे ही युद्धपोत आईएनएस सुमित्रा,  जो कि उस वक्त अरब सागर में पैट्रोलिंग कर रहा था, तुरंत अदन-बंदरगाह रवाना कर दिया गया.  31 मार्च को ही आईएनएस सुमित्रा अदन-बंदरगाह पहुंच गया और भारतीयों को निकालने के काम में जुट गया. उस वक्त यमन की राजधानी एक तरह से सना से अदन में ही शिफ्ट कर दी गई थी. लेकिन किन मुश्किल हालातों में भारतीय नौसेना, वायुसेना और एयर-इंडिया ने ऑपरेशन राहत को पूरा किया, उससे पहले एक बार यमन का भारत से कितना पुराना रिश्ता है उसके ऐतिहासिक पहलू पर नजर डाल लेते हैं.

      करीब पांच हजार साल पहले, महाभारत युद्ध के दौरान कौरवों की सेना का नेतृत्व कर रहे दुर्योधन के एक मित्र का जिक्र आता है, जो यवण का राजा था. माना जाता है कि वो यवण नरेश कोई और नहीं यमन का ही कोई राजा रहा होगा. उस (प्राचीन) काल में भारत के पश्चिम में मरुस्थल यानि अरब-देशों को यवण और वहां के रहने वाले लोगों को मलेच्छ के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि इस्लाम-धर्म की स्थापना के वक्त भी यमन (यवण) अरब-देशो में सबसे संपन्न इलाकों में था. ग्रीक (ग्रीस) के प्राचीन ग्रंथो में अदन को एक संपन्न बंदरगाह के तौर पर जाना जाता था, जहां पर सामान का आदान-प्रदान (आयात-निर्यात) किया जाता था. 

       पहली सदी की ऐतिहासिक और भूगोलिक किताब, पेरीप्लस ऑफ द ईराइथेरियन सी में भी अदन बंदरगाह का जिक्र किया गया है. किताब में लिखा गया है कि लाल सागर (रेड सी) के मुहाने पर बसा अदन बंदरगाह, पूर्व और पश्चिम देशों के बीच ट्रांसशिपमेंट का काम करता था.

       ढाई हजार साल बाद आज जब भारत को अदन-बंदरगाह की सबसे ज्यादा जरुरत थी, तो एक बार फिर वो हाथ बढ़ाने के लिए आगे आया और भारतीय नौसेना के पहले जहाज आईएनएस सुमित्रा ने 31 मार्च 2015 को भारतीयों को यमन से निकालने के लिए इसी ऐतिहासिक बंदरगाह पर अपना बेड़ा डाला. इस जहाज से 349 भारतीयों को ही निकाला जा सका.
आईएनएस मुंबई युद्धपोत पर यमन से लौटे फंसे लोग

        ऑपरेशन राहत के तहत, भारतीय नौसेना का ये जिम्मेदारी दी गई थी कि भारतीय नागरिकों को यमन से निकालने के बाद उन्हे लाल-सागर के दूसरे किनारे पर बसे अफ्रीकी देश जिबूती ले जाकर छोड़ना है. अफ्रीकी महाद्वीप के सींग (हॉर्न) पर बसे छोटे से देश जिबूती को इससे पहले कम ही भारतीय जानते थे. इससे पहले तक ये देश अमेरिका के मिलेट्री-बेस के तौर पर ही जाना जाता था. वहां से भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े ट्रांसपोर्ट और आधुनिक विमान सी-17 ग्लोबमास्टरसे भारत लाया जायेगा. इसके लिए भारतीय नौसेना ने आईएनएस सुमित्रा के साथ-साथ दो और युद्धपोत आईएनएस मुंबई और आईएनएस तरकश को भारत से यमन के लिए रवाना कर दिया. जहाजरानी मंत्रालय ने भी इन दोनों युद्धपोतों के साथ दो नागरिक-जहाज, कोरल और कवर्ती को यमन के लिए रवाना कर दिया. वायुसेना ने अपने तीन सी-17 विमान जिबूती की तरफ रवाना कर दिए. सरकारी विमान कंपनी एयर-एंडिया ने भी अपने दो 321 जहाज जिबूती की तरफ रवाना कर दिए.

      ऑपरेशन राहत के सुचारु रुप से संचालित करने के लिए विदेश राज्य मंत्री जरनल (रिटा) वी के सिंह को जिबूती रवाना कर दिया गया.
यमन में विदेश राज्यमंत्री जनरल (रिटा) वी के सिंह
सेना में 40 साल से भी ज्यादा दिन गुजार चुके और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी (थल) सेना के प्रमुख के तौर पर काम कर चुके जनरल वी के सिंह के पास सैन्य और कूटनीति दोनों का तर्जुबा था. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वी के सिंह को इस ऑपरेशन का मुखिया बनाया था. वी के सिंह इस ने दिन-रात जागकर इस बात को सुनिश्चित किया कि यमन से सभी भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकाला जाए. साथ ही हमारे युद्धपोत और विमानों को भी युद्धक्षेत्र में कोई नुकसान ना होने पाए. इसके अलावा वहां से निकाले गए अपने देश के लोगों को किसी तरह की की परेशानी ना हो-चाहे वो खाने की हो या फिर चिकित्सा सुविधा हो.

            पहली बार जब आईएनएस सुमित्रा अदन बंदरगार पहुंचा, तो शहर में फायरिंग और गोलाबारी साफ सुनी जा सकती थी. लेकिन नौसेना का ये युद्धपोत आधुनिक हथियारों और रडार से लैस था. और करीब साढ़े तीन सौ भारतीयों को निकालकर सुमित्रा, साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर जिबूती पहुंच गया. इसके बाद आईएनएस मुंबई, और आईएनएस तरकश भी यमन पहुंच गए और अलग-अलग बंदरगाहों से भारतीय नागरिकों को निकालने में जुट गए. अल-शिहर और अल-हुदेदा से भी फंसे हुए नागरिकों को निकाला गया. लेकिन ये सबकुछ इतना आसान नहीं था. एक ऐसे ही फेरे के दौरान आईएनएस मुंबई अदन-पोर्ट नहीं पहुंच सका. शहर में भारी गोलाबारी हो रही थी. हालांकि, भारतीय नौसेना का ये जहाज भी आधुनिक मिसाइल टैक्नॉलोजी (मिसाइल शील्ड) से लैस था, लेकिन भारत बेवजह इस युद्ध में नहीं कूदना चाहता था. इसलिए बंदरगाह से दूर ही युद्धपोत को रोक दिया. उसके बाद छोटी-छोटी नौकाओं में लोगों को भरकर बंदरगाह से मुंबई जहाज तक पहुंचाया गया. विद्रोहियों के अल-मोकल्ला बंदरगाह पर कब्जा करने के चलते एक भारतीय जहाज को दूसरे पोर्ट का रुख करना पड़ा.

      बताया तो ये भी जा रहा है कि जिबूती सरकार इसी बात पर अपना बंदरगाह ऑप-राहत के इस्तेमाल करने के लिए इस शर्त पर राजी हुई कि पहले उसके नागरिकों को यमन से वापस लाया जाये. भारतीय नौसेना द्वारा यमन से निकाले गए विदेशी नागरिकों में जिबूती के लोग भी शामिल हैं. इसके बाद तो एक के बाद एक कई देशों ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगानी शुरु कर दी. इनमें दुनिया का सबसे ताकतवर देश, अमेरिका भी शामिल था. पूरी दुनिया अमेरिका की मिलेट्री ताकत का लोहा मानती है. लेकिन यमन में फंसे अमेरिकी नागिरकों को भी भारत ने ही बाहर निकाला. सीएनएन और एबीसी सरीखे अंर्तराष्ट्रीय चैनल ने भारत और भारतीय सेनाओं की जमकर तारीफ की. 
घर-वापसी: जिबूती में वायुसेना के विमान में चढ़ते लोग
       एबीसी के विदेश मामलों के संपादक ने यहां तक कह डाला कि अमेरिका अपनी सेनाओं पर भारत के मुकाबले दस गुना ज्यादा खर्च करता है फिर भी अपने नागरिकों को वहां से बाहर निकालने के लिए भारत से मदद ले रहा है वो भी तब जब कि जिबूती में अमेरिका का अपना मिलेट्री-बेस भी है. केवल अमेरिका ही नहीं, अपने कट्टर दुश्मन पाकिस्तान के नागरिकों को भी भारत ने यमन के मुश्किल हालातों से बाहर निकाला. भारतीय विदेश मंत्रालय के आंकड़ो के मुताबिक, भारत ने कुल 26 देशों के 250 से भी ज्यादा नागरिकों को यमन से निकालने में मदद की है.
     
      वायुसेना और नौसेना ने तो ऑप-राहत में बड़ा योगदान दिया ही, लेकिन सरकारी विमानन कंपनी,  एयर एंडिया ने भी इस अभियान में अहम भूमिका निभाई है. ऐसे समय में जब यमन के हवाई अड्डों तो क्या यमन के वायुमंडल के आस-पास भी कोई जहाज नहीं उड़ रहा था, तब एयर इंडिया के विमानों ने यमन की राजधानी सना के एयरपोर्ट से भारतीय और विदेशी नागरिकों को निकालने का दम भरा था. यहां ये बात दीगर है कि इस ऑपरेशन में बैक चैनल भी काफी काम कर रहे थे. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऑप-राहत के शुरु करने स पहले सऊदी अरब के राष्ट्रपति से बात की थी. क्योंकि सना एयरपोर्ट माना जा रहा था कि सऊदी सेना के कब्जे में था. वहां से उड़ान भरने के लिए सऊदी अरब की मदद चाहिए थी. वायुसेना के मिलेट्री एयरक्राफ्ट का गृहयुद्ध के दौरान इस क्षेत्र में उड़ान भरना खतरे से खाली नहीं था. इसलिए नागरिक विमानों को ही सना एयरपोर्ट से ऑपरेट किया गया. शायद यही वजह है कि जिबूती में मिलेट्री बेस होते हुए भी अमेरिका ने अपने सैन्य विमानों को यमन में नहीं उतारे.
 
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में ऑप-राहत की सराहना
      सबकुछ लगभग ठीक-ठाक चल रहा था कि इसी बीच ऑपरेशन राहत की जिबूती में कमान संभाल रहे विदेश राज्यमंत्री जनरल (रिटा) वी के सिंह ने ये कहकर सनसनी फैला दी कि ये अभियान उनके हाल ही में पाकिस्तानी हाई कमिशन के दौरे से कम रोमांचकारी है. दरअसल, कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान-दिवस के मौके पर वी के सिंह को विदेश मंत्रालय का जूनियर मंत्री होने के नाते पाकिस्तान दूतावास जाना पड़ा था. वहां से लौटते ही उन्होनें अपने ट्वीटर एकाउंट पर कुछ ऐसी टिप्पणियां की थी, जिसे देखकर लगता था कि उन्हे वहां जाना पसंद नहीं था, लेकिन उन्हे जबरदस्ती वहां भेजा गया था. यानि ना चाहते हुए भी वी के सिंह को अपनी ड्यूटी निभाने के लिए पाक हाई कमिशन जाना पड़ा था. उसको लेकर भारतीय मीडिया में बवाल अभी शांत भी नहीं हुआ था कि उन्होनें रोमांचकारी बयान दे डाला. 

     जानकारों की मानें तो, वी के सिंह इस बात से नाराज थे कि उनके काम की भारतीय मीडिया में सराहना क्यों नहीं हो रही है. लेकिन इसके लिए खुद सरकार या फिर उनका (विदेश) मंत्रालय जिम्मेदार था जो मीडियाकर्मियों को वहां जाने में मदद नहीं कर रहा था. या फिर ये हो सकता था कि वी के सिंह यहां (जिबूती) भेजे जाने और ऑप-राहत की दी गई जिम्मेदारी से खुश नहीं थे.

     अंग्रेजी चैनल टाईम्स नाऊ ने वी के सिंह के रोमांचकारी बयान को अभद्र मानते हुए चलाना शुरु कर दिया. इस बात पर वी के सिंह भड़क उठे और टाईम्स-नाऊ चैनल के संपादक अर्नब गोस्वामी के लिए ट्वीटर पर प्रेस्टीट्यूट शब्द का इस्तेमाल कर डाला. इस द्वीअर्थी शब्द का असल मतलब होता है सरकार के प्रति झुकाव या फिर पक्षपाती. लेकिन इसका एक अर्थ वेश्या या फिर बाजारु भी निकलता है. एक जाने-माने चैनल और लोकप्रिय संपादक के लिए इस तरह के शब्द इस्तेमाल किए जाने से मीडिया का नाराज होना लाजमी था. सो मीडिया का एक बड़ा हिस्सा वी के सिंह के पीछे पड़ गया—हालांकि कुछ चैनल ने इसमें कुछ गलत नहीं माना और वे वी के सिंह के काम की जमकर तारीफ कर रहे थे.

स्वागत:ऑपरेशन राहत खत्म होने के बाद दिल्ली एयरपोर्ट की तस्वीर
     लेकिन ये पहला ऐसा मामला नहीं है जब, वी के सिंह अपने बेबाक बयान और ट्वीट के जरिए विवादों मे फंसे हैं. सेना-प्रमुख के पद पर रहते हुए अपनी उम्र-विवाद को लेकर सरकार (और रक्षा मंत्रालय) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले जाने से लेकर रिश्वत की पेशकश और तख्ता पलटने की खबरों के जरिए वी के सिंह हमेशा (गलत) कारणों से सुर्खियां बंटोरते रहे हैं. मंत्री बनाए जाने के बाद भी उन्होनें तत्कालीन सेना प्रमुख के लिए ट्वीटर पर अपशब्द कहे और अपनी ही सरकार को मुश्किल में डाल दिया. कुछ जानकारों को मानना है कि वी के सिंह विदेश मंत्रालय में जूनियर मंत्री के पद से खुश नहीं है, इसलिए वे अनाप-शनाप बोलकर इस मंत्रालय से निकलकर कोई स्वतंत्र मंत्रालय की चाहत लगाए बैठे हैं. हकीकत कुछ भी हो, लेकिन ऑपरेशन राहत के जरिए भारत, भारत-सरकार और सेना ने जितनी भी वाहवाही लूटी थी, उसकी वी के सिंह के रोमांच ने किरकरी जरुर कर दी है. यहां ये बात भी दीगर है कि अगर इस अभियान की तुलना 1991 के खाड़ी युद्ध से करेंगे तो पायेंगे कि ये ऑपरेशन उस के मुकाबले कुछ भी नहीं है. उस वक्त 1.76 लाख लोगों को भारत ने खाड़ी देशों से बाहर निकाला था. जबकि ऑप-राहत में मात्र 5600 भारतीयों को ही अबतक स्वेदश वापस लाया गया है.

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