Monday, November 17, 2014

पंजाब में नशे के कारोबार से सेना चिंतित


         भारतीय सेना ने हाल में अपनी भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक स्टडी की जिसमें कई चौकाने वाले तथ्य और आंकड़े सामने आए. सबसे पहला चौकाने वाला तथ्य ये था कि पंजाब जैसे राज्य में, जहां से एक समय में सेना में सबसे ज्यादा जवान भर्ती होते थे, वहां के नौजवान भर्ती प्रक्रिया के लिए जरुरी 1600 मीटर की दौड़ भी पूरी नहीं कर पाते हैं. पंजाब के नौजवानों में इस दौड़ को तयशुदा समय में पूरा करने का अनुपात 10-15 प्रतिशत है. यानि पंजाब के 90 प्रतिशत युवा इस दौड़ को पूरा करने में नाकाम हैं. जबकि दूसरे उत्तरी राज्यों में 25 प्रतिशत युवा इस दौड़ का पूरा करने में सक्षम हैं. 

         सेना की इस स्टडी से साफ है कि पंजाब में नशे का जाल इस कदर फैल चुका है कि बड़ी तादाद में नौजवान इसकी चपेट में आ चुके हैं. लेकिन माना जा रहा है कि ये जहर धीरे-धीरे पड़ोसी राज्य में फैल सकता है. अगर ऐसा हुआ तो स्थिति विकट हो सकती है.
    पंजाब के युवा-वर्ग में ड्रग्स के बढ़ते चलने के चलते ही सेना ने अपनी रिक्रूटमेंट रैलियों में ड्रग्स-किट अनिवार्य कर दी है. 250 रुपये की इस किट के जरिए सेना के अधिकारी भर्ती के लिए आए उम्मीदवारों का ड्रग्स टेस्ट स्क्रीनिंग के वक्त ही कर लेते हैं और उसका रिजल्ट भी तुरंत पता चल जाता है. 
           हालांकि स्टडी में ये भी कहा गया है कि भले ही पंजाब के नौजवान भर्ती प्रक्रिया में बड़ी तादाद में फेल हो रहें हों, लेकिन सेना में शामिल होने के जोशो-खरोश में कोई कमी नहीं आई है. अभी भी सेना की भर्ती-रैलियों में पंजाब नंबर वन है. पंजाब के किसी भी इलाके में कोई भी रैली हो उसमें 12 से 15 हजार तक नौजवान आसानी से पहुंच जाते हैं. यानि पंजाब अभी भी हाई-रैसपोंस एरिया के तौर पर जाना जाता है.

              दरअसल, सेना में हर साल 60-70 हजार जवानों की भर्ती की जाती है. इन जवानों की भर्ती सेना रिक्रूटमेंट-रैली के जरिए करती है. इन रैलियों के लिए सेना ने पूरे देश को 11 जोन में बांट रखा है. बड़े राज्य जैसे यूपी, बिहार, राजस्थान, पंजाब, मध्य-प्रदेश इत्यादि में एक से ज्यादा जोन हैं. लेकिन उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों के लिए एक ही रिक्रूटमेंट-जोन है. ऐसे ही जम्मू-कश्मीर और हिमाचल जैसे छोटे राज्यों के लिए एक-एक रिक्रूटमेंट-जोन है. ये जोन इस आधार पर भी तय किए गए हैं कि किस राज्य से कितने नौजवान भर्ती के लिए आते हैं. अभी भी यूपी, बिहार, पंजाब जैसे राज्यों से बड़ी तादाद में युवा सेना में भर्ती के लिए इन रैलियों में इकठ्ठा होते हैं. हाल ही में मध्य-प्रदेश के ग्वालियर में इतने नौजवान इकठ्ठा गए और सभी को रैली में शामिल होने का मौका ना मिलने की स्थिति में हंगामा हो गया. सेना में शामिल होने आए लोगों ने जमकर तोड़-फोड़ की और गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. सेना के मुताबिक, ग्वालियर की रैली में 10-12 हजार नौजवान इकठ्ठा हुए थे. गोवा जैसे लो-रिस्पॉन्स एरिया में भी 6-7 हजार की करीब की भीड़ जुट जाती है.

       सेना ने इन 11 रिक्रूटमेंट-जोन को 71 रिक्रूटमेंट ऑफिस (आर्मी रिक्रूटमेंट ऑफिस या एआरओ) में बांट रखा है. हर आर्मी रिक्रूटमेंट ऑफिस की जिम्मेदारी है कि वो साल में दो से तीन रैलियों को आयोजित करे. इस तरह से सालभर में करीब 140-160 रैलियों आयोजित की जातीं हैं. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल इन रैलियों में 30-34 लाख नौजवान सेना में भर्ती के लिए अपनी किस्मत आजमाने पहुंचते हैं. लेकिन मौका मिलता है सिर्फ 60-70 हजार सफल उम्मीदवारों को सेना के जरिए देश के लिए सेवा करने का.

   हरेक एआरओ में एक कर्नल, एक मेडिकल ऑफिसर और चार दूसरे रैंक के अधिकारी होते हैं. साथ में होते हैं कुछ जवान. लेकिन सवाल उठता है कि इतने कम अधिकारी 10-12 हजार लोगों की रैली कैसे आयोजित कर लेतें हैं और इतनी बड़ी भीड़ को संभालते कैसे हैं. दरअसल, एआरओ के अधिकारी सिर्फ उम्मीदवारों के चयन का काम करते हैं. बाकी भीड़ संभालने से लेकर कानून-व्यवस्था संभालने का काम स्थानीय (जिला) प्रशासन करता है.
  
  किसी भी भर्ती-रैली से पहले सेना स्थानीय अखबार में विज्ञापन निकालती है कि फंला तारीख को फंला शहर के ग्राउंड, कैंट या फिर स्टेडियम में रिक्रूटमेंट की जायेगी. इसके लिए एआरओ के अधिकारी जिले के डीएम और एसपी से लगातार संपर्क बनाए रखते हैं. ताकि जिला प्रशासन रैली में आने वाले उम्मीदवारों के खाने-पीने और जरुरत पड़े तो रहने का इंतजाम भी कर ले. क्योंकि इन रैलियों का मकसद केवल सेना में भर्ती ही नहीं है बल्कि स्थानीय नौजवानों को रोजगार देना भी है.
      
  रैली की शुरुआत सुबह 6.30 बजे हो जाती है. स्टेडियम के बाहर दो चक्र होते हैं-इनर मार्शल एरिया और ऑउटर मार्शल एरिया. यहां पर पुलिसबल किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहता है. ऑउटर मार्शल एरिया से पुलिसकर्मी 100-200 उम्मीदवारों के दस्ते को अंदर भेजते हैं. इनर मार्शल एरिया में सेना के अधिकारी और जवान उनकी मार्कशीट और सर्टिफिकेट इत्यादि चैक करने के बाद स्टेडियम में दाखिल करने की अनुमति देते हैं.

          स्टेडियम में सबसे पहले सभी उम्मीदवारों को 400 मीटर दौड़ के चार चक्कर (राउंड) लगाने होते हैं. यानि हरेक उम्मीदवार को 1600 मीटर की दौड़ लगानी पड़ती है. और इस 1600 मीटर की दौड़ को छह मिनट में पूरा करना होता है. जो उम्मीदवार इस दौड़ को तयशुदा समय में पूरा कर लेते हैं उन्हे अगला टेस्ट पार करना होता है. जो इस दौड़ को पूरा नहीं कर पाते हैं उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, अधिकतर रैलियों में 25 प्रतिशत उम्मीदवार इस दौड़ को पूरा कर लेते हैं.
       
इस 1600 मीटर की दौड़ के बाद सभी उम्मीदवारों की शारीरक नाप-तोल की जाती है. अगर वे सेना के मापदंडों को पूरा कर लेते हैं तो उन्हे इंडियन आर्मी में शामिल कर लिया जाया जाता है. हाथ में बंदूक लेकर देश की सीमाओं पर सीमाओं की रक्षा करने का दायित्व संभालना पड़ता है. सीमाओं के साथ-साथ देश के किसी भी हिस्से में अगर पुलिस-प्रशासन कानून-व्यवस्था संभालने में नाकाम रहता है तो वो काम भी सेना को संभालना पड़ता है. आंतकवाद से मुकाबला हो या फिर जातीय और धार्मिक हिसां सभी जगह सेना को ही हालात बेकाबू होने पर तैनात किया जाता है. प्राकृतिक आपदा, भूकंप, बाढ़ इत्यादि में भी सबसे पहला मदद का हाथ आगे आता है तो वो एक जवान का ही होता है.

  सेना में रैंक ऑफिसर (यानि लेफ्टिनेंट और उससे ऊपर के अधिकारियों के लिए) की भर्ती के लिए यूपीएससी हर साल एनडीए और सीडीएस जैसे कठिन परीक्षा आयोजित करती है.

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