Thursday, December 4, 2014

चोल राजा राजेन्द्र की सैन्य विरासत

राजेन्द्र चोल ने भी भारत की उस सांस्कृतिक और सैन्य विरासत का ही अनुसरण किया था जैसा रामायण में राम और बाद में चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने किया था

राजेन्द्र चोल की 1000वी जयंती को मनाने के लिए समुद्री-यात्रा पर निकलता आईएनएस सुर्दशनी
 
हमारे देश का ये ना केवल इतिहास है बल्कि सांस्कृतिक विरासत भी है कि हमने ना तो किसी देश पर हमला किया है और ना ही उनपर कभी अपनी प्रभुता स्थापित की. अगर हमला किया और दूसरे देश पर विजय हासिल की है तो उसके पीछे कोई ना कोई कारण रहा होगा. भगवान राम ने लंका पर हमला कर अपनी पताका फैलाई थी तो सिर्फ इसलिए की वहां के राजा रावण ने उनकी पत्नी का अपहरण कर बंधक बना लिया था. अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए ही राम ने समुद्र पर पुल बनाया और लंका पहुंचकर रावण का वध कर अपनी पत्नी को सकुशल वापस पा लिया. लेकिन लंका पर विजय हासिल करने के बाद भी राम ने वहां शासन नहीं किया. बल्कि रावण के भाई विभीषण को वहां का राजा बनाकर वापस अपने राज्य अयोध्या वापस लौट आए.

        ये कहानी इतनी ही पुरानी है जितना पुराना भारतवर्ष का पुराणिक-इतिहास है. लेकिन हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने इस कहानी को दुहरा कर एक बार साफ कर दिया कि हम चाहे कितने भी शक्तिशाली क्यों ना हो जाएं लेकिन हम किसी दूसरे देश पर बिना किसी कारण के हमला नहीं करेंगे. लेकिन रक्षा मंत्री ने इसके साथ ही ये भी साफ कर दिया कि इतिहास गवाह है कि जिस देश की नौसेना शक्तिशाली है उसी ने पूरी दुनिया पर राज किया है.

        आज यानि 4 दिसम्बर को नौसेना दिवस है. 1971 के पाकिस्तान-युद्ध में भारत की जीत में अहम भूमिका निभाने के बाद से ही नौसेना हर साल 4 दिसम्बर को ये दिवस मनाती है. 
लेकिन ये साल भारतीय नौसेना दक्षिण-भारत के चोल राजवंश के प्रतापी राजा राजेन्द्र-प्रथम के राज्यभिषेक की एक हजार जंयती भी मना रही है. 1014 ईसवी में राजेन्द्र ने चोल राज्य की कमान संभाली थी. उस वक्त चोल राज्य आज के तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र-प्रदेश के बड़े हिस्सों तक फैला था. राजेन्द्र (1014-1044 ईसवी) से पहले उनके बड़े भाई (कहीं पर पिता कहा गया है) राजराजा चोलवंश के राजा थे और उन्होनें अपने राज्य की सीमा को तमिलनाडु से बढ़ाकर दूसरे पड़ोसी राज्य तक फैलाई थीं. 1012 में राजराजा ने अपने छोटे भाई (या पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. दो साल तक दोनों भाईयों ने एक साथ चोल राज्य पर शासन किया. हालांकि अपने भाई के राज्यकाल के दौरान ही राजेन्द्र ने कई युद्धों में अहम भूमिका निभाई थी जिसके चलते ही चोल राज्य की सीमाएं तमिलनाडु से बढ़कर पड़ोसी राज्यों तक फैल गई थीं.

        लेकिन राजेन्द्र चोल को इतिहास में इसलिए अधिक याद किया जाता है क्योंकि उन्होनें समुद्र पार कर ना केवल (श्री)लंका बल्कि दक्षिण-पूर्व के कई देश जैसे सुमात्रा, मलाया और जावा (आज के इंडोनेशिया) तक अपनी जीत का पताका फहराया था. उस वक्त सुमात्रा और उसके आस-पास के द्वीपों में श्रीविजया नाम का राज्य था. समुद्रतट के करीब सम्राज्य होने के चलते चोल राजाओं ने अपनी एक बड़ी नौसेना तैयार की थी. इसी नौसेना के बदौलत राजेन्द्र चोल ने दक्षिण-पूर्व के देशों तक अपनी जीत का परचम फहराया था. साथ ही उसने समुद्र के रास्ते चीन तक अपने राजनयिक-मिशन भेजे थे. इसके अलावा बर्मा (म्यंमार) और बांग्लादेश तक चोल राज्य के निशान दिखाई पड़ते हैं.
 
       लेकिन सवाल खड़ा होता है कि क्या राजेन्द्र चोल भारतीय इतिहास में ऐसा अपवाद है जिन्होनें दूसरे देश पर हमला किया, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत के उलट है. यानि बिना किसी कारण के दूसरे देशों पर हमला करना. अगर ऐसा है तो भारतीय नौसेना राजेन्द्र चोल के राज्यभिषेक की 1000वी जयंती क्यों मना रही है ? क्या भारतीय नौसेना भी राजेन्द्र चोल की तरह ही हिंद महासागर में अपना वर्चस्व कायम करना चाहती है ?

      इसका जवाब ठीक-ठीक किसी के पास नहीं है कि राजेन्द्र ने श्रीविजया राज्य पर क्यों आक्रमण क्यों किया. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजेन्द्र ने अपने समकालीन राज्यों चेरा, पांड्या और कलिंगा राज्य पर पहले ही विजय हासिल कर ली थी. यहां तक की उसकी सेना गंगा तक लड़ने गई थी, यानि दक्षिण से लेकर उत्तर के राज्यों तक उसने जीत हासिल कर ली थी. गंगा कूच कर लौटने के बाद ही राजेन्द्र ने अपनी नई राजधानी गंगाईकोंडा-चोलापुरम की स्थापना की थी. लगभग पूरे भारतवर्ष पर फतह हासिल करने के बाद उसने श्रीविजया सम्राज्य की और कूच किया. उसका मकसद वहां भारतवर्ष और चोलराज्य की पताका फहराना था. इसकी एक वजह ये भी हो सकती है क्योंकि उसने श्रीविजया पर विजय पाने के बाद उसने दिग्विजय की उपाधि अपने नाम के साथ जोड़ ली थी.
चोल सम्राज्य और चीन को भेजे राजनयिक-मिशन का समुद्री-रुट


     लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजेन्द्र के श्रीविजया पर हमले करने की तिथि यानि तारीख को गौर से देखना होगा. उसी में उसके हमले करने का राज़ छिपा है. राजेन्द्र चोल ने श्रीविजया देश पर आक्रमण किया था 1025 ईसवी में. इससे पहले यानि 1016 में राजेन्द्र ने एक राजनयिक-मिशन समुद्र के रास्ते चीन भेजा था. ये मिशन राजनयिक के साथ-साथ व्यापारिक भी था. कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीविजया राज्य ने राजेन्द्र के मिशन के चीन जाने में अड़ंगा अड़ाया था. वो राजेन्द्र के मिशन को चीन नहीं जाने देना चाहता था, इसलिए सबक सिखाने के इरादे से राजेन्द्र ने श्रीविजया राज्य पर आक्रमण किया था. दरअसल, राजेन्द्र ने श्रीविजया राज्य पर वर्ष 1025 में आक्रमण किया था. यानि चीन को भेजे जाने वाले पहले मिशन (1016) के नौ साल बाद. इसके बाद दूसरा मिशन भेजा 1033 में यानि श्रीविजया पर विजय हासिल करने के आठ साल बाद.

        ऐसे में इस बात को बल मिलता है कि श्रीविजया पर आक्रमण करने का मुख्य मकसद श्रीविजया को सबक तो सिखाना था ही, चीन तक जाने वाले समुद्री-रास्ते को किसी भी अड़चन से साफ रखना भी था. क्योंकि चीन का समुद्री-रास्ता श्रीविजया के राज्य की सरहदों से गुजरता था. साथ ही राजेन्द्र चोल ने श्रीविजया के राजा संग्राम विजयतुंगवर्मन को हराकर उसे कब्जा नहीं किया. बल्कि विजयतुंगवर्मन को एक बार फिर से राजा बना दिया, लेकिन इस शर्त पर की उसे चोलराज्य की अधीनता स्वीकार करनी पड़ेगी. यही वजह है कि राजेन्द्र प्रथम की मौत के कई साल बाद का एक तमिल अभिलेख (1088 ईसवी) सुमात्रा में पाया गया जिसमें लिखा था कि दोनों देशों (चोल और श्रीविजया) के बीच में कई सदियों तक संबध कायम थे.
राजेन्द्र चोल द्वारा स्थापित राजधानी गंगाईकोंडा-चोलापुरम

      साफ है कि राजेन्द्र चोल ने भी भारत की उस सांस्कृतिक और सैन्य विरासत का ही अनुसरण किया था जैसा रामायण में राम और बाद में चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने किया था. यहां तक की जब राजेन्द्र चोल ने श्रीलंका पर आक्रमण किया और विजय हासिल की तो वहां के सिंहली राजा को ही राज्य सौंपकर अपने देश वापस लौट आया था. सिंहली राजा ने भी राजेन्द्र चोल की अधीनता स्वीकार कर ली थी.

      राजेन्द्र चोल को कम्पूचिया (कंबोडिया) के खमेर राजा और थाईलैंड से भेंट भी मिलती थी. जो एक राजा दूसरे राजा को स्वाधीन होने के वक्त ही देता है या फिर तब देता है जबकि दोनों के बीच में मधुर संबध रहे हों. साथ ही राजेन्द्र की एक उपाधि थी कदर्रम-कोंडनजिसका अर्थ है वो जिसने केदाह (आज के मलेशिया) पर जीत हासिल की हो.

    शायद यही वजह है कि भारतीय नौसेना राजेन्द्र चोल के राज्यभिषेक की 1000वी जंयती मना रही है. इस प्रण के साथ की हम किसी देश पर आक्रमण नहीं करेंगे. लेकिन अगर कोई हमारे समुद्री-हितों के बीच में (खासकर हिंद महासागर में) अड़चन या फिर टकराने की जुर्रुत करेगा तो उसका वही हाल होगा जो राजेन्द्र चोल ने श्रीविजया सम्राज्य का किया था.

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