Tuesday, September 13, 2016

सारागढ़ी की लड़ाई अब रुपहले परदे पर !


विश्व- प्रसिद्ध ऐतिहासिक ‘सारागढ़ी की लड़ाई’ पर जाने-माने फिल्मकार राजकुमार संतोषी फिल्म बनाने जा रहे हैं. आज राजधानी दिल्ली में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और सूचना एवम प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने फिल्म का मुहूर्त शॉट दिया. फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं रणदीप हुड्डा.

सारागढ़ी की लड़ाई 12 सितबंर 1897 को पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर सारागढ़ी चौकी पर लड़ी गई थी. इस लड़ाई में 21 सिख योद्धाओं ने 10 हजार अफगानी कबीलाईयों से मुकाबला किया था. हालांकि लड़ते लड़ते सभी 21 सिख सैनिक शहीद हो गए थे, लेकिन मरने से पहले उन्होनें 600 अफगानियों को मौत के घाट उतार दिया था. करीब साढ़े छह घंटे चली इस लड़ाई में बेहद बहादुरी से लड़े इन वीर सैनिकों ने अफगानी कबीलाईयों को नाकों चने चबा दिए थे. यही वजह है कि यूनेस्को ने इस लड़ाई को इतिहास की आठ (08) सर्वश्रेष्ठ बहादुरी की गाथाओं में जगह दी है.

राजकुमार संतोषी ने इस फिल्म का टाइटल दिया है ’21 द लास्ट स्टैंड---द बैटेल ऑफ सारागढ़ी’. फिल्म के मुहूर्त शॉट के लिए राजधानी दिल्ली में सेना के मानेकशॉ-सेंटर में रणदीप हुड्डा और बाकी 20 सैनिकों को अंग्रेजों की फौज की वर्दी में मुहूर्त शॉट लिया गया. खास बात ये है कि मुहूर्त शॉट की क्लैपिंग केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने की और कैमरे पर थे मनोहर पर्रीकर और राज्यवर्धन राठौर. राजकुमार संतोषी ने फिल्म के महूर्त के लिए 12  सितम्बर का ही दिन चुना--यानी जिस दिन ये लड़ाई वास्तव में लड़ी गयी थी आज से 119 साल पहले. 

सारागढ़ी की लड़ाई की बारे में कम ही लोग जानते हैं. यही वजह है कि राजकुमार संतोषी इस लड़ाई को फिल्मी पर्दे पर उतारकर देश के आमजन तक पहुंचाने चाहते हैं. इस मौके पर बोलते हुए राजकुमार संतोषी ने कहा कि इस फिल्म के जरिए देश की गौरवगाथा का तो लोगों को पता चलेगा ही साथ ही सिखों को भी बालीवुड में एक उचित स्थान मिलेगा, जो अभी तक सिर्फ कॉमेडियन या फिर छोटे मोटे रोल तक सीमित रह जाते हैं. इस फिल्म के जरिए सिखों की बहादुरी की सच्ची कहानी लोगों तक पहुंचेगी. मिलेट्री इतिहास के जानकारों के मुताबिक हमारे देश के कम लोग ही इस विश्व-प्रसिद्ध जंग से वाकिफ हैं. हालांकि कई देशों की फौज में इस लड़ाई को (ट्रेनिंग) कोर्स के दौरान पढ़ाया जाता है--की कैसे विपरीत परिस्तिथियों में भी अपना मोर्चा नहीं छोड़ते हैं और दुश्मन से डटकर मुक़ाबला करते हैं.  

1897 में जब ये लड़ाई लड़ी गई थी उस वक्त हिंदुस्तान (यानि आज के भारत और पाकिस्तान में) अंग्रेजों की हुकुमत थी. ये 21 सिख सैनिक अंग्रेजी फौज का हिस्सा थे. ये सैनिक सिख रेजीमेंट का हिस्सा थे और नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (आज के पाकिस्तान में) सारागढ़ी किले की चौकसी का काम करते थे. बताते हैं कि इस इलाकों को अंग्रेजी हुकुमत से आजाद कराने के लिए अफगानी कबीलाईयों ने सारागढ़ी चौकी पर हमला बोल दिया था. लेकिन मात्र 21 सैनिकों ने मरते दम तक इस चौकी को नहीं छोड़ा. राजकुमार संतोषी के मुताबिक, ये 21 सैनिक चाहते तो सरेंडर भी कर सकते थे, लेकिन उन्होनें अपना कर्तव्य निभाना ज्यादा जरुरी समझा.

No comments:

Post a Comment