Wednesday, June 29, 2016

सातवें वेतन आयोग से नाखुश है सेना

सातवे वेतन आयोग से सेना नाखुश है. सूत्रों के मुताबिक, सातवे वेतन आयोग में कई विसंगतियां तो हैं ही, सेना द्वारा उठाईं गईं मांगों पर भी ध्यान नहीं दिया गया है.

खुद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने कहा कि हालांकि उन्होनें काफी मांगों को मनवाने की कोशिश की, लेकिन 'कुछ मांगे' पूरी होने से रह गई हैं.

जानकारी के मुताबिक, 7वे वेतन आयोग के लिए सेना ने अपनी तीन-चार मुख्य मांगे रखी थीं.

1.      एनएफयू---नॉन फंक्शनल अपग्रेड. इसके ग्रेड के मुताबिक, एक ही बैच के सैन्य अधिकारियों को उनके  पद को देखे बिना बराबर सैलरी मिलनी चाहिए. यानि के 2005 बैच के सभी अधिकारियों को बराबर सैलरी मिलनी चाहिए. क्योंकि ऐसा हो सकता है कि इस बैच को कोई अधिकारी कर्नल के पद पर ही जबकि उसी बैच को कोई अफसर पदोन्निति के बाद ब्रिगेडियर के पद पर हो. जबकि सरकारी (सिविल सेवा) नौकरी में एक बैच के सभी आईएएस (आईपीएस इत्यादि) को एक ही सैलरी मिलती है (चाहे रैंक डायरेक्टर हो या ज्वाइंट-सेक्रेटरी). सेना की इस मांग को  सातवे वेतन आयोग ने नहीं माना है.

2.      एमएसपी—मिलेट्री सर्विस पेय. अभी तक एमएसपी सिर्फ ब्रिगेडयर रैंक तक के अधिकारियों को मिलती है. सेना की मांग है कि मेजर-जनरल और लेफ्टिनेंट-जनरल रैंक के अधिकारियों को भी एमएसपी मिलनी चाहिए. अभी तक एमएसपी सैनिकों की मुश्किल हालात में काम करने के लिए दी जाती है. लेकिन सेना की मांग है कि क्योंकि उनकों ना तो यूनियन और एसोशियन बनाने की इजाजत है और ना ही आवाज उठाने का अधिकार . इसलिए एमएसपी सीनियर अधिकारियों को भी मिलनी चाहिए. इस मांग को भी नहीं माना गया है.

3.      सैनिकों और सरकारी कर्मचारियों के लिए एक समान ‘पेय-मैट्रिक्स’ हो----अभी तक सिविल और सैन्य दोनों के लिए अलग-अलग पेय मैट्रिक्स है. लेकिन सेना की मांग है कि क्योंकि सरकारी नौकरी में स्थिरता नहीं होती है जबकि फौज में रुकावट आ जाती है. इसलिए दोनों के लिए सामान पेय-मैट्रिक्स हो.

4.      मिलेट्री हज़ार्ड पेय (जोखिम भत्ता)---अभी ये भत्ता सरकारी कर्मचारियों का ज्यादा है. जबकि सैनिकों का कम है. सेना चाहती है कि ये बराबर हो. इसे अगर कैलकुलेट किया जाए तो गुवाहटी में कार्यरत सरकारी कर्मचारी का भत्ता, सियाचिन में तैनात सैनिक से ज्यादा होता है. सेना की मांग है कि इस तरह की विसंगतियों को दूर किया जाए. जहां नार्थ ईस्ट में तैनात एक आईएएस को 54 हजार का भत्ता मिलता है. तो सेना के एक अधिकारी को सियाचिन में 31 हजार रूपये का भत्ता मिलता है. जबकि सियाचिन में काम करना बेहद जोखिम भरा है.

सरकार का कहना है कि भत्ते को लेकर अलग से कमेटी बनाई जायेगी, जो तय करेगी कि क्या वाकई विसंगतियां है क्या.

जानकारों के मुताबिक, वेतन आयोग में सशस्त्र सेनाओं की भागीदारी नहीं थी. इसलिए आयोग के सदस्य सेनाओं की जरूरतों और उनके काम करने के हालातों को ठीक से समझ नहीं पाते. यहां तक की सेनाओं के प्रमुखों को भी आयोग में अपनी राय रखने का मौका नहीं दिया गया.

सेना इस बात से खुश नहीं है कि तीसरे वेतन आयोग के बाद से लगातार सेना को सिविल अधिकारियों के अपेक्षा कम तरजीह दी जाती आ रही है. लगातार सेना के अधिकारियों की सैलरी सिविल अधिकारियों के मुकाबले कम दी जा रही है. जबकि मुश्किल हालातों में चाहे वो युद्ध का मैदान हो या आतंकियों से लड़ना या फिर बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा या फिर सांप्रदायिक दंगे, वहां सिविल मशीनरी फेल होने के बाद सेना को ही बुलाया जाता है.

 यहां तक की हाल ही मे हरियाणा मे जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा को भी सेना ने ही शांत कराया था. यहां तक की बोरवेल में गिरे बच्चों को बचाने के लिए भी सेना की मदद ली जाती है.

जानकारी के मुताबिक, अब सेना में एक सिपाही (SEPOY) की सैलरी 21,700/ रुपये हो जायेगी. अभी तक एक सिपाही की पेय 8470/ रुपये है. इसी तरह से एक मेजर रैंक के अधिकारी की सैलरी करीब 70 हजार रुपये (69,700/) हो जायेगी. जबकि अभी तक एक मेजर की सैलरी 27,880/ रुपये है.

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