Friday, December 16, 2016

जवान की कस्टडी को लेकर सेना प्रमुख को कानूनी नोटिस



सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह की पलटन में एक जवान की एलओसी पर तैनाती को लेकर अफसरों में आपसी टकराव हो गया है. नेपाल के रहने वाले इस जवान के वकील ने सेना द्वारा 'गैर-कानूनी' तरीके से उसके मुवक्किल को 'मिलेट्री-कस्टडी' में रखने का विरोध करते हुए सेनाध्यक्ष और रक्षा मंत्री को कानूनी-नोटिस भेजा है. 

ये अजीबो-गरीब मामला सामने तब आया जब गोरखा राईफल्स की 2/1 यूनिट के एक राईफलमैन टेक बहादुर थापा को गोरखा ट्रेनिंग सेंटर के कमांडेंट ने 28 दिनों की मिलेट्री-कस्टडी (यानि सैन्य-जेल) में भेज दिया. इसका विरोध ना केवल राईफलमैन की यूनिट ने किया है बल्कि उसके वकील ने भी किया है. वकील का कहना है की अधिकारियों की आपसी खीचतान में एक बेकसूर जवान को सताया जा रहा है. बतातें चलें कि सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह और सह-सेनाध्यक्ष विपिन रावत भी गोरखा रेजीमेंट से ताल्लुक रखते हैं.

दरअसल, पूरे मामले की शुरूआत होती है इस साल के फरवरी में जब राईफलमैन टेक बहादुर थापा को उसकी यूनिट (2/1 गोरखा) से 179 दिनों के लिए सुबाथु स्थित गोरखा ट्रेनिंग सेंटर (शिमला के करीब) में 'प्रशासनिक ड्यूटी' के लिए भेजा गया था. उसे ये डयूटी खत्म करने के बाद अगस्त महीने में वापस अपनी यूनिट मे रिपोर्ट करना था. लेकिन वो तय-समय पर अपनी यूनिट वापस नहीं लौटा.

इस बीच उरी हमले और फिर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद एलओसी पर पाकिस्तान से तनातनी बढ़ी तो 2/1 गोरखा के सीओ (कमांडिंग ऑफिसर) कर्नल ललित जैन ने ट्रैनिंग सेंटर के कमांडेंट, ब्रिगेडयर आर एस रावत को राईफलमैन टेक बहादुर थापा थापा को वापस यूनिट भेजने के लिए कहा. उस वक्त ये यूनिट एलओसी पर तैनात थी. सीओ ने कमांडेंट को बताया कि इस वक्त एलओसी पर हालात सही नहीं है और जवानों की जरूरत है. इसलिए टेक बहादुर को फौरन यूनिट वापस भेज दिया जाए. लेकिन बताया जा रहा है कि कमांडेंट ने ऐसा नहीं किया.

इस बीच टेक बहादुर थापा कि यूनिट के एक अधिकारी ने उसे फोन पर आदेश दिया कि वो फौरन एलओसी पर रिपोर्ट करे. टेक बहादुर ने अपने वरिष्ठ अधिकारी की आज्ञा का पालन किया और 16 नबम्बर को वहां पहुंच गया. बस इसी बात से ट्रैनिंग सेंटर के कमांडेंट और दूसरे अधिकारी नाराज हो गए. 

इसके बाद कमांडेंट आय एस रावत ने 2/1 यूनिट के सीओ से कहा कि वे टेक बहादुर को वापस भेज दें ताकि कागजी कारवाई के बाद उसे ट्रेनिंग सेंटर से यूनिट के लिए 'डिस्पेच' किया जाए. इसके बाद टेक बहादुर को 27 नबम्बर को एक बार फिर ट्रेनिंग सेंटर भेजा दिया गया. लेकिन वहां पहुंचने पर कमाडेंट ने उसे बिना बताए सेंटर छोड़कर जाने के लिए 28 दिन की कठोर कारावास की सजा सुना दी. एक दिसम्बर को ये सजा सुनाई गई थी जिसके बाद से वो मिलेट्री-जेल में है.

सजा की खबर मिलने के बाद टेक बहादुर की यूनिट के सीओ ने ट्रेनिंग सेंटर के कमांडेंट को कड़ी चिठ्ठी लिखते हुए इस सजा पर ऐतराज जताया है. साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों को भी पूरे मामले से अवगत कराया.

इस बीच टेक बहादुर के वकील अजय शर्मा ने ट्रेनिंग सेंटर के कमांडेंट आर एस रावत सहित सेना प्रमुख, रक्षा मंत्री और पश्चिमी कमान के कमांडर को कानूनी नोटिस भेजकर उसे जल्द रिहा करने के लिए कहा है. वकील अजय शर्मा ने कहा कि अगर सेना ने टेक बहादुर को रिहा ने किया तो वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे. अजय शर्मा के मुताबिक, आर्मी एक्ट के मुताबिक, किसी भी जवान को सजा देने का अधिकार उसकी यूनिट के सीओ को है. ट्रेनिंग सेंटर के कमांडेंट और दूसरे अधिकारियों को टेक बहादुर को सजा देना का हक नहीं है.

इस मामले पर सेना मुख्यालय का कहना है कि ये आर्मी का 'आंतरिक और प्रशासनिक मामला' है. लेकिन सूत्रों ने बताया कि दरअसल ये दो अधिकारियों की आपसी 'ईगो' यानि अहम की लड़ाई का नतीजा है जिसका खामियाजा एक सैनिक को उठाना पड़ रहा है.

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