Wednesday, January 6, 2016

पठानकोट एयरबेस हमला: सुरक्षा में बड़ी चूक

मारे गए आतंकियों की डेडबॉडी  के बैकग्राउंड में एनएसजी कमांडो 

पठानकोट हमले को लेकर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं कि जब सरकार, खुफिया एजेंसियों, सेना, वायुसेना और एनएसजी के पास पुख्ता जानकारी थी कि पठानकोट एयरबेस पर हमला होने वाला है तो आखिर आतंकी सभी को गच्चा देकर एयरबेस में कैसे दाखिल हो गए. और ना केवल दाखिल हुए लेकिन चार दिनों तक सेना और एनएसजी को छकाते रहे. जिसके चलते देश के सात जवान शहीद हो गए और 20 अभी भी अस्तताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं. सवाल ये भी खड़ा होता है कि आखिर 16 घंटे के भीतर ही गृहमंत्री और रक्षा मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन खत्म करने की

 पुख्ता जानकारी मिली है कि  आंतकी आखिर पठानकोट एयर बेस में कैसे दाखिल होने में कामयाब हो गए और कहां-कहां पर चूक हुई जिसके चलते ऑपरेशन इतना लंबा चला. ना केवल लंबा चला लेकिन पहली बार सेना को आंतकियों के खिलाफ टैंक तक उतारने पड़ गए.

जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार को ही ये बात पुख्ता हो गई थी आतंकी पठानकोट एयरबेस पर हमला करने वाले हैं. जिसके बाद शुक्रवार शाम को ही एनएसजी कमांडो को राजधानी दिल्ली से पठानकोट भेज दिया गया था. पठानकोट के करीब ममून मिलेट्री स्टेशन से स्पेशल फोर्स के कमांडो और दो कॉलम्स (COLOUMNS) को एयरबेस की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. साथ ही वायुसेना के गरुण कमांडोज़ को अलर्ट कर दिया गया. एयरबेस की सुरक्षा करने वाले डिफेंस सिक्योरिटी कोर यानि डीएससी के जवानों को भी जरुरी दिशा-निर्देश दे दिए गए थे. इसके अलावा यूएवी ड्रोन्स को भी हवाई सर्विलांस के लिए लगा दिया गया.

सूत्रों के मुताबिक, इस हमले को लेकर पुखता जानकारी मिली थी कि आतंकी एयरबेस पर खड़े फाइटर-प्लेन्स और अटैक हेलीकॉप्टर को निशाना बनाने चाहते हैं. इसके चलते ही एनएसजी और स्पेशल फोर्स के पैरा-कमांडोज़ को एयरबेस के टेक्नीकल एरिया के आस-पास तैनात कर दिया गया. डोमेस्टिक एरिया पर डीएससी जवान, गरुण कमांडो और क्यूआरटी को तैनात किया गया. 

आपको बताता चलें कि  टेक्निकल एरिया में वायुसेना के लड़ाकू-विमान, हेलीकॉप्टर और रनवे होता है. जबकि डोमेस्टिक एरिया में एडमिनस्ट्रेटिव ब्लॉक, सैन्यकर्मियों का रिहाईशी इलाका, डीएससी मैस, ऑफिर्सस मैस, केन्द्रीय स्कूल, एयरफोर्स स्कूल, सीएसडी कैन्टीन इंत्यादि है. बेस की परिधि करीब 24 किलोमीटर की है और एरिया 20 हजार एकड़ से भी ज्यादा है. बेस की चारदीवारी 10 फीट उंची है और उसके ऊपर दो फीट की कटीली तार भी लगी है. बेस के ठीक पीछे बर्फानी-नाला (नहर) बहती है. इसी नाले की तरफ से आंतकी एयरबेस में दाखिल हुए. ये साफ नहीं है कि वे नाले के जरिए बेस में दाखिल हुए (यानि गटर के सरिया काटकर) या फिर दीवार फांदकर.

शनिवार की सुबह करीब 3 बजे एयरफोर्स के यूएवी ने नाले की तरफ वाले डोमेस्टिक-एरिया में संदेहास्पद हलचल रिकॉर्ड कैच की. कुछ लोगों की मूवमेंट फर्नीचर-यार्ड (जहां पुराना फर्नीचर डंप किया जाता है) में दिखाई पड़ी. ये जानकारी तुरंत यूएवी कमांड सेंटर से सुरक्षाबलों को दे दी गई. एक क्यूआरटी को तुरंत फर्नीचर यार्ड की तरफ दौड़ाया गया. लेकिन तबतक आंतकी फर्नीचर यार्ड के पास ही डीएससी मैस में दाखिल हो गए. ऑफ ड्यूटी डीएससी गार्ड नाश्ते का इंतजार कर रहे थे. वहां पहुंचकर उन्होनें अंधाधुंध फायरिंग शुरु कर दी. जिसके चलते दो जवान वहीं ढेर हो गए और करीब डेढ़ दर्जन घायल हो गए. 
 आतंकियों के पास से ज़ब्त हथियार 
लेकिन इसी बीच मैस की रसोई मेें मौजूद एक जवान जगदीश चंद बाहर निकला तो उसने एक आतंकी को फायरिंग के बाद बाहर भागते हुए देखा. उसने तुरंत उसकी पीछा किया और उसको वहीं दबोच लिया. जगदीश चंद के हाथ में रसोई वाला चाकू था. उसने उसी चाकू से एकआंतकी पर हमला बोल दिया. लेकिन आंतकी ने उसके शरीर में एके-49 की गोलियों उतार दीं. गोली लगने के बावजूद जगदीश चंद ने आंतकी को मार गिराया. जगदीश चंद भी आतंकी से लड़ते हुए शहीद हो गए.

मैस से बाहर निकलने के बाद आतंकी सीएसडी कैंटीन के रास्ते से होते हुए टेक्निकल एरिया में पहुंचना चाहते थे. लेकिन रास्ते में ही वायुसेना की क्यूआरटी वहां पहुंच गई और आंतकियों और गरुण कमांडोज़ के बीच गन-फाइट हुई. करीब 4.30 बजे गरुण कमांडोज़ ने एक आंतकी को ढ़ेर कर दिया. लेकिन इस गन फाइट में एक गरुण कमांडो गुरसेवक कपूर भी शहीद हो गया.

दोपहर करीब दो बजे ऑपरेशन की जिम्मेदारी एनएसजी के आईजी  (ऑप्स) दुष्यंत सिेंह को दे दी गई. ऑपरेशन के बीच में ही कहा गया कि स्पेशल फोर्स , गरुण, पंजाब पुलिस और डीएससी एनएसजी के अंतर्गत काम करेंगे. इससे पहले तक ऑपरेशन की जिम्मेदारी स्पेशल फोर्स के पास थी.

इसके बाद आतंकी कैंटीन की तरफ भागे और अंदर घुस गए. यहां पर शाम चार बजे तक एनएसजी और पैरा-कमांडोज़ ने दो और आंतकियों को ढेर कर दिया. अभी तक कमांडो़ज़ को अंदेशा था कि हमला करने वाले चार फिदाईन आंतकी हैं. लेकिन इसी बीच वायुसेना के एक हेलीकॉप्टर ने बताया कि एक और आतंकी हो सकता है कैंटीन के अलावा जिसे हेलीकॉप्टर ने ऑपेऱशन के वक्त एयरबेस में भागते  हुए देखा था. 

यही वजह है कि सेना ऑपरेशन कॉल-कॉल (खत्म) करना नहीं चाहती थी जबतक एयरबेस की सर्च और कांबिग पूरी नहीं हो जाती.  इसी बीच गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर जानकारी दे दी कि ऑपरेशन खत्म हो गया है और पांच आतंकियों का मार गिराया गया है. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने तुरंत इस बारे में गृहमंत्री का जानकारी दी कि पांच नहीं चार आंतकी मारे गए हैं. जिसके बाद राजनाथ ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया.

इसी बीच शाम को कैंटीन के सामने वाली एसएनसीओ (सीनियर नॉन-कमिश्नड ऑफिसर्स) बिल्डिंग से फायरिंग एकबार फिर शुर हो गई. सीएनएसओ अधिकारियों के रहने वाली बिल्डिंग थी. हमले से पहले ही इस दो मंजिला इमारत को खाली करा दिया गया था. ये इमारत टेक्नीकल एरिया से महज 100 मीटर की दूरी पर थी. सभी फाइटर्स प्लेन्स को अबतक हैंगर (मजबूत कवर्ड-पार्किंग) में पहुंचा दिया गया था. फायरिंग से कमांड़ोज़ को पता चला कि बिल्डिंग में कम से कम दो आंतकी हैं.

रविवार की दोपहर एनएसजी की बम डिज्पोजल स्कॉवयाड (बीडीएस) के मुखिया, लेफ्टिनेट कर्नल निरंजन ई कुमार अपने साथियों के साथ आंतकियों की एक आईईडी बम को निष्क्रिय करते हुए शहीद हो गए और पांच घायल हो गए. डीएससी मैस की फायरिंग में घायल हुए तीन जवान भी मौत के मुंह में समा गए.
हमले में मारे गए सात में से छह जांबाज़ सैनिक 
करीब 36 घंटे तक आंतकी एनएसजी और पैरा-कमांजोड़ का चकमा देते रहे. ऑपरेशन लंबा बढ़ता देख एनएसजी के आईजी (ऑपरेशन) दुष्यंत सिंह ने पैरा-कमांडो के ब्रिगेडियर के साथ सोमवार की सुबह फैसला किया कि इस इमारत को कॉम्बेट इंफंट्री व्हीकल (सीआईवी) के गोले से धव्स्त कर दिया जाए. सीआईवी एक तरह का रशियन टैंक ( रशिया में बीएमपी के नाम से जाना जाता) होता है जिसमें करीब एक दर्जन जवान भी बैठ सकते हैं.

करीब 10-11 बजे टैंक के गोलों से बिल्डिंग जमींदोंज कर दी गई और दोनों आतंकी उसी में खाक हो गए. करीब तीन बजे इमारते के मलबे से एक आंतकी की डेडबॉडी मिली जबकि एक शव को कुछ जला हुआ हिस्सा मिला. यानि अब सुरक्षाबलों को यकीन हो चला कि हमले में छह फिदाईन शामिल थे.

मंगलवार की सुबह तक एयरबेस में कोई फायरिंग या संदेहास्पाद हरकत नहीं हुई. जिसके बाद सेना ने रक्षा मंत्री को बताया कि ऑपरेशन खत्म हो गया है लेकिन एयरबेस की सर्च और कांबिंग जारी रहेगी. जिसके बाद ही रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सेना और वायुसेना प्रमुखों के साथ पठानकोट जाने का फैसला किया.

लेकिन इस ऑपरेशन से कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं. पहला तो ये कि जब हमला मिलेट्री स्टेशन में होने की सूचना थी तो क्यों नहीं सेना की स्पेशल फोर्स को ही आतंकियों के खिलाफ लड़ने दिया गया. क्यों एनएसजी को वहां भेजना पड़ा. जबकि एनएसजी एंटी-हाईजैंकिंग और होस्टेज परिस्थितियों के लिए बनी है. आंतकियों से सीधे मुकाबला करने में सेना के पैरा-कमांडो़ज़ को महारत हासिल है.

साथ ही जब हमले की पुख्ता जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, तो एयरबेस के चारो तरफ सुरक्षा घेरा क्यों नहीं बनाया गया . पठानकोट में मैमून मिलेट्री स्टेशन देश का दूसरा सबसे बड़ा स्टेशन है जहां पर पूरी एक डिवीजन यानि तीस हजार से ज्यादा जवान एक समय में मौजूद रहते हैं. फिर मात्र दो कॉलम्स यानिन महज 100 सैनिकों को वहां क्यों भेजा गया.

क्यों नहीं ड़ोमेस्टिक एरिया में सेना को तैनात किया गया. सिर्फ टेक्नीकल एरिया की सुरक्षा में ही क्यों लगाया गया. डीएससी मैस में जव जवानों के पास कोई हथियार नहीं थे तो वहां क्यों नहीं हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया. क्योंकि इस हमले में सबसे ज्यादा नुकसान डीएससी मैस में ही हुआ. पांच जवान शहीद हो गए और एक दर्जन अभी भी अस्पताल में जिंदगी और मौत के मुंह में झूल रहे हैं.

नाले की तरफ सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए.

सवाल ये भी है कि एयरबेस की सुरक्षा में मचान पर जवान हमेशा तैनात रहते हैं. फिर मचान पर खड़े सुरक्षाकर्मियों को घुसपैठ करते आंतकी क्यों नहीं दिखाए दिए

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