Friday, January 9, 2015

कदम-कदम बढ़ाए जा...

पीएम मोदी ने अपने मन की बात तीनों सेनाओं के सामने रखी कि इस साल की परेड में तीनों सेनाओं की तरफ से एक-एक टुकड़ी महिलाओं की होगी


वर्ष 1950 में भारत के गणतन्त्र राष्ट्र घोषित होने के बाद से ही हर साल 26 जनवरी को दिल्ली के राजपथ पर गणतन्त्र-दिवस परेड का आयोजन किया जाता है. माना जाता है कि भारत की गणतन्त्र-दिवस परेड दुनियाभर में सबसे बेहतरीन है. अगर कोई दूसरा देश है जो भारत को सार्वजनिक रुप से अपने शक्ति-प्रर्दशन में टक्कर देता है तो वो है चीन. 
 
     हर साल भारत की आन-बान-शान का नमूना होती है गणतन्त्र दिवस परेड. अलग-अलग राज्यों, मंत्रालयों और विभागों की रंग-बिरंगी झांकियां और कला-संस्कृति की अनूठी मिसाल पेश करती है ये परेड. जमीन पर अगर परेड में साथ ही होते हैं टैंक, तोप, मिसाइल और आधुनिक रक्षा-प्रणाली तो आसमान में होते है एयरफोर्स के आधुनिक फाइट एयरक्राफ्ट. लेकिन इन सबसे बढ़कर होती है वीर जवानों के कदम-ताल करती परेड. आर्मी, एयरफोर्स, नेवी, अर्द्धसैनिक-बल और पुलिस के जवान जब राजपथ पर मार्च-पास्ट करते हैं तो वहां बैठे लोगों ही नहीं बल्कि टीवी के जरिए लाइव प्रसारण देखने वाले लाखों भारतवासी मंत्रमुग्ध हो उठते हैं. जो कोई भी इस परेड को देखता है तो वो अनायस ही कह उठता है “...कदम-कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाए जा...

   लेकिन इस साल यानि वर्ष 2015 की गणतन्त्र दिवस परेड कई मायनों में अलग है और देशवासियों के साथ-साथ दुनियाभर की निगाहें 26 जनवरी की तरफ लगी हुई है.
पहली तो ये दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र, अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा इस साल गणतन्त्र दिवस परेड के मुख्य-अतिथि हैं. ये पहली बार है कि कोई अमेरिका का राष्ट्रध्यक्ष इस परेड की शान बढ़ाने आ रहा है. दुनियाभर में बेहद लोकप्रिय राजनेता समझे जाने वाले बराक ओबामा के भारत दौरे से साफ जाहिर हो जाता है कि दुनिया के (सामरिक) मान-चित्र पर भारत का महत्व कितना बढ़ रहा है.

    लेकिन बराक ओबामा का सुरक्षा-प्रोटोकोल उनके परेड़ में शामिल होने के बीच में अड़ंगा पैदा कर रहा है. दरअसल, सुरक्षा के मद्देनजर ओबामा किसी दूसरे मुल्क में किसी भी स्थान (सार्वजनिक स्थान पर) 20 मिनट से ज्यादा नहीं बैठ सकते हैं. जबकि गणतन्त्र दिवस परेड डेढ़ से दो घंटे तक चलती है. इसबार की परेड और ज्यादा चलने की उम्मीद है. रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो इस बार परेड की समय-सीमा ढाई घंटे की है. ऐसे में या तो ओबामा को हर 20 मिनट पर अपना स्थान बदलना पड़ेगा या फिर उन्हे परेड से उठकर जाना पड़ेगा. लेकिन दोनों ही सूरत में ये देश के महामहिम राष्ट्रपति का अपमान करने जैसा है. क्योंकि अब तक की मान्यता ये है कि जबतक राष्ट्रपति राजपथ पर होने वाली परेड में शामिल (बैठे) रहते हैं तबतक ना तो कोई भी वहां से उठकर जा सकता है और ना ही अपना स्थान बदल सकता है.
  
    मुश्किल ये भी आ रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जब भी किसी दूसरे देश की यात्रा पर जाते हैं तो अपनी खास कैडेलिक कार साथ लेकर जाते हैं. ये कार ना केवल आधुनिक हथियारों से लैस है बल्कि उसमें एमरजेंसी की हालत से निपटने के लिए खास पैनिक बटन भी मौजूद रहता है जिसका सीधा कनेक्शन यूएस के स्ट्रेटजिक कमांड से जुड़ा हुआ है. जबकि अब तक की परेड  परंपरा पर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि परेड का मुख्य-अतिथि राष्ट्रपति की लैमोजिन कार में ही सवार होकर राजपथ पहुंचता है.

     जानकारों की मानें तो ओबामा की सुरक्षा-प्रोटोकोल से जुड़े मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझा लिया जायेगा.

     लेकिन इस साल की परेड का सबसे बड़ा आकर्षण अगर अमेरिकी राष्टपति बराक ओबामा हैं तो हमारे देश की महिला-शक्ति भी इस साल की परेड का एक दूसरा (अहम) आकर्षण है. पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि थलसेना, वायुसेना और नौसेना की परेड की कमान महिला टुकड़ियां संभालेंगी. यानि तीनों सेनाओं की टुकड़ियों के सबसे आगे होगी महिला टुकड़ियां. महिला अधिकारियों से परेड का संचालन कराने का आईडिया किसी और का नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया है. दरअसल, जैसे ही ये बात तय हुई है कि इस साल की परेड में बराक ओबाम मुख्य-अतिथि होंगे, प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों सेनाओं को ये विचार दिया कि इस बार परेड में क्या नया हो सकता है. और इसी नए सोच के साथ पीएम मोदी ने अपने मन की बात तीनों सेनाओं के सामने रखी कि इस साल की परेड में तीनों सेनाओं की तरफ से एक-एक टुकड़ी महिलाओं की होगी.

    दरअसल, ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने इससे पहले गणतन्त्र-दिवस परेड में भाग नहीं लिया हो. कई बार महिला अधिकारियों ने पूरी की पूरी टुकड़ी का संचालन किया है. पैरा-मिलिट्री यानि सीआरपीएफ की महिला टुकड़ियों ने पहले भी परेड में हिस्सा लिया है. लेकिन वहां महिलाओं की पुूरी की पूरी बटालियन हैं. लेकिन इस बार नया ये है कि तीनों सेनाओं की पूरी टुकड़ी ही महिलाओं की होगी. एक टुकड़ी में करीब 148 जवान और अधिकारी होते हैं. इस लिहाज से तीनों सेनाओं की 148-148 महिला अधिकारी परेड में हिस्सा लेंगी.


    इसके लिए तीनों सेनाओं को खासी मशक्कत करनी पड़ी है. क्योंकि भारत में अभी भी सेनाओं में महिलाओं का अनुपात बेहद कम है. सेना में महिलाएं की नियुक्ति (तीनों अंगों में) सिर्फ अधिकारी पद के लिए होती है. यानि महिलाएं लेफ्टिनेंट के पद से ऊपर ही नियुक्त की जा सकती हैं. पैदल-सैनिक के तौर पर उनकी नियुक्ति नहीं होती है. साथ ही वे सेना के उन्हीं पदों और विभागों के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं जो सीधे युद्ध से ना जुड़े हों. वर्ष 2006 में एकीकृत रक्षा स्टाफ और 2011 में ट्राई-सर्विस हाई लेवल कमेटी (यानि तीनों सेनाओं की उच्च-कमेटी) अपनी-अपनी रिपोर्ट में साफ कर चुकी हैं कि महिलाएं गैर-युद्ध वाली पोस्टिंग के लिए ही उपयुक्त हैं. जैसे सेना की मेडिकल कोर, शिक्षा कोर, ज्यूडिशयल ब्रांच (जज-एडवोकेट जनरल यानि जैग) इत्यादि. यहां तक की महिलाओं को एयरफोर्स में लड़ाकू विमानों के पायलट के तौर पर ही उपयोगी नहीं माना गया है. यानि महिलाएं फायटर-पायलट भी नहीं बन सकती हैं.

    सेना के शिक्षा और जैग ब्रांच को छोड़ दें तो महिलाएं सीमित समय के लिए ही सेनाओं में काम कर सकती हैं यानि शोर्ट सर्विस कमीशन (SHORT SERVICE COMMISSION). ऐसे में अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होगा कि तीनों सेनाओं में महिलाओं का अनुपात किया है. रक्षा मंत्रालय के आंकड़ो पर नजर डालें तो पता चलेगा कि थलसेना में महिलाओं की कुल संख्या है मात्र 1300. भारतीय सेना की कुल संख्या है करीब 13 लाख (जिनमें से करीब 37 हजार पुरुष अधिकारी हैं). यानि महिलाओं का पुरुष अधिकारियों से अनुपात है 1:28. इसका अर्थ सीधा-सीधा ये है कि 28 पुरुष अधिकारियों में एक महिला है. इसी तरह से वायुसेना में महिलाओं की संख्या है 1334 जिसका अनुपात है 1:8 (पुरुष अधिकारियों की संख्य है करीब 11 हजार). अगर नेवी की बात करें तो महिलाओं की संख्या है मात्र 337 जबकि भारतीय नौसेना की कुल संख्या है 60 हजार (करीब 8 हजार अधिकारी).

     ऐसे में तीनों सेनाओं को गणतंत्र दिवस परेड के लिए अपनी-अपनी 148 महिलाओं को चुनना एक टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. क्योंकि परेड के लिए चुनने के लिए मात्र महिला होना ही काफी नहीं है. इस परेड के लिए कड़ी मेहनत से गुजरना पड़ता है. सभी को एक के साथ एक कदमताल करना पड़ता है. साथ ही अगर पिछली सभी परेड का इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि हर टुकड़ी में मार्च-पास्ट करने वाले सभी जवान लगभग एक कद-काठी और रंग-रुप के होते हैं. ऐसे में इतनी कम महिलाओं की संख्या में एक-जैसी कद-काठी की महिला अधिकारियों को ढूंढना एक टफ-जॉब साबित हो रहा है. लेकिन तीनों सेनाएं प्रधानमंत्री के इस विचार को पूरा करने में लगातार लेफ्ट-राइट-लेफ्ट कर रही हैं.

    जब हम बात कदम से कदम मिलाने की करते हैं तो परेड में सभी जवानों के हाथ भी एक साथ उठने और नीचे जाने चाहिए. लेकिन इस बार की परेड में एक विवाद भी खड़ा हो गया है. दरअसल, परेड की रिहर्सल के दौरान पाया गया कि वायुसेना और नौसेना के जवान मार्च-पास्ट करते वक्त अपना हाथ कंधे के ऊपर तक ले जा रहे हैं. जबकि थलसेना के जवान कंधे तक ही अपना हाथ लेकर जाते हैं. परेड के सुपरवाईजरी अधिकारियों ने इस तरफ ध्यान दिया तो एयरफोर्स और नेवी के जवानों ने साफ कर दिया कि उन्हे इसी तरह (कंधे से ऊपर हाथ ले जाने की) प्रेक्टिस कराई गई है.

          मामले ने तूल पकड़ा तो थलसेना ने 1961 के रक्षा नियम (डिफेंस सर्विस रेग्यूलेशन एक्ट) का हवाला देते हुए रक्षा मंत्रालय में तीनों सेनाओं के बड़े अधिकारियों की मीटिंग बुलाई. लेकिन मीटिंग बेनतीजा निकली. यानि परेड के मात्र 12-13 दिन पहले तक, तीनों सेनाओं के हाथ से हाथ बढ़ाने पर विवाद कायम हैं. ऐसे में अब रक्षा मंत्रालय को हस्तेक्षप करना पड़ सकता है.
 
   साथ ही पहली बार नौसेना भी अपनी ताकत का प्रर्दशन गणतन्त्र दिवस परेड में करनी वाली है. अभी तक आसमान में वायुसेना के फाइटर प्लेन ही कलाबाजियां करते हुए देखे जा सकते थे, लेकिन इस बार नौसेना के एवियशन विंग के खास जहाज इस परेड की शोभा बढ़ाएंगे.


Sunday, January 4, 2015

झोल में भी हैं कई झोल !

कई पत्रकारों ने तो ट्वीट कर यहां तक चुटकी ले ली कि रक्षा और सामरिक मामलों के 'बड़े' रिपोर्टर और संपादकों को ये बात हजम नहीं हो रही है कि पाकिस्तानी संदिग्ध बोट की स्टोरी उन्होनें क्यों नहीं ब्रेक की और इसीलिए वे कोस्टगार्ड के ऑपरेशन पर सवाल खड़े कर रहे हैं...

नए साल के दूसरे दिन राजधानी दिल्ली में जबरदस्त ठंड पड़ रही थी. सूर्य देवता तो दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहे थे, चारों तरफ कुहासा छाया हुआ था. लेकिन दिन के दूसरे पखवाड़े में जैसे ही ये खबर आई कि भारत की समुद्री सीमा में गोला-बारुद से भरी एक पाकिस्तानी नाव पकड़ी गई है, अनायास ही दिल्ली के मौसम में गर्मी पैदा हो गई. खबरों की दुनिया में अगर आतंक से जुड़ी किसी खबर में पाकिस्तान जुड़ जाता है तो भारत में तो क्या अमेरिका तक में उसकी तपस साफ दिखाई पड़ने लगती है. अमेरिका में लोकप्रिय हो रहे होमलैंड सीरियल में जिस तरह पाकिस्तान और वहां पनप (माफ कीजिए फल-फूल) रहे आंतकवाद को दिखाया गया है वो इसे समझने के लिए काफी है. लेकिन पाकिस्तान की संदिग्ध नाव ने (शायद पहली बार) भारतीय मीडिया को दो धड़ों में बांट दिया. और फिर शुरु हुई झोल में झोल की कहानी. कैसे, आईये देखते हैं. 

      नए साल को शुरु हुए अभी ज्यादा घंटे नहीं बीते थे कि 2 जनवरी की दोपहर को खबर आई कि गुजरात के पोरबंदर से करीब 365 किलोमीटर दूर भारतीय समुद्री सीमा में एक पाकिस्तानी नाव पकड़ी गई है. नाव में गोला-बारुद और हथियार भरा था. लेकिन इससे पहले कि भारतीय कोस्टगार्ड के अधिकारी उस नाव और उसमें मौजूद चार संदिग्ध लोगों को पकड़ पाते उन्होनें नाव को खुद आग के हवाले कर दिया. कोस्टगार्ड का एक समुद्री-जहाज आईसीजी राजरतन और डोरनियर एयरक्राफ्ट पाकिस्तान से आई संदिग्ध नाव को घेरे हुए थे, लेकिन इससे पहले की उसे अपने कब्जे में कर पाते उसमें धमाके के साथ आग लग गई.

     रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, 31 दिसम्बर को कोस्टगार्ड को खुफिया जानकारी मिली थी कि पाकिस्तान में कराची के करीब केटी-बंदर(गाह) से एक मछली-पकड़ने वाली नौका भारत की तरफ निकली है और अरब सागर में कोई गैर-कानूनी लेनदेन कर सकती है. इसी सूचना के आधार पर कोस्टगार्ड ने टोही विमान डोरनियर को अरब सागर में सर्च करने के लिए भेजा. कुछ घंटे बाद डोरनियर ने साफ कर दिया कि अरब सागर में एक संदिग्ध नाव खड़ी हुई है. कई घंटे तक उसपर नजर रखने के बाद भी जब वो नाव एक ही जगह खड़ी पाई गई तो डोरनियर ने समुद्र में गश्त लगा रहे कोस्टगार्ड के जहाज राजरतन को इस संदिग्ध बोट के बारे में जानकारी दी. कुछ ही देर में राजरतन जहाज इस बोट के करीब पहुंच गया.
     
     जैसा कि इस तरह की संदिग्ध बोट के बारे में एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानि नियम-कानून) होते हैं, कोस्टगार्ड के अधिकारियों ने इस बोट से थोड़ी दूरी बनाकर लाउडस्पीकर से चेतावनी दी कि नाव में सवार (चार) लोग अपनी पहचान बताएं. लेकिन अपनी पहचान बताने की बजाए चारों लोग नाव को विपरीत दिशा में लेकर भागने लगे. कोस्टगार्ड का जहाज लगातार नाव को रुकने की चेतावनी देता रहा, लेकिन बोट नहीं रुकी. करीब एक घंटे तक पीछा करने के बाद सुबह के करीब साढ़े तीन बजे (1 जनवरी 2015 यानि नए साल के आगाज पर) कोस्टगार्ड के अधिकारियों ने देखा कि नाव में मौजूद चारों लोग नीचे डेक में चले गए हैं और बोट को आग लगा दी है. आग लगाते ही बोट में धमाका हुआ और आग की उंची-उंची लपटें उठने लगीं. ये सभी तस्वीरें कोस्टगार्ड के अधिकारियों ने अपनी कैमरे में कैद कर लीं. बोट में मौजूद चारों लोग आग के साथ स्वाहा हो गए या फिर समुद्र में कूद गए इस बात का कोस्टगार्ड के अधिकारियों को भी ठीक-ठीक नहीं पता है. लेकिन संभावना इस बात की ज्यादा है कि वे चारों इस आग की चपेट में आ गए थे.
   
     पाकिस्तानी संदिग्ध बोट और उसमें लगी आग की कई मीटर ऊंची लपटों की तस्वीरें जैसे ही भारतीय मीडिया में आईं, चारों तरफ सनसनी फैल गई. लोगों को 2008 की मुंबई (26/11) हमले की याद ताजा होने लगी. किस तरह से पाकिस्तान के कराची से समंदर के रास्ते बोट में आए दस आतंकियों (कसाब सहित) ने देश की व्यापारिक राजधानी मुंबई पर हमला किया और 166 लोगों (जिनमें विदेशी नागरिक भी शामिल थे) को बड़े ही बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था.
  
       हालांकि रक्षा मंत्रालय ने मीडिया के लिए जारी प्रेस रिलीज में कहीं इस बात का जिक्र नहीं किया था कि ये बोट किसी आतंकी घटना को अंजाम देने आए थी, या उसमें गोला-बारुद भरा था. हां इतना जरुर लिखा था कि आग में नाव लगने के बाद धमाका हुआ था. उसी से मीडिया ने अंदाजा लगाना शुरु कर दिया कि हो ना हो इस नाव में विस्फोटक-सामग्री और हथियार हो सकते हैं. क्योंकि ऐसा नहीं था तो बोट में मौजूद लोग भागते क्यों और नाव को आग के हवाले क्यों करते. बस फिर क्या था सभी को लगा कि मुंबई के 26/11 जैसा दूसरा हमला समय रहते खुफिया एजेंसियों और कोस्टगार्ड की मुस्तैदी से टाल दिया गया.
    
     ये बात जरुर है कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के एक ट्वीट ने इस थ्योरी को मजबूत कर दिया कि ये संदिग्ध पाकिस्तानी नाव किसी आतंकी घटना को अंजाम देने के इरादे से भारत की समुद्री-सीमा में दाखिल हुई थी. रक्षा मंत्री ने 2 जनवरी की शाम को ट्वीट किया कि “...आंतकियों को ले जारी रही बोट को समय रहते पकड़ने के लिए कोस्टगार्ड को बधाई देता हूं.

      लेकिन अपनी खोजी पत्रकारिता के लिए माने जाने वाले अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने  देर रात अपनी वेबसाइट पर ये खबर प्रकाशित कि आतंक की बोट वाली थ्योरी में झोल है. ये लेख लिखा था सामरिक मामलों के संपादक प्रवीण स्वामी ने. एक-एककर उन्होनें बताने की कोशिश की कि जिसे आतंक की बोट माना जा रहा है वो दरअसल समुद्र में स्मगलिंग करने वाले छुटभैये तस्करों की थी और उसमे शराब या फिर सल्फर जैसा कोई पदार्थ था जिसमें आग लगाई गई थी, ना कि गोला-बारुद में.

     लेकिन जैसे ही इंडियन एक्सप्रेस की ये स्टोरी ऑन-लाइन प्रकाशित हुई बवाल खड़ा हो गया. हेडलाइंस टुडे के एंकर-पत्रकार ने ट्वीटर पर प्रवीण स्वामी की खबर पर सवाल खड़े कर दिए कि उनकी स्टोरी की पहली लाइन ही गलत है. क्योंकि कोस्टगार्ड या फिर रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक प्रेस रिलीज में कहीं भी आतंक शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया था. ना ही इस बात का दावा किया गया था कि उस बोट में मौजूद लोग आतंकी थे. जल्द ही प्रवीण स्वामी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होनें तुरंत ही अपनी स्टोरी में हुई गलती सुधार ली. संपादित स्टोरी अगले दिन के अखबार में प्रकाशित हुई.  उन्होनें सवाल खड़ा किया कि क्या मच्छीमार नाव (पाकिस्तानी संदिग्ध नाव) कोस्टगार्ड के स्टेट ऑफ द आर्ट जहाज एक घंटे तक छका सकती है (जैसा कि रक्षा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में छपा था). साथ ही जिस रात अरब सागर में कोस्टगार्ड ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, मौसम विभाग की वेबसाइट के मुताबिक, मौसम बिल्कुल सामान्य था. दरअसल, रक्षा मंत्रालय ने प्रेस-रिलीज में लिखा था कि संदिग्ध बोट में मौजूद लोगों को ढूंढने और नाव के मलबे को ढूंढने में खराब मौसम के चलते मुश्किल आ रही है.
   
     साथ ही ये भी लिखा कि आग की उंची-उंची  लपटें किसी दूसरी नाव को क्यों नहीं दिखाई दीं. सवाल ये भी खड़ा किया गया कि एनटीआरओ यानि नेशनल टेक्निकल रिर्सच ऑर्गेनाईजेशन ने जो कराची का जो फोन इंटरसेप्ट किया था उसे आईबी और रॉ जैसे दूसरी (बड़ी) खुफिया एजेंसियों से क्यों नहीं साझा किया था.

    प्रवीण स्वामी का तर्क है कि अगर नाव में विस्फोट होता तो उसके परखच्चे उड़ गए होते. लेकिन रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी तस्वीरों में ऐसा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था.
  
    सामरिक मामलों को प्रवीण स्वामी काफी अर्से से कवर कर रहे हैं, ऐसे में वो अगर कुछ लिखते हैं तो उसमें दम नजर आता है. लेकिन अगर गौर से देखें तो उनके तर्कों में ही झोल नजर आते हैं. पहला ये कि कोस्टगार्ड और भारतीय नौसेना कभी भी किसी संदिग्ध बोट के करीब तबतक नहीं जाती जबतक कि उन्हे पूरा यकीन ना हो जाए कि उसके करीब जाना खतरे से खाली नहीं है. किसी भी संदिग्ध बोट को शुरुआत में पहचान स्थापित करने के लिए लाउडस्पीकर पर चेतावनी दी जाती है. सभी जानते है कि अगर पाकिस्तानी नाव में बारुद होता (जैसा कि संदेह किया जा रहा है) और कोस्टगार्ड के जहाज को करीब आने पर वो उस नाव को उससे टकरा देते तो क्या हश्र होता. जो तस्वीरें हम देख रहे हैं उससे साफ है कि बोट में कई मीटर ऊंची लपटें उठ रहीं हैं. अमेरिकी युद्धपोत 'कॉल' को ठीक इसी इसी तरह से वर्ष 2000 में यमन में आत्मघाती हमले में अलकायदा के आतंकियों ने नष्ट कर दिया था. इस हमले में आतंकियों ने गोला-बारुद से भरी एक छोटी नाव को अमेरिका जहाज से उस वक्त टकराकर तहस-नहस कर दिया जब वो एडन में रिफ्यूलिंग कर रहा था.  यूएस नेवी के 17 अधिकारी और नौसैनिक इस आत्मघाती हमले में मारे गए थे और करीब दो दर्जन घायल हुए थे.

          सितंबर 2013 में तालिबानी आतंकियों ने कराची में खड़े पाकिस्तानी नौसेना के युद्धपोत पर कब्जे करने की कोशिश की थी. माना जा रहा है कि उस जहाज पर कब्जा कर आतंकी भारत के किसी युद्धपोत से टकराकर नष्ट करने की योजना बना रहे थे. लेकिन उनके नापाक मंसूबे पूरे होने से पहले ही आतंकियों को पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया. खबर ये भी आई कि इस नाकाम साजिश में पाकिस्तानी नौसेना के अधिकारी भी मिले हुए थे.

       कराची की इस घटना के बाद से ही भारतीय नौसेना के मुखिया एडमिरल आर के धवन ने खुलासा किया था कि हमारे युद्धपोत पाकिस्तानी जहाजों के करीब नहीं जाते हैं. साफ है कि कराची की घटना के बाद से ही नौसेना और कोस्टगार्ड पाकिस्तानी जहाज और बोट्स से दूरी बना कर रखते हैं. तो ऐसे में ये कहना कि कोस्टगार्ड के अधिकारियों को पाकिस्तानी संदिग्ध बोट को पकड़कर उसमें मौजूद लोगों को हिरासत में लेना चाहिए, थोड़ा मुश्किल लगता है. साथ ही अगर कोस्टगार्ड के सुरक्षाबल नाव पर फायरिंग करते और किसी बेगुनाह मछुआरे की मौत हो जाती तो कितना बवाल खड़ा हो जाता (इटली के मेरिन कमांडो का मामला जग-जाहिर है).

    रही (साफ और खराब) मौसम की बात तो सभी जानते हैं कि मौसम विभाग की दी हुई सूचना कई बार गलत साबित हुई हैं. कई बार देखा गया है कि मौसंम विभाग साफ आसमान की जानकारी देता है लेकिन अगले ही दिन बारिश हो जाती है-समुद्र के मौसम का अनुमान लगाना तो और ज्यादा मुश्किल है. एयरएशिया का विमान QZ8501 खराब मौसम के चलते ही सुराबाया से सिंगापुर जाते वक्त क्रैश हुआ था. यहां ये बात दीगर है कि दुनियाभर की फ्लाईट्स और विमान मौसम विभाग के अनुमानित-जानकारी के आधार पर ही हवा में उड़ते हैं. लेकिन ना जाने कब मौसम खराब हो जाए, इसका ठीक-ठीक अंदाजा मौसम विभाग भी नहीं निकल सकता है.

     अगर कोस्टगार्ड द्वारा जारी संदिग्ध बोट को गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि अरब सागर में वो बोट अकेली खड़ी है. दूर-दूर तक कोई दूसरी बोट या फिर जहाज नहीं दिखाई दे रहा है. ऐसे में अगर रात के अधेंरे में कोई विशाल अरब सागर में एक बोट में धमाका और आग लगती है तो जरुरी नहीं है कि उसे किसी ने देखा ही हो. अगर देखा भी हो तो जरुरी नहीं कि वे लोग पत्रकारों या फिर मछलीमार-यूनियन को जाकर ही बताएं. जरुरी ये भी नहीं कि तट से 365 किलोमीटर दूर समुद्र में किसी नाव ने ये देखा हो तो वो इतनी जल्दी क्या समुद्रतट पर पहुंच सकती है.


     रक्षा मंत्रालय या फिर कोस्टगार्ड ने ये कभी नहीं कहा कि बोट बारुद से लदी हुई थी. हो सकता है शराब या फिर किसी दूसरे ज्वलनशील पदार्थ की आड़ में संदिग्ध लोग हथियारों का कोई जखीरा लेकर भारत की सरजमीं पर आना चाहते हों या फिर किसी को ट्रांसफर करने के इरादे से खड़े हो. अगर एक-47 जैसी गन और हेंडग्रेनेड (जैसा आंतकी 26/11 के हमले के दौरान लेकर आए थे) उस आग में स्वाह हो गईं हों तो जरुरी नहीं है कि बोट के परखच्चे उड़ जाएं.

     रही बात इंटेलीजेंस साझा करने की, तो कई बार व्यक्तिगत तौर पर खुफिया अधिकारी पुलिस और सुरक्षाबलों में अपने दोस्तों से खुफिया जानकारी शेयर कर लेते हैं. 26/11 हमले से पहले ना जाने कितनी बार दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल (आतंक-विरोधी दस्ता) के अधिकारी कश्मीर से लेकर पंजाब, बिहार, मुंबई और कोलकाता तक आतंकियों को गिरफ्तार या फिर मुठभेड़ में ढेर कर देते थे. ये सब स्पेशल सेल के एक आला-अधिकारी के एक खुफिया अधिकारी की खास दोस्ती के चलते ही संभव हो पाता था. लेकिन मुंबई हमले के बाद स्थिति बदल गई है. अब सभी खुफिया सूचना को मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) में सभी खुफिया एजेंसियों के साथ साझा करना पड़ता है.

     लेकिन अगर कोई मुसीबत सिर पर खड़ी हो जैसाकि पोरबंदर वाली पाकिस्तानी बोट के मामले में हुआ तो क्या कोई इंटेलीजेंस-ऑफिसर या एजेंसी मैक की मीटिंग का इंतजार करेगा. कराची के केटीबंदर से निकली संदिग्ध नाव अंर्तराष्ट्रीय सीमा को पार कर भारत की समुद्री सीमा में आ चुकी थी और लगातार कराची में बैठे अपने संपर्क-सूत्रों से दिशा-निर्देश ली रहे थे. ये संपर्क-सूत्र कोई और नहीं आईएसआई और पाकिस्तान की मेरिन सिक्योरिटी एजेंसी (पाकिस्तानी कोस्टागार्ड) है जो अपने देश की नेवी के अंतर्गत काम करती है. वही नौसेना जिसके अधिकारियों के आतंकियों से रिश्ते की कहानी सितंबर 2013 में ही सामने आ चुकी थी. वो सीधे उस अलर्ट से जुड़ी सुरक्षा एजेंसी को इसकी खबर करेगा-जैसाकि इस संदिग्ध नाव के बारे में हुआ. एनटीआरओ (के अधिकारियों) ने समुद्र से जुड़े खतरे के अलर्ट को उन्ही एजेंसियों को दिया, जो उससे जुड़ी थीं-कोस्टगार्ड और नौसेना. अब ये भी खबर आ रही है कि गुजरात पुलिस को भी इस अलर्ट के बारे में आगाह किया गया था. तो ऐसे में आईबी या रॉ के साथ इस (खतरे की बोट की) सूचना को साझा नहीं किया तो क्या आफत आ गई.
 
    दबी जुबान में तो लोग ये भी कह रहे हैं कि दरअसल, इस संदिग्ध नाव की कहानी में किसी को झोल नजर आ रहे है तो वो देश की बड़ी गुप्तचर एजेंसी आईबी (इंटेलीजेंस एजेंसी) को. इसीलिए अगर झोल कहीं है तो वो है आईबी और एनटीआरओ के रिश्तों में. लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि आईबी को ये बात हजम नहीं हो रही है कि जुमा-जुमा चार दिन पहले खड़ी की गई एनटीआरओ इतने सफल ऑपरेशन का हिस्सा कैसे बन गई-एनटीआरओ का जन्म वर्ष 2004 में हुआ था. यही वजह है कि कोस्टगार्ड के ऑपरेशन में झोल की स्टोरियों दरअसल आईबी प्लांट करा रही है.  लेकिन यहां मुद्दा ये नहीं है कि किसी फंला एजेंसी ने क्या स्टोरी प्लांट की है. मुद्दा है फैक्टस (तथ्यों) का.


पत्रकारों ने तो ट्वीट कर ये तक कह डाला कि रक्षा और सामरिक मामलों के बड़े जानकारों (रिपोर्टर और संपादकों) को ये बात हजम नहीं हो रही है कि पाकिस्तानी संदिग्ध बोट की स्टोरी उन्होनें क्यों नहीं ब्रेक की.  रक्षा मंत्रालय और कोस्टगार्ड ने इतनी बड़ी स्टोरी उन्हे क्यों नहीं पहले बताई.  बस इसी बात की खुन्नस निकालने के लिए वे कोस्टगार्ड के ऑपरेशन को नीचा दिखाने की कोशिश में उसपर सवाल खड़े कर रहे हैं.

वैसे अगर एंडियन एक्सप्रेस और प्रवीण स्वामी (और कांग्रेस पार्टी) को छोड़ दें तो ज्यादातर न्यूज चैनल और अखबार, कोस्टगार्ड और रक्षा मंत्रालय की थ्योरी पर सवाल ही नहीं खड़ा कर रहे हैं.

खुद कोस्टगार्ड और रक्षा मंत्रालय ने साफ किया कि इस संदिग्ध मामले की जांच जारी है और जांच पूरी होने के बाद ही संदिग्ध नाव की पूरी तस्वीर साफ हो पायेगी. और अधिकतर मीडिया इस जांच पूरी होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.