Friday, October 16, 2015

क्या खूब लड़ पाएगी मर्दानी ?

एनएसजी की महिला कमांडो गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू द्वारा सम्मानित

एनएसीजी की महिला कमांडो भी आतंकियों से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं और जरूरत हुई तो उन्हे भी 'कॉम्बेट-रोल' में शामिल किया जा सकता है। ये कहना है एनएसजी के महानिदेशक आर सी तायल का। आज एनएसजी के 31वे स्थापना दिवस के मौके पर देश की सर्वश्रेष्ठ एंटी-हाईजैकिंग बल, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के डीजी ने इस बात की घोषणा की.

एनएसजी का गठन 1984 में आंतक-निरोधी और एंटी-हॉस्टेज दस्ते के रुप में किया गया था. उसके बाद देश के दो सबसे बड़े आंतकी हमले और बंधक बनाए जाने वाली घटनाओं में एनएसजी के 'ब्लैक-कैट' कमांडो नें अपना दमखम पूरे दुनिया को दिखाया है. पहला, गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर हमला और दूसरा मुंबई के 26/11 हमले में.

एनएसजी का अपना कोई कैडर नहीं है. इसके कमांडो पैरा-मिलेट्री फोर्स, सेना और पुलिसबल से डैपयूटेशन पर आते हैं. लेकिन माना जाता है कि 'क्रीम-डि-ला-क्रीम' ही इस बल का हिस्सा बन पाते हैं, जिसका आदर्श वाक्य है 'सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा'.
वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल अरुप राहा

कुछ दिन पहले ही वायुसेनाध्यक्ष, एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने घोषणा की थी कि महिला पायलट अब फाइटर प्लेन भी उड़ा सकेंगी. अभी तक हमारे देश में महिलाओं को कॉम्बेट यानि लड़ाई में सीधी तौर से शामिल नहीं किया जाता रहा है. लेकिन वायुसेना प्रमुख के इस ऐलान के बाद की महिलाएं जल्द ही फाइटर प्लेन उड़ा सकेंगी, एनएसजी डीजी का ये बयान की उनके बल की महिला कमांडो किसी भी तरह से पुरुष कमांडो से कम नहीं है बेहद ही जोशिला बयान है. एनएसएजी के महानिदेशक ने 31वे स्थापना दिवस के जिस समारोह में ये घोषणा की उस मौके पर गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू भी मौजूद थे.

महिला सशक्तिकरण के इस दौर में महिलाएं किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है. ऐसे में महिलाएं युद्ध के मैदान में या फिर आंतकियों से लोहा लेने में पीछे क्यों रहें. कम ही लोग जानते हैं कि रशिया के जिन लड़ाकू विमानों ने हाल ही में सीरिया में आईएस के ठिकानों पर हमला कर 300 आंतकियों को ढेर किया था, उन्हे महिला फायटर पायलट ही उड़ा रहीं थीं.

इस साल जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबाम हमारे देश आए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सीधे तौर पर तीनों सेनाओं को आदेश दिया कि गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल टुकड़ियों का नेतृत्व महिला सैन्यकर्मी ही करेनी चाहिए. पीएम दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स के सामने अपने देश की महिला सशक्तिकरण का उदाहरण पेश करना चाहते थे. यहां तक की पहली बार ऐसा हुआ कि एक महिला सैन्य अधिकारी (विंग कमांडर पूजा ठाकुर) ने किसी दूसरे देश के राष्ट्रध्यक्ष (बराक ओबामा) को दी गई सलामी परेड का नेतृत्व किया.

दरअसल, ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन है कि महिलाओं को भी सेनाओं में बराबरी का मौका दिया जाए. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि वायुसेना प्रमुख बनने के तुरंत बाद ही अरुप राहा ने साफ तौर से महिला पायलटों को उनकी (शारीरिक) क्षमता पर सवाल उठाकर लड़ाकू विमान उड़ाने में ना-सार्मथ करार दिया था. लेकिन नई (मोदी) सरकार के सत्ता में आने के एक साल में ही वायुसेनाध्यक्ष ने अपनी सोच महिला पायलट के प्रति पूरी तरह बदल दी है. उनका मानना है कि महिलाओं को "ट्रैनिंग के जरिए शारीरिक-फिट" बनाया जा सकता है.

हमारे देश की महिलाकर्मियों और कमांडो देश से बाहर भी अपना नाम कमा चुकी हैं. अफ्रीकी देश लाईबेरिया  की महिला-राष्ट्रपति की अंगरक्षक के तौर पर हमारी पैरा-मिलेट्री फोर्स की महिला-कमांडो कई सालों से तैनात हैं. दरअसल, लाईबेरिया में काफी समय से गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है, और वहां पर हमारे अर्द्धसैनिक बलों की टुकड़िया संयुक्त-राष्ट्र की शांति-सेना में तैनात हैं. जिसके चलते लाईबेरिया की महिला-राष्ट्रपति की सुरक्षा में हमारे देश की महिलाकर्मियां तैनात हैं. 

इसके अलावा, प्रधानमंत्री और दूसरे वीवीआईपी की सुरक्षा करने वाली एसपीजी में भी काफी समय से महिला कमांडो शामिल हैं. ऐसे में महिलाओं को आंतकियों से दो-दो हाथ करने का मौका भी मिलना चाहिए. वो भी ऐसे समय में जब इस तरह की खबरें लगातार मिलतीं रहती हैं कि आतंकी संगठन महिलाओं को भी अपने दस्ते में शामिल कर रहें हैं और उनके साथ मिलकर किसी भी बड़े हमले को अंजाम दे सकते हैं. बीएसएफ की महिला-विंग पाकिस्तान सीमा पर तैनात है. लेकिन उसकी तैनाती ऐसी जगह ( पंजाब में अंतर्राष्ट्रीय सीमा) पर है जिसे  लगभग 'शांत' क्षेत्र माना जाता है. बीएसएफ ने महिला-जवानों को जम्मू और आरएसपुरा जैसे उन इलाकों में  तैनात नहीं किया हैं जहा से सीमा पर सबसे ज्यादा आंतकियों की घुसपैठ या फिर पाकिस्तान की तरफ से फायरिंग होती है.

हालांकि, वायुसेना में लड़ाकू विमान उड़ाने का मौका महिला पायलट को मिल सकता है. लेकिन महिलाओं को थलसेना में योद्धा के तौर पर शामिल करना बेहद मुश्किल भी हो सकता है. सेना इस बात से आशंकित है कि क्या महिलाएं दूर-दराज के जंगलों, दुर्गम पहाड़ियों, बर्फ की चोटी और रेगिस्तान, जहां दूर-दूर तक कोई घर या मकान तो दूर कोई झोपड़ा भी नसीब नहीं होता, वहां कैसे काम करे पायेंगी--काम तो दूर रह भी पाएंगी ? और अगर युद्ध हुआ और सेना को बॉर्डर पर कर दुश्मन के इलाके में घुसना का ऑर्डर मिला तो क्या  वहां भी महिलाओं को भेजा जा सकेगा. अगर हमारी महिला-योद्धा दुश्मन के हाथों में पड़ गईं तो उसका क्या अंजाम होगा. ये सब कुछ ऐसी आशंकाएं हैं जो सेना को महिलाओं को सीधे कॉम्बेट-रोल में शामिल करने में अड़चन पैदा कर रहीं हैं.

खुद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर तीनों सेनाओं के प्रमुखों से लगातार इस बात पर चर्चा कर रहें हैं कि महिलांओं को सेनाओं में कितना और कैसा रोल दें. हालांकि अभी भी महिला अधिकारी सेना में काम कर रहीं है. लेकिन वे सभी नॉन-कॉम्बेट यूनिट जैसे इंटेलीजेंस, शिक्षा, लीगल, मेडिकल इत्यादि में कार्यरत हैं. इसी तरह से वायुसेना में भी महिला पायलट अभी ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर या फिर विमान ही उड़ा सकतीं हैं. नौसेना में अभी भी महिला अधिकारियों को युद्धपोत पर कम ही तैनात किया जाता है.  एक ठोस चर्चा के बाद ही महिलाओं को देश की सेना या फिर पैरा-मिलेट्री फोर्स में कॉम्बेट-रोल मिल सकता है.

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