Thursday, October 29, 2015

नौसेना की नई रणनीति: मिलेट्री-डिप्लोमेसी

नौसेना की नई समुद्री-सैन्य रणनीति रिलीज़ करते रक्षा मंत्री 

        26 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली में दो बड़े आयोजन हुए. पहला था, इंडो-अफ्रीका सम्मिट और दूसरा था सेना भवन में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर द्वारा नौसेना की नई समुद्री-सैन्य रणनीति के संस्करण का विमोचन. अफ्रीकी सम्मेलन के बारे में तो चर्चा काफी हो रही है, लेकिन भारतीय नौसेना की इस 'ब्लू-बुक' के बारे में चर्चा काफी कम हो रही है (या यूं कहें कि ना के बराबर है). जैसा कि मौजूदा नौेसेनाध्यक्ष एडमिरल आर के धवन ने हाल ही में कहा था कि "हम (नौसैनिक) देश से बहुत दूर समुद्र में ज्यादा रहते हैं इसलिए हमारे बारे में मैनलैंड (यानि देश के अंदर) कम बातें होतीं हैं."


इंडो-अफ्रीका सम्मेलन में 50 से ज्यादा अफ्रीकी देशों के राष्ट्रध्यक्ष, मंत्री और दूसरे गणमान्य व्यक्ति दिल्ली में भारत के साथ नए संबधों की इबादत लिखने आए हैं. माना जा रहा है कि भारत इस सम्मेलन के जरिए संयुक्त-राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी-सदस्यता के लिए एक बड़ा कदम है.

ठीक इसी तरह  नौसेना की जो नई रणनीति रिलीज की गई उसमें भी नौसेना को विदेश-नीति का एक बड़ा हिस्सा माना गया है. वैसे तो रणनीति का सीधा संबंध युद्ध, संघर्ष या फिर लड़ाई से होता है लेकिन गहराई से देखा जाये तो ये दस्तावेज नौसेना की युद्ध-नीति के साथ-साथ  'मिलेट्री-डिप्लोमेसी' पर भी प्रकाश डालता है. 

 सोमवार को नौसेना के कमांडर्स कांफ्रेंस में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने मेरीटाइम मिलेट्री स्ट्रेटेजी रिलीज की. ‘सुरक्षित सागर सुनिश्चित: भारतीय समुद्री सुरक्षा रणनीति’ नाम की ये स्ट्रेटेजी, 2007 में जारी हुई रणनीति, ‘फ्रीडम टू यूज द सीज’ का ही नया संस्करण और विस्तार स्वरुप है. 2007 में भारतीय नौसेना की जिम्मेदारी जहां ‘पारस की खाड़ी से लेकर मलक्का-स्ट्रेट’ तक ही सीमित थी, तो करीब 10 साल बाद भारतीय नौसेना पूरे 'हिंद महासागर क्षेत्र और उसके आगे के क्षेत्र' को अपनी जिम्मेदारी (एओआर यानि एरिया ऑफ रेस्पोंसेबिलेटी) मान रही है. इसका कारण ये है कि भारतीय नौसेना का स्वरुप पिछले 10 सालों में कहीं अधिक बढ़ गया है.

नौसेना प्रमुख एडमिरल आर के धवन ने नेवी के  इस दस्तावेज के प्रस्तावना में लिखा है कि “ पिछला दशक भारत के समुद्री परिवेश पर निर्भरता का साक्षी रहा है जिसके परिणामस्वरुप आर्थिक, सैन्य और प्रौद्योगिकी क्षमताएं बढ़ी हैं, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का विस्तार हुआ है तथा इसके राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे और राजनीतिक हित धीरे-धीरे हिंद महासागर के क्षेत्र से आगे फैल गए हैं.” नौसेनाध्यक्ष आगे लिखते हैं, “ पिछले कुछ वर्षों में भूगोलिक-आर्थिक और भूगौलिक-रणनीतिक परिस्थितियों मे होने वाले बदलावों के कारण, नौसेना की भूमिका और जिम्मेदारियां काफी बढ़ गईं हैं.”

वर्ष 2008 में मुंबई के 26/11 हमलें ने भारतीय नौसेना की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ा दी है.
इस हमले के बाद नौसेना को देश के समस्त 4000 किलोमीटर लंबे तट और समुद्र से दूर स्थित क्षेत्रों की सुरक्षा का भार सौंप दिया गया. एडमिरल धवन के मुताबिक, “इस दस्तावेज (‘ इंडियाज मेरीटाइम मिलेट्री स्ट्रेटेजी’) का लक्ष्य आने वाले वर्षों में नौसेना की तरक्की, विकास और तैनाती के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करना है.”  आगे लिखा है, " आज, हिंद महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों के देशों के साथ भारत ज्यादा सक्रिय रूप से संवाद कर रहा है और अपनी क्षेत्रीय विदेश नीति में समुद्री सुरक्षा संबंधों को एक आधारशिला के रूप में प्रयोग कर रहा है.  इस बात की भी पहचान बढ़ गयी है नौसेना इस क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा को बढ़ने और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. "

 भारतीय नौसेना की ताक़त पिछले दस सालों में कितनी बढ़ गई  है इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस समय नेवी के जंगी बेड़े में करीब 200 युद्धपोत और पनडुब्बी हैं. इनमे दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. इसके अलावा 40 (स्वेदशी) युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं जो देश के अलग-अलग शिपयार्ड में तैयार हो रहीं हैं. कोच्चि शिपयार्ड में एक और विमान-वाहक युद्धपोत तैयार हो रहा है. अमेरिका और इटली के अलावा भारत ही एक मात्र देश ही जिसकी नौसेना के पास एक से ज्यादा एयरक्राफ्ट कैरियर हैं—अमेरिका के पास 10 विमानवाहक युद्धपोत हैं और इटली के पास दो. इसके अलावा कोस्टगार्ड के पैट्रोलिंग बोट और जहाज अलग हैं.

 पिछले एक साल में भारतीय नौसेना के जंगी जहाज करीब 45 देशों की यात्रा (पोर्ट-कॉल) कर चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति के अनुरुप ही नौसेना दुनिया के मानचित्र पर अपने पांव जमा रही है. इस लेख के लिखे जाने के वक्त भी भारतीय नौसेना के जहाज पारस की खाड़ी से लेकर दक्षिण कोरिया के इंच्योन हार्बर पर कहीं ना कहीं डेरा डाले हुए हैं. पीएम मोदी की यात्रा से ठीक पहले या फिर बाद में नौसेना का युद्धपोत उस देश के तट पर आसानी से देखा जा सकता है.

 संशोधित रणनीति 2007 के संस्करण का अनुसरण तो करती ही है, 'ज्वाइंट डाॅक्ट्रिन ऑफ इंडियन आर्म्ड फोर्सेज' और 'इंडियन मेरिटाइम डॉक्ट्रिन' में प्रतिपादित राष्ट्रीय सुरक्षा और समुद्री ताक़त के सिद्धांत पर भी आधारित है. इसमें साफ़  लिखा है कि, "नौसेना एक सहयोगी ढांचे को स्थापित करने के लिए समुद्री यात्राओं, द्विपक्षीय वार्ताओं, ट्रेनिंग, युद्धाभ्यास और तकनीकी सहायता कर हिन्द महासागर टाढा उसके आगे के क्षेत्रों में मित्रता रखने वाली समुद्री सेनाओं से प्रभावी रूप से सम्बन्धों को जोड़ेगी, जिसमें परस्पर समझ को प्रोत्साहन देते हुए क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा दिया जा सके." 

यही वजह है कि करीब 50 देशों की नौसेनाओं ने अगले साल होने वाले इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू (आईएफआर) में आने के लिए हांमी भर दी है.
दुनिया की सबसे ताकतवर नौसेना, अमेरिका, हो या फिर धुर-विरोधी, चीन या फिर पुराना साथी, रशिया या फिर ब्रिटिश रॉयल नेवी, सभी देश 4-8 फरवरी तक देश के पूर्वी तट पर बसे ‘सिटी ऑफ डेस्टेनी’ यानि विशाखापट्टनम में दिखाई देंगे. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इस अंतर्राष्ट्रीय समारोह में शामिल होंगे और पूरी दुनिया भारतीय नौसेना की ताकत देखगी. खुद एडमिरल आर के धवन मानते हैं कि ये समारोह वाकई भारतीय नौसेना की “ताकत को प्रोजेक्ट करेगा, लेकिन ये किसी (दुश्मन देश के) खिलाफ नहीं है. इस (आईएफआर का) मकसद दुनिया की मित्र-नौसेनाओं को जोड़ना है. ये दिखाना है कि समुद्र दरअसल देशों को जोड़ना का काम करते हैं (ज्वाइंटनेस थ्रू सीज़).”

आजादी के बाद ये दूसरा ऐसा मौका है जब भारतीय नौसेना आईएफआर का आयोजन कर रही है. इससे पहले 2001 में मुंबई में भी इसी तरह का अंतर्राष्ट्रीय बेड़ा समीक्षा का आयोजन किया गया था. करीब 15 साल बाद दूसरा आईएफआर होने जा रहा है. जाहिर है भारत अपनी विदेश नीति में समुद्री सुरक्षा संबंधों को एक आधारशिला के रुप में प्रयोग कर रहा है. यानि भारत पहली बार मिलेट्री-डिप्लोमेसी का बखूबी इस्तेमाल कर रहा है.

समुद्री सुरक्षा को विदेश नीति के साथ जोड़ने के साथ-साथ नौसेना दुनियाभर में हो रहे उठा-पठक का भी ध्यान से स्टडी कर रही है. हाल ही में जब यमन में भारतीय नागरिकों को सुरक्षित वहां से  निकालने में नौसेना ने एक अहम भूमिका निभाई थी. सरकार के आदेश मिलने के महज चंद घंटों में नौसेना ने ऑपरेशन-राहत लांच कर दिया था. इसका एक कारण ये था कि भारतीय नौसेना का एक जहाज उस वक्त पारस की खाड़ी में ही एंटी-पायरेसी ऑपरेशन में तैनात था, और उसे तुंरत यमन भेज दिया गया. बम और गोलीबारी के बीच हमारे नौसैनिक फंसे हुए भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने में कामयाब रहे. आज, " इस बात की पहचान भी बढ़ गई है कि नौसेना इस क्षेत्र (हिंद महासागर) की समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है."

 यमन में ऑपरेशन-राहत से भारतीय नौसेना ने एक महत्वपूर्ण सीख ये ली कि अगर जरुरत पड़ी तो ‘एचएआर’ (हयूमैनिटेरयन अस्सीटेंस एंड रिलीफ) के अलावा जरुरत पड़ने पर भारतीय नौसेना वहां दुश्मनों से सीधे-सीधे दो-दो हाथ करने के लिए भी तैयार है—जैसे अमेरिकी नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर (यूएएस डियोडोर रुजवेल्ट) पर तैनात लड़ाकू-विमान पारस की खाड़ी से इराक में आईएसआईएस के ठिकानों पर हमला करते थे. अमेरिकी नौसेना और यूएएस डियोडोर रुजवेल्ट विमान-वाहक युद्धपोत के साथ हाल ही में मालाबार एक्सरसाइज के दौरान भारतीय नौसेना को बहुत कुछ सीखने को मिला. खुद एडमिरल धवन कहते हैं कि अगर हम यमन में जाकर 'एचएआर' कर सकते हैं तो दुनिया के किसी भी कोनें में जाकर मिलेट्री-ऑपरेशन भी कर सकते हैं.

भारत 2007 से कहीं आगे आ चुका है. भारत अब वो देश नहीं जो किसी के दवाब या फिर धमकी से डर जाए. 2007 में जब भारत ने अमेरिका और जापान के साथ मिलकर मालाबार युद्धभ्यास किया था तो चीन ने इसका पुरजोर विरोध किया था. चीन ने धमकी दी थी कि भारत उसके खिलाफ गठजोड़ तैयार करने की कोशिश ना करे (अमेरिका और जापान दोनों ही चीन के पुरजोर विरोधी हैं). इसके बाद से भारत ने मालाबार-एक्सरसाइज में जापान को निमंत्रण देना बंद कर दिया था. लेकिन इस साल भारत ने चीन की परवाह किए बगैर अमेरिका और जापान की नौसेनाओं के साथ मिलकर साझा युद्धभ्यास किया. इस युद्धभ्यास में अमेरिका का सबसे ताकतवर परमाणु विमानवाहक युद्धपोत, यूएएस डियोडोर रुजवेल्ट और भारतीय नौसेना की पनडुब्बी, आईएनएस सिंधुध्वज ने हिस्सा लिया था.

नौसेना के इस महत्वपूर्ण रणनीतिक दस्तावेज, इंडियाज मेरीटाइम मिलेट्री स्ट्रेटेजी’ को जारी करते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि भारतीय नौसेना आज "अंटलांटिक महासागर और पर्शियन-गल्फ से लेकर दक्षिण चीन सागर तक अपने युद्धपोतों को तैनात कर रही है जिसके चलते नेवी का ‘ऑपरेशनल-टेम्पो’ काफी हाई है."

 यहां दक्षिण चीन सागर का जिक्र करना बेहद महत्वपूर्ण है. दरअसल, चीन साउथ चायना सी में अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहता है. ‘नाइन-पाउंट’ थ्योरी के चलते उसका अपने पड़ोसी देश, वियतनाम, मलेशिया और फिलीपींस से लंबा विवाद चल रहा है. अमेरिका की तरह ही भारत भी ‘फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन’ के सिद्धांत को तरजीह देता है. ऐसे में भारतीय नौसेना का वियतनाम, मलेशिया, और फिलीपींस के पोर्ट पर अपने युद्धपोत भेजकर अपनी उपस्थिति वहां दर्ज कराना चाहता है. यही वजह है कि भारतीय समुद्री सुरक्षा रणनीति का विस्तार हो रहा है.

       गौरतलब है कि भारत की ओएनजीसी काफी समय से दक्षिण चीन सागर में तेल निकालने के लिए समुद्री खनन करना चाहती है. लेकिन चीन इसमें अड़ेंगे लगा रहा है. यही वजह है कि नौसेना के इस  मिलेट्री स्ट्रेटेजी बुक में साफ लिखा है कि “ भारत की समुद्री आर्थिक गतिविधियों का व्यापक रुप से विस्तार हो रहा है जिनमें उर्जा सुरक्षा, समुद्री-व्यापार, नौवहन, मछली पकड़ना तथा विदेश में काफी भारतीय निवेश और नागरिक शामिल है. अपने विदेशी व्यापार तथा उर्जा संबंधी जरुरतों को पूरा करने के लिए भारत समुद्र पर बहुत निर्भर है. इनमें अपरिष्कृत और तरल हाईड्रोकार्बन का आयात, शोधित उत्पादों का निर्यात, समुद्र से दूर स्थित क्षेत्रों का विकास तथा पूरी दुनिया में आर्थिक साझेदारी शामिल है.” माना जाता है कि विदेशों से होने वाले व्यापार का करीब 90 प्रतिशत (मात्रा के हिसाब से और 70 प्रतिशत मूल्य के हिसाब) से समुद्र के रास्ते ही होता है.


लेकिन इसका तात्पर्य ये कतई नहीं है की भारतीय नौसेना सिर्फ कूटनीति तक ही सीमित है. मेरीटाइम स्ट्रेटेजी में साफ़ तौर से युद्ध और किसी दूसरे भी संघर्ष के दौरान क्या और कैसे करना है साफ़ तौर से लिखा है. 

यही वजह है कि भारत की समुद्री सुरक्षा का लक्ष्य और उद्देश्य है:
·         भारत के खिलाफ युद्ध, संघर्ष तथा बल के प्रयोग को रोकना.
·         समुद्री सैन्य अभियान का संचालन इस प्रकार करना जिससे भारत के हितों के पक्ष में संघर्ष की स्थिति शीघ्र समाप्त हो.
·         भारत के समुद्री हितों के क्षेत्रों की सम्पूर्ण सुरक्षा बढ़ाने के लिए अनुकूल और सकारात्मक समुद्री माहौल बनाना.
·         भारत की तटवर्ती और तट से दूर स्थित परिसंपत्तियों की समुद्र से या समुद्र पर उठने वाले हमलों और खतरों से रक्षा करना.
·         आवश्यक समुद्री सैन्य शक्ति का विकास तथा भारत की समुद्री सुरक्षा की जरुरतों को पूरा करने की क्षमता को कायम रखना.

 ‘सुरक्षित सागर सुनिश्चित: भारतीय समुद्री समुद्री सुरक्षा रणनीति’ में ना केवल ये बताया गया है कि भारतीय नौसेना का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है बल्कि ये भी विस्तृत रुप से दिया गया है कि इसे पूरा करने के लिए क्या रणनीति अपनाई जाये.

        

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