Tuesday, February 21, 2017

क्यों है भारत हथियारों का सबसे बड़ा आयातक !

भारत एक बार फिर दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े आयातक के तौर पर उभर कर सामने आया है. हथियारों की खरीद-फरोख्त से जुड़े आंकड़े प्रस्तुत करने वाली जानी मानी अंतर्राष्ट्रीय संस्था, सिपरी ने ये घोषणा की है. सिपरी के मुताबिक, भारत के बाद सऊदी अरब, यूएई, चीन और अल्जीरिया दुनिया के सबसे बड़े आर्म्स-इम्पोर्टर हैं.


स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि सिपरी के मुताबिक, 2012 से लेकर 2016 यानि पिछले पांच सालों में इंटरनेशनल आर्म्स ट्रांसफर की बात करें तो भारत का वैश्विक हथियारों की खरीद में कुल 13 प्रतिशत हिस्सा है. जबकि सऊदी अरब का हिस्सा 8.2, यूएई का 4.6 और चीन का 4.5 प्रतिशत हिस्सा है. पाकिस्तान नवें नंबर पर है.

सिपरी के मुताबिक, ग्लोबल आर्म्स ट्रांसफर में अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है. वैश्विक आर्म्स ट्रेड में अमेरिका का कुल हिस्सा 33 प्रतिशत है, जबिक चिर-प्रतिद्धंदी रशिया का हिस्सा कुल 23 प्रतिशत है. इसके बाद चीन और फ्रांस करीब 6-6 प्रतिशत के साथ तीसरे और चौथे नंबर पर आते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को मिलने वाले बड़े हथियारों में  रशिया का सबसे बड़ा योगदान है. अभी भी भारत को जितने भी हथियार मिलते हैं उसमें रशिया का हिस्सा करीब 68 प्रतिशत है जबकि अमेरिका का हिस्सा 14 प्रतिशत है और इजरायल का 7.2 प्रतिशत है.

बताते चलें कि भारत को पिछले पांच सालों में रशिया से विमान-वाहक युद्धपोत, आईएनएस विक्रमादित्य (एडमिरल गोर्शोकोव), सुखोई लड़ाकू विमान, न्युकलिर परमाणु पनडुब्बी, आईएनएस चक्र (लीज पर), एमआई-17वी5 हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट विमान मिले हैं. जबकि अमेरिका से सी-17 ग्लोबमास्टर और सी130 जे सुपर-हरक्युलिस मालवाहक विमान, पी8आई टोही विमान मिले हैं तो अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर का सौदा हो चुका है. साथ ही 145 एम-777 होवित्जर गन्स की डील भी अमेरिका से हो चुकी है. फ्रांस से ही हाल ही में 36  रफाल लड़ाकू विमानों का सौदा भी भारत ने करीब 59 हजार करोड़ रुपये में किया है. इजरायल से भी मिसाइल, ड्रोन और रडारर्स के बड़े सौदे भारत ने किए हैं.

सिपरी रिपोर्ट के मुताबिक, अगर 2007-11 और 2012-16 के आंकड़ों की बात करें तो भारत के बड़े हथियारों के निर्यात में करीब 43 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है. गौरतलब है कि इस साल भारत का रक्षा बजट करीब 2.75 लाख करोड़ रुपये है (अगर इसमें रक्षा मंत्रालय से जुड़ी पेंशन मिला दें तो ये करीब 3.40 लाख करोड़ रुपये पहुंच जाता है). इसमें से 87 हजार करोड़ रुपये सेनाओं के साजों-सामान के लिए निर्धारित किया गया है.

जानकारों के मुताबिक, भारत की जियो-पोलिटिकलस्थिति इस तरह है कि उसे हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहना होगा. दो तरफ से भारत ऐसे देशों से घिरा हुआ है जिनसे युद्ध हो चुके हैं और जो भारत की सीमाओं में घुसने की ताक में हरदम बैठे रहते हैं. लेकिन स्वदेशी हथियार बनाने में नाकाम रहने के चलते भारत को अपने मित्र-देशों से हथियारों का आयात करना पड़ता है.

आजादी के बाद से भारत एक-दो नहीं बल्कि चार बड़े युद्ध लड़ चुका है (1948, 62, 65, 71). इसके अलावा करगिल, सियाचिन, नाथूला-चोला और सुंगद्रांशु सैन्य झड़पें भी भारत झेल चुका है. पाकिस्तान समर्थितप्रोक्सी-वॉर किसी से छिपा नहीं रहा है. हाल ही में उरी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने जब पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल-स्ट्राइक की गई तो युद्ध जैसे हालत खड़े हो गए थे. ऐसे में भारत को अपनी सैन्य-तैयारियां हमेशा रखनी होगी. भारत के सामरिक-रणनीतिकार ये भी भली-भातिं जानते हैं कि अगर इस बार पाकिस्तान से युद्ध हुआ तो चीन जरूर सीधे तौर से हस्तक्षेप कर सकता है. इसलिए भारत को 'टू फ्रंट वॉर' के लिए भी जरूरी सैन्य तैयारी करके रखनी पड़ेगी. 

साथ ही हिंद महासागर में जिस तरह से चीन और चीन की पनडुब्बियां का दबदबा बन रहा है उसको देखते हुए भारतीय नौसेना को भी जरुरी साजों-सामान से लैस करना बेहद जरुरी है.

जानकारों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत स्वेदशी आयुद्ध कंपनियां को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि हथियारों के लिए भारत की सेनाओं को आयात पर ज्यादा निर्भर ना रहना पड़े. इसके तहत माना जा रहा है कि अगले दस (10) सालों में भारत का रक्षा मंत्रालय हथियारों के निर्यात का बजट आधा करने की जुगत में है. हाल ही में रक्षा राज्यमंत्री सुभाषराव भामरे ने एक सार्वजनिक सभा में इस बात की घोषणा भी की थी.

सिपरी रिपोर्ट के मुताबिक, मिडिल-ईस्ट में चले रहे संघर्ष के चलते सऊदी अरब और यूएई जैसे देश भी हथियारों की बड़ी तादाद में आयात कर रहे हैं. शीत-युद्ध के बाद पहली बार दुनिया के आर्म्स-ट्रांसफर का बजट इतना ज्यादा बढ़ा है.

No comments:

Post a Comment