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लांचिग: रशिया की एस-400 ट्रायूम्फ मिसाइल |
हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी रशिया की यात्रा पर गए तो सबसे ज्यादा जिस रक्षा सौदे की चर्चा हुई, वो था ‘एस-400’
मिसाइल सिस्टम. हालांकि दोनों देशों के साझा बयान (ज्वाइंट इस्टेटमेंट) में
इसका जिक्र नहीं था, लेकिन जानकारी के मुताबिक, ये सौदा दोनों देशों के बीच लगभग
तय है सिर्फ सौदे की कीमत को लेकर दोनों देशों के विशेषज्ञों को माथा-पच्ची करनी
है और अगले एक साल तक भारत को ये मिसाइल प्रणाली मिल सकती है.
भारत एस-400 की पांच (05) फायरिंग यूनिट
रशिया से खरीद रहा है. माना जा रहा है कि दो-दो यूनिट पाकिस्तान और चीन सीमा पर
तैनात की जायेंगी. एक फायरिंग यूनिट या तो दक्षिण भारत में कहीं तैनात की जायेगी
या फिर राजधानी दिल्ली के आस-पास. एस-400 मिसाइल को ‘ट्रायूम्फ’
के नाम से भी जाना जाता है और इसका नाटो नाम ग्राऊलर है. रशिया की सरकारी संस्थान,
अल्माज़-अंतऐ इस मिसाइल सिस्टम का निर्माण करती है.
एस-400 को मिसाइल समझने की गलती ना करें.
एस-400 दरअसल
एक मिसाइल-प्रणाली है. एक एंटी-मिसाइल सिस्टम है जो एयर-डिफेंस यानि हवाई सीमा की
सुरक्षा के लिए इस्तेमाल की जाती है. ये किसी भी संस्थान (जैसे राजधानी दिल्ली के
साउथ ब्लॉक को सुरक्षा प्रदान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है) या फिर हवा में
लड़ाकू विमानों का सुरक्षा प्रदान कर सकता है. ये
सिस्टम दुश्मन की मिसाइल,
लड़ाकू-विमान और ड्रोन से लड़ने के लिए तैयार किया जाता है.
अगर दुश्मन ने हवाई हमला करने की कोशिश की तो ये सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है और हवा
में ही दुश्मन की मिसाइल या लड़ाकू विमान को नेस्तानबूत कर देता है. हाल ही में टर्की ने रशिया के फाइटर-प्लेन को सीरिया की सीमा के करीब मार गिराया, तो रुस ने इस मिसाइल प्रणाली को वहां तैनात कर दिया. गौरतलब है कि रशिया आईएसआईएस के खिलाफ सीरिया में हवाई हमले कर रहा है.
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एस-400 मिसाइल सिस्टम |
अभी तक भारत में वायुसेना का आधुनिक
फाइटर-जेट सुखोई कुछ हद तक इस काम को करता है. यानि बिओंड विजुयल रेंज में दुश्मन
का कोई विमान या ड्रोन आता है तो सुखोई उसे मार गिराने में सक्षम है. लेकिन अगर
इतनी दूर से दुश्मन की कोई मिसाइल आ जाए तो उसके लिए सुखोई भी कुछ नहीं कर सकता.
इसीलिए भारत ने रशिया से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने का निश्चय किया है.
एयर डिफेंस को समझने के लिए इस ग्राफिक्स को देखें. ये सिस्टम चार चरणों में काम करता है.
एयर डिफेंस को समझने के लिए इस ग्राफिक्स को देखें. ये सिस्टम चार चरणों में काम करता है.
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ग्राफिक्स: एयर डिफेंस सिस्टम |
1. एलआरसैम यानि लांग रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—भारत ने
हाल ही में रशिया से इसी कैटेगेरी की 'एस-400 ट्रायूम्फ' मिसाइल
का सौदा किया है. जिसकी रेंज करीब 400 किलोमीटर है. ये मिसाइल सिस्टम सिर्फ
अमेरिका और रूस के पास है. चीन ने हाल ही में रशिया से खरीदा है.
2. एमआरसैम यानि मीडियम रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—इसकी रेंज करीब 100 किलोमीटर है. भारत बराक नाम की इस मिसाइल प्रणाली को इजरायल की मदद से तैयार कर रहा है.
3. एसआरसैम शॉर्ट रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—इसकी रेंज करीब 25 किलोमीटर होती है. भारत की सरकारी रक्षा संस्थान डीआडीओ ने आकाश नाम की इस मिसाइल प्रणाली को हाल ही में तैयार किया है. वायुसेना के साथ थलसेना भी इस मिसाइल को इस्तेमाल करती है. थलसेना इस प्रणाली को अपनी टैंक रेजीमेंट को एक जगह से दूसरी जगह मूव करने के लिए इस प्रणाली को इस्तेमाल करती है ताकि दुश्मन हमारे टैंक के काफिले पर हवाई हमला ना कर सके. आकाश के अलावा भारतीय वायुसेना के पास पिचौरा नाम की रशियन मिसाइल सिस्टम भी है. एक और एसआरसैम भारत इजरायल के सहयोग से तैयार कर रहा है जिसे स्पाईडर का नाम दिया गया है.
2. एमआरसैम यानि मीडियम रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—इसकी रेंज करीब 100 किलोमीटर है. भारत बराक नाम की इस मिसाइल प्रणाली को इजरायल की मदद से तैयार कर रहा है.
3. एसआरसैम शॉर्ट रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—इसकी रेंज करीब 25 किलोमीटर होती है. भारत की सरकारी रक्षा संस्थान डीआडीओ ने आकाश नाम की इस मिसाइल प्रणाली को हाल ही में तैयार किया है. वायुसेना के साथ थलसेना भी इस मिसाइल को इस्तेमाल करती है. थलसेना इस प्रणाली को अपनी टैंक रेजीमेंट को एक जगह से दूसरी जगह मूव करने के लिए इस प्रणाली को इस्तेमाल करती है ताकि दुश्मन हमारे टैंक के काफिले पर हवाई हमला ना कर सके. आकाश के अलावा भारतीय वायुसेना के पास पिचौरा नाम की रशियन मिसाइल सिस्टम भी है. एक और एसआरसैम भारत इजरायल के सहयोग से तैयार कर रहा है जिसे स्पाईडर का नाम दिया गया है.
4. क्लोज-रेंज मिसाइल सिस्टम—ये दरअसल मिसाइल-लांचर होता है जिसे सैनिक अपने कंधे पर रखकर चलाते हैं. ये उस वक्त काम आता है जब टारगेट बिल्कुल करीब यानि पांच किलोमीटर से भी कम रेंज में घुस आता है. यानि अगर एलआरसैम, एमआरसैम और एसआसैम फेल हो जाएं या चूक जाए तो मिसाइल लांचर से हमला बोला जाता है. भारत के पास इस तरह की ईग्ला और ओसा नाम की मिसाइल हैं जो रशियन सिस्टम है.
एयर डिफेंस के लिए एयरफोर्स स्टेशन या
बेस पर एक टीडब्लूसीसी यानि टर्मिनल वैपन्स कमांड सेंटर बनाया जाता है. वहां तैनात
अधिकारी आधुनिक रडार प्रणाली और कम्युनिकेशन सिस्टम के जरिए ऊपर दी गईं मिसाइल
सिस्टम (एलआरसैम, एमआरसैम इत्यादि) को टारगेट पर निशाना साधने के लिए दिशा-निर्देश
देते हैं.
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