Wednesday, December 23, 2015

पूर्व-सैनिकों की हेल्थ स्कीम में गड़बड़झाला: सीएजी

रक्षा मंत्रालय द्वारा पूर्व-सैनिकों के लिए चलाई जा रही हेल्थ स्कीम, ईसीएचएस में सीएजी ने खासी खामियां पाईं हैं। सीएजी के मुताबिक, इसमें हुई गड़बड़ियां किसी घोटाले से कम नहीं है। सीएजी की ये रिपोर्ट संसद के इसी सत्र में पेश की गई। 

सीएजी के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय के तहत पूर्व सैनिकों के लिए एक्ससर्विसमैन कोनटिरीब्यूट्री हेल्थ स्कीम चलाई जाती है। ये योजना 2003 में शुरू की गई थी। रक्षा मंत्रालय हर साल इस योजना पर 2000-2500 करोड़ रूपये खर्च करती है। जिसका लाभ करीब 45 लाख पूर्व-सैनिकों और उनके परिवार को मिलता है। लेकिन गड़बड़ियों के चलते प्राईवेट अस्पताल सरकार को बड़ा चूना लगा रहे हैं। जिसके चलते हर साल सरकार को 100 करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान हो रहा है।

2003 में रक्षा मंत्रालय ने ये स्कीम शुरू की थी। इसके लिए सरकार ने देशभर में पाॅलिक्लीनिक खोले थे। लेकिन पाॅलिक्लीनिक्स में ना तो दवाई मिलती है, ना ही मेडिकल उपकरण होते हैं और ना ही डाॅक्टर्स होते हें जिसके चलते मरीजों को प्राईवेट इम्पैनेल्ड हाॅस्पिटल में जाना पड़ता है। वहां पर ये काॅरपोरेट अस्पताल ईसीएचएस मरीजों से सामान्य मरीजों की तुलना में कई गुना बिल बनाते हैं. कहीं कहीं तो दुगना तीगना बिल वसूलता है जिससे सरकार को इस स्कीम में भारी नुकसान हो रहा है।

सीएजी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इस स्कीम का फायदा सैनिकों को भी दिया जा रहा है जबकि ये स्कीम एक्स-सर्विसमैन के लिए है।

सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय के इम्पैनेलड पैनैल में देश के नामी-गिरामी काॅरपोरेट अस्पताल शामिल हैं।

इसके अलावा सीएजी ने ईसीएचएस कार्ड बनाने वाली कंपनी को भी आड़े हाथों लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, एक-एक आदमी के दो-दो कार्ड बनाए गए जो गैरकानूनी है। साथ ही कार्ड बनाने के लिए भी पैसे लिए जाते हैं जबकि रक्षा मंत्रालय ने पूर्व-सैनिकों के लिए ये कार्ड फ्री जारी करने की घोषणा की थी।

सीएजी के मुताबिक, अस्पताल के बिल-प्रोसेस करने वाली कंपनी भी पूर्वसैनिकों से फीस वसूलती है जो सरासर गलत है और रक्षा मंत्रालय ने इसे रोकने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए हैं।

इस रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय की इंटर्नल-ऑडिट तक में बेहद खामियां पाईं गईं हैं. सीएजी के मुताबिक, अगर डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस एकांउट्स ने अपना काम ठीक तरीके से किया होता तो शायद पूर्व-सैनिकों की इस स्कीम में इतना गड़बड़झाला ना हुआ होता.

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