Saturday, June 4, 2016

सीएजी की अनदेखी भारी पड़ी सेना पर: आयुध डिपो हुआ खाक

 सीएजी रिपोर्ट 2015
मंगलवार को महाराष्ट्र के पुलगांव में सेंट्रल एम्युनेशन डिपो में लगी भीषण आग में अब तक कुल 19 लोगों की जान चली गई है. 16 लोग अभी भी जिंदगी और मौत के बीच अस्पताल में जूझ रहे हैं. लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि इतनी बड़ी आग इतने संवदेनशील क्षेत्र में लगी कैसे. और अगर लगी तो उसपर समय रहते काबू क्यों नहीं पाया गया. क्या सेना के पास इस तरह की भीषण आग रोकने के लिए जरुरी साजों-सामान और फायर-स्टॉफ की कमी है ? ये सवाल इस लिए उठ रहा है क्योंकि सीएजी ने एक साल पहले ही अपनी रिपोर्ट में एम्युनेशन डिपो में इस तरह की घटना और जरुरी अग्निशमन उपकरण की कमी को लेकर आगाह किया था. लेकिन ना तो सेना और ना ही रक्षा मंत्रालय ने इस और ध्यान दिया. नतीजा ये हुआ कि 19 लोगों की जान चली गई और सेना के लिए बेहद जरुरी गोला-बारुद भी नष्ट हो गया. वो भी तब जबकि खुद सेना गोला-बारुद की कमी झेल रही है. 

काॅम्पर्टोलर एंड ऑडिटर जनरल यानि देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी, सीएजी ने अपनी हालिया रिपोर्ट में सेना और रक्षा मंत्रालय को इस खतरे के लिए पहले ही आगाह कर दिया था. एबीपी न्यूज के पास सीएजी की वो रिपोर्ट मौजूद है जिसमें साफ लिखा है कि सेना के डिपुओं में 65 प्रतिशत अग्निशमन उपकरणों और 47 प्रतिशत अग्निशमन स्टॉफ की कमी है.

वर्ष 2015 में जारी की गई ये रिपोर्ट सीएजी ने सेना के गोला-बारुद की कमी और उसके रख-रखाव पर जारी की थी. सीएजी ने इसके लिए सेना के आधा दर्जन से भी ज्यादा डिपुओं की पड़ताल की थी. सभी आयुध डिपो में कमोबेश यही हालात थे. खुद सीएजी ने अपनी इस रिपोर्ट में माना है कि एम्युनेशन डिपो में गोला-बारुद का भंडार होता है इसलिए ये हमेशा आग जैसी दुर्घटनाओं के जोखिम में काम कर रहे हैं. यानि सीएजी की रिपोर्ट सही साबित हुई है. 

आपको बताते चलें कि नागपुर से करीब 115 किलोमीटर की दूरी पर महाराष्ट्र के पुलगांव का ये केंद्रीय आयुध भंडार सेना का सबसे बड़ा और अपने-आपका एक मात्र भंडार है. माना जाता है कि ये एशिया का दूसरा सबसे बड़ा आयुध सेंटर है. यहां पर तोप और टैंको के गोला-बारूद के अलावा लैंड-माईंस, एंटी-टैंक माईंस, राईफल और बंदूकों के कारतूस भी स्टोर किए जाते हैं. पुलगांव का सेंट्रल एम्युनेशन डिपो सेना के लिए कितना जरुरी और संवदेनशील होता है इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि मिसाइल तक यहां रखी होती हैं. देश की अलग-अलग ऑर्डिनेंस फैक्ट्री से जो गोला बारूद आता है वो पहले यहीं लाकर रखा जाता है. इसके बाद सेना की जरूरत के हिसाब से यहां से गोला-बारुद कोर, कमांड और बाॅर्डर पर भेजा जाता है.

सेना के पास पुलगांव के केंद्रीय आयुध भंडार के अलावा 15 फील्ड एम्युनेशन डिपो स्टोर हैं. इसके अलावा हर कंपनी का अपना एम्युनेशन डिपो होता है जहां 2-3 दिन का गोला बारूद स्टोर होता है. इसके अलावा 17 सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो और बड़ी तादाद में छोटे छोटे डिपो होते हैं.

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में आयुध भंडारों और उनके रखरखाव करने वाली एजेंसियों के काम-काज पर भी बड़े सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि सेना की हर कमांड की फायर स्टेशन कमेटियां की आखिरी बार 2002 और 2003 में बैठक हुई थी. रिपोर्ट में कहा गया कि डायरेक्टर जनरल ऑफ ऑर्डिनेंस सर्विस (डीजीओएस) ने 2011 में खुद माना था कि अग्नि-शमन उपकरण के जोखिम और उनके अंतर्गत आने वाले डिपोंओं की फायर स्टेशन कमेटियों को अपग्रेड करने की जरुरत है लेकिन 2013 तक भी अधिकतर भंडारों में इसको अंतिम रुप नहीं दिया जा सका.

सीएजी ने सेना के आयुध भंडारों पर अपनी रिपोर्ट पिछले साल यानि वर्ष 2015 में जारी की थी. लेकिन रिपोर्ट में साफ है कि गोला-बारुद भंडार में आग जैसी दुर्घटनाओं से लड़ने के लिए जरुरी ना केवल जरुरी साजों-सामान और कर्मचारी हैं बल्कि इच्छाशक्ति की भी कमी है. क्योंकि पुलगांव में लगी आग कोई पहली नहीं है. इससे पहले पुलगांव के आयुध भंडार में वर्ष 2005 में भी आग लगी थी. उस दौरान करीब 126 मैट्रिक-टन (एमटी) गोला बारूद नष्ट हुआ था, जिसकी कीमत करीब 22 करोड़ थी.

पुलगांव के केंद्रीय आयुध डिपो में लगी आग के अलावा वर्ष 2000 में भरतपुर स्थित आयुद्ध भंडार में आग लगी थी जिसमें 387 करोड़ का नुकसान हुआ था और करीब 13 हजार मैट्रिक टन गोला बारूद नष्ट हुआ था. इसके अलावा 2001 में पठानकोट और गंगानगर भंडार में आग लग चुकी है. 2002 मे डपार और जोधपुर में, और 2007 में खुंडरू (जम्मू-कश्मीर) के डिपो में आग की घटना सामने आ चुकी है. इन सभी दुर्घटनाओं की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में आग का कारण अचानक चिंगारी, शोर्ट-सर्किट, टेस्टिंग और रिपेयर के दौरान धमाका होना पाया गया है. यानि एक छोटी सी गलती से एक बड़ा हादसा हो सकता है. वो भी तब जबकि सेना गोला-बारुद की कमी से जूझ रही है.

सीएजी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ था कि सेना के पास करीब 20 दिन तक युद्ध लड़ने का ही गोला-बारुद मौजूद है. जबकि मिनमम वॉर रिर्जव यानि न्यूनतम 40 दिन का गोला-बारुद सेना के पास हमेशा मौजूद होना चाहिए. ऐसे में पुलगांव जैसी आग की दुर्घटनाओं में सेना का वॉर-रिर्जव और कम हो जाता है. जो हमारी सेना के लिए बेहद चिंता का कारण है.

जानकारी के मुताबिक, मारे गए 19 लोगों में से 13 रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करने वाले फायर-सर्विस के कर्मचारी थे. सेना के मुताबिक, इन लोगों के चलते ही आग पुलगांव के डिपो में सिर्फ एक शेड में ही लगी थी. वहां पर इस तरह के करीब 30 शेड हैं. अगर आग दूसरे शेडों में फैल जाती तो स्थिति और भयावह हो सकती थी. लेकिन इन 13 कर्मचारियों ने आग को एक शेड से आगे नहीं बढ़ने दिया, और आग से लड़ते-लड़ते अपनी जान न्यौछावर कर दी. खुद डिपो के डिप्टी कमांडेंट कर्नल ध्यानेंद्र सिंह बुरी तरह जख्मी हो गए.

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