Friday, June 24, 2016

जल्द पूरा होगा राष्ट्रीय युद्ध-स्मारक का सपना !


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक, नेशनल वॉर मेमोरियल यानि युद्ध-स्मारक के लिए रक्षा मंत्रालय जल्द ही ग्लोबल एड यानि विज्ञापन निकालने वाला है. इस विज्ञापन के जरिए मंत्रालय देश-विदेश के आर्किटेक्ट, कंपनियां से युद्ध स्मारक के डिजाइन के लिए सुझाव मंगाएगा. खास बात ये है कि इस डिजाइन के लिए कोई साधारण व्यक्ति भी अपनी राय और सुझाव दे सकता है. पीएम मोदी ने सेना और रक्षा मंत्रालय को आदेश दिया था कि अगले दो साल यानि 2018 तक वॉर मेमोरियल और म्यूजियम बनकर तैयार हो जाना चाहिए. आदेश ये भी दिया है कि ये युद्ध स्मारक विश्व-स्तर का होना चाहिए.

नई प्लान के मुताबिक, युद्ध-स्मारक मौजूदा इंडिया गेट के बेहद करीब बनाया जायेगा. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदेश दिया है कि 
ये वाॅर-मेमोरियल वर्ल्ड-क्लाॅस होना चाहिए. यानि जो भी विदेशी पर्यटक एक बार भारत आए तो वो इसे देखा बिना अपने देश ना लौटे. लेकिन इस बात का खास ध्यान रखा जायेगा कि इंडिया-गेट का सम्मान किसी भी तरह से कम ना होने पाए. साथ ही युद्ध-स्मारक बनने के बाद भी इंडिया-गेट का महत्व किसी भी तरीके से कम नहीं होगा.

युद्ध-स्मारक के साथ-साथ वॉर-म्यूजियम भी बनाया जायेगा. ये म्यूजियम इंडिया गेट के बेहद करीब प्रिंसेज-पार्क में बनाया जायेगा. इस म्यूजिमय में वॉर-ट्रॉफी यानि दुश्मन देशों से जीते हुए हथियार, टैंक और तोप रखे जायेंगे. साथ ही भारतीय सेना के गौरवपूर्ण इतिहास को भी यहां दर्शाया जायेगा. 15 एकड़ में फैला प्रिंसेज-पार्क एक ऐतिहासिक जगह. अंग्रेजों के समय में ये सैनिकों के बैरक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. कहते हैं कि देश आजादी की घोषणा के बाद सबसे पहले तिरंगा यहीं फहराया गया था.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब भी किसी देश की यात्रा पर जाते हैं तो वहां के युद्ध स्मारक और शहीदों को नमन करना कभी नहीं भूलते. हाल ही में जब वे अमेरिका की यात्रा पर गए तो सबसे पहले उन्होनें अमेरिका के वॉर-मेमोरियल पर अपना सर नत-मस्तक किया. यही नहीं अमेरिका कांग्रेस के साझा-सत्र संबोधन में सबसे पहले उन्होनें वीर शहीदों को ही याद किया. लेकिन अपने देश में पीएम मोदी को वॉर-मेमोरियल की कमी हमेशा खलती रही है. यही वजह है कि दिल्ली में सत्ता संभालते ही पीएम मोदी ने सबसे पहले जिन महत्वकांक्षी योजनाओं की घोषणा की उनमें नेशनल वॉर मेमोरियल भी सबसे पहली थी.

मोदी सरकार के पहले ही बजट में वॉर-मेमोरियल और म्यूजियम के लिए अलग से 500 करोड़ रूपये की एक बड़ी राशि मुकरर कर दी गई. घोषणा ये भी की गई कि देश का युद्ध-स्मारक इंडिया गेट पर बनाया जायेगा. और अब करीब दो साल बाद वो घड़ी आ गई है जब युद्ध-स्मारक के लिए रक्षा मंत्रालय ग्लोबल एड यानि युद्ध-स्मारक के डिजाइन और स्ट्रक्चर के लिए विज्ञापन देने जा रही है. जल्द ही ये विज्ञापन दुनियाभर में जारी किया जायेगा. इसके जरिए कोई भी कंपनी, ग्रुप या फिर व्यक्ति भारत में तैयार होने वाले वॉर-मेमोरियल के लिए अपनी राय और डिजाइन दे सकता है. उसके बाद रक्षा मंत्रालय और सेना तय करेगी कि देश के पहले विश्व-स्तरीय युद्ध-स्मारक और म्यूजियम का डिजाइन कैसा होगा.

दीगर है कि पिछले 55 सालों से देश के युद्ध-स्मारक की मांग अधर में अटकी हुई है. पहली बार सेना ने वॉर-मेमोरियल की मांग वर्ष 1960 में की थी. लेकिन किसी ना किसी कारण ये मांग पूरी नहीं हुई. कभी गृह मंत्रालय तो कभी सुरक्षा-कारणों और ट्रैफिक-मैनेजमेंट को लेकर दिल्ली पुलिस इस युद्ध-स्मारक की मांग में अडंगा अटकाती रही. साथ ही कभी इस बात पर भी सहमति नहीं बन पाई कि आखिर देश का युद्ध-स्मारक कहां बनेगा. कभी यमुना-बैंक तो कभी रिज, तो कभी धौला-कुआं में वॉर-मेमोरियल बनाने का प्रस्ताव रखा गया. लेकिन सेना, रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, दिल्ली पुलिस और शहरी विकास मंत्रालय में आम-सहमति कभी नहीं बन पाई.

वर्ष २०१२ में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने नेशनल वॉर मेमोरियल को इंडिया गेट पर बनाने के लिए इसलिए मना कर दिया।था क्योंकि उन्हें लगता था की इसके यहाँ बनने से इंडिया गेट की खूबसूरती काम हो जाएगी और टूरिस्ट यहाँ नहीं आएंगे.

शुरूआत में वाॅर-मेमोरियल बनाने की जिम्मेदारी शहरी विकास मंत्रालय को दी गई थी. लेकिन जब सालोसाल तक प्रोजेक्ट एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा तो सेना और रक्षा मंत्रालय को इसको तैयार करने की जिम्मेदारी दे दी गई. प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने सख्त आदेश दिए हैं कि वाॅर-मेमोरियल अगले दो साल यानि 2018 तक बनकर तैयार हो जाना चाहिए. पहले युद्ध-स्मारक बनाने के लिए पांच साल का समय था. साफ है कि पीएम चाहते हैं कि उनकी सरकार के पहले कार्यकाल से पहले ही वाॅर-मेमोरियल दुनिया के सामने हो.

देश की राजधानी, दिल्ली के बीचो-बीच अंग्रेजों ने इंडिया-गेट को युद्ध-स्मारक के तौर पर बनवाया था. लेकिन सेना का मानना था कि इंडिया-गेट को ब्रिटिश-सरकार ने पहले विश्व-युद्ध के शहीदों की याद में तैयार कराया था. इसलिए उसे सही मायनों में भारतीय सेना या यूं कहे हैं कि देश का युद्ध-स्मारक नहीं माना जा सकता है. ये बात जरुर है कि 1971 के पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में यहां पर एक जलती हुई मशाल जरुर लगाई गई. ये मशाल चौबीसों घंटे और 12 महीने जलती रहती है. तीनों सेनाओं के जवान दिन-रात इसकी रखवाली करते हैं. अभी तक शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिये सेना के बड़े अधिकारियों से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति यहीं आते हैं. अंग्रेजों ने पहले विश्व-युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए इंडिया-गेट के रुप में युद्ध-स्मारक तैयार कराया था. बाकयदा युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के नाम तक इंडिया-गेट पर उकरे गए थे.

लेकिन आजादी के बाद से अबतक करीब 21 हजार भारतीय सैनिक अलग-अलग युद्ध और ऑपरेशन्स में अपनी जान देश पर न्यौछावार कर चुके हैं. लेकिन उनकी याद में अभी तक देश को अपना वॉर-मेमोरियल नहीं मिल पाया है. मोदी सरकार की घोषणा के बाद अब जाकर युद्ध-स्मारक को बनाने को लेकर सेना में नया जोश आ गया है. और इसको बनाने को लेकर तैयारियां जोरो-शोरों से शुरु हो गईं हैं.

सेना को वॉर-मेमोरियल बनाने में तो कोई  दिक्कत नहीं आने वाली है. क्योंकि इंडिया-गेट और उसके आसपास का एरिया पहले से ही रक्षा मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय के अधीन है. लेकिन वाॅर-म्यूजियम बनाने में सरकार को खासी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि प्रिंसेज-पार्क में जहां ये युद्ध-संग्रहालय बनाया जाना हैं वहां पर अभी सेना का ट्रांजिट-हॉस्टल है. और उसके साथ ही यहां पर दो सौ (200) से भी ज्यादा परिवार भी पिछले 30-40 सालों से रहते हैं.

प्रिंसेज पार्क के हॉस्टल में काम करने वाले ये सभी परिवार सिविलयन हैं. इन परिवारों के लिए बाकयदा यहां स्टॉफ क्वार्ट्स बने हुए हैं. करीब में ही दो दर्जन दुकानें भी बन गई हैं. इन परिवारों को हटाना और दुकानों को तोड़ना सेना के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. यही वजह है कि शहरी विकास मंत्रालय ने भी रक्षा मंत्रालय को साफ कर दिया है कि इस जमीन से किसी भी तरह का अवैध कब्जा हटाने कि जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की ही है.

यहाँ  रहने वाले लोगों की इस मामले पर प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो उन्हे ये जानकर बेहद निराशा हुई कि सरकार उन्हे यहां से विस्थापित करने वाली है. उनका मानना है कि वे यहां आजादी के पहले से यहां रह रहे हैं. ना केवल उनके बाप-दादाओं ने अंग्रजों की सेवा की बल्कि वाॅर-मेमोरियल की घोषणा होने तक वे सेना के बड़े अधिकारियों की सेवा में थे. उनके घरों से लेकर सीएसडी कैंटीन तक में भी वे उनकी सेवा करते थे. लेकिन क्योंकि मामला देश के शहीदों और गौरव से जुड़ा है तो वे ये जगह खाली करने के लिए तो तैयार हैं लेकिन सरकार को उनके पुर्नवास के लिए जरूर सोचना चाहिए.


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