Thursday, December 31, 2015

पोर्न साइट्स ना देखें जवान !

वायुसेना के एयरमैन के के रंजीत (रंजीथ) की गिरफ्तारी के बाद सेना में हड़कंप मच गया है. फेसबुक और दूसरे सोशल-नेटवर्किंग साइट्स के जरिए सैन्यकर्मी लगातार विदेशी खुफिया एजेंसियों के जाल मे फंसकर देश की सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारी लीक कर रहें हैं।जिसके चलते ही सेना ने जवानों और अधिकारियों के लिए एक एडवायज़री जारी की है. 

इस एडवायज़री में बताया गया है कि सोशल-नेटवर्किंग साइट्स को किस तरह इस्तेमाल करें कि वे दुश्मनों की खुफिया एजेंसियों के हाथों के मोहरें ना बन जाएं. वहीं सेना इस बात से परेशान है कि जवान चंद पैसों की खातिर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने के लिए तैयार है. एडवायज़री में साफ लिखा है कि सैन्यकर्मी फेसबुक और दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर पोर्न-साइट्स कदापि ना देखें.

हालांकि सेना द्वारा जारी एडवायज़री में ये भी लिखा है कि हनीट्रैप तो दुश्मन की खुफिया एजेंसियों के लिए पहले से ही एक बड़ा हथियार रहा है लेकिन पैसों का प्रलोभन काफी नया ट्रैंड है. इसलिए सैन्यकर्मियों को फेसबुक इत्यादि पर किसी अवार्ड या इनाम वाले विज्ञापनों पर क्लिक ना करें. उदाहरण देते हुए लिखा है कि जिस एड पर लिखा हो ‘आपने एप्पल-फोन जीता है’ उसे बिल्कुल ना क्लिक करें. 

गौरतलब है कि आरोपी एयरमैन रंजीत को वायुसेना की संवदेनशील जानकारी फेसबुक-फ्रैंड को मुहैया कराने के एवज में पैसे मिले थे. दिल्ली पुलिस की क्राइम-ब्रांच के मुताबिक, ये फेसबुक-फ्रैंड कोई और ना ही बल्कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी, आईएसआई का ही कोई जासूस था जो ब्रिटेन की महिला-पत्रकार बनकर उससे एक मैगजीन के लिए वायुसेना से जुड़ी जानकारी ले रहा था. इसके लिए रंजीत को 30 हजार रुपये भी दिए गए थे. 

दिशा-निर्देश में साफ लिखा है कि सोशल-नेटवर्किंग साइट्स सिर्फ प्राईवेट इस्तेमाल के लिए हैं. उनपर किसी भी तरह से सैन्यकर्मी अपनी ऑफिशियल-पहचान जैसे रैंक, पोस्टिंग, बटालियन, मिलेट्री स्टेशन और मूवमेंट की जानकारी ना दें.

साथ ही फेसबुक और व्हाटसऐप जैसी साइट्स पर अपनी वर्दी की फोटो कदापि ना डालें. अगर सिविल-ड्रैस में फोटो डाल भी रहें हैं तो फोटो के बैकग्राउंड में सेना का निशान (इनसिगनियां या क्रेस्ट), कैंट, मिलेट्री-स्टेशन और हथियारों ना दिखाएं दें.

सेना की एडवायज़री में साफ लिखा है कि सैन्यकर्मी अपने परिवार और दोस्तों को भी इस बात के लिए आगाह कर दें कि सोशल-साइट्स में बातचीत करते हुए उनसे उनके रैंक, पोस्टिंग और मिलेट्री-मामलों से जुड़ी बातचीत ना करें.

साथ ही निर्देश ये भी है कि किसी फेसबुक इत्यादि पर अनजान व्यक्ति की फ्रेंड-रिक्कयूस्ट (मित्रता)  ना स्वीकार करें.

एडवायज़री में ये भी लिखा है कि जिस कम्पयूटर या लैपटॉप पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं उसमें सेना से जुड़ी जानकारियां ना रखें. 

सेना की सोशल-मीडिया को लेकर जारी पाॅलिसी में भी लिखा है कि सैन्यकर्मी अपनी किसी भी परेशानी को सोशल-साइट्स पर बिल्कुल ना साझा करें. और ना ही सेना और सरकार से जुड़ी किसी पॉलिसी या योजना की आलोचना सार्वजिनक तौर पर सोशल-साइट्स पर ना करें. ये भी लिखा गया है कि सेना, सशस्त्र-बलों या सरकार से जुड़े किसी भी ऑन-लाइन पोल में हिस्सा ना लें और ना ही इस तरह के किसी ग्रुप से जुड़े.

डीजीएमआई (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ मिलेट्री-इंटेलीजेंस) की पॉलिसी का हवाले देते हुए कहा गया है कि अगर किसी सैन्यकर्मी ने इसका उल्लंघन किया तो उसके खिलाफ आईपीसी की ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट और मिलेट्री-कानून के जरिए कड़ी कारवाई की जायेगी.

गौरतलब है कि एयरमैन के के रंजीत का ये पहला ऐसा मामला नहीं है जो फेसबुक और दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी का एजेंट बनकर संवदेशनशील जानकारी लीक कर रहा था.

 कुछ महीने पहले सिकंदराबाद में तैनात सेना का एक जवान ठीक इसी तरह से अपनी एक फेसबुक फैंड को सेना की आर्मड-बिग्रेड और दूसरे मूवमेंट की अहम जानकारियां साझा करते हुए गिरफ्तार किया गया था. बाद में पता चला था कि जिसे वो महिला फेसबुक फ्रेड समझ रहा था, दरअसल, वो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का ट्रैप था. उसे भी रंजीत की तरह ही सेना से जुड़ी जानकारी मुहैया कराने के एवज में पैसा दिया जा रहा था.

Tuesday, December 29, 2015

14 जनवरी होगा 'वेटरेन्स-डे': पूर्व-यौद्धाओं को सम्मान


पूर्व-सैनिकों को सम्मान देने की मंशा से सरकार ने अब हर साल 14 जनवरी को 'वेटरेन्स-डे' मनाने का निश्चय किया है. वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) पर छीछालेदर करा चुकी सरकार, भूतपूर्व-सैनिकों को भरसक मनाने की कोशिश कर रही है। उसी कड़ी में ये कदम उठाया गया है.

बताते चले कि अमेरिका और कई दूसरे देशों मे काफी पहले से वेटरेन्स-डे मनाया जाता है. अमेरिका मे हर साल 11 नबम्बर का दिन 'पूर्व-यौद्धाओं' के नाम होता है. सरकारी संस्थानों के साथ साथ स्कूल भी बंद रहते हैं. इससे स्कूली बच्चों में अपनी सेना और (पूर्व) सैनिकों के प्रति सम्मान बढ़ता है.

रक्षा मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक, देशभर मे 14 जनवरी को 'पूर्व-सैनिक दिवस' मनाने के साथ साथ पूर्व-सैनिकों के लिए सेना में अब एक अलग डायरेक्टरेट (निदेशालय) बनाया गया है. थलसेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग सेना दिवस से ठीक एक दिन पहले यानि 14 जनवरी को ही इस विभाग का विधिवत उदघाटन करेंगे. सेना दिवस 15 जनवरी को मनाया जाता है.

लेकिन हमारे देश में वेटरेन्स डे किस तरह मनाया जायेगा, इसके बारे में अभीतक कोई खुलासा नहीं किया गया है. क्या अमेरिका की तर्ज पर सरकारी संस्थान और स्कूल बंद होगा, इसकी उम्मीद हालांकि कम लगती है. लेकिन थलसेना, वायुसेना और नौसेना के करीब 25 लाख पूर्व-सैनिकों को सम्मान देने की पहल मोदी सरकार ने शुरु कर दी है. हमारे देश के यौद्धाओं ने प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर 1948, 62, 65, 71 और कारगिल की लड़ाई कर में अपने बहादुरी के झंड़े गाड़े हैं, लेकिन वे अभी भी देश की बाकी जनता से अलग-थलग दिखाई पड़ते हैं. इस कोशिश से (वेटरेन्स डे के जरिए) उन्हे देश की मुख्यधारा में लाने का अवसर सरकार देने जा रही है. 

गौरतलब है कि सेना प्रमुख हर महीने रिटायर होने वाले अधिकारियों से एक बार जरूर मिलते हैं और उनसे उनके अनुभव के बारे में जानते हैं. साथ ही उनके लंबी सेवा के अनुभव के चलते सेना की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने की जानकारी भी लेते हैं. लेकिन सेना में इस नए विभाग के बन जाने से पूर्व-सैनिक अपनी समस्याएं को सीधे सेना के जरिए सरकार तक पहुंचा सकेंगे.

पिछले छह महीने सरकार, सेना और भूतपूर्व-सैनिकों के नजरिए से कुछ ठीक नहीं रहा है. जून के महीने से ही पूर्व-सैनिक राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर वन रेंक वन पेंशन के लिए आमरण आनशन पर बैठ गए थे. सरकार द्वारा ओआरओपी योजना की घोषणा किए जाने के बाद भी कुछ पूर्व-सैनिक संगठन अभी भी धरने पर बैठे हुए हैं. उन्हे अभी भी सरकार की इस योजना मे कई खामियां दिखाई दे रही हैं. इस योजना को लागू करने में भी मौजूदा थलसेना प्रमुख और पूर्व सेनाध्यक्षों ने अहम भूमिका निभाई थी. सभी ने सरकार और पूर्व-सैनिकों के बीच मध्यस्ता की भूमिका निभाई थी.

यही वजह है कि सरकार ने पूर्व-सैनिक को मनाने के लिए 'वेटरेन्स-डे' मनाने का निश्चय किया और एक अलग से विभाग बनाया है. यहां ये बात भी दीगर है कि रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत भी एक अलग से पूर्व-सैनिकों के लिए अलग विभाग है लेकिन वो बाबूओं (ब्यूरोक्रेट्स) के अधीन है. इसीलिए सेना ने अपना अलग से वेटरेन्स-डायरेक्टरेट बनाया है.

Sunday, December 27, 2015

ईमान में तब्दील हो गई है भारत-अफगानिस्तान की दोस्ती !



         
मिलेट्री-डिप्लोमेसी: मी-25 अटैक हेलीकॉप्टर की भेंट
         
यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी... जैसे ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अफगानिस्तान की नए-नवेली संसद की बिल्डिंग में ये पंक्तियां सुनाईं, पूरा सदन तालियों की गड़गड़हाट से गूंज उठा. केवल अफगानिस्तान की संसद ही नहीं दुनियाभर में जिसने भी ये सुना, वो भाव-विभोर हो उठा. भारत में तो इस गाने को महज महानायक अमिताभ बच्चन की पहली सुपरहिट फिल्म, जंजीर के एक गाने के तौर पर जाना जाता था. लेकिन प्रधानमंत्री ने इस गाने को भारत और अफगानिस्तान की दोस्ती में एक नया आयाम जोड़ दिया है. 

        जंजीर फिल्म में अफगान शेरखान का किरदार निभा रहे प्राण की तरफ से एंग्रीयंग-मैन के लिए दोस्ती की एक नायाब मिसाल पेश की जाती है. लेकिन इंसपेक्टर की भूमिका में अमिताभ बच्चन की तरफ से वैसी दोस्ती देखने को नहीं मिलती जैसी अफगान पठान की तरफ से थी. निर्देशक प्रकाश मेहरा की इस फिल्म की तरह ही भारत और अफगानिस्तान की दोस्ती भी दिखाई देती थी. अफगानिस्तान की तरफ से लगातार दोस्ती का हाथ बढ़ाया जाता था, लेकिन भारत ना जाने क्यों दोस्ती में हाथ पीछे खीचता दिखाई देता था. तालिबान के सत्ता से उखड़ने के बाद और लोकतांत्रिक अहमद करज़ई (जिन्होनें भारत में ही पढ़ाई की थी) की सरकार आने के बाद से तो अफगान नेतृत्व हमेशा भारत की तरफ मुंह बाये खड़ा दिखाई देता था. लेकिन भारत ना जान क्यों पीछे खड़ा दिखाई देता था. लेकिन मोदी की काबुल यात्रा ने सबकुछ बदल दिया है. भारत ने ना केवल दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया बल्कि दोस्ती को ईमान से जोड़ दिया (जैसा कि गाने के पंक्ति के बोल हैं, यारी है ईमान मेरा...). अगर पीएम नरेन्द्र मोदी की अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घानी के साथ गर्मजोशी से गले मिलते तस्वीरें देखें तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है.

      भारत के अफगानिस्तान से दोस्ती में हाथ पीछे खींचने के पीछे कई कारण थें. पहला था वहां कि अस्थिर सरकार. लंबे समय तक क्रूर और बर्बर तालिबान सरकार के चलते भारत ने अफगानिस्तान से मुंह मोड़ सा लिया था. हालांकि अफगान शरर्णाथियों का भारत में आने जारी था—दिल्ली के लाजपत नगर का एक हिस्सा तो पूरा अफगान शरर्णाथियों से पटा पड़ा है. तालिबान से पहले कुछ समय तक नजीबुद्दौला सरकार से भारत के अच्छे संबंध थे. लेकिन रशिया के अफगानिस्तान में रहने के समय से ही (80 के दशक में) वहां हिंसा के हालात बने हुए थे.

       अस्थिर सरकार और तालिबान के वर्चस्व के साथ-साथ हमारे जेहन में 1999 के कंधार हाईजैंकिग की तस्वीरें अभी तक जिंदा थीं. जब काठमांडू से इंडियन-एयरलांइस के विमान आईसी-814 को अपहरण कर आंतकी अफगानिस्तान ले गए थे और जीप में घूमते तालिबानियों को लोगों ने साफ-साफ देखा था. अमेरिका (और नाटो) फोर्सेज़ ने तालिबान सरकार को जैसे तैसे करके सत्ता से तो हटाया लेकिन हिंसा अभी भी जारी है. कई प्रांतों में अभी भी तालिबान का खौफ जारी है. कई बार भारत की काबुल स्थित एंबेसी और कंधार, हेरात, जलालाबाद और मज़ार-ए-शरीफ कोंसोलेट पर हमले भी हो चुके हैं—वो बात और है कि हरबार हमला नाकाम रहा. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में आह्वान किया कि अफगानिस्तान के युवा आईटी यानि इंटरनेशनल टेरेरिज्म को छोड़कर इंफोरमेशन टेक्नोलॉजी की तरफ ध्यान दें.
अफगान संसद को संबोधित करते पीएम मोदी

       इतिहास के पन्ने पलटें तो भारत और अफगानिस्तान के बीच नजदीकियां तो रहीं लेकिन कहीं ना कहीं खटास जरुर रह जाती है. महाभारत-युद्ध के लिए अगर कोई बहुत हद तक जिम्मेदार था तो वो था दुर्योधन का मामा, शकुनि. लोग ये तो जानते हैं कि दुर्योधन की मां और शकुनि की मां का नाम गांधारी था. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि गांधारी कहां की राजकुमारी थी. गांधारी अफगानिस्तान के ही गांधार-नरेश की बेटी थी (और शकुनि बेटा था). गांधार आज के अफगानिस्तान का ही हिस्सा था. महाभारत-काल में गांधार, आर्यवर्त (यानि अखंड-हिंदुस्तान) का ही हिस्सा था. मध्यकालीन युग में अगर हमारे देश में बर्बर आक्रमण की शुरुआत किसी ने की तो वो अफगान-कबीलाई, महमूद गज़नी और मौहम्मद गौरी (घुर्द) ने ही की थी.

      लेकिन जैसा खुद पीएम मोदी ने कहा कि हमें बुलेट को बैलैट से हराना है. अफगानिस्तान में जबतक लोकतंत्र बहाल नहीं होगा, तबतक वहां हालात में सुधार आना मुश्किल है. यही वजह है कि दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत ने अफगानिस्तान की संसद की इमारत का निर्माण किया. इसी संसद की बिल्डिंग का उद्घाटन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रशिया से लौटते हुए काबुल पहुंचे थे.
अफगान संसद दारुल-ए-अमन

     करज़ई शासन के दौरान भारत ने मदद के तौर पर अफगानिस्तान को जीप, ट्रक और नॉन-कॉम्बेट हेलीकॉप्टर से ज्यादा कुछ नहीं दिया. अफगान सेना के कैडेट जरुर हमारे देश में आकर ट्रैनिंग लेते थे. अभी भी हर साल आईएमए (इंडियन मिलेट्री एकेडमी) से अफगान कैडेट भी पास होते हैं. सड़क बनाने का काम भी भारत की बीआरओ (बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन) ने किया है. लेकिन अफगानिस्तान भारत से कुछ ज्यादा की उम्मीद रखता था. वहीं भारत को आशंका थी कि अगर अफगानिस्तान को ज्यादा मदद की तो पाकिस्तान नाराज हो सकता है. लेकिन मोदी सरकार ने आते ही पुरानी सरकारों की डिप्लोमेसी बदल दी. मोदी सरकार ने मिलेट्री-डिप्लोमेसी शुरु की है. इसके जरिए मित्र-देशों को कॉम्बेट मशीन देने में भी कोई गुरेज नहीं है. यही वजह है कि भारत ने पहली बार अफगानिस्तान को तीन (03) मी-25 अटैक हेलीकॉप्टर गिफ्ट के तौर पर दे रहा है. पहला हेलीकॉप्टर खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान को भेंट स्वरुप दिया है—हेलीकॉप्टर के साथ तस्वीरें भी जारी हुईं. माना जा रहा है कि भारत आने वाले दिनों में अफगानिस्तान को और मदद भी दे सकता है, क्योंकि अब तो दोस्त ही जिंदगी है ( यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी...)
यार मेरी जिंदगी: गले मिलते मोदी और अशरफ घानी
      लेकिन काबुल से भारत लौटते हुए पीएम मोदी अचानक लाहौर में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने पहुंच गए. कहा तो ये गया कि ये सरप्राइज-डिप्लोमेसी थी या बर्थडे-डिप्लोमेसी थी. लेकिन जानकारों की मानें तो मोदी सोच-समझकर काबुल से लौटते हुए पाकिस्तान गए थे. एक तो पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए और दूसरा अफगानिस्तान में दोस्ती की पींग पाकिस्तान को अनदेखा कर नहीं बढ़ाई जा सकती. जैसा कि कोलकता के प्रतिष्ठित अखबार ने अपनी हैडलाइन में लिखा था, इफ यू सैन्ड गन्स टू अफगानिस्तान, यू मस्ट कैरी रोज़ेज़ टू पाकिस्तान यानि अगर अफगानिस्तान गन (अटैक हेलीकॉप्टर) भेज रहे हो तो पाकिस्तान गुलाब लेकर जाना पड़ेगा.

       अफगानिस्तान में पाकिस्तान का बहुत ज्यादा दखल है. रुस (उस वक्त यूएसएसआर) को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद ली थी. तबसे पाकिस्तान का अफगानिस्तान में बेहद दबदबा है. पाकिस्तान के दखल के चलते ही हाल ही में अफगान खुफिया एजेंसी के मुखिया ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. तालिबान को अगर किसी ने मान्यता दी थी, उन चंद देशों में पाकिस्तान भी शामिल था. वो बात और है कि इन्ही तालिबानियों ने इनदिनों पाकिस्तान में आंतक मंचाया हुआ है.

         प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काबुल यात्रा के दो दिन बाद ही पाकिस्तानी सेना के मुखिया राहिल शरीफ अफगानिस्तान दौरे पर पहुंच गएं. किसी को भी ये बात सहज समझ आ सकती है कि मोदी के दौरे के बैक टू बैक राहिल शरीफ का दौरा क्या मायने रखता है. वो भी तब जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख, राहिल शरीफ दूसरे शरीफ (प्रधानमंत्री नवाज शरीफ) से अपने देश की अवाज में ज्यादा लोकप्रिय होते जा रहे हैं. यानि पाकिस्तान इतनी आसानी से भारत और अफगानिस्तान की दोस्ती को मजबूत नहीं होने देगा. इसका भूगौलिक कारण भी एक सच्चाई है. भारत को अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान से गुजरना ही पड़ेगा.
                   

एयर डिफेंस मजबूत करेगी एस-400 मिसाइल प्रणाली




लांचिग: रशिया की एस-400 ट्रायूम्फ मिसाइल
हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रशिया की यात्रा पर गए तो सबसे ज्यादा जिस रक्षा सौदे की चर्चा हुई, वो था एस-400 मिसाइल सिस्टम. हालांकि दोनों देशों के साझा बयान (ज्वाइंट इस्टेटमेंट) में इसका जिक्र नहीं था, लेकिन जानकारी के मुताबिक, ये सौदा दोनों देशों के बीच लगभग तय है सिर्फ सौदे की कीमत को लेकर दोनों देशों के विशेषज्ञों को माथा-पच्ची करनी है और अगले एक साल तक भारत को ये मिसाइल प्रणाली मिल सकती है.

भारत एस-400 की पांच (05) फायरिंग यूनिट रशिया से खरीद रहा है. माना जा रहा है कि दो-दो यूनिट पाकिस्तान और चीन सीमा पर तैनात की जायेंगी. एक फायरिंग यूनिट या तो दक्षिण भारत में कहीं तैनात की जायेगी या फिर राजधानी दिल्ली के आस-पास. एस-400 मिसाइल को ट्रायूम्फ के नाम से भी जाना जाता है और इसका नाटो नाम ग्राऊलर है. रशिया की सरकारी संस्थान, अल्माज़-अंतऐ इस मिसाइल सिस्टम का निर्माण करती है.

एस-400 को मिसाइल समझने की गलती ना करें. एस-400 दरअसल एक मिसाइल-प्रणाली है. एक एंटी-मिसाइल सिस्टम है जो एयर-डिफेंस यानि हवाई सीमा की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल की जाती है. ये किसी भी संस्थान (जैसे राजधानी दिल्ली के साउथ ब्लॉक को सुरक्षा प्रदान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है) या फिर हवा में लड़ाकू विमानों का सुरक्षा प्रदान कर सकता है. ये सिस्टम दुश्मन की मिसाइल, लड़ाकू-विमान और ड्रोन से लड़ने के लिए तैयार किया जाता है. अगर दुश्मन ने हवाई हमला करने की कोशिश की तो ये सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है और हवा में ही दुश्मन की मिसाइल या लड़ाकू विमान को नेस्तानबूत कर देता है. हाल ही में टर्की ने रशिया के फाइटर-प्लेन को सीरिया की सीमा के करीब मार गिराया, तो रुस ने इस मिसाइल प्रणाली को वहां तैनात कर दिया. गौरतलब है कि रशिया आईएसआईएस के खिलाफ सीरिया में हवाई हमले कर रहा है.
एस-400 मिसाइल सिस्टम
 अभी तक भारत में वायुसेना का आधुनिक फाइटर-जेट सुखोई कुछ हद तक इस काम को करता है. यानि बिओंड विजुयल रेंज में दुश्मन का कोई विमान या ड्रोन आता है तो सुखोई उसे मार गिराने में सक्षम है. लेकिन अगर इतनी दूर से दुश्मन की कोई मिसाइल आ जाए तो उसके लिए सुखोई भी कुछ नहीं कर सकता. इसीलिए भारत ने रशिया से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने का निश्चय किया है.

एयर डिफेंस को समझने के लिए इस ग्राफिक्स को देखें. ये सिस्टम चार चरणों में काम करता है.
ग्राफिक्स: एयर डिफेंस सिस्टम
1. एलआरसैम यानि लांग रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—भारत ने हाल ही में रशिया से इसी कैटेगेरी की 'एस-400 ट्रायूम्फ' मिसाइल का सौदा किया है. जिसकी रेंज करीब 400 किलोमीटर है. ये मिसाइल सिस्टम सिर्फ अमेरिका और रूस के पास है. चीन ने हाल ही में रशिया से खरीदा है.

2.
एमआरसैम यानि मीडियम रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—इसकी रेंज करीब 100 किलोमीटर है. भारत बराक नाम की इस मिसाइल प्रणाली को इजरायल की मदद से तैयार कर रहा है.

3.
एसआरसैम शॉर्ट रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम—इसकी रेंज करीब 25 किलोमीटर होती है. भारत की सरकारी रक्षा संस्थान डीआडीओ ने आकाश नाम की इस मिसाइल प्रणाली को हाल ही में तैयार किया है. वायुसेना के साथ थलसेना भी इस मिसाइल को इस्तेमाल करती है. थलसेना इस प्रणाली को अपनी टैंक रेजीमेंट को एक जगह से दूसरी जगह मूव करने के लिए इस प्रणाली को इस्तेमाल करती है ताकि दुश्मन हमारे टैंक के काफिले पर हवाई हमला ना कर सके. आकाश के अलावा भारतीय वायुसेना के पास पिचौरा नाम की रशियन मिसाइल सिस्टम भी है. एक और एसआरसैम भारत इजरायल के सहयोग से तैयार कर रहा है जिसे स्पाईडर का नाम दिया गया है.

4.
क्लोज-रेंज मिसाइल सिस्टम—ये दरअसल मिसाइल-लांचर होता है जिसे सैनिक अपने कंधे पर रखकर चलाते हैं. ये उस वक्त काम आता है जब टारगेट बिल्कुल करीब यानि पांच किलोमीटर से भी कम रेंज में घुस आता है. यानि अगर एलआरसैम, एमआरसैम और एसआसैम फेल हो जाएं या चूक जाए तो मिसाइल लांचर से हमला बोला जाता है. भारत के पास इस तरह की ईग्ला और ओसा नाम की मिसाइल हैं जो रशियन सिस्टम है.

एयर डिफेंस के लिए एयरफोर्स स्टेशन या बेस पर एक टीडब्लूसीसी यानि टर्मिनल वैपन्स कमांड सेंटर बनाया जाता है. वहां तैनात अधिकारी आधुनिक रडार प्रणाली और कम्युनिकेशन सिस्टम के जरिए ऊपर दी गईं मिसाइल सिस्टम (एलआरसैम, एमआरसैम इत्यादि) को टारगेट पर निशाना साधने के लिए दिशा-निर्देश देते हैं.

Wednesday, December 23, 2015

पूर्व-सैनिकों की हेल्थ स्कीम में गड़बड़झाला: सीएजी

रक्षा मंत्रालय द्वारा पूर्व-सैनिकों के लिए चलाई जा रही हेल्थ स्कीम, ईसीएचएस में सीएजी ने खासी खामियां पाईं हैं। सीएजी के मुताबिक, इसमें हुई गड़बड़ियां किसी घोटाले से कम नहीं है। सीएजी की ये रिपोर्ट संसद के इसी सत्र में पेश की गई। 

सीएजी के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय के तहत पूर्व सैनिकों के लिए एक्ससर्विसमैन कोनटिरीब्यूट्री हेल्थ स्कीम चलाई जाती है। ये योजना 2003 में शुरू की गई थी। रक्षा मंत्रालय हर साल इस योजना पर 2000-2500 करोड़ रूपये खर्च करती है। जिसका लाभ करीब 45 लाख पूर्व-सैनिकों और उनके परिवार को मिलता है। लेकिन गड़बड़ियों के चलते प्राईवेट अस्पताल सरकार को बड़ा चूना लगा रहे हैं। जिसके चलते हर साल सरकार को 100 करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान हो रहा है।

2003 में रक्षा मंत्रालय ने ये स्कीम शुरू की थी। इसके लिए सरकार ने देशभर में पाॅलिक्लीनिक खोले थे। लेकिन पाॅलिक्लीनिक्स में ना तो दवाई मिलती है, ना ही मेडिकल उपकरण होते हैं और ना ही डाॅक्टर्स होते हें जिसके चलते मरीजों को प्राईवेट इम्पैनेल्ड हाॅस्पिटल में जाना पड़ता है। वहां पर ये काॅरपोरेट अस्पताल ईसीएचएस मरीजों से सामान्य मरीजों की तुलना में कई गुना बिल बनाते हैं. कहीं कहीं तो दुगना तीगना बिल वसूलता है जिससे सरकार को इस स्कीम में भारी नुकसान हो रहा है।

सीएजी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इस स्कीम का फायदा सैनिकों को भी दिया जा रहा है जबकि ये स्कीम एक्स-सर्विसमैन के लिए है।

सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय के इम्पैनेलड पैनैल में देश के नामी-गिरामी काॅरपोरेट अस्पताल शामिल हैं।

इसके अलावा सीएजी ने ईसीएचएस कार्ड बनाने वाली कंपनी को भी आड़े हाथों लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, एक-एक आदमी के दो-दो कार्ड बनाए गए जो गैरकानूनी है। साथ ही कार्ड बनाने के लिए भी पैसे लिए जाते हैं जबकि रक्षा मंत्रालय ने पूर्व-सैनिकों के लिए ये कार्ड फ्री जारी करने की घोषणा की थी।

सीएजी के मुताबिक, अस्पताल के बिल-प्रोसेस करने वाली कंपनी भी पूर्वसैनिकों से फीस वसूलती है जो सरासर गलत है और रक्षा मंत्रालय ने इसे रोकने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए हैं।

इस रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय की इंटर्नल-ऑडिट तक में बेहद खामियां पाईं गईं हैं. सीएजी के मुताबिक, अगर डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस एकांउट्स ने अपना काम ठीक तरीके से किया होता तो शायद पूर्व-सैनिकों की इस स्कीम में इतना गड़बड़झाला ना हुआ होता.

पुतिन से आधुनिक रक्षा प्रणाली लेकर आएंगे मोदी !


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस यात्रा (23-25 दिसम्बर) के दौरान बड़े रक्षा सौदों पर समझौते हो सकते हैं. इन सौदों में एस-400 'ट्राईयूम्फ' मिसाइल रक्षा प्रणाली और 200 कामोव हैलीकाॅप्टर शामिल हैं. इसके अलावा पीएम मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से एक परमाणु पनडुब्बी लीज पर देने के लिए भी बात करेंगे.

पीएम मोदी कल यानि बुधवार को रूस की यात्रा पर जा रहे हैं. इस दौरान जो सबसे बड़ा रक्षा सौदा जो दोनों देशों के बीच में हो सकता है वो है एस-400 मिसाइल सिस्टम का. तीस हजार करोड़ भी ज्यादा के इस सौदे से भारत को अपनी एयर-स्पेस सुरक्षित करने में खासी मदद मिलेगी. भारतीय वायुसेना इस मिसाइल सिस्टम का इस्तेमाल करेगी.

एस-400 मिसाइल लंबी दूरी (लांग-रेंज) तक हमारे हवाई सुरक्षा करने में कारगर साबित होगी. इस मिसाइल सिस्टम की दूरी करीब 400 किलोमीटर है. यानि अगर दुश्मन की मिसाइल हमारे किसी विमान या संस्थान पर हमले करने की कोशिश करेगी तो ये मिसाइल सिस्टम वक्त रहते ही उसे नेस्तानबूत करने में सक्षम साबित होगी. ये एंटी-बैलिस्टक मिसाइल है. यानि आवाज की गति से भी तेज रफ्तार से ये हमला बोल सकती है.

खास बात ये है कि हाल ही रशिया ने इस मिसाइल सिस्टम को सीरिया में तैनात किया था जब तुर्की ने रशिया का एक लड़ाकू विमान मार गिराया था.

यहां ये बात भी विदित है कि जब से रशिया ने सीरिया में आईएसआईएस के खिलाफ जंग में एस-400 प्रणाली को लगाया है कोई भी मिसाइल या लड़ाकू विमान तो दूर नागरिक-विमान भी इस क्षेत्र से दूर उड़ रहे हैं. इस कदर एयर-स्पेस में इस एयर-डिफेंस मिसाइल का खौफ है.

गौरतलब है कि चीन ने भी इस मिसाइल सिस्टम की खूबी को देखते हुए हाल ही में रशिया से इस प्रणाली को खरीदा है.

एस-400 मिसाइल प्रणाली के अलावा पीएम मोदी की रूस की यात्रा के दौरान भारत 200 हेलीकाॅप्टर का सौदा भी करेगा. थलसेना और वायुसेना के पुराने हो चुके चेतक और चीता हेलीकाॅप्टर्स को रिप्लेस करने के लिए भारत रशिया से 200 कामोव हेलीकाॅप्टर खरीद रहा है. इस डील की कीमत करीब 12 हजार करोड़ रूपये है. चीता और चेतक हेलीकाॅप्टर काफी पुराने हो चुके हैं और लगातार क्रैश होने की खबरें आती रहती हैं. पिछले हफ्ते ही सीएजी ने सेना के पुराने हो चुके हेलीकाॅप्टर्स पर गहरी चिंता जताई थी। खुद इन हेलीकाॅप्टर्स को उड़ाने वाले पायलटों की पत्नी और घरवालों ने रक्षा मंत्री से इन्हे बंद करने की अपील की थी.

इसके अलावा मोदी रूस के राष्ट्रपति पुतिन से एक परमाणु पनडुब्बी लीज़ पर लेने की बातचीत करेंगे. भारतीय नौसेना के पास पहले से आईएनएस चक्र नाम की एक रशियन पनडुब्बी पर है. 2012 में भारत ने आईएनएस चक्र को रूस से लीज़ पर लिया था.

मोदी रूस से थलसेना के लिए बीएमपी टैंक खरीदने पर भी बात करेंगे। ये खास तरह के टैंक सेना की मैकिनाईज्ड इंफेंट्री इस्तेमाल करती है। करीब 149 बीएमपी मशीनों को खरीदने पर बातचीत की जायेगी।

इसके अलावा नौसेना के लिए गहरे समुद्र में खोजबीन और बचाव के लिए डीप-सी रेसक्यू वैसैल खरीदने पय भी सहमति बन सकती है।