Monday, May 27, 2019

करगिल के शहीद की‌ याद के जरिए वायुसेना की दुश्मन को कड़ी चेतावनी



करगिल युद्ध के ठीक बीस‌ साल बाद वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस‌ धनोआ ने अपने साथी फाइटर पायलट्स के साथ आज पंजाब के भटिंडा एयरबेस पर फाइटर जेट उड़ाया। मौका था अपने साथी, स्कॉवड्रन लीडर अजय आहूजा की शहादत‌ को श्रद्धांजलि देने का। वही अजय‌ आहूजा जो करगिल युद्ध के दौरान अपने मिग21टाईप 96 उड़ाते वक्त पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में दाखिल हो गए थे। पाकिस्तान ने उनके फाइटर जेट को मार गिराया था और‌ अजय आहूजा की बड़े ही बेरहमी से हत्या कर दी थी। अजय आहूजा उस वक्त भटिंडा में ही तैनात थे और उनके कमांडिंग ऑफिसर थे मौजूदा एयरफोर्स चीफ बी एस‌ धनोआ। बी‌ एस‌ धनोआ ने पश्चिमी कमान के मुखिया, आर नांबियर के साथ मिसिंग-मैन फॉरमेशन में उसी मिग21 टाइप96 को उड़ाया जिसे अजय आहूजा उड़ाते थे।

मिसिंग-मैन फॉरमेशन में वायुसेना प्रमुख बी एस‌ धनोआ ने पहले चार फाइटर जेट्स के साथ उड़ाने भरी और फिर उनमें से एक कम यानि तीन में उड़ान भरी जो उनके साथी‌ अजय आहूजा का लड़ाकू विमान कम हो गया था।

भटिंडा एयरबेस पाकिस्तान के खिलाफ हमेशा से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। फिर वो करगिल युद्ध हो या फिर हाल ही में हुई बालाकोट एयर-स्ट्राइक। करगिल युद्ध के दौरान हजारो फीट उंचाई पर डेरा जमाए दुश्मन के बंकरों पर यही पर तैनात लड़ाकू विमानों से गोलाबारी की जाती थी, तो बालाकोट स्ट्राइक के दौरान इसी एयरबेस पर भारतीय वायुसेना ने अपना कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाया था।

बालाकोट एयर स्ट्राइक के दौरान भटिन्डा एयरबेस पर तैनात एवैक्स‌ यानि एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम विमान के जरिए पाकिस्तान की हर चाल पर नजर रखी गई थी।‌ एवैक्स विमान की इस स्कॉवड्रन को भगवान शिव के बेटे स्कंद के नाम पर रखा गया है जिन्हें 'युद्ध का स्वामी' कहा जाता है। क स्कंद के बारे में कहा जाता है कि उन्होनें देवताओं को राक्षसों के खिलाफ लड़ने के लिए इकट्ठा किया था। बालाकोट स्ट्राइक के दौरान एवैक्स विमान पाकिस्तानी सीमा के करीब आसमान से करीब 500 किलोमीटर के दायरे में नजर गड़ाए हुए था कि पाकिस्तान की तरफ से भारत के मिराज-2000 फाइटर जेट्स के खिलाफ तो कोई लड़ाकू विमान तो नहीं उड़ा है। अगर ऐसा होता तो भारतीय वायुसेना को तुरंत अलर्ट कर दिया जाता।

ना केवल बालाकोट‌ एयर स्ट्राइक के दौरान बल्कि अगले दिन यानि 27 फरवरी को जब पाकिस्तान ने एलओसी के करीब भारतीय सेना की छावनियों और गोला-बारूद के स्टोर्स पर हमला करने की कोशिश की तो सबसे पहले इस स्टेशन ने भारत के सुखोई, मिराज और मिग-21बाइसन लड़ाकू विमानों को अलर्ट किया था। भारतीय‌ वायुसेना की जब पाकिस्तान से डॉग-फाइट हुई तो भटिन्डा एयरबेस से ही सुखोई और विंग कमांडर अभिनंदन के मिग-21बाईसन को दिशा-निर्देश दिए जा रहे थे। यही वजह थी कि भारतीय वायुसेना पाकिस्तान के एफ-16 स्थित हो या फिर चीन के जेएफ-17 लड़ाकू विमानों को खदेड़ने में कामयाब रही थी।

आपको बता दें कि भले ही भारतीय‌ वायुसेना ने सफलता पूर्वक बालाकोट एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया हो या फिर डॉग फाइट में पाकिस्तान कए एफ16 विमान को मार गिराया हो, लेकिन इस दौरान एक ऐसी घटना के बारे में ऐसी जानकारी पता चली है जिससे देश की सुरक्षा की चिंता बढ़ा दी है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, 27 फरवरी को विंग कमांडर अभिनंदन जानबूझकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में दाखिल नहीं हुए थे। दरअसल, उस‌ दौरान पाकिस्तान ने एलओसी पर इलेक्ट्रोनिक जैमर लगाए हुए थे जिससे भारतीय वायुसेना के सिग्नल्स को जाम किया जा सकता था। यही वजह है कि जब अभिनंदन एलओसी के करीब पहुंचे तो उन्हें सिग्नल मिलना बंद हो गए थे।‌

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, विंग कमांडर अभिनंदन जब एलओसी के करीब पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों का पीछा कर रहे थे तो भटिन्डा एयरबेस ने उन्हें 'गो-कोल्ड' यानि वापस आने का निर्देश दिया था। लेकिन माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने अपनी सीमा के करीब इलेक्ट्रोनिक-जैमर लगा रखे थे ताकि भारतीय वायुसेना के सिगन्लस को जाम कर दिया जाए। यही वजह है कि अभिनन्दन भटिन्डा एयरबेस‌ से दिए गए निर्देश को नहीं सुन पाए और पीओके में दाखिल हो गए।

सूत्रों के मुताबिक, चीन ने ही पाकिस्तान को इलेक्ट्रोनिक जैमर मुहैया कराए हैं जिससे किसी भी देश के लड़ाकू विमानों के सिगन्लस को कुछ किलोमीटर के दायरे में जाम किया जा सकता है। इससे फाइटर पायलट को कमांड एंड कंट्रोल से मिल रहे दिशा निर्देश नहीं मिल पाते हैं और उसे अपने ऑपरेशन करने में खासी दिक्कत आती है।

पहले जेफ-17 लड़ाकू विमान मुहैया कराना और फिर इलेक्ट्रोनिक जैमर देना, चीन लगातार पाकिस्तान को सैन्य-तौर से भारत के खिलाफ मजबूत करने में जुटा है। भारत को चीन और पाकिस्तान के इस सैन्य-गठजोड़ से जमकर मुकाबला करने की जरूरत है ताकि जरूरत पड़ने पर उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके‌।

लेकिन भारतीय की पश्चिमी वायु कमान के कमांडर इन चीफ, एयर मार्शल आर नांबियार ने एबीपी न्यूज से साफ तौर से कहा कि  भारतीय वायुसेना चीन और पाकिस्तान के किसी भी सैन्य गठजोड़ के खिलाफ मुकाबला करने के लिए तैयार है।‌ आपको बता दें कि पश्चिमी वायुकमान चीन और पाकिस्तान दोनों की ही सीमा से सटी एक बड़ी एयर-स्पेस‌ की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालती है।

वायुसेना प्रमुख बी‌ एस धनोआ की मानें तो चिनूक, अपाचे और राफेल लड़ाकू विमानों के एयर फोर्स में शामिल होने से भारत को चीन और पाकिस्तान पर स्ट्रेटजिक-एैज यानि निर्णायक धार मिल जायेगी।

साफ है राफेल विमान भारत के लिए दुश्मन के खिलाफ गेम चेंजर साबित होगा। साथ ही हाल में सुखोई विमानों में ब्रह्मोस मिसाइल लगने से वायुसेना की मारक क्षमता कई गुना बढ़ गई है। यानि आने वाले दिनों में भारतीय वायुसेना वाकई नई उंचाईयों को छूने जा रही है।

Wednesday, May 22, 2019

मॉडर्न गैजेट्स से लैस हों सुरक्षा से जुड़ें लोग: अजीत डोवाल


राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने आज देश की सुरक्षा एजेंसियों को भविष्य में होने वाली चुनौतियों से मुकाबले करने के लिए आधुनिक टेक्नोलोजी और मार्डन गैजे़ट्स को अपनाने की नसीहत दी. अजीत डोवाल आज राजधानी दिल्ली में बीएसएफ के अलंकृण समारोह में बोल रहे थे. 

एनएसए अजीत डोवाल के मुताबिक, "नेशनल सिक्योरि़टी के लिए रोज एक नई चुनौती होती है. इसलिए हमें (सुरक्षा एजेंसियों) को अपने-आप को रिइंवेंट करना पड़ता है ताकि कल आने वाले लड़ाई लड़ाई के लिए तैयारी रखी जा सके." अजीत डोवाल के कहा कि  देश में आने वाले समय की सुरक्षा-चुनौतियों और ज्यादा गंभीर हो सकती हैं, इसलिए प्रोद्यौगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी. इसके लिए मार्डन टेक्नोलोजी और गैजेट्स पर हमें जोर देना चाहिए.

बीएसएफ के वीर जवानों को बहादुरी मेडल देने के समय एनएसए ने कहा कि बीएसएफ का हर सिपाही बेहद बहादुर है और देश के लिए आहुति देने के लिए तैयार रहता है. देश आज जो सुरक्षित है उसमें बीएसएफ की एक महत्वपूर्ण भूमिका है.

आगे उऩ्होनें कहा कि अंलकृण समारोह की विशेष महत्ता होती है. हर मनुष्य को अपने प्राण प्यारे होते हैं, लेकिन कुछ के लिए देश ज्यादा प्यारा होता है. इसलिए सभी शहीदों को नमन करता हूं और हम सभी उनके प्रति अभारी हूं. 

नौसेनाध्यक्ष के पद के लिए वरिष्टता ही नहीं योग्यता भी जरूरी: एएफटी


आर्म्ड फोर्स ट्राईब्यूनल यानि एएफटी ने सरकार को आदेश दिया है कि 29 मई को नए नौसेनाध्यक्ष बनाए जाने से जुड़ी प्रक्रिया के सारे दस्तावेज कोर्ट के सामने पेश करे. ये आदेश एएफटी ने वाईस एडमिरल बिमल वर्मा की उस याचिका पर दिया जिसमें उन्होनें अपने से जूनियर अधिकारी को नया नौसेना प्रमुख बनाए जाने पर ऐतराज जताया था. एएफटी ने अपील मंजूर करते हुए कहा कि अगर जरूरत हुई तो नए नौसेनाध्यक्ष की 31 मई को होने वाली नियुक्ति पर भी रोक लगाई जा सकती है.

आपको बता दें कि सरकार ने नौसेना के सबसे सीनियर अधिकारी, वाईस एडमिरल बिमल वर्मा की अनदेखी कर उनसे छह महीने जूनियर अधिकारी, वाईस एडमिरल करमबीर सिंह को नया नौसेना प्रमुख घोषित कर दिया है. करमबीर सिंह 31 मई को रिटायर हो रहे मौजूदा नौसेनाध्यक्ष एडमिरल सुनील लांबा की जगह लेंगे.

अपने को नजरअंदाज करने पर बिमल वर्मा ने एएफटी के कहने पर रक्षा मंत्रालय में अपील की थी. लेकिन रक्षा मंत्रालय ने मेरिट यानि योग्यता का हवाला देकर बिमल वर्मा की अपील खारिज कर दी थी. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, नौसेनाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए सीनियोरिटी यानि वरिष्टता ही मापदंड नहीं हो सकता है. साथ ही तीन आधार पर बिमल वर्मा को इस पद के लिए योग्य नहीं माना गया. इसमें पहला है वर्ष 2008 में उनके खिलाफ नौसेना द्वारा जारी किया एक डिस्पेलजर-लैटर जिसमें नौसेना के ओपरेशन्स-डायेरेक्टरेट में तैनाती के दौरान संवेदनशील दस्तावेजों का लीक होना (नेवल वार रूम लीक मामला). दूसरा, नौसेना की कोई ओपरेशनल कमांड की कमान ना संभालना और तीसरा, परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) ना मिलना.

एएफटी की मुख्य (प्रधान) बेंच के चैयरपर्सन, जस्टिस वीरेन्द्र सिंह ने जनरल करियप्पा से लेकर जनरल वैद्य और मौजूदा थलसेनाध्यक्ष, जनरल बिपिन रावत का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले भी ऐसा देखा गया है कि सैन्य-प्रमुख की नियुक्ति के दौरान वरिष्टता को नजरअंदाज कर दिया गया. लेकिन इस बार एक वाईस एडमिरल रैंक के अधिकारी ने सरकार की नियुक्ति प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं. इसलिए हम इसे एक गंभीर मामला मानकर जांच करना चाहते हैं कि क्या वाकई योग्यता ही मापदंड रखी गई है नए नौसेनाध्यक्ष की नियुक्ति के दौरान. जस्टिस वीरेन्द्र सिंह ने अंडमान निकोबार कमांड के कमांडिंग इन चीफ, बिमल वर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि वे नहीं चाहते कि रिटायरमेंट के बाद वे (वर्मा) नींद के लिए एल्प्रैक्स की गोली खाएं।

इस बेंच में जस्टिस वीरेन्द्र सिंह के अलावा थलसेना के पूर्व सहसेनाध्यक्ष, लेफ्टिनेंट जनरल फिलीप कंपोस भी सदस्य‌ के तौर पर मौजूद थे। अब इस मामले की सुनवाई 29 मई को होगी।

सुनवाई के दौरान एएफटी ने कहा कि नौसेनाध्यक्ष के पद के लिए केवल वरिष्टता को आधार नहीं बनाया जा सकता। अगर ऐसा हुआ तो फिर ये एक क्लर्क का पद बन जायेगा। इसके लिए योग्यता भी जरूरी है। 

Tuesday, May 21, 2019

फॉग ऑफ वॉर और बडगाम हेलीकॉप्टर क्रैश


श्रीनगर के करीब बडगाम में हेलीकॉप्टर क्रैश मामले में वायुसेना के सूत्रों का दावा है कि जांच में अगर कोई अधिकारी दोषी पाया गया तो उसे सख्त से सख्त सजा दी जायेगी. साथ ही मामले की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ना केवल इस घटना के दोषियों को सजा देगी बल्कि भविष्य में ऐसी घटना ना हो जिसमें अपनी ही फायरिंग से अपने किसी विमान या हेलीकॉप्टर को मार गिराया जाये इसके लिए भी नए मापदंड तैयार करेगी. इसके साथ ही श्रीनगर एयर-बेस के एयर-आफिसर कमांडिंग का तबादला कर दिया गया है. 

आपको बता दें कि बालाकोट एयर-स्ट्राइक के अगले दिन यानि 27 फरवरी को जिस वक्त पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों ने एलओसी पर भारत के सैन्य-ठिकानों और गोला-बारूद स्टोर पर हमला करने की कोशिश की थी उसी दौरान श्रीनगर के करीब बडगाम में भारतीय वायुसेना का एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था. इस घटना में हेलीकॉप्टर के पायलट समेत सभी छह क्रू-मेम्बर्स की मौत हो गई थी. एक सिविलयन की भी जान चली गई थी. भारतीय वायुसेना ने इस घटना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दिया था. हालांकि शुरूआत से ही इस घटना को माना जा रहा थ कि ये हेलीकॉप्टर 'फ्रेन्डली फायरिंग' का शिकार हुआ है, लेकिन भारतीय वायुसेना ने ये कहकर कुछ नहीं कहा था कि जांच जारी है. लेकिन अब इस मामले से जुड़ी जानकारियां सामने आने लगी हैं. माना जा रहा है कि श्रीनगर एयर-बेस के एओसी का तबादला भी इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा रहा है, जबकि वायुसेना का कहना है कि ये एक रूटीन पोस्टेड-आऊट (यानि ट्रांसफर) है. 

जानकारी के मुताबिक, जिस वक्त पाकिस्तानी वायुसेना ने एलओसी पर भारत की एयर-स्पेस में घुसकर हमला करने की कोशिश थी उसी वक्त श्रीनगर एयरबेस से एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर उड़ा था. लेकिन कुछ ही मिनट बाद वो हेलीकॉप्टर श्रीनगर के करीब बडगाम में क्रैश हो गया था. दुर्घटना के तुरंत बाद ही एबीपी न्यूज की टीम मौके पर पहुंच गई थी. उस वक्त ही जिस गांव के करीब ये हेलीकॉप्टर गिरा था वहां मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया था कि गिरने से पहले उन्होनें एक बम जैसी आवाज सुनी थी जिसके बाद ही हेलीकॉप्टर नीचे गिरा था. हालांकि, पायलट ने गांव से बचाकर एक खेत में हेलीकॉप्टर को उतारने की कोशिश की थी जिसमें थोड़ा पानी थी. लेकिन नीचे नीचे आते आते हेलीकॉप्टर पूरी तरह से आग के हवाले हो चुका था और उसमें मौजूद सभी क्रू-मेम्बर्स पूरी तरह से जल चुके थे., बामुश्किल ही उनके शवों को निकाला गया था. इस दौरान उनकी मदद करने के लिए आया गांव का एक युवक भी आग की चपेट में आया और उसकी भी मौत हो गई थी. 

सूत्रों के मुताबिक, जब श्रीनगर से ये हेलीकॉप्टर उड़ा तो इसका आईएफएफ-ट्रांसपोंडर यानि 'आईडिंंटिफिकेशन ऑफ फ्रैंड ऑर फो' आन नहीं था, जिसके चलते श्रीनगर एयरबेस के वेपन-टर्मिनल को पता नहीं चल पाया कि ये दुश्मन का विमान है या अपना. दुश्मन का यूएवी समझकर वायुसेना के वेपन-टर्मिनल ने इसपर इजरायली (सतह से हवा में मार करने वाली) स्पाईडर मिसाइल दाग दी, जिससे ये हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया. 

सूत्रों के मुताबिक, श्रीनगर एयर-बेस के एओसी को इसलिए ट्रांसफर किया गया है क्योंकि उन्होनें युद्ध जैसे हालात (बालाकोट एयर-स्ट्राइक के दौरान पूरी वायुसेना फुल अलर्ट पर थी) में भी हेलीकॉप्टर का आईएफएफ क्यों नहीं ऑन कराया था. तबादला इसलिए भी किया गया है क्योंकि श्रीनगर से उड़ान भरने के कुछ मिनट बाद ही एटीसी ने हेलीकॉप्टर को वापस आने का निर्देश दे दिया था, लेकिन एयर-बेस के वैपन-टर्मिनल ने इसे दुश्मन का यूएवी समझकर मिसाइल दाग दी. यानि एटीसी और वैपन-टर्मिनल के बीच युद्ध के हालात में भी समन्वय नहीं था. ये एओसी की तरफ से एक बड़ी लापारवाही मानी जा रही है. माना जा रहा है कि इस घटना में एओसी सहित कुल चार अधिकारी जांच के दायरे में हैं. 

वायुसेना के सूत्रों ने साफ कर दिया कि दोषी अधिकारी 'फॉग ऑफ वॉर' का फायदा नहीं उठा सकते हैं. क्योंकि फॉग ऑफ वॉर के दौरान भी वायुसेना की अपनी एसओपी (य़ानि स्टैंडर्ड ओपरेटिंग प्रोसिजर) हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि इन एसओपी का ध्यान नहीं रखा गया जिसके चलते ही इतना बड़ा हादसा हुआ. लेकिन सूत्रों का साफ कहना है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जायेगी अगर कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में दोषी पाये गए. माना जा रहा है कि उनकर गैर-इरादतन हत्या के तहत कोर्ट मार्शल की कारवाई भी की जा सकती है. 

वायुसेना के प्रवक्ता ने हालांकि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का हवाला देकर कहा है कि जबतक जांच पूरी नहीं हो जाती इस मामले पर आधिकारिक तौर से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. 

सूत्रों के मुताबिक, बडगाम हेलीकॉप्टर घटना की जांच में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि क्रैश के बाद से हेलीकॉप्टर का ब्लैक-बॉक्स गायब है. पुलिस और वायुसेना के अधिकारियों को घटना की जगह से हेलीकॉप्टर का मलबा बरामद हुआ था उसमें ब्लैक-बॉक्स नहीं था. इसलिए पूरी मामले की जांच परिस्थितिजनक-साक्ष्यों के हिसाब से की जा रही है.

Wednesday, May 15, 2019

पैरा-एसएफ, गरूड़ और मार्कोस कमांडोज़ अब मिलकर करेंगे सर्जिकल-स्ट्राइक


देश की पहली स्पेशल फोर्स कमांडोज़ की एक अलग (और खास) डिवीजन को हरी झंडी मिल गई है. स्पेशल फोर्स ऑपरेशन्स डिवीजन नाम की इस यूनिट का पहला चीफ, मेजर जनरल अशोक ढींगरा को बनाया गया है. खास बात ये है कि एसएफओडी यूनिट में थलसेना के पैरा-एसएफ कमांड़ोज़ के साथ साथ वायुसेना के गरूड़ और नौसेना के मरीन कमांड़ोज़ यानि मार्कोस भी हिस्सा होंगे. ये यूनिट देश के लिए जरूरी खास मिशन को अंजाम देगी. युद्ध की स्थिति में इसे दुश्मन देश की सीमा में घुसकर सर्जिकल-स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन करने के लिए इस्तेमाल किया जायेगा.

देश के बेहतरीन कमांडोज़ वाली ये यूनिट रक्षा मंत्रालय के अंर्तगत सीधे काम करने वाले इंटीग्रेटड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) के तहत ऑपरेट करेगी. आईडीएस का चीफ एक लेफ्टिनेंट-जनरल रैंक का अधिकारी होता है. पिछले साल तीनों सेनाओं के साझा सैन्य-कमांर्डस कांफ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस खास डिवीजन को बनाने का रास्ता साफ किया था. इसके अलावा तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल और समन्वय के लिए एक साझा डिफेंस साईबर एजेंसी और एक स्पेस एजेंसी बनाने को भी मंजूरी मिल चुकी है. 

एसएफओडी का चीफ थलसेना से होगा, तो साईबर एजेंसी की मुखिया नौसेना से होगा और स्पेस एजेंसी का नेतृत्व वायुसेना का एक टू-स्टार अधिकारी करेगा. हाल ही में नौसेना ने इस ट्राई-सर्विस साईबर एजेंसी का चीफ, रियर एडमिरल मोहित गुप्ता को नियुक्त किया था. माना जा रहा है कि जल्द ही वायुसेना भी स्पेस एजेंसी का चीफ, एयर वायस मार्शल एस पी धरकड़ को बनाया जायेगा।

जानकारी के मुताबिक, यूएस और दूसरे देशों की तर्ज पर ही एसएफओ़डी को तैयार किया जायेगा. मेजर-जनरल अशोक ढींगरा को इस साल के अंत तक अपनी खास ऑपरेशन डिवीजन का हेडक्वार्टर संरचना, ट्रैनिंग, हथियार और दूसरी मूल-भूत सुुविधाओं के बारे में पूरी रिपोर्ट आईडीएस मुख्यालय में पेश करनी है.
माना जा रहा है कि इसका मुख्यालय दिल्ली से बाहर आगरा, नाहन या फिर बेलगाम में हो सकता है जहां पर पहले से ही थलसेना के पैरा-एसएफ ट्रैनिंग सेंटर हैं (बहुत हद तक मुमकिन है कि मुख्यालय आगरा में होगा, जहां कमांडो़ज़ की हवाई ट्रैनिंग भी आसानी से हो सकती है). मेजर जनरल ढींगरा खुद एक पैरा कमांडो हैं और आगरा स्थित पैरा-ब्रिगे़ज की कमान संभाल चुके हैं. इसके अलावा वे यूएस में भारत के डिफेंस-अटैचे रह चुके हैं. श्रीलंका में आईपीकेएफ (शांति सेना) का भी हिस्सा थे.

एक लंबे समय से देश के स्पेशल फोर्स कमांडोज़ की साझा यूनिट की जरूरत थी. जैसाकि कश्मीर में वूलर-लेक और मणिपुर की लोकटक लेक में मरीन कमांडोज़ की जरूरत पड़ती थी, जबकि वहां थलसेना की मौजूदगी है. ऐसे में एसएफओडी ऐसी जगह पर काम करेगी (देश के भीतर और जरूरत पड़ने पर बाहर भी) जहां कही पैरा-एसएफ के साथ साथ मार्कोस की भी जरूरत पड़ती हो. इसके लिए ही हाल में अंडमान निकोबार द्वीप पर तीनों सेनाओं के कमांडो़ज़ ने बुल-स्ट्राइक नाम का एक साझा युद्धभ्यास किया था. अंडमान कमान भी आईडीएस के अंतर्गत काम करती है. 

माना जा रहा है कि एस डिवीजन में तीनों सेनाओं का अनुपात 5:3:2 का होगा. यानि 50 प्रतिशत थलसेना के कमांजोज़ होंगे, तो तीस प्रतशित वायुसेना (के गरूड़) और 20 प्रतिशत नौसेना के मार्कोस.शुरूआत में माना जा रहा है कि इस डिव में करीब 3000 कमांडोज़ होंगे, जिसमें करीब करीब दो हजार पैरा-एसएफ से होंगे और बाकी एक हजार नौसेना और वायुसेना से होंगे (आपको बता दें कि वायुसेना ने पठानकोट आतंकी हमले के बाद ही अपनी गरूड़ कमांडो टीम को खड़ा करने में तेजी लाई है). फिलहाल थलसेना में करीब करीब 6000 पैरा-एस कमांडोज़ है और नौसेना और वायुसेना में करीब करीब एक-एक हजार कमांडोज हैं. 

आपको बता दें कि पैरा-एस कमांडो़ज़ ने ही वर्ष 2106 में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल-स्ट्राइक की थी और 2015 में म्यांमार सीमा पर उग्रवादी कैंपों के खिलाफ क्रॉस-बॉर्डर रेड की थी. एसएफओडी के बनने के बाद भी तीनों सेनाओं की स्पेशल फोर्सेज़ यूनिट्स अपना अपना काम करती रहेंगी. क्योंकि तीनों सेनाओं के अपने अपने कार्य-क्षेत्र हैं. एसएफओडी के कमांडोज़ तभी ऑपरेशन करेंगे जहां एक साथ दो या दो से ज्यादा तरह के कमांडो़ज़ की जरूरत होगी. जैसाकि किसी झील में या फिर समंदर में या फिर किसी आईलैंड पर कोई ऑपरेशन करना होगा, तभी एसएफओडी के कमांडोज़ की क्रेक-टीम अपने मिशन को अंजाम देंगी. 

Tuesday, May 14, 2019

अभिनंदन की स्कॉवड्रन को मिला 'फाल्कन स्लेयर्स' का तमगा !


पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान को मार गिराने वाली भारतीय वायुसेना की श्रीनगर स्थित 51वीं स्कॉवड्रन को अब 'फाल्कन स्लेयर्स' के नाम से भी जाना जायेगा। अभी तक मिग-21 बायसन फाइटर जेट वाली इस‌ स्कॉवड्रन को 'स्वार्ड आर्म' के नाम से जाना जाता है। लेकिन क्योंकि भारत के मिग21 बायसन जेट ने पाकिस्तान के एफ16 (जिसे 'फाल्कन' के नाम से भी जाना जाता है) मार गिराया था‌ इसलिए अब इसे फाल्कन का 'स्लेयर' यानि 'बध' करने वाली स्कॉवड्रन‌ के नाम से भी जाना जायेगा। 

आपको बता दें कि 27 फरवरी को पाकिस्तानी वायुसेना के हमले को नाकाम करने के वक्त विंग कमांडर अभिनंदन इसी 51वीं स्कॉवड्रन में तैनात थे। 

जानकारी के मुताबिक, अब इस‌ 51वीं स्कॉवड्रन में तैनात सभी बायसन जेट्स‌ के पायलट्स उड़ान के वक्त‌ अपने जी-सूट (यानि यूनिफार्म) पर इस खास 'फाल्कन सेल्यर्स' का बैज (बिल्ला) लगाएंगे। लेखक ने इस 'फ्लाइंग-पैच' को देखा है।

गौरतलब है कि वायुसेना ने इन खास बैज को 'बल्क' में बनाने का ऑर्डर दे दिया है। आपको बता दें कि इस बिल्ले पर 'एमराम डोजर्स' भी लिखा है। एमराम मिसाइल पाकिस्तान के एफ16 विमान एमराम मिसाइल से लैस होते हैं। 27 फरवरी को जब पाकिस्तान के एफ16 विमानों की भारत के बायसन और सुखोई फाइटर जेट्स से डॉग-फाइट हुई थी तो उन्होनें (एफ16 ने) एमराम मिसाइल से वार किया था। लेकिन बायसन और सुखोई विमानों ने एमराम मिसाइल को 'डोज' यानि चकमा दे दिया था, जिससे अमेरिका में बनी एडवांस मिसाइल, एमराम का वार खाली चला गया था। 

यही वजह है कि भारत के सुखोई विमानों का जो नया बैज आया है‌ उसपर 'एवेंजर' के साथ साथ 'एमराज डोजर्स' भी लिखा है।  

आपको बता दें कि बालाकोट में जैश ए मोहम्मद कए टेरर कैंप पर हुई भारत की एयर-स्ट्राइक से बिलबिलाए पाकिस्तान ने अगले दिन यानि 27 फरवरी की सुबह अपने एफ16-फाल्कन, जेफ-17 और मिराज लड़ाकू विमानों से भारत की सैन्य ठिकानों पर हमला करने की  कोशिश की थी, जिसे भारतीय वायुसेना के सुखोई, बायसन और मिराज लड़ाकू विमानों ने नाकाम कर दिया था। इसी डॉग-फाइट में एक बायसन लड़ाकू विमान पर सवार विंग कमांडर अभिनंदन ने अमेरिका में बने एफ16 फाइटर जेट का मार गिराया था। लेकिन इस दौरान अभिनंदन पाकि‌स्तान की सीमा में पहुंच गए और उनका मिग-21 बायसन क्रैश हो गया‌ और पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें बंधक बना लिया था (हालांकि बाद में रिहा कर दिया था)।

गौरतलब है कि पाकिस्तान ने भी अपनी उस‌ स्कॉवड्रन के लिए 'आई‌ एम सॉरी' का बैज दिया है जिसने अभिनंदन के साथ डॉग-फाइट की थी। हालांकि, अभिनंदन ने कभी भी पाकिस्तान में दाखिल होने के लिए माफी नहीं मांगी थी। 

Saturday, May 11, 2019

भारत को अमेरिका से मिला 'अपाचे' अटैक हेलीकॉप्टर


भारतीय वायुसेना को अपना पहला 'अपाचे' लड़ाकू हेलीकॉप्टर मिल गया है. अमेरिकी शहर एरिजोना में शुक्रवार को एक कार्यक्रम में इंडियन एयरफोर्स के अधिकारकियों ने इसे वायुसेना में शामिल किया. इस हेलीकॉप्टर का निर्माण बोइंग कंपनी ने किया है. बता दें कि भारत ने सितंबर 2015 में 22 अपाचे हेलीकॉप्टर की डील अमेरिकी सरकार से की थी.

अपाचे-गार्जियन हेलीकॉप्टर दुश्मनों पर सटीक निशाने के साथ हमला करने में भी समर्थ है. इसकी मदद से ग्राउंड पर क्या हो रहा है इसकी फोटोग्राफी भी की जा सकती है, जो युद्ध के मैदान से सबूत उठाने का काम भी बखूबी कर सकता है। गौरतलब है कि बालाकोट एयर-स्ट्राइक के दौरान मिराज फाइटर जेट्स टारगेट की फोटो लेने में नाकाम रहे थे, जिसके चलते पाकिस्तान हमले में किसी बड़े नुकसान को नकारता रहा.

 एएच-64 ई (आई) हेलीकॉप्टर की पहली खेप, जिसमें 09 हेलीकॉप्टर होंगे, समुद्री मार्ग के जरिए जुलाई के महीने में भारत लाई जाएगी. अगले 13 हेलीकॉप्टर भी 2020 तक आने की उम्मीद है।  इस हेलीकॉप्टर की ट्रैनिंग के लिए भारतीय वायुसेना के कुछ चुने हुए अधिकारियों को अलबामा स्थित यूएस आर्मी बेस में ट्रेनिंग दी गई है. अपाचे हेलीकॉप्टर की पहली यूनिट पाकिस्तान की सीमा के करीब पठानकोट में तैनात की जायेगी।‌ एक यूनिट असम के जोरहाट में होगी.

इस हेलीकॉप्टर के भारतीय वायुसेना में शामिल होने से इसकी शक्ति बढ़ेगी और आधुनिक हेलीकॉप्टर से यह लैस होगी. इस हेलीकॉप्टर की सबसे खास बात ये है कि पहाड़ी इलाकों में यह फौलादी इरादे के साथ आसमान में चक्कर लगा सकता है. इसे भारतीय वायुसेना की जरूरतों के हिसाब से बनाया गया है.

Friday, May 10, 2019

कराची से गलत दिशा में आ रहे विमान की भारत के फाइटर जेट्स ने कराई जयपुर में लैंडिंग

कराची से भारत की एयर-स्पेस में गलत दिशा से दाखिल होने के चलते जार्जिया के एक कार्गो प्लेन को भारतीय वायुसेना के सुखोई लड़ाकू विमानों ने जयपुर एयकपोर्ट पर जबरदस्ती लैंडिंग कराई. ये एएन12 विमान जार्जिया की राजधानी तिल्बिसी से उड़कर कराची के रास्ते दिल्ली आ रहा था. देर जयपुर में इस विमान के पायलट और क्रू के दूसरे सदस्यों से वायुसेना और इंटेलीजेंस एजेंसियां कड़ी पूछताछ कर रहीं थीं.  


भारतीय वायुसेना के प्रवक्ता, ग्रुप कैप्टन अनुपम बैनर्जी ने एक प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा कि दोपहर 3.15 बजे एक विमान ने उत्तरी गुजरात से भारत की हवाई-सीमा में दाखिल होने की कोशिश की. हालांकि इस विमान का आईएफएफ (यानि आईडिंटिफिकेशन, फ्रेंड ओर फो) चालू था लेकिन इसने निर्धारित एयर-ट्रैफिक रूट नहीं लिया था और भारत की एटीसी द्वारा की गई रेडियो-कॉल्स का भी जवाब नहीं दिया. क्योंकि मौजूदा जियो-पोलिटिकल परिस्थितियों (यानि बालाकोट एयर-स्ट्राइक और उसके बाद के भारत-पाकिस्तान संबंध)  के कारण ये रूट बंद था इसलिए जैसे ही इस विमान ने गलत रूट लिया, फौरन ही एयर डिफेंस को अलर्ट कर दिया गया और सुखोई लड़ाकू विमानों को स्क्रैमब्ल (SCRAMBLE) किया गया. 

जानकारी के मुताबिक, उस वक्त ये विमान करीब 27 हजार फीट की ऊंचाई पर था और पता चला कि एक एएल12 विमान है. इसके बाद ना तो इंटरनेशनल डिस्ट्रेस फ्रीकवंसी और ना ही विजयुल सिग्लन का इस विमान ने जवाब दिया. इसके बाद सुखोई विमानों ने इसे गिराने की चेतावनी दी, तब जाकर पायलट्स ने जवाब दिया और बताया कि विमान तिब्लसी (जार्जिया की राजधानी) से दिल्ली आ रहा था कराची के रास्ते. 

इसके बाद इस विमान को जयपुर मे जांच पड़ताल के लिए जयपुर ले जाया गया जहां पर इसके पायलट्स से पूछताछ की जा रही है. पूछताछ में पता करने की कोशिश की जा रही है कि आखिर प्लेन डेवियेट क्यों हुआ. ये विमान किन कारणों से दिल्ली आ रहा था और क्या इसमें कोई सामान था. 

सूत्रों के मुताबिक, ये एएन12 विमान यूक्रेन की एक एयरलाइंस कंपनी का है जो कार्गो की नॉन-शेडूय्लूड सर्विस देती है. यानि की घंटे या फिर किलोमीटर के हिसाब से अपने इन विमानों को किराये पर देती है. यूक्रेन की ये कंपनी एयरक्राफ्ट के इंजन भी बनाती है. 

आपको बता दें कि ये एएन12 विमान पूर्व सोवियत संघ में बनाए गए थे जिन्हें आज भी कई देश इस्तेमाल कर रहे हैं. भारतीय वायुसेना भी एक समय में इन एएन12 विमानों का इस्तेमाल करती थी. लेकिन 90 के दशक मे ये रिटायर हो गए थे. आजकल भारतीय वायुसेना एएन32 विमान ओपरेट करती है. 

आपको बता दें कि बालाकोट एयर-स्ट्राइक के बाद और उसके बाद उपजे हालात के बाद से ही भारतीय वायुसेना बेहद अलर्ट है. पाकिस्तान की तरफ से आनी वाली सभी फ्लाईट्स को भी दक्षिण भारत के रास्ते से ही भारत की एयर स्पेस में दाखिल होने की इजाजत है. ऐसा ना करने पर भारतीय वायुसेना आदेश ना मानने वाले विमान के खिलाफ जरूरी कारवाई कर सकती है. पाकिस्तान ने भी बालाकोट हमले के दो महीने बाद तक भी अपनी एयर-स्पेस को पूरी तरह से नो फ्लाईंग जोन घोषित कर रखा था. 

अब अक्षय कुमार के युद्धपोत पर होने से बरपा हंगामा


पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा नौसेना के एयर-क्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विराट को निजी-टैक्सी की तरह इस्तेमाल करने का विवाद थमा भी नहीं था कि अब कांग्रेस की एक नेता ने ट्वीटर पर अक्षय कुमार को नौसेना के युद्धुपोत पर सवार होने पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस का सोशल मीडिया संभालने वाली दिव्या स्पंदना ने इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा कर दिया है. लेकिन लेखक‌
को पुख्ता जानकारी है कि इसके लिए अक्षय कुमार को नौसेना ने आमंत्रित किया था. मौका था इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू (आईएफआर) का, जो विशाखापट्टनम में वर्ष 2016 में हुआ था. लेखक भी इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम की कवरेज के लिए वहीं मौजूद था. 

पेशे से एक्टर दिव्या स्पंदना ने अपने ट्वीटर एकाउंट पर एक फोटो साझा की जिसमें अक्षय कुमार सैल्यूट की दशा में नौसेना के युद्धपोत, आईएनएस सुमित्रा में सवार हो रहे हैं. साथ में नौसेना के अधिकारी भी है. इस पर टिप्पणी करते हुए दिव्या ने लिखा है, "ये ठीक था? नरेन्द्र मोदी आप एक कनाडा के नागरिक अक्षय कुमार को अपने साथ आईएनएस सुमित्रा में ले गए." साथ में उन्होनें एक लिंक भी शेयर किया और हैशटैग लिखा 'सबसे बड़ा झूठा मोदी.'

दरअसल, 5-6 फरवरी को विशाखापट्टनम में भारतीय नौसेना ने आईएफआर का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम में दुनियाभर की 48 देशों की नौसेना ने हिस्सा लिया था. 6 फरवरी को देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रेसिडेंशयल-यॉट में अंतर्राष्ट्रीय जंगी बेड़े की समीक्षा भी की थी. इसके लिए नौसेना के जहाज, आईएनएस सुमित्रा को प्रेसिडेंशयल-यॉट में तब्दील किया गया था. इस जहाज में समीक्षा के वक्त सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर (यानि राष्ट्रपति) के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर, तीनों सेनाओं के प्रमुख. सहित कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे. उसी यॉट में अक्षय कुमार भी मौजूद थे. 

कार्यक्रम खत्म होेने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अक्षय कुमार के बेटे के कान मरोड़े थे, जिसका फोटो वायरल हो गया था. 

5 फरवरी को आईएफआर की ओपनिंग सेरेमनी थी जिसमें अक्षय कुमार के साथ साथ कंगना रनावत भी मौजूद थीं. सेरेमनी की ओपनिग के बाद नौसेना ने प्रेस रिलीज जारी कर दोनों को आईएफआर का ब्रेंड-एम्बेसडर घोषित किया था. 

लेकिन कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने एक प्रेंस कांफ्रेस को संबोधित किया, तो ब्रांड एम्बेसडर पर सवाल पूछा गया. इसपर रक्षा मंत्री ने साफ तौर से इंकार कर दिया कि आईएफआर को किसी ब्रांड एम्बेसडर की जरूरत है. उन्होनें साफ किया कि दोनों ही बालीवुड स्टार्स का लेकिन आमंत्रित किया गया था. इसके बाद नौसेना के प्रवक्ता ने भी मीडिया से सफाई दी कि अक्षय कुमार और कंगना रनावत आईएफआर के ब्रांड एम्बेसडर नहीं हैं. 

Thursday, May 9, 2019

भारत फ्रांस की नौसेनाएं कर रही हैं 'वरूणा' एक्सरसाइज



अरब सागर में इनदिनों भारत और फ्रांस की नौसेनाएं एक दूसरे की पनडुब्बी को खोजने का युद्धभ्यास कर रही हैं. इस युद्धभ्यास का नाम है वरूणा. हालांकि, ये दोनों देशों के बीच 17वां युद्धभ्यास है लेकिन खास बात ये है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई नौसेना अपनी परमाणु पनडुब्बी के साथ भारत की समुद्री सीमाओं में पहुंची है. वो भी युद्धभ्यास के लिए. इसके अलावा फ्रांस की नौसेना का एयरक्राफ्ट कैरियर, एफएनएस चार्ल्स डी गुएल और उसपर तैनात राफेल लड़ाकू विमान भी इस खास युद्धभ्यास का हिस्सा है जो 1 मई से 10 मई तक अरब सागर में चल रहा है. इस युद्धभ्यास का दूसरा चरण, अफ्रीकी देश, जिबूती में होगा, जहां पर कुछ समय पहले चीन ने अपना पहला विदेशी मिलिट्री-बेस बनाया है.

नौसेना के प्रवक्ता, कैप्टन डी के शर्मा के मुताबिक, युद्धभ्यास के पहले चरण का अभ्यास सात दिनों तक गोवा में चला था. जहां पर दोनों देशों के नौसैनिकों ने एक दूसरे के जंगी-जहाज, लड़ाकू विमान और पनडुब्बियों को समझने के साथ-साथ एक-दूसरे के वॉर-गेम्स के लिए टेबल-टॉप एक्सरसाइज की. आखिरी तीन दिन (8-10 मई) दोनों देशों की नौसेनाएं समंदर में एक्सरसाइज कर रही हैं.

फ्रांस की नौसेना की तरफ से वरूणा युद्धभ्यास में हिस्सा लेने के लिए चार्ल्स डी गुएल और एक परमाणु पनडुब्बी के साथ साथ दो विंध्वंसक युद्धपोत, फोरबिन और प्रोविंस, एक फ्रीगेट लाटुचे-ट्रेविले और टैंकर मार्ने हिस्सा ले रहे हैं. भारतीय नौसेना की तरफ से विमान-वाहक युद्धपोत, आईएऩएस विक्रमादित्य, डेस्ट्रोयर आईएनएस मुंबई, तेग-क्लास फ्रीगेट तरकश, शिशुमार क्लास पनडुब्बी, शंकुल और एक फ्लीट-टैंकर दीपक हिस्सा ले रहे हैं.

समुद्री युद्धभ्यास में दोनों देशों के युद्धपोतों ने एक दूसरे की पनडुब्बी को ढूंढने का काम किया. इसके लिए टोही विमान और हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया गया, साथ ही दोनों देशों के एयरक्राफ्ट कैरियर पर तैनात लड़ाकू विमान, राफेल (चार्ल्स डी गुएल पर) और मिग-29के (विक्रमादित्य पर) ने मिलकर पिजेन-आईलैंड पर मिलकर गोलाबारी की. साथ ही एयर-डिफेंस को और मजबूत करने के लिए इन फाइटर जेट्स को एयरक्राफ्ट कैरियर के बजाए डेस्ट्रोयर्स को दे दिया गया. इसके साथ साथ दोनों देशों की जंगी जहाजों ने एक दूसरे की युद्धकला और बारीकियों को समझने के लिए अपने अपने टैंकर-जहाजों से एक दूसरे के युद्धपोतों की फ्यूलिंग यानि ईधन भरने का काम किया. जानकारी के मुताबिक, दोनों देश के जंगी जहाजों ने एरयिल टारगेट्स पर गोलाबारी भी की।

आपको बता दें कि पाकिस्तान स्थित ग्वादर पोर्ट तैयार करने के बहाने अरब सागर में लगातार चीन की पनडुब्बियां घूमती रहती हैं. ऐसे में वरूणा एक्सरसाइज में समंदर में सबमरीन ढूंढने का अभ्यास काफी अहम हो जाता है.

जानकारी के मुताबिक, इस महीने के आखिर में दोनों देशों का जंगी बेड़ा, हार्न ऑफ अफ्रीका स्थित देश जिबूती की तरफ रूख करेगा. क्योंकि वरूणा एक्सरसाइज का आखिरी चरण वहीं पर होना है. जिबूती में फ्रांस नौसेना का सैन्य-अड्डा है. हाल ही में चीन ने भी जिबूती में अपना एक मिलिट्री-बेस तैयार किया है. अमेरिका का भी यहां काफी समय से एक बड़ा सैन्य-अड्डा है. यहीं से अमेरिका सीरिया और ईराक में अपने ऑपरेशन्स करता है. इसके साथ साथ सोमिलायाई समुद्री-लुटेरों पर नकेल कसने के लिए भी ये मिलिट्री बेस काफी महत्वपूर्ण हैं.

महा'विराट' आरोप पर बढ़ा विवाद, पूर्व कमांडर ने मोदी के आरोपों का किया खंडन


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तत्कालीन पीएम राजीव गांधी और आईएनएस विराट के बेजा इस्तेमाल पर विवाद बढ़ गया है. अब आईएनएस विराट के कमांडर ने दावा किया है कि दिसम्बर 1987 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री होने के नाते आधिकारिक तौर पर नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर पर आए थे, ना कि छुट्टी मनाने के लिए. लेखक से फोन पर बातचीत में विराट के तत्कालीन सीओ (कमांडिंग ऑफिसर) विनोद पशरीचा ने कहा कि एयरक्राफ्ट कैरियर का इस्तेमाल पीएम और उनकी पत्नी (सोनिया गांधी को) लक्षद्वीप ले जाने के लिए इस्तेमाल किया गया था. 

दरअसल, बुधवार की शाम को राजधानी दिल्ली में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नौसेना के विमान-वाहक यु्द्धपोत, आईएनएस विराट को छुट्टियां मनाने के लिए 'निजी-टैक्सी' की तरह इस्तेमाल किया था. साथ ही आरोप लगाया था कि छुट्टी मनाने के दौरान राजीव गांधी के साथ उनके इटली के रिश्तेदार भी शामिल थे. 

लेकिन विनोद पशरीचा ने साफ तौर से कहा कि राजीव गांधी लक्षद्वीप एक आधिकारिक मीटिंग के लिए गए थे. इसी लिए आईएनएस विराट से उन्हें वहां ले जाया गया था. उनके साथ उनकी पत्नी सोनिया गांधी भी थीं. ये मीटिंग आईलैंड्स के समूह से जुड़ी थी. पशरीचा ने कहा कि विराट पर कोई पार्टी नहीं हुई थी, जैसाकि इनदिनों आरोप लगाया जा रहा है. उन्होनें ये भी कहा कि इस दौरान कोई भी विदेशी नागरिक विराट पर नहीं आया था. ना ही अमिताभ बच्चन ही विराट पर आए थे. 

आईएनएस विराट, नौसेना का विमान-वाहक युद्धपोत था जो 30 साल देश की सेवा करने के बाद 2017 में रिटायर हो गया था। 

दरअसल, पीएम मोदी के आरोपों के बाद 1988 के इंडिया टुडे मैगजीन का एक लेख भी सामने आया है जिसमें ये लिखा हुआ है कि लक्षद्वीप में छुट्टी मनाने के दौरान राजीव गांधी के साथ उनकी पत्नी सोनिया गांधी और बच्चे तो थे ही साथ में इटली के रिश्तेदार सहित अमिताभ बच्चन का परिवार भी था. लेख का दावा है कि इस दौरान आईएनएस विराट वहां तैनात रहा था. हालांकि ये साफ नहीं हो पाया है कि क्या वाकई नौसेना ने उस वक्त आधिकारिक तौर पर इस लेख का खंडन किया था. गौरतलब है कि कि वायस एडमिरल पशरीचा (जिन्हें नौसेना में 'पाशा' के नाम से जाना जाता है) बाद में मुंबई‌ स्थित नौसेना की पश्चिमी कमान के कमांडिंग इन चीफ यानि सीेएनसी बनकर रिटायर हुए थे.

सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री और उनका परिवार किसी भी युद्धपोत भी सवार हो सकता है. नौसेना से जुड़े सूत्रों ने एबीपी न्यूज से कहा कि किसी भी युद्धपोत के लिए ये बेहद ही गर्व की बात होती है कि कोेई पीएम उसपर सवार हो. क्योंकि 1987 में लक्षद्वीप में कोई लैंडिंग स्ट्रीप नहीं थी (जहां कोई जहाज उतारा जा सके) इसलिए पीएम और उनकी पत्नी को केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम से नौैसेना के एक हेलीकॉप्टर ने पिक किया था.  वहां से हेलीकॉप्टर विराट के डेक पर पहुंचा और फिर लक्षदीप गए थे. 

राजीव गांधी की इस यात्रा का जिक्र नौसेना की विराट पर जारी की गई कॉफी-टेबल बुक में भी हैं. इस बुक की एक तस्वीर में पशरीचा राजीव गांधी और उस वक्त के नौसेना प्रमुख, आर एच टहिलायनी दिख रहे हैं. बुक में राजीव गांधी एक युद्धभ्यास का जिक्र करते हैं और हस्ताक्षर करते हैं विजिटर बुक पर. साथ में विराट पर उनके मेजबानी की बात भी लिखी है. 

इस बीच पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल रामदास ने एक प्रेस वक्तव्य जारी कर पीएम मोदी के बयान का खंडन किया है. रामदास के मुताबिक, उस वक्त वे कोच्चि स्थित नौसेना की दक्षिणी कमान के कमांडर इन चीफ (सीएनसी) थे और जिस राजीव गांधी के दौरे के वक्त विराट पर मौजूद थे. इसके प्रेस स्टटेमेंट को उन्होनें पशरीचा, एडमिरल अरूण प्रकाश और वायस एडमिरल मदनजीत सिंह की तरफ से भी लिखा है. अरूण प्रकाश उस दौरान आईएनएस विंध्यागिरी के सीओ थे जबकि मदनजीत सिंह आईएनएस गंगा के सीओ थे. ये दोनों युद्धपोत विराट के साथ युद्धभ्यास में तैनात थे (जिसका जिक्र कॉफी टेबल बुक में भी है).

इस बीच विराट पर तैनात एक कमांडर (वी के जेटली) ने ट्वीटर
 पर आरोप लगाया है कि राजीव गांधी ने छुट्टिया मनाने के लिए आईएनएस विराट का इस्तेमाल किया था.

दरअसल, जो जानकारी सामने आई है‌‌ उसके मुताबिक अपनी आधिकारिक बैठक निपटाने के बाद राजीव गांधी और सोनिया गांधी लक्षद्वीप के बंगराम द्वीप छुट्टियां मनाने चले गए थे। वहां पर उन छुट्टियों को मनाने के लिए राहुल गांधी, इटली के रिश्तेदार और अमिताभ बच्चन का परिवार पहुंच गया था। 

Tuesday, May 7, 2019

अफगानिस्तान में शांति की राह नहीं है आसान


भारत में आम चुनावों की सरगर्मी के बीच सोमवार को विदेश मंत्रालय ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की एक फोटो ट्वीट की. फोटो कतर की राजधानी, दोहा की थी जिसमें विदेश मंत्री के साथ थे अमेरिका के खास राजनयिक, ज़लमे खलीलज़ाद, जो अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए तालिबान से बात करने के लिए नियुक्त किए गए हैं. खास बात ये है कि ये फोटो ऐसे वक्त में आई जब कतर में ही अमेरिका और तालिबान के बीच शांति-वार्ता छठी बार फेल हो गई थी. दुनियाभर की तरह भारत भी इस वार्ता पर नजरें गड़ाए बैठा है कि आखिर क्या वजह है कि जिस देश की दुनिया में सबसे ताकतवर सेना है और पिछले 17 सालों से अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ रहा है, वही अमेरिका आज तालिबान से बातचीत के लिए कैसे तैयार हो गया. 

क्या सुपर-पॉवर ने तालिबान के लड़ाकों के सामने घुटने टेक दिया हैं. लड़ाकें इसलिए क्योंकि अमेरिका भले ही पिछले 17 सालों से तालिबान के खिलाफ लड़ रहा हो, लेकिन वो तालिबान को एक आंतकी संगठन नहीं बल्कि 'मिलिशिया' या फिर एक विद्रोही संगठन मानता है. सवाल ये भी है कि जब आज अमेरिका जैसा देश तालिबान से वार्ता के लिए तैयार है तो क्या भविष्य में सीरिया या फिर ईराक में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन के साथ एक टेबल साझा कर सकता है. क्या अमेरिका की सेना तालिबान से गुरिल्ला युद्ध करते करते थक गई है और इसलिए अफगानिस्तान को बीच मझधार में छोड़कर जाने के लिए तैयार है.  

लेकिन जब अमेरिका और तालिबान के बीच एक बार फिर शांति-वार्ता विफल हो गई है तो ऐसे में भारत के लिए क्या कोई खास संदेश है. क्योंकि खलीलज़ाद के साथ भारत की विदेश मंत्री के साथ फोटो भी लगभग उसी वक्त आई है जब वार्ता फेल होने की आई. माना जा रहा है कि तालिबान से शांति-वार्ता अमेरिकी सैनिकों की वापसी के समय को लेकर विफल हुई है। 

कम ही लोग जानते हैं कि 1947 से पहले तो अफगानिस्तान की सीमा भारत (वृहत-भारत) से मिलती ही थी, लेकिन पाकिस्तान से बंटवारे के बाद भी भारत और अफगानिस्तान के बीच करीब 65 किलोमीटर का बॉर्डर था. लेकिन 1948 के युद्ध के बाद हुए युद्धविराम उल्लंघन के बाद गिलगिट-बालतिस्तान (पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर यानि पीओके) का ये इलाका पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. बाद में पाकिस्तान ने शगज़म घाटी का ये हिस्सा चीन को दे दिया था. इसके बावजूद अगर 90 के दशक के तालिबान के राज को छोड़़ दें तो भारत और अफगानिस्तान का संबंध बेहद करीबी रहा है. मौजूदा लोकतांत्रिक सरकार भी भारत के काफी करीबी है. भारत इस समय अफगानिस्तान में सबसे बड़े निवेशक-देशों में शामिल है जो सड़कों से लेकर, डैम और वहां की संसद की बिल्डिंग से लेकर अफगान सैनिकों को ट्रैनिंग देने तक का काम करता है. 

लेकिन, अगर अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़कर निकल जाते हैं, जो तालिबान और अमेरिका की शांति-वार्ता का एक अहम हिस्सा है तो क्या भारतीय सैनिक उस जगह को भर सकते हैं. इस पर अभी से कयास लगाना बाकी है. क्योंकि इस सवाल का जवाब बहुत हद तक 23 मई के बाद बनने वाली नए सरकार पर निर्भर करेगा. 

हालांकि अभी तक भारत अपने सैनिकों को अफगानिस्तान भेजने के लिए तैयार नहीं है. इसके दो-तीन मुख्य कारण हैं. पहला तो ये कि भारत अभी तक ब्लू-बेरेत यानि संयुक्त-राष्ट्र शांति-सेना के तत्वाधान में ही किसी दूसरे देश में अपने सैनिकों को भेजता है. भारत अभी भी अमेरिका के नेतृत्व वाले नॉटो या फिर किसी दूसरे अंतर्राष्ट्रीय-सैन्य मंच का हिस्सा नहीं है. दूसरा ये कि शगज़म-वैली के भारत के कट जाने से भारत का अफगानिस्तान से सीधा लैंड-कनेक्शन नहीं है. ऐसे में सैनिकों की मूवमेंट करना काफी मुश्किल हो जायेगा. हवाई-मार्ग से सैनिकों को भेजना काफी महंगा सौदा हो सकता है. तीसरा कारण ये भी हो सकता है कि भारत में बड़ी संख्या में मुस्लिम-जनसंख्या है. ऐसे में अफगानिस्तान में मुस्लिमों के खिलाफ लड़ना राजनैतिक तौर से भारत के मुस्लिमों के खिलाफ जा सकता है. 

साथ ही श्रीलंका में शांति-सेना भेजने का (कड़वा) अनुभव भी भारत झेल चुका है. लेकिन इस सबके बावजूद जिस तरह से पिछले कुछ सालों में भारत का कद वैश्विक स्तर पर बढ़ा है उससे किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. साथ ही भारत ने श्रीलंका में भेजी पीसकिपिंग फोर्स के अनुभव से भी काफी कुछ सीखा है. आज भारत की सेनाएं अमेरिका और रूस जैसे देशों के साथ बड़े युद्धभ्यास करती है. आपको बता दें कि ये युद्धभ्यास भले ही यूएन के चार्टर के तहत टेरेरिज्म के खिलाफ होते हैं लेकिन जिस तरह सुपर-पॉवर (खास तौर से रूस जैसी सेना) आतंकियों के खिलाफ अपने टैंक और हवाई-हमले के जरिए ऑपरेशन्स करती है उससे भारतीय सेनाओं ने काफी कुछ सीखा है और किसी भी तरह के मिशन को अंजाम देने में सक्षम है. 

कुछ समय पहले अमेरिका ने भारत को अफगानिस्तान में 'फुट ऑन सोल्जर्स' के लिए आमंत्रित किया था. क्योंकि अमेरिका का मानना है कि अफगानिस्तान की समस्या एक क्षेत्रीय समस्या है और इससे इस क्षेत्र की जो महाशक्तियां हैं वो निपटें (आपको बता दें कि अमेरिका एशिया-पैसेफिक रिजन में भारत को एक बड़ी शक्ति मानता है). लेकिन भारत ने ये कहकर पेशकश ठुकरा दी थी कि वो सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में ही अपने सैनिकों को वहां भेज सकता है. 

दरअसल, 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर ये कहकर हमला किया था कि वहां कि कट्टरपंथी तालिबान-सरकार अल-कायदा और उसके मुखिया ओसामा बिन लादेन को सरंक्षण देती है. इसके बाद तालिबान सरकार को उखा़ड़ फेंक-कर वहां लोकतांत्रिक सरकार की बहाली तो हुई लेकिन 17 साल बाद भी तालिबान के लड़ाके करीब 50 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा किए हुए हैं और करीब-करीब 75 फीसदी पर उनका प्रभाव है. अमेरिका सेना की मौजूदगी के बावजूद कोई सा दिन ऐसा जाता है जब तालिबान वहां कोई बड़ा हमला ना करता हो. यहां तक की शांति-वार्ता के दौरान भी वहां हमले हो रहे हैं.

अफगानिस्तान का इतिहास उठाकर देंखे तो पता चलेगा कि कोई भी देश और सेना आजतक पठानों के देश पर अपना दबदबा कायम नहीं कर पाई। लेकिन खुद अफगान के कबीलों का इतिहास भी खूनी-संघर्ष 
से भरा रहा है (जो शायद आज भी जारी है).

अमेरिका को शायद अब समझ चुका है कि अफगानिस्तान में शांति कायम करना एक टेढ़ी खीर है. साथ ही 9-11 हमले का गुनहगार, ओसामा भी मारा जा चुका है और अल-कायदा पर बहुत हद तक नकेल भी कसी जा चुकी है. ऐसे में अफगानिस्तान में रूकना अब फायदा का सौदा नहीं है. लेकिन भारत सहित कई देश चाहते हैं कि अमेरिका फौज को अभी कुछ समय और अफगानिस्तान में रूकना चाहिए. तब तक जबतक की अफगान सैनिकों को पूरी तरह से प्रशिक्षण कर तालिबान से लड़ने के काबिल ना बना दिया जाए.   

भारत अफगानिस्तान में शांति इसलिए भी कायम करना चाहता है ताकि जिस चाबहार बंदरगाह को भारत ने तैयार किया है उससे अफगानिस्तान के जरिए मध्य-एशियाई देश और रूस से सीधे लैंड कनेक्शन स्थापित किया जा सके, जो व्यापार और सामरिक तौर से भारत के लिए महत्वपूर्ण है. 

लेकिन इस शांति-वार्ता के बीच में तीन और अहम खिलाड़ी हैं जो किसी ना किसी तरह से अफगानिस्तान के लिए महत्वपूर्ण हैं. पहला है पाकिस्तान. अफगानिस्तान से जुड़ा होने के साथ साथ ये बात भी जग-जाहिर है कि पाकिस्तान के तालिबान से काफी करीबी संबंध हैं. अफगानिस्तान में जब तालिबान की सरकार थी तब पाकिस्तान की उससे दोस्ती किसी से छिपी नहीं थी. जबकि अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार के दौरान पाकिस्तान के संबंधों में खटास आ गई है. आए दिन डूरंड-लाइन (दोनों देशों के बीच बॉर्डर) पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सैनिकों के बीच झड़प की खबर आती रहती है. यही वजह है कि पाकिस्तान अब अफगानिस्तान की सीमा पर तारबंदी कर रहा है (जैसा भारत ने पाकिस्तान की सीमा पर कर रही है). हालांकि तालिबान भी इस डूरंड लाइन को नहीं मानता है और पाकिस्तान के बड़े हिस्से पर अपना दावा करता है. लेकिन इसी तालिबान को अमेरिका से शांति-वार्ता के लिए पाकिस्तान ने एक अहम भूमिका निभाई है. 

पाकिस्तान के अलावा रूस पर भी तालिबान को मदद देने के आरोप लगते रहते हैं. तालिबान का राज कायम होने से पहले शीत युद्ध के समय (80 के दशक) में रूसी सेना भी अफगानिस्तान में तैनात थी और वहां से जाने से पहले नजीबुल्लाह की 'पपेट' सरकार को अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज किया था. रूस भी अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. इसके लिए हाल ही में 'मास्को-फॉरमेट' में भारत ने भी 'नॉन-ऑफिसयल' तरीके से हिस्सा लिया. रूस भी चाहता है कि उसका कट्टर-दुश्मन, अमेरिका अफगानिस्तान से निकल जाए और फिर वहां अपना प्रभुत्व वहां एक बार फिर से कायम कर ले. लेकिन ये इतना आसान नहीं है. क्योंकि तालिबान को मुख्यधारा में लाना और फिर चुनाव के लिए तैयार करना एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि तालिबान शरिया और कट्टर इस्लामिक विचारधारा को मानने वाला संगठन है. शांति कायम ना होने के चलते अफगानिस्तान में राष्ट्रपति-चुनाव ही समय पर नहीं हो पा रहे हैं। 

लेकिन इस सब में चीन को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जो एशिया हीं नहीं पूरे विश्व में एक महाशक्ति के तौर पर उभर रहा है और एशिया-पैसेफिक से लेकर अफ्रीका तक अपने पांव जमाने की भरपूर कोशिश कर रहा है. अफगानिस्तान की शांति बहाली से चीन वहां पर अपनी दूरगामी योजना, 'बेल्ट एंड रोड इनिशेयेटिव' (बीआरआई) को पसारने की कोशिश में रहेगा.