Tuesday, July 21, 2015

चीनी नौसेना की भारतीय बेड़े से कदमताल: कितना चल पाएंगे साथ

मुंबई में 'पोर्ट-कॉल' पर आया चीन का युद्धपोत, जिनान
   चीन ने भारत में आयोजित इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू (आईएफआर) में हिस्सा लेने के लिए मंजूरी दे दी है. यानि  जल्द ही चीन के युद्धपोत भारत के जंगी बेड़े के साथ बंगाल की खाड़ी में कदम से कदम मिलाते दिखाए देंगे. इस बात की जानकारी भारतीय नौसेना के एक बड़े अधिकारी ने दी है.

      अगले साल फरवरी में भारतीय नौसेना अंतर्राष्ट्रीय जहाजी बेड़े की समीक्षा का आयोजन करने जा रहा है. नौसेना के पूर्वी कमांड के विशाखापट्टनम स्थित मुख्यालय में इस अंतर्राष्ट्रीय सैन्य पर्व का आयोजन किया जा रहा है. भारत ने करीब 90 देशों को इस आयोजन के लिए आमंत्रण भेजा था. अब तक 45 देश इस फ्लीट रिव्यू में भाग लेने के लिए हामी भर चुके हैं. इन देशों में अमेरिका, रशिया, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसी बड़ी नौसेनाएं भी शामिल हैं. लेकिन सबसे चौकाने वाला नाम था चीन.

     आईएफआर में दुनियाभर की नौसेनाएं अपने युद्धक समुद्री जहाजों के बेड़े और नौसैनिकों के साथ शिरकत करेंगी. 5 फरवरी 2016 को शुरु होने वाले पांच-दिवसीय इस आयोजन में सभी नौसेनाएं अपनी समुद्री ताकत का प्रर्दशन करेंगी. खुद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समोराह में मौजूद रहेंगे. राष्ट्रपति, जो तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर भी हैं, जहाजी बेड़ों की समीक्षा करेंगें और सैल्यूट भी लेंगे.
चीन की पीएलए नेवी का फ्लैग
           भारतीय नौसेना ने चीन को भी आईएफआर में शामिल होने का न्यौता दिया था. लेकिन ये एक औपचारिकता भर थी. हैरानी तब हुई जब चीन की पीप्लुस लिबरेशन आर्मी (नेवी) ने भारत के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया. दरअसल, भारत हर साल डिफेंस एक्सपो के लिए चीन को आमंत्रित करता था. लेकिन चीन ने कभी भी इसमें हिस्सा नहीं लिया. ऐसे में आईएफआर में हिस्सा लेने के तैयार हो जाना काफी मायने रखता है. क्या ये भारत और चीन के रिश्तों में आई गर्मजोशी का हिस्सा है या फिर इसके पीछे भी ड्रैगन का कोई राज़ है.

          हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जिस तरह से भारत आकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दोस्ती की पींग बढ़ाई, ये उसी का नतीजा लगता है. खुद पीएम मोदी की चीन यात्रा और फिर रुस में ब्रिक्स और एससीओ (शंघाई कॉपरेशन ऑर्गेनाइजेशन) की बैठक में चीनी राष्ट्रपति से गर्मजोशी भरी मुलाकात इसी की तरफ इशारा करती है.
         चीन की भारत से नजदीकियां बढ़ रहीं हैं, इसका बात का प्रमाण सोमवार (20 जुलाई) को ही एक बार फिर मिला. चीन का एक मिसाइल डिस्ट्रोयर युद्धपोत, जिनान अदन की खाड़ी से लौटते हुए चार-दिन के लिए पोर्ट-कॉल यानि शिष्टाचार के नाते पहुंचा. ये युद्धपोत अदन की खाड़ी में एंटी-पायरेसी एस्कोर्ट का हिस्सा था.  
कराची पोर्ट पर खड़ी चीनी पनडुब्बी की नासा द्वारा जारी तस्वीर



      लेकिन भारत चीन की दोस्ती पर इतनी जल्दी ऐतबार नहीं कर सकता है. हाल ही में जब चीन की पनडुब्बी हिंद महासागर में दिखाई दी, तो दुनियाभर के कान खड़े हो गए थे. खुद भारतीय नौसेना में भी हड़कंप मच गया था. चीन की ये पनडुब्बी पाकिस्तान के कराची पोर्ट पर अपने सपोर्ट शिप (सहयोगी शिप) के साथ कई दिन तक खड़ी रही थी. खुद नासा ने ये तस्वीरें जारी की थी. अब भारतीय नौसेना के विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि चीन अपने मित्र पाकिस्तान को जल्द ही चार (04) पनडुब्बियां देने (बेचने) वाला है. पीएलए (नेवी) ने ये पनडुब्बी पाकिस्तान को दिखाने के लिए भेजी थी. क्योंकि इसी तरह की पनडुब्बी चीन पाकिस्तान को देगा साथ ही चार और पनडुब्बी पाकिस्तान चीन की मदद से कराची स्थित शिपयार्ड में तैयार करेगा. मतलब साफ है चीन ने भारत से दोस्ती का हाथ पिछले कुछ दिनों बढ़ाया लेकिन उसका प्यार पाकिस्तान से कहीं ज्यादा है. यही वजह है चीन पाकिस्तान की सैन्य ताकत बढ़ाने में भरसक मदद कर रहा है. यानि भारत को चीन के साथ संभल-संभल कर कदम बढ़ाना होगा.

Saturday, July 18, 2015

आईएनएस विशाल-रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों की बड़ी दस्तक !



अनिल अंबानी ने एक सार्वजनिक मंच पर इस बात पर जोर दिया था कि रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों को सरकारी उपक्रमों से बराबरी की प्रतिस्पर्धा में रखना चाहिए

 
देश में मेक इन इंडिया के तहत पहली बार नौसेना के लिए परमाणु एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने के लिए निजी क्षेत्र के कंपनियों को भी मौका दिया गया है. इस संदर्भ में भारतीय नौसेना ने देश के चार (04) प्राईवेट शिपयार्ड से उनकी राय पूछी है कि क्या वो इसे बनाने में सक्षम हैं. अगर हां, तो वे सरकारी शिपयार्ड से टेंडर लेने के लिए मुकाबले को तैयार हो जाएं. नौसेना ने इन चार प्राईवेट कंपनियों के साथ-साथ देश के पांच बड़े शिपयार्ड से भी सबसे बड़े स्वेदशी विमान-वाहक युद्धपोत बनाने के लिए राय मांगी है. 

      ये शायद पहली बार है जब रक्षा क्षेत्र में प्राईवेट कंपनियों को इतना बड़ा अवसर दिया जा रहा है. अभी तक रक्षा क्षेत्र में सरकारी कंपनियों का ही बोल-बाला था।

      गुरुवार को ही जाने-माने उद्योगपति और रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक, अनिल अंबानी ने एक सार्वजनिक मंच पर इस बात पर जोर दिया था कि रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों को सरकारी उपक्रमों से बराबरी की प्रतिस्पर्धा में रखना चाहिए.

      नौसेना के अधिकारियों के मुताबिक, इस एयरक्राफ्ट कैरियर को बनाने के लिए वाइस एडमिरल सुरेन्द्र आहूजा के नेतृत्व में एक स्टडी-ग्रुप बनाया गया है. इस ग्रुप ने इस विमान-वाहक युद्धपोत, जिसे नौसेना ने आईएसी-2 (यानि इंडिजीनेस एयरक्राफ्ट कैरियर-2) या आईएनएस विशाल का नाम दिया है,  उसके लिए कुल नौ (09) शिपयार्ड जिसमे चार प्राईवेट हैं उन्हे पत्र लिखकर उनसे उनकी राय (एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) पूछी है.

       ये चार प्राईवेट शिपयार्ड हैं-रिलायंस का गुजरात स्थित पीपाव, एलएंडटी, एवीजी और भारती. जो सरकारी उपक्रम हैं, वे हैं मुंबई स्थित मज़गांव डाकयार्ड (देश का सबसे बड़ा शिपयार्ड), विशाखापट्टनम स्थित हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (एचएसएल), गोवा स्थित गोवा शिपयार्ड (जीएसएल), कोलकत्ता स्थित गार्डन रिच शिपयार्ड एंड इंजीनियरिंग (जीआरएसई) और कोच्चि स्थित कोच्चि शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल). इन सरकारी शिपयार्ड में, जीएसएल, जो जहाजरानी मंत्रालय के अधीन काम करता है, बाकी सभी रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले सरकारी उपक्रम हैं. कोच्चि शिपयार्ड ही देश का

      65 हजार टन का ये युद्धपोत देश का सबसे बड़ा एयरक्राफ्ट कैरियर होगा. अभी तक भारत के पास जो सबसे बड़ा युद्धपोत है, वो 40 हजार टन का आईएनएस विक्रमादित्य है, जिसे रशिया से खरीदा गया है. वहीं पहला स्वेदशी युद्धपोत, आईएनएस विक्रांत (या आईएसी-1) जो कोच्चि शिपयार्ड में बन  रहा है, वो करीब 45 हजार टन का है. 

अनिल अंबानी

    गुरुवार को नौसेना और सीआईआई के एक सेमिनार में अनिल अंबानी ने सार्वजनिक रुप से कहा था कि रक्षा क्षेत्र में प्राईवेट कंपनियों को भी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए—अभी तक इस क्षेत्र में सरकारी उपक्रमों का बोलबाला था.

     अनिल अंबानी ने ये भी कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया विजन के तहत सशस्त्र-बलों को जरुरी सैन्य साजों-सामान देने के लिए तैयार हैं, लेकिन उसके लिए अनिल अंबानी ने रक्षा क्षेत्र में पारर्दशिता और सही कार्यप्रणाली (फेयर प्रोसिजर) अपनाने पर जोर दिया था. अनिल अंबानी की रिलायंस कंपनी ने हाल ही में गुजरात स्थित पीपाव शिपयार्ड को दस हजार करोड़ रुपये में खरीदा है और खरीदने के बाद ही उसमें पांच हजार करोड़ रुपये के निवेश किया है. पीपाव ने रशिया के एक बड़े शिपयार्ड के साथ भी समझौता किया है ताकि यहां युद्पोत तैयार किए जा सकें.
ऐसे में आज ही ये खबर आना की नौसेना के सबसे बड़े एयरक्राफ्ट बनाने के लिए प्राईवेट कंपनियों को न्यौता दिया गया है, एक सराहनीय कदम हैं.
आईएनएस विराट


     किसी भी देश की नौसेना की ताकत होता है विमान-वाहक युद्धपोत यानि एयरक्राफ्ट कैरियर. जिस किसी भी देश की नौसेना के जंगी बेड़े में ये शक्तिशाली युद्धपोत होता है, उस देश की समुद्री ताकत दुगनी या यूं कहें कि तिगनी-चौगनी हो जाती है. एयरक्राफ्ट कैरियर चाहे अपनी समुद्री-सीमा में हो या सात-समंदर पार, वो अपने देश का प्रतिनिधित्व तो करता ही है अपने-आप में संप्रभुता का प्रतीक भी होता है. दूसरे शब्दों में वो समुद्र में चलता-फिरता किला या फिर देश है.

     जैसा कि नाम से विदित है, एयरक्राफ्ट कैरियर की ताकत उसपर तैनात लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर होते हैं. मिग, सुखोई, मिराज, ईगल इत्यादि सुपरसोनिक फाइटर प्लेन, जो आवाज की गति से भी तेज उड़ते हैं और पलक झपकते ही दुश्मन को नेश्तानबूत करने का माद्दा रखते हैं, वे इस जंगी युद्धपोत को और अधिक घातक बना देते हैं. ये जहाज कितना विशालकाय होता है इसका पता इस बात से सहज लगाया जा सकता है कि इसका फ्लाई-डेक (यानि जहां से फाइटर प्लेन टैक-ऑफ या लैंडिग (उड़ान) भरते हैं वो दो-तीन फुटबॉल ग्राउंड की बराबर होता है. आईएनएस विशाल पर करीब 50 लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर तैनात किए जाने के प्लान तैयार किया गया है.

      भारत के पास फिलहाल दो विमान-वाहक युद्धपोत हैं—आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विराट. विराट अगले साल मार्च-अप्रैल में रिटायर होने वाला है. भारत का जो स्वेदशी, आईएनएस विक्रांत कोच्चि में तैयार किया जा रहा है, वो अगले साल के अंत ही बनकर तैयार किया जायेगा. विशाल के आने के बाद भारतीय नौसेना की ताकत में कई गुना इजाफा तो हो ही जायेगा, साथ ही दुनिया के उन चंद देशों की श्रेणी में शामिल हो जायेगा जिनके जंगी बेड़े में दो या दो से ज्यादा एयरक्राफ्ट हैं.

Friday, July 10, 2015

सैन्य विरासत को संजोने की कवायद: आईएनएस विराट होगा म्यूजियम में तब्दील


तटीय-प्रदेश आंध्रा के सीएम, चंद्रबाबू नायडू का एयरक्राफ्ट कैरियर से लगाव होना तो लाजमी है ही लेकिन वे ये भी बखूबी जानते हैं कि अगर विराट को म्यूजियम में बदल दिया जाए तो उससे पर्यटकों को भी बखूबी लुभाया जा सकता है.


 
आईएनएस विराट
किसी भी देश की नौसेना की ताकत होता है विमान-वाहक युद्धपोत यानि एयरक्राफ्ट कैरियर. जिस किसी भी देश की नौसेना के जंगी बेड़े में ये शक्तिशाली युद्धपोत होता है, उस देश की समुद्री ताकत दुगनी या यूं कहें कि तिगनी-चौगनी हो जाती है. एयरक्राफ्ट कैरियर चाहे अपनी समुद्री-सीमा में हो या सात-समंदर पार, वो अपने देश का प्रतिनिधित्व तो करता ही है अपने-आप में संप्रभुता का प्रतीक भी होता है. दूसरे शब्दों में वो समुद्र में चलता-फिरता किला या फिर देश है. 

    जैसा कि नाम से विदित है, एयरक्राफ्ट कैरियर की ताकत उसपर तैनात लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर होते हैं. मिग, सुखोई, मिराज, ईगल इत्यादि सुपरसोनिक फाइटर प्लेन, जो आवाज की गति से भी तेज उड़ते हैं और पलक झपकते ही दुश्मन को नेश्तानबूत करने का माद्दा रखते हैं, वे इस जंगी युद्धपोत को और अधिक घातक बना देते हैं. ये जहाज कितना विशालकाय होता है इसका पता इस बात से सहज लगाया जा सकता है कि इसका फ्लाई-डेक (यानि जहां से फाइटर प्लेन टैक-ऑफ या लैंडिग (उड़ान) भरते हैं वो दो-तीन फुटबॉल ग्राउंड की बराबर होता है.

    लेकिन एक एयरक्राफ्ट कैरियर जितना महंगा होता है (20 हजार करोड़ से लेकर 50-60 हजार करोड़ कीमत), उसका रखरखाव भी उतना ही मंहगा होता है. माना जाता है कि एक विमान-वाहक युद्धपोत के रखरखाव में हर साल करीब 100 करोड़ रुपये का खर्चा आता है. जबतक एयरक्राफ्ट कैरियर ओपरेशनल यानि सक्षम होता है तबतक तो हर देश की नौसेना उसका खर्चा उठाती है, लेकिन उसके रिटायर (अक्षम) होने पर काफी मुश्किल आती है. उसके रख-रखाव में होने वाला खर्च किसी को भी चुभने लगता है. लेकिन जिस देश की सेवा में उस जहाज ने 25-30 या फिर 40-50 साल लगाएं हों उससे इमोशनल-अटैचमेंट भी काफी हो जाता है.

      ऐसे में जब हाल ही में भारतीय नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विक्रांत को तोड़कर (और पिघलाकर) स्क्रैप (यानि कबाड़) में तब्दील कर दिया गया, तब देश में काफी हाय-तौबा मचा. आईएनएस विक्रांत करीब 17 साल पहले नौसेना से रिटायर हो चुका था. 
आईएनएस विक्रांत कबाड़ में तब्दील (फोटो सभार: गूगल)
भारत ने आईएनएस
विक्रांत को ब्रिटेन से 60 के दशक में तब खरीदा था जब वो ब्रिटिश रॉयल-नेवी से रिटायर हो चुका था. भारतीय नौसेना में 30-35 साल काम करने के बाद, विक्रांत को 1998 में रिटायर कर दिया गया. अगले 17 साल यानि 2015 तक वो ऐसे ही मुंबई डॉकयार्ड में खड़ा रहा. जेट्टी पर जगह घेरने के साथ-साथ हर साल नौसेना को 100 करोड़ रुपये उसके रख-रखाव में खर्च करना पड़ रहा था. ऐसे में नौसेना ने उसे स्क्रैप-डीलर्स को बेच दिया. ये बात जैसे ही सार्वजनिक हुई, हाय-तौबा मच गया. हर किसी ने नौसेना के इस कदम का विरोध किया. लेकिन किसी ने उस भीमकाय जहाज का क्या किया जाए, कोई सुझाव नहीं दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा, लेकिन कोई रास्ता ना मिलता देख सर्वोच्च न्यायालय ने भी विक्रांत को स्क्रैप में तब्दील करने की हरी झंडी दिखा दी.

      एक बार फिर ऐसी ही नौबत आने वाली थी, लेकिन इस बार देशवासी और हमारे नेताओं ने सैन्य सामुद्रिक-विरासत को संजोने के लिए हाथ आगे बढ़ाया है. भारत का एक और एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विराट अगले साल की शुरुआत में रिटायर होने वाला है. जैसे ही ये खबर आंध्रा-प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को लगी, उन्होनें सीधे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को चिठ्टी लिखकर विराट को रिटायर होने के बाद खरीदने की इच्छा जताई. चंद्रबाबू नायडू विराट को म्यूजियम में तब्दील करने का प्लान बना रहे हैं. जैसे ही नायडू का ये प्लान जग-जाहिर हुआ, सभी ने उनके प्लान की भूरि-भूरि प्रशंसा की.
विराट का प्रतीक-चिंह


     विराट को भी भारत ने 1987 में ब्रिटिश रॉयल नेवी से खरीदा था. उस वक्त विराट ब्रिटेश नौसेना में 25 साल गुजार चुका था. उसने अर्जंटीना के खिलाफ फॉकलैंड-युद्ध में महत्वपूर्ण हिस्सा लिया था. अब भारत में करीब 30 साल सेवा देने के बाद 'विराट' की भी रिटायर की बारी है.

     तटीय-प्रदेश आंध्रा के सीएम, चंद्रबाबू नायडू का एयरक्राफ्ट कैरियर से लगाव होना तो लाजमी है ही लेकिन वे ये भी बखूबी जानते हैं कि अगर विराट को म्यूजियम में बदल दिया जाए तो उससे पर्यटकों को भी बखूबी लुभाया जा सकता है. आंध्रा-प्रदेश की तटीय-राजधानी विशाखापट्टनम में पहले से ही कुरसुरा नाम का पनडुब्बी-म्यूजियम है, जहां रोजाना बड़ी तदाद में टूरिस्ट घूमने आते हैं.

     आंध्रा प्रदेश की पहल को देखते हुए, रक्षा मंत्रालय ने देश के बाकी आठ तटीय-प्रदेशों (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल) से भी विराट से जुड़े सुझाव मांगें हैं. जाहिर है अपनी समुद्री-सैन्य विरासत को संजोने से जुड़ा मामला जो है. यानि विराट का वो हश्र नहीं होगा जो विक्रांत का हुआ है.