Wednesday, March 30, 2016

क्या युद्ध से डरता है भारत ?

दिल्ली में एनआईए अधिकारियों के साथ पाकिस्तानी जांच टीम
पठानकोट हमले की जांच के लिए पाकिस्तान की ज्वाइंट इंवेस्टीगेशन टीम (जेआईटी) इनदिनों भारत के दौरे पर आई हुई है. हालांकि पांच सदस्य वाली इस टीम को इंवेस्टीगेशन कम और इंटेलीजेंस-टीम कहना ज्यादा बेहतर होगा. क्योंकि इस टीम में मात्र दो जांच (पुलिस) अधिकारी है जबकि तीन खुफिया अधिकारी हैं. हालांकि ये मुद्दा इतना इतर नहीं है जितना कि ये कि क्या शांति बहाली के लिए भारत इतना बैचेन (या आतुर) हो जायेगा कि अपने सबसे कट्टर दुश्मन की सेना और सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी के अधिकारियों को अपने मिलेट्री बेस में घुसने तक की इजाजत दे सकता है. क्या वाकई भारत आतंक के खिलाफ सीधे लड़ाई लड़ने से डरता है? क्या वाकई हमारा देश युद्ध करने से डरता है? और अगर नहीं तो क्यों दुश्मन देश को अपनी सरजमीं में जांच के लिए आने का न्यौता दिया?

देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने साफ मना किया था कि अगर पाकिस्तानी की जांच टीम भारत आती है तो उसे पठानकोट एयरबेस में दाखिल होने की इजाजत नहीं दी जायेगी. लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि सरकार ने अपने रक्षा मंत्री के कथन को ही धत्ता बता दिया. क्या देश के रक्षा मंत्री की बात में कोई दम नहीं है. या पड़ोसी देश से शांति बहाली के लिए हम अपने घुटने तक टेक सकते हैं? ये शायद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि किसी दुश्मन देश की सेना और खुफिया एजेंसी के अधिकारी हमारे किसी मिलेट्री बेस में दाखिल हुए हों. वो भी ऐसा एयर-बेस जो सरहद के बेहद करीब हो. जहां पर लड़ाकू विमानों की स्कावड्रन हो.

सबसे पहले बात करते हैं की आखिर सरकार ने पाकिस्तानी संयुक्त जांच दल को भारत आने क्यों दिया.  दरअसल 2 जनवरी को आधा-दर्जन आतंकियों ने पाकिस्तान सीमा से सटे पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर हमला कर दिया था. तीन दिन तक चली मुठभेड़ में एनएसजी, सेना और एयरफोर्स के कमांडोज़ ने सभी छह के छह आतंकियों को मार गिराया था. क्योंकि मामला आतंकियों से जुड़ा था, सो हमले की जांच नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी यानि एनआईए को सौंप दी गई. जांच में पता चला कि मारे गए आतंकी पाकिस्तान के रहने वाले हैं और पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से ताल्लुक रखते हैं. उनके पास से बरामद हथियार, दवाई और खाने का सामान तक पाकिस्तान का था. यानि पठानकोट एयरबेस पर हुआ हमला पाकिस्तान से ही संचालित हुआ था.
हमले के बाद पठानकोट एयरबेस पर पीएम मोदी
यहां ये बात भी किसी से छिपी नहीं रही है कि भारत के खिलाफ आतंकी हमले करने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, आईएसआई, जैश, लश्कर और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों को उकसाती है और उनकी फंडिग तक करती है. मुंबई के 26/11 हमले में तो आतंकियों को ट्रैनिंग तक आईएसआई ने दी थी. बस इसी बात का विरोध हो रहा है सरकार का कि वो (खुफिया) एजेंसी जो भारत के खिलाफ हमलों को प्रयोजित करती है उसी आईएसआई के अधिकारी को पठानकोट एयरबेस में जांच करने के लिए क्यों दाखिल होने दिया गया.

एक बार जरा पाकिस्तान की संयुक्त जांच दल के सदस्यों पर नजर डाल लेते हैं. पांच सदस्य इस दल का नेतृत्व कर रहे हैं पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के आंतक-निरोधी विभाग के एडीजी मोहम्मद ताहिर राय़. साथ ही इसी विभाग के गुजरांवाला में तैनात इंस्पेक्टर शाहिद तनवीर. ये दोनों ही पुलिस महकमें से ताल्लुक रखते हैं. या यूं कहें कि जांच अधिकारी हैं. इंस्पेकटर शाहिद तनवीर ही पाकिस्तान में पठानकोट हमले से जुड़े मामले के जांच-अधिकारी हैं. गौरतलब है कि भारत के दवाब के बाद पाकिस्तान ने इस हमले की एफआईआर दर्ज की थी. अब जरा बाकी तीन सदस्यों के प्रोफाइल को देखते हैं. पहले हैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी, आईएसआई के लेफ्टिनेंट कर्नल तनवीर हैदर. साथ ही हैं मिलेट्री इंटेलीजेंस के लेफ्टिनेंट कर्नल इरफान मिर्जा और इंटेलीजेंस ब्यूरो के उप-निदेशक अजीम अरशद. 
एनआईए मुख्यालय के बाहर पाकिस्तानी जांच दल केसदस्य
इंटेलीजेंस ब्यूरो के अधिकारी तो एक बार को समझ में आतें हैं कि उन्हे जांच दल में इसलिए रखा गया होगा क्योंकि जैश ए मोहम्मद पाकिस्तान से ही संचालित होता है. और इसका मुखिया मसूद अजहर पाकिस्तान में ही पनाह लिए हुए है. लेकिन आईएसआई और एमआई के सैन्य अधिकारियों को इस जांच दल में शामिल करने के पीछे क्या मंशा हैं सिर्फ पाकिस्तान ही जानता है. क्या इन दोनों को इसलिए जांच दल में शामिल किया गया है कि अगली बार किसी भारत के सैन्य-ठिकाने पर हमला करवाना हो तो उसकी फुल-प्रूफ प्लानिंग कर सकें. ये देखने के लिए कि पठानकोट एयरबेस में हमले में कहां उनके संचालित आतंकियों से गलती हो गई. क्यों नहीं वे टेक्निकल एरिया में दाखिल हो पाए.

भले ही रक्षा मंत्री के विरोध के बाद सरकार ने बीच का रास्ता निकाला और पाकिस्तानी जेआईटी को सिर्फ पठानकोट एयरबेस के डोमेस्टिक एयरबेस तक ही सीमित रखा. एयरबेस के टेक्निकल एरिया को पाकिस्तानी जांच दल की जद्द से दूर रखा गया. एयरबेस के टेक्निकल एरिया में ही लड़ाकू विमान खड़े होते हैं, रनवे होता है, लड़ाकू विमानों का ऑपरेशन यहीं पर बने कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से होता है. यहां तक की हवाई सुरक्षा के लिए मिसाइल और एंटी-एयरक्राफ्ट गन्स (छोटी तोपें) इसी टेक्निकल एरिया में तैनात होती हैं. इसी लिए किसी भी देश की सेना के लिए अपने एयरबेस को ना केवल सुरक्षित रखना बेहद जरुरी है, दुश्मन की नजर उसपर ना पड़े ये भी बेहद जरुरी है. इसीलिए जांच दल को एयरबेस के डोमेस्टिक एरिया तक ही सीमित कर दिया गया.
पठानकोट एयरबेस पर चाक-चौबंद सुरक्षा
डोमेस्टिक एरिया में जवानों और एयरमैन के बैरक, प्रशासनिक-भवन, अधिकारियों के निवास और स्कूल इत्यादि होता है. 2 जनवरी को आतंकी पठानकोट एयरबेस के इसी डोमेस्टिक एरिया में दाखिल होने में कामयाब हो गए थे. हालांकि आतंकियों ने टेक्निकल एरिया में घुसने का भरसक प्रयास किया था, लेकिन कमांडोज़ ने उन्हे इसी डोमेस्टिक एरिया में ही ढेर कर दिया था. यानि आतंकवादियों और सुरक्षाबलों में मुठभेड़ इसी डोमेस्टिक एरिया में ही हुई थी. इसीलिए एनआईए की जांच का केंद्रबिन्दु भी डोमेस्टिक एरिया ही था. यहीं वजह है कि रक्षा मंत्री ने भी कहा कि ‘क्राइम-सीन’ तक ही पाकिस्तानी टीम को जाने की इजाजत दी जायेगी. और जब मंगलवार को पाकिस्तानी जेआईटी एयरबेस पहुंची, तो उसे मैन-गेट की बजाए चारदीवारी के पिछले हिस्से में एक छोटा गेट बनाकर अंदर दाखिल करवाया गया. इसी दरवाजे के करीब से ही आंतकी एयरबेस में दाखिल हुए थे. पूरे टेक्निकल एरिया को टैंट और शामियाने लगाकर ढक दिया गया था.

दरअसल, बात सैन्य-ठिकाने पर टेक्निकल एरिया में क्या दिखा या नहीं देखा है. बल्कि इस देश की सैन्य-अस्मिता की है. भला कैसे एक देश, जिसके साथ एक-दो नहीं बल्कि चार-पांच युद्ध लड़ चुके हों, जिसकी नीति ही आतंकियों के जरिए भारत में प्रॉक्सी-वॉर की हो, जो भारत को इन आतंकियों के जरिए ‘हजारों घाव देना चाहता हो’, उस देश की सेना और खुफिया एजेंसी को अपने एयरबेस में दाखिल क्यों होने दिया जाए.

क्या इस जेआईटी के जांच के लिए भारत (और पठानकोट एयरबेस) आने के बाद क्या गारंटी है कि आईएसआई और पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रायोजित आतंकी हमले, युद्धविराम उल्लंघन और सीमा पर घुसपैठ बंद हो जायेगी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के फौरन बाद ही करगिल-युद्ध को क्या कोई आज तक भूला पाया है. और ज्यादा दूर जाने की जरुरत नहीं है. जब पाकिस्तान का जांच दल भारत आया हुआ है तो आईएसआई ने बलूचिस्तान में भारतीय नौसेना के एक पूर्व-अधिकारी को (जो नौकरी छोड़ने के बाद बिजनेसमैन बन चुका था) रॉ का जासूस बताकर गिरफ्तार कर लिया है.
नौसेना के पूर्व-अधिकारी को पाकिस्तान ने जासूस बना दिया
मंगलवार को जब पाकिस्तानी जांच दल पठानकोट में था, तब पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता जोर-शोर से प्रेस कांफ्रेंस कर इसी रॉ के कथित जासूस के इकबालिया बयान का वीडियो जारी कर भारत पर पाकिस्तान में आतंक फैलाने का दोष मढ़ रहे थे. यानि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे. भारत एक सिरे से पाकिस्तान के इन आरोपों को नकार चुका है. भारत साफ कर चुका है कि कुलभूषण जाधव नौसेना की नौकरी छोड़ने के बाद कार्गो-कारोबार कर रहा था. उसका रॉ से कोई लेना-देना नहीं है.

साफ है कि आईएसआई और पाकिस्तानी सेना कभी भी भारत से किसी भी हाल में शांति बहाल नहीं करना चाहती है. हां शांति बहाली के लिए भारत और भारत की सरकार किसी भी हद तक अपने घुटने जरुर टेक सकती है. क्या पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से भारत को डर लगता है इसलिए. या इसलिए कि कहीं पाकिस्तान से संचालित इन आतंकी संगठनों के हाथों में ये परमाणु हथियार ना पड़ जाएं. जैसा कि हाल ही में रक्षा मंत्रालय की सालाना-रिपोर्ट (2015-16) में लिखा गया है. अगर नहीं तो फिर आंतकियों के खिलाफ सीधे जंग छेड़ने के बजाए भारत ने इन आंतकियों को पनाह देने वाली आईएसआई और पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को अपने सैन्य-ठिकाने में जांच के नाम पर दाखिल क्यों होने दिया.
पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तान टीम
क्यों नहीं एनआईए को जांच के लिए पाकिस्तान भेजा गया. क्यों नहीं एनआईए को मसूद अजहर और उसके साथियों से पूछताछ करने दी गई. क्योंकि इस बात की इजाजत पाकिस्तानी सरकार भी नहीं दे सकती है. क्योंकि पाकिस्तान में सेना और आईएसआई खुद सरकार की नहीं सुनती हैं. क्योंकि वे अपने-आप में खुद एक सरकार हैं. पाकिस्तानी सेना और आईएसआई एक समांतर-सरकार को संचालित करती हैं. वहां की (राजनैतिक) सरकार भी इनके खिलाफ चूं तक नहीं करती है.

पाकिस्तानी अवाम भी अपनी राजनैतिक सरकार के बजाए सेना और आईएसआई में ज्यादा विश्वास करती है. इसीलिए वहां सेना द्वारा तख्ता-पलट आम बात है. यही वजह है कि जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच दूरियां कम होती है, आईएसआई और पाकिस्तानी सेना कोई ना कोई ऐसी चाल चलती हैं कि दोनो देश फिर से दूर हो जाते हैं. याद है ना क्रिसमस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा और उसके महज एक हफ्ते के भीतर ही पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला. ऐसे में पाकिस्तानी हूकुमत से शांति की अपेक्षा बेमानी लगता है.

हाल ही में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने संसद में ऐलान किया था कि आतंकी हमलों को देश के खिलाफ युद्ध के तौर पर देखना चाहिए. रक्षा मंत्री के इस बयान से कोई इंकार नहीं कर सकता है. लेकिन सवाल ये है कि अगर युद्ध की तरह देखना चाहिए तो उसके खिलाफ युद्ध करके मुंह तोड़ जवाब भी देना चाहिए. ना कि आतंकियों को पनाह देने वाले देश के नुमाइंदों को अपने मिलेट्री-बेस में जांच के नाम पर घूमाना चाहिए.

Thursday, March 10, 2016

टू-फ्रंट वाॅर के लिए नहीं है तैयार वायुसेना !

वायुसेना की घटती स्कावड्रन से बढ़ी चिंता
अगले हफ्ते पाकिस्तानी सीमा के करीब भारतीय वायुसेना सबसे बड़ा युद्धभ्यास करने जा रही है. लेकिन उससे पहले आज वायुसेना के वाइस चीफ ने ये कहकर सनसनी फैला दी कि अगर पाकिस्तान और चीन एक साथ भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ देते हैं तो मुकाबला करने के लिए वायुसेना के पास पर्याप्त लड़ाकू विमान नहीं हैं.

उप-वायुसेना प्रमुख एयर वाइस मार्शल बी एस धनोआ आज राजधानी दिल्ली में, 18 मार्च से शुरु हो रहे युद्धभ्यास, ‘आयरन-फिस्ट’ (IRON-FIST) के बारे में मीडिया से बातचीत कर रहे थे. इसी दौरान एक सवाल के जवाब में एयर मार्शल बी एस धनोआ ने कहा कि वायुसेना में वर्तमान में 32 स्क्वाड्रन (यानि 'जहाजों के जंगी बेड़े') हैं जबकि जरुरत 42 की है. खास बात ये है कि मौजूदा वायुसेना-प्रमुख के रिटायरमेंट के बाद बी एस धनोआ एयर फोर्स चीफ बनने की दौड़ में सबसे आगे हैं. खुद धनोआ कारगिल युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं और उस वक्त लड़ाकू विमान मिग-21 से फ्रंट पर जाकर दुश्मन पर हमला किया था.
उप-वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल बी एस धनोआ

 बताते चलें कि इस महीने की 18 मार्च को भारतीय वायुसेना राजस्थान के पोखरन में आयरन-फीस्ट नाम की एक्सरसाइज करने जा रही है. एक्सरसाइज में एयरफोर्स के 181 लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर हिस्सा ले रहे हैं और इसे वायुसेना का शक्ति-परीक्षण माना जा रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मौजूदगी में आयरन-फीस्ट एक्सरसाइज हो रही है. ये युद्धभ्यास दिन और रात दोनों में होगा.  

बी एस धनोआ ने कहा कि कारगिल युद्ध के वक्त भारतीय वायुसेना के पास रात में एयर-ऑपरेशन करने की क्षमता नहीं थी. लेकिन आयरन-फीस्ट में दिखाया जायेगा कि 16 साल बाद वायुसेना नाइट-ऑपरेशन करने का माद्दा ही रखती है. इस युद्धभ्यास का 'मोटो' (आदर्श-वाक्य) है ‘सबक सिखाने की क्षमता का प्रदर्शन—हथियार सही समय, सही निशाने पर.’

इसी दौरान ही मीडिया से बातचीत के दौरान पूछा गया कि क्या इस युद्धभ्यास के बाद हम क्या चीन और पाकिस्तान से एक साथ लड़ने यानि 'टू-फ्रंट वॉर' के लिए तैयार हैं, एयर वाइस चीफ बी एस धनोआ ने कहा कि इसके लिए हमारे पास पर्याप्त स्क्वाड्रन (जंगी जहाजों का बेड़ा) नहीं हैं. उन्होनें कहा कि वायुसेना के पास इस वक्त मात्र 32 स्कावड्रन हैं जबकि हमें 42 की जरुरत है. 

वायुसेना के एक स्कावड्रन में 16-18 लड़ाकू विमान होते हैं. इस वक्त वायुसेना के पास 10 स्कावड्रन सुखोई के हैं और 11 मिग-21 और मिग-27 के हैं. इसके अलावा जगुआर के 06 स्कावड्रन, मिराज के 02 और मिग-29 की 03 हैं. यानि वायुसेना के पास अभी भी करीब 150 लड़ाकू विमान कम हैं. 

वायुसेना काफी समय से सरकार और ससंद की कमेटियों में स्कावड्रन की कमी की शिकायत कर चुकी है. लेकिन ये पहली बार है कि एयरफोर्स के किसी बड़े सैन्य-अधिकारी ने खुले-आम स्कावड्रन की कमी पर चिंता जताई है.

वायुसेना फ्रांस से मिलने वाले 36 रफाल फायटर एयरक्राफ्ट्स बेसब्री से इंतजार कर रही है. लेकिन रफाल सौदे की बढ़ी हुई कीमत के चलते लंबे समय से अधर में अटका हुआ है. बी एस धनोआ ने कहा कि अगर रफाल लड़ाकू विमान वायुसेना को मिलते हैं तो एयरफोर्स की मारक क्षमता काफी बढ़ जायेगी.

Saturday, March 5, 2016

सेना कम करे 'चर्बी' : पर्रिकर

सैनिकों से मिलते रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर
रक्षा बजट कम करने के लिए बेहद जरुरी है कि सेना अपनी 'चर्बी' कम करे. ये मानना है रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का. पर्रिकर के मुताबिक ये सेना को तय करना है कि किस तरह से दुबला-पतला रहकर सेना अपने को फिट रखती है. 

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर गुरुवार को राजधानी दिल्ली में रक्षा-बजट के बारे में मीडिया को सम्बोधित कर रहे थे. एक सवाल के जवाब में कि क्या देश इतने भारी-भरकम रक्षा बजट को सहन कर सकता है, पर्रिकर ने कहा कि उन्होनें खुद सेनाओं को सलाह दी है कि वे फालतू खर्चे ना करे. 
इस साल के आम बजट का 17.23% हिस्सा रक्षा बजट के लिए रखा गया है. इस साल रक्षा बजट करीब 3.41 लाख करोड़ रुपये है. इसमें से करीब 80 हजार करोड़़ सेनाओं के आधुनिकीकरण और 82 हजार करोड़ (रक्षा) पेंशन के लिए निर्धारित किया गया है. बाकी बजट सेना की सैलरी पर खर्च होता है.
गौरतलब है की 13 लाख की भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओ में से एक है. लेकिन समय समय पर इतनी बड़ी सेना के औचित्य पर ही जानकार सवाल खड़े करते आएं हैं.  
प्रेस को सम्बोधित करते रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर
उदाहरण देते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि आज के दौर मे सेनाओं को टेलीफोन-ऑपरेटर्स की जरुरत नहीं है तो भी हर रेजीॉमेंट में उसकी पोस्ट बनी हुई है. साथ ही कहा कि नॉन-कॉम्बेट ट्रैनिंग को ज्यादा से ज्यादा फील़्ड की बजाए सिम्युलेटर पर करनी चाहिए. वायुसेना का भी उदाहरण देते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि एक पायलेट को अगर 300 घंटों की फ्लाईंग की ट्रैनिंग करनी है तो उसे बजाए पूरा समय हवा में ट्रैनिंग लेने के, आधा वक्त सिम्युलेटर पर भी ट्रैनिंग लेनी चाहिए. 

हालांकि रक्षा मंत्री ने उन  सभी अटकलों को मीडिया के सामने दूर कर दिया जिसमें ये बात लगातार उठ रही थी कि सरकार सेना के लिए बेहद जरुरी माउंटेन स्ट्राइक कोर का बजट कम करने जा रही है या उसे छोटा करने जा रही है. माना जा रहा है कि भारतीय सेना के ये स्ट्राइक कोर चीन की बढ़ती ताकत से टक्कर लेने के लिए खड़ी की जा रही है.

पर्रिकर ने ये भी कहा कि इस साल अमेरिका सरकार के खाते में पड़े तीन बिलियन डॉलर (करीब 2 खरब रुपये) में से 1.3 बिलियन डॉलर निकाल लिए हैं. क्योंकि इतनी बड़ी रकम पिछले कई सालों से बिना किसी कारण से पड़ी हुई थी. भारत सरकार ने ये रकम अमेरिका में फॉरेन मिलेट्री सेल्स (एफएमएस) के लिए जमा कराई थी. लेकिन रक्षा सौदोेें में हो रही देरी के कारण इसका कोई उपयोग नहीं हो रहा था, इसलिए इसका एक बड़ा हिस्सा रक्षा मंत्रालय ने निकाल लिया है.