Thursday, August 22, 2019

अब बुफे सिस्टम से मिलेगा जवानों को खाना !


आईटीबीपी ने जवानों को दिए जाने वाले खाने का 'लंगर-सिस्टम' खत्म करने का निर्देश दिया है। अब आईटीबीपी के जवानों को 'बुफे-सिस्टम' से खाना मिलेगा। बुफे सि‌स्टम में जवान भरपेट खाना खा सकेंगे। आईटीबीपी मुख्यालय ने इस बारे में आदेश जारी कर दिया है।

आईटीबीपी मुख्यालय से जारी आदेश में कहा गया है कि बुफे सिस्टम को ट्रायल के तौर पर कुछ प्रशिक्षण संस्थानों लागू मे् किया गया था। वहां कि रिपोर्ट्स आने के बाद ये फैसला लिया गया कि अब आईटीबीपी के सभी ट्रैनिंग सेंटर्स में जवानों को बुफे सिस्टम के जरिए ही खाना दिया जाएगा।

दरअसल, लंगर सिस्टम ब्रिटिश-काल की देन थी, जिसमें हर जवान के खाने की मात्रा फिक्सड यानि बंधी हुई थी। पनीर और मीट का टुकड़ा तक भी मैस-हवलदार की निगरानी में 'करछी' से दिया जाता था। लेकिन अब बूफे सिस्टम में कोई भी जवान कितना भी खाना ले सकता है। इस बुफे सिस्टम को सबसे पहले अरूणाचल प्रदेश में चीन सीमा पर तैनात एक यूनिट में लागू करके किया अजमाया गया। पाया गया कि लंगर सिस्टम के बजाए बूफे सिस्टम में जवानों का पेट सही भरता है, और खाने की बर्बादी भी कम हो रही है।

ब्रिटिश-राज में लंगर सिस्टम इसलिए लाया गया था कि अंग्रेंज अफसरों को लगता था कि स्थानीय भारतीय सैनिकों को ना तो खाने की तमीज है और ना ही उनमें कम्युनिटी यानि बंधुत्व की भावना है।

गौरतलब है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में जवानों के लिए बूफे सिस्टम होता है। और जवान जितना मर्जी खाना ले सकती हैं अपनी च्वाइस के मुताबिक।

लेकिन अब माना जा रहा है कि आईटीबीपी की तर्ज पर बाकी पैरामिलिट्री फोर्स भी जवानों के लिए ऐसा बूफे सिस्टम अपना सकती हैं। गौरतलब है कि कुछ समय पहले बीएसएफ के एक जवान तेज बहादुर ने खाना ठीक ना मिलने के कारण अपनी दाल की वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दी थी, जिसके बाद से जवानों को मिलने वाले खाने को लेकर काफी सुधार लाया जा रहा है।

Wednesday, August 21, 2019

पाकिस्तान से तल्ख संबंधों के बीच गोला-बारूद फैक्ट्रियों की हड़ताल


ऐसे समय में जब पड़ोसी देश, पाकिस्तान से कश्मीर और धारा 370 को लेकर संबंध तल्ख हैं और एलओसी पर पाकिस्तानी सेना से रोज फायरिंग हो रही है, देशभर की सभी 41 ओर्डिनेंस फैक्ट्रियां एक महीने की हड़ताल पर चली गई हैं. देश की सेनाओं के लिए गोला-बारूद मुहैया कराने वाली इन फैक्ट्रियों में करीब 82 हजार कर्मचारी काम करते हैं. एक ऐसी ही ओर्डिनेंस फैक्ट्री, गाजियाबाद के मुरादनगर में है जहां के दो हजार कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं. इस ओएफबी फैक्ट्री में भी काम बंद था. सरकार के कोरपोरेटाइजेशन यानि निगमीकरण के खिलाफ भी इस फैक्ट्री के कर्मचारी एक महीने की हड़ताल पर हैं. 

ओएफबी मुरादनगर में भारतीय वायुसेना के लिए 'करगिल हीरो' बम बनाए जाते हैं. दरअसल, ये 450 किलो के बम होते हैं जो लड़ाकू विमान आसमान से दुश्मन के कैंप इत्यादि पर बरसाते हैं.
करगिल युद्ध के दौरान इसी फैक्ट्री में तैयार बमों को करगिल की ऊंची पहाड़ियों पर भारतीय चौकियों पर कब्जा जमाएं पाकिस्तानी सैनिकों पर बरसाए गए थे. इसीलिए यहां बनाएं जाने वाले बमों को करगिल-हीरो का नाम दिया गया है. साथ ही थलसेना के टैंकों के लिए ट्रैक-चेन बनाईं जाती हैं। यहां के 2000 कर्मचारी भी ओएफबी के उन 82 हजार कर्मचारियों में शामिल हैं जो हड़ताल पर हैं।

एबीपी न्यूज से बातचीत में यहां के हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि सरकार कोरपोरेटिजाईशेन यानि निगमीकरण के जरिए निजीकरण की तैयारी कर रही है। जबकि देश की सुरक्षा प्राईवेट हाथों में सुरक्षित नहीं है। क्योंकि करगिल युद्ध के दौरान निजी कंपनियों ने या तो गोला-बारूद देना बंद कर दिया था या फिर कीमत दुगने-तिगुने कर दिए थे। प्राईवेट कंपनियां टेंडर लेने के लिए घूसखोरी और करप्शन का सहारा लेती हैं जबकि सरकारी कंपनियों में ऐसा नहीं होता है। हालांकि, यूनियन का ये भी कहना है कि हड़ताल के दौरान देश पर युद्ध की नौबत आई तो वे अपनी हड़ताल वापस ले लेंगे।

वहीं रक्षा मंत्रालय और ओएफबी चैयरमैन ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि ओएफबी की जो तीन कर्मचारी यूनियन हड़ताल पर हैं उन्हें 14 अगस्त को ही बता दिया था कि सरकार ओएफबी का निजीकरण नहीं कर रही है. बल्कि इऩ्हें डिफेंस-पीएसयू यानि रक्षा-क्षेत्र की पब्लिक सेक्टर यूनिट बनाने की तैयारी है. ताकि इन फैक्ट्रियों को ज्यादा से ज्यादा स्वायत्ता दी जा सके और उनके काम में तेजी लाई जा सके. ओएफबी का कहना है कि निगमीकरण के जरिए इन आयुध निर्माण फैक्ट्रियों को सशस्त्र सेनाओं की भविष्य की जरूरतों को अधिक तेजी के साथ पूरा किया जा सकेगा. साथ ही उनके उत्पादों को निर्यात की संभावनाओं को बल मिलेगा.

दरअसल, ओएफबी एक बोर्ड है जो सीधे रक्षा मंत्रालय के अंर्तगत काम करता है. इसका मुख्यालय कोलकता में है. इनमें से कुछ फैक्ट्रियां दो सौ साल पुरानी है जो ब्रिटिश काल से काम कर रही हैं. इन 41 फैक्ट्रियों में पिस्टल, राईफल, गोला-बारूद, तोप, टैंक तैयार किए जाते हैं. सेनाओं के साथ साथ अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस को भी ये आयुध फैक्ट्रियां अपना सामान मुहैया कराती हैं.