Wednesday, February 13, 2019

रफाल सौदे पर सीएजी रिपोर्ट के बाद क्या थमेगा घमासान !


संसद में पेश हुई सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 में एमएमआरसीए डील (यानि मीडियम मल्टी रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट) डील और 2015 की आईजीए (इंटर गर्वमेंटल एग्रीमेंट) करार की तुलना की जाए तो 2015 का रफाल लड़ाकू विमान सौदा 2.86 प्रतिशत सस्ता है.

और क्या कहा है सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में पढ़ें:

• सीएजी के मुताबिक, 2007 और 2015 की डील में वैसे तो तुलनात्मक स्टडी नहीं की जा सकती है, लेकिन क्योंकि 2015 वाले सौदे में कहा गया कि ये डील 2007 से सस्ती होगी इसलिए तुलना की गई है.

• सीएजी के मुताबिक, 2015 की डील में इंडिया स्पेसफिक पैकेज 17.08 प्रतिशत कम है 2007 के मुकाबले.

• क्योंकि 2015 की डील में लड़ाकू विमान कम थे और कीमत ज्यादा थी सौदे की इसलिए उप वायुसेना प्रमुख (जो नेगोशियन टीम के प्रमुख भी थे) उन्होनें इंडिया स्पेसफिक इंहेसमेंट कम करने के लिए कहा लेकिन रफाल बनाने वाली कंपनी दसॉ(ल्ट) ने मना कर दिया. कंपनी का कहना था कि क्योंकि कीमत पूरी सौदे की थी इसलिए उन्हें कम नहीं किया जा सकता. कम करने के लिए फ्रांस की सरकार से बात करनी होगी. नेगोसियेशन टीम ने इसके बारे में जानकारी सीसीएस ( प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी) को नोट भेजने से पहले रक्षा मंत्रालय को दिया, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने गुणवत्ता का हवाला देकर मना कर दिया. सीएजी के मुताबिक, इनमें से चार इनहेंसमेंट जरूरी नहीं थे. अगर इन्हें नहीं लिया जाता तो इंडियन स्पेसफिक पैेकेज की कीमत करीब 14 प्रतिशत तक और कम हो सकती थी.

• सीएजी के मुताबिक, क्योंकि 2015 की डील में स्पेयर पार्टस और इंजन ज्यादा है इसलिए  इंजीनियरिंग सपोर्ट पैकेज 2007 के मुकाबले 6.54 प्रतिशत ज्यादा है.

•सीएजी के मुताबिक, पर्फोमेंस बेसेज लॉजिस्टिकिस में 2015 की डील करीब 6 प्रतिशत मंहगी है.

•ऑपरेशनल सपोर्ट पैकेज में 2015 की डील करीब 4 प्रतिशत कम है.

• वैपैन पैकेज दोनों समय के सौदों में लगभग बराबर थे. लेकिन 2015 के सौदे में कीमत करीब 1.05 प्रतिशत कम थी.

•सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, बेसिक एयरक्राफ्ट की कीमत 2007 और 2015 में लगभग बराबर थी.

• सीएजी ने माना कि इंटर-गर्वमेंटल डील किसी भी हालत में रक्षा सौदों के लिए बेहतर होती है लेकिन ये सस्ती होनी चाहिए क्योंकि जिस देश से कोई भी मिलिट्री-प्लेटफार्म खऱीदा जाता है उस देश की सेना पहले से ही उसे इस्तेमाल कर रही होती है. ऐसे में कंपनी को ना तो आर एंड डी और ना ही किसी फिक्सड कीमत में खर्च करना होता है. भारत ने इस तरह के आईजीए करार यूके यूएस और रूस से तो पहले किए थे, लेकिन फ्रांस के साथ ये पहला आईजीए डील थी.

• बैंक गारंटी 2007 की डील में दी गई थी. लेकिन 2015 के सौदे में फ्रांस की सरकार ने मना कर दी. इसके बजाए फ्रांस की सरकार ने 'लैटर ऑफ कम्फर्ट' दिया है. जिसके लिए अगर सौदे में कोई परेशानी आती है तो इसकी जिम्मेदारी फ्रांस सरकार की होगी.

•लड़ाकू विमानों की डिलवरी में 2015 की डील में एक महीने का फायदा हुआ है. यूपीए के समय में 72 महीनों में विमान मिलने थे, जबकि एनडीए के समय में ये पीरियड 71 महीने का है. .

• 2007 की डील के दौरान रक्षा मंत्रालय ने रक्षा मंत्री तक को गुमराह करने की कोशिश की.

• 2012 में डील होने से पहले रक्षा मंत्री ने इंटेगेरेटी क्लो़ज के लिए एक बार फिर कमेटी बिठाई सौदे ठीक प्रकार से करने के लिए. जिससे डील होने में समय लग गया.  साथ ही क्योंकि रफाल बनाने वाली कंपनी सिर्फ उन्हीं 18 फाइटर जेट्स की गारंटी ले रही थी जो सीधे खऱीदे गए थे, जो बाकी 108 एचएएल बनानी रही थी उनकी गारंटी लेने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए सौदा अटक गया था.

• 2007 की डील के दौरान रफाल के अलावा जो दूसरा फाइटर जेट यूरोफाइटर मैदान में था उसने 20 प्रतिशत कम में डील करने का आग्रह किया था. सीएजी का मानना है कि यूरोफाइटर से सौदा करना आरएफपी के खिलाफ था लेकिन इस बात को रफाल से सौदा करते समय नजरअंदाज कर दिया गया. यानि रफाल से यूरोफाइटर की तरह मोल-भाव किया जा सकता था.