Thursday, October 29, 2015

नौसेना की नई रणनीति: मिलेट्री-डिप्लोमेसी

नौसेना की नई समुद्री-सैन्य रणनीति रिलीज़ करते रक्षा मंत्री 

        26 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली में दो बड़े आयोजन हुए. पहला था, इंडो-अफ्रीका सम्मिट और दूसरा था सेना भवन में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर द्वारा नौसेना की नई समुद्री-सैन्य रणनीति के संस्करण का विमोचन. अफ्रीकी सम्मेलन के बारे में तो चर्चा काफी हो रही है, लेकिन भारतीय नौसेना की इस 'ब्लू-बुक' के बारे में चर्चा काफी कम हो रही है (या यूं कहें कि ना के बराबर है). जैसा कि मौजूदा नौेसेनाध्यक्ष एडमिरल आर के धवन ने हाल ही में कहा था कि "हम (नौसैनिक) देश से बहुत दूर समुद्र में ज्यादा रहते हैं इसलिए हमारे बारे में मैनलैंड (यानि देश के अंदर) कम बातें होतीं हैं."


इंडो-अफ्रीका सम्मेलन में 50 से ज्यादा अफ्रीकी देशों के राष्ट्रध्यक्ष, मंत्री और दूसरे गणमान्य व्यक्ति दिल्ली में भारत के साथ नए संबधों की इबादत लिखने आए हैं. माना जा रहा है कि भारत इस सम्मेलन के जरिए संयुक्त-राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी-सदस्यता के लिए एक बड़ा कदम है.

ठीक इसी तरह  नौसेना की जो नई रणनीति रिलीज की गई उसमें भी नौसेना को विदेश-नीति का एक बड़ा हिस्सा माना गया है. वैसे तो रणनीति का सीधा संबंध युद्ध, संघर्ष या फिर लड़ाई से होता है लेकिन गहराई से देखा जाये तो ये दस्तावेज नौसेना की युद्ध-नीति के साथ-साथ  'मिलेट्री-डिप्लोमेसी' पर भी प्रकाश डालता है. 

 सोमवार को नौसेना के कमांडर्स कांफ्रेंस में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने मेरीटाइम मिलेट्री स्ट्रेटेजी रिलीज की. ‘सुरक्षित सागर सुनिश्चित: भारतीय समुद्री सुरक्षा रणनीति’ नाम की ये स्ट्रेटेजी, 2007 में जारी हुई रणनीति, ‘फ्रीडम टू यूज द सीज’ का ही नया संस्करण और विस्तार स्वरुप है. 2007 में भारतीय नौसेना की जिम्मेदारी जहां ‘पारस की खाड़ी से लेकर मलक्का-स्ट्रेट’ तक ही सीमित थी, तो करीब 10 साल बाद भारतीय नौसेना पूरे 'हिंद महासागर क्षेत्र और उसके आगे के क्षेत्र' को अपनी जिम्मेदारी (एओआर यानि एरिया ऑफ रेस्पोंसेबिलेटी) मान रही है. इसका कारण ये है कि भारतीय नौसेना का स्वरुप पिछले 10 सालों में कहीं अधिक बढ़ गया है.

नौसेना प्रमुख एडमिरल आर के धवन ने नेवी के  इस दस्तावेज के प्रस्तावना में लिखा है कि “ पिछला दशक भारत के समुद्री परिवेश पर निर्भरता का साक्षी रहा है जिसके परिणामस्वरुप आर्थिक, सैन्य और प्रौद्योगिकी क्षमताएं बढ़ी हैं, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का विस्तार हुआ है तथा इसके राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे और राजनीतिक हित धीरे-धीरे हिंद महासागर के क्षेत्र से आगे फैल गए हैं.” नौसेनाध्यक्ष आगे लिखते हैं, “ पिछले कुछ वर्षों में भूगोलिक-आर्थिक और भूगौलिक-रणनीतिक परिस्थितियों मे होने वाले बदलावों के कारण, नौसेना की भूमिका और जिम्मेदारियां काफी बढ़ गईं हैं.”

वर्ष 2008 में मुंबई के 26/11 हमलें ने भारतीय नौसेना की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ा दी है.
इस हमले के बाद नौसेना को देश के समस्त 4000 किलोमीटर लंबे तट और समुद्र से दूर स्थित क्षेत्रों की सुरक्षा का भार सौंप दिया गया. एडमिरल धवन के मुताबिक, “इस दस्तावेज (‘ इंडियाज मेरीटाइम मिलेट्री स्ट्रेटेजी’) का लक्ष्य आने वाले वर्षों में नौसेना की तरक्की, विकास और तैनाती के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करना है.”  आगे लिखा है, " आज, हिंद महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों के देशों के साथ भारत ज्यादा सक्रिय रूप से संवाद कर रहा है और अपनी क्षेत्रीय विदेश नीति में समुद्री सुरक्षा संबंधों को एक आधारशिला के रूप में प्रयोग कर रहा है.  इस बात की भी पहचान बढ़ गयी है नौसेना इस क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा को बढ़ने और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. "

 भारतीय नौसेना की ताक़त पिछले दस सालों में कितनी बढ़ गई  है इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस समय नेवी के जंगी बेड़े में करीब 200 युद्धपोत और पनडुब्बी हैं. इनमे दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. इसके अलावा 40 (स्वेदशी) युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं जो देश के अलग-अलग शिपयार्ड में तैयार हो रहीं हैं. कोच्चि शिपयार्ड में एक और विमान-वाहक युद्धपोत तैयार हो रहा है. अमेरिका और इटली के अलावा भारत ही एक मात्र देश ही जिसकी नौसेना के पास एक से ज्यादा एयरक्राफ्ट कैरियर हैं—अमेरिका के पास 10 विमानवाहक युद्धपोत हैं और इटली के पास दो. इसके अलावा कोस्टगार्ड के पैट्रोलिंग बोट और जहाज अलग हैं.

 पिछले एक साल में भारतीय नौसेना के जंगी जहाज करीब 45 देशों की यात्रा (पोर्ट-कॉल) कर चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति के अनुरुप ही नौसेना दुनिया के मानचित्र पर अपने पांव जमा रही है. इस लेख के लिखे जाने के वक्त भी भारतीय नौसेना के जहाज पारस की खाड़ी से लेकर दक्षिण कोरिया के इंच्योन हार्बर पर कहीं ना कहीं डेरा डाले हुए हैं. पीएम मोदी की यात्रा से ठीक पहले या फिर बाद में नौसेना का युद्धपोत उस देश के तट पर आसानी से देखा जा सकता है.

 संशोधित रणनीति 2007 के संस्करण का अनुसरण तो करती ही है, 'ज्वाइंट डाॅक्ट्रिन ऑफ इंडियन आर्म्ड फोर्सेज' और 'इंडियन मेरिटाइम डॉक्ट्रिन' में प्रतिपादित राष्ट्रीय सुरक्षा और समुद्री ताक़त के सिद्धांत पर भी आधारित है. इसमें साफ़  लिखा है कि, "नौसेना एक सहयोगी ढांचे को स्थापित करने के लिए समुद्री यात्राओं, द्विपक्षीय वार्ताओं, ट्रेनिंग, युद्धाभ्यास और तकनीकी सहायता कर हिन्द महासागर टाढा उसके आगे के क्षेत्रों में मित्रता रखने वाली समुद्री सेनाओं से प्रभावी रूप से सम्बन्धों को जोड़ेगी, जिसमें परस्पर समझ को प्रोत्साहन देते हुए क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा दिया जा सके." 

यही वजह है कि करीब 50 देशों की नौसेनाओं ने अगले साल होने वाले इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू (आईएफआर) में आने के लिए हांमी भर दी है.
दुनिया की सबसे ताकतवर नौसेना, अमेरिका, हो या फिर धुर-विरोधी, चीन या फिर पुराना साथी, रशिया या फिर ब्रिटिश रॉयल नेवी, सभी देश 4-8 फरवरी तक देश के पूर्वी तट पर बसे ‘सिटी ऑफ डेस्टेनी’ यानि विशाखापट्टनम में दिखाई देंगे. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इस अंतर्राष्ट्रीय समारोह में शामिल होंगे और पूरी दुनिया भारतीय नौसेना की ताकत देखगी. खुद एडमिरल आर के धवन मानते हैं कि ये समारोह वाकई भारतीय नौसेना की “ताकत को प्रोजेक्ट करेगा, लेकिन ये किसी (दुश्मन देश के) खिलाफ नहीं है. इस (आईएफआर का) मकसद दुनिया की मित्र-नौसेनाओं को जोड़ना है. ये दिखाना है कि समुद्र दरअसल देशों को जोड़ना का काम करते हैं (ज्वाइंटनेस थ्रू सीज़).”

आजादी के बाद ये दूसरा ऐसा मौका है जब भारतीय नौसेना आईएफआर का आयोजन कर रही है. इससे पहले 2001 में मुंबई में भी इसी तरह का अंतर्राष्ट्रीय बेड़ा समीक्षा का आयोजन किया गया था. करीब 15 साल बाद दूसरा आईएफआर होने जा रहा है. जाहिर है भारत अपनी विदेश नीति में समुद्री सुरक्षा संबंधों को एक आधारशिला के रुप में प्रयोग कर रहा है. यानि भारत पहली बार मिलेट्री-डिप्लोमेसी का बखूबी इस्तेमाल कर रहा है.

समुद्री सुरक्षा को विदेश नीति के साथ जोड़ने के साथ-साथ नौसेना दुनियाभर में हो रहे उठा-पठक का भी ध्यान से स्टडी कर रही है. हाल ही में जब यमन में भारतीय नागरिकों को सुरक्षित वहां से  निकालने में नौसेना ने एक अहम भूमिका निभाई थी. सरकार के आदेश मिलने के महज चंद घंटों में नौसेना ने ऑपरेशन-राहत लांच कर दिया था. इसका एक कारण ये था कि भारतीय नौसेना का एक जहाज उस वक्त पारस की खाड़ी में ही एंटी-पायरेसी ऑपरेशन में तैनात था, और उसे तुंरत यमन भेज दिया गया. बम और गोलीबारी के बीच हमारे नौसैनिक फंसे हुए भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने में कामयाब रहे. आज, " इस बात की पहचान भी बढ़ गई है कि नौसेना इस क्षेत्र (हिंद महासागर) की समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है."

 यमन में ऑपरेशन-राहत से भारतीय नौसेना ने एक महत्वपूर्ण सीख ये ली कि अगर जरुरत पड़ी तो ‘एचएआर’ (हयूमैनिटेरयन अस्सीटेंस एंड रिलीफ) के अलावा जरुरत पड़ने पर भारतीय नौसेना वहां दुश्मनों से सीधे-सीधे दो-दो हाथ करने के लिए भी तैयार है—जैसे अमेरिकी नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर (यूएएस डियोडोर रुजवेल्ट) पर तैनात लड़ाकू-विमान पारस की खाड़ी से इराक में आईएसआईएस के ठिकानों पर हमला करते थे. अमेरिकी नौसेना और यूएएस डियोडोर रुजवेल्ट विमान-वाहक युद्धपोत के साथ हाल ही में मालाबार एक्सरसाइज के दौरान भारतीय नौसेना को बहुत कुछ सीखने को मिला. खुद एडमिरल धवन कहते हैं कि अगर हम यमन में जाकर 'एचएआर' कर सकते हैं तो दुनिया के किसी भी कोनें में जाकर मिलेट्री-ऑपरेशन भी कर सकते हैं.

भारत 2007 से कहीं आगे आ चुका है. भारत अब वो देश नहीं जो किसी के दवाब या फिर धमकी से डर जाए. 2007 में जब भारत ने अमेरिका और जापान के साथ मिलकर मालाबार युद्धभ्यास किया था तो चीन ने इसका पुरजोर विरोध किया था. चीन ने धमकी दी थी कि भारत उसके खिलाफ गठजोड़ तैयार करने की कोशिश ना करे (अमेरिका और जापान दोनों ही चीन के पुरजोर विरोधी हैं). इसके बाद से भारत ने मालाबार-एक्सरसाइज में जापान को निमंत्रण देना बंद कर दिया था. लेकिन इस साल भारत ने चीन की परवाह किए बगैर अमेरिका और जापान की नौसेनाओं के साथ मिलकर साझा युद्धभ्यास किया. इस युद्धभ्यास में अमेरिका का सबसे ताकतवर परमाणु विमानवाहक युद्धपोत, यूएएस डियोडोर रुजवेल्ट और भारतीय नौसेना की पनडुब्बी, आईएनएस सिंधुध्वज ने हिस्सा लिया था.

नौसेना के इस महत्वपूर्ण रणनीतिक दस्तावेज, इंडियाज मेरीटाइम मिलेट्री स्ट्रेटेजी’ को जारी करते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि भारतीय नौसेना आज "अंटलांटिक महासागर और पर्शियन-गल्फ से लेकर दक्षिण चीन सागर तक अपने युद्धपोतों को तैनात कर रही है जिसके चलते नेवी का ‘ऑपरेशनल-टेम्पो’ काफी हाई है."

 यहां दक्षिण चीन सागर का जिक्र करना बेहद महत्वपूर्ण है. दरअसल, चीन साउथ चायना सी में अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहता है. ‘नाइन-पाउंट’ थ्योरी के चलते उसका अपने पड़ोसी देश, वियतनाम, मलेशिया और फिलीपींस से लंबा विवाद चल रहा है. अमेरिका की तरह ही भारत भी ‘फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन’ के सिद्धांत को तरजीह देता है. ऐसे में भारतीय नौसेना का वियतनाम, मलेशिया, और फिलीपींस के पोर्ट पर अपने युद्धपोत भेजकर अपनी उपस्थिति वहां दर्ज कराना चाहता है. यही वजह है कि भारतीय समुद्री सुरक्षा रणनीति का विस्तार हो रहा है.

       गौरतलब है कि भारत की ओएनजीसी काफी समय से दक्षिण चीन सागर में तेल निकालने के लिए समुद्री खनन करना चाहती है. लेकिन चीन इसमें अड़ेंगे लगा रहा है. यही वजह है कि नौसेना के इस  मिलेट्री स्ट्रेटेजी बुक में साफ लिखा है कि “ भारत की समुद्री आर्थिक गतिविधियों का व्यापक रुप से विस्तार हो रहा है जिनमें उर्जा सुरक्षा, समुद्री-व्यापार, नौवहन, मछली पकड़ना तथा विदेश में काफी भारतीय निवेश और नागरिक शामिल है. अपने विदेशी व्यापार तथा उर्जा संबंधी जरुरतों को पूरा करने के लिए भारत समुद्र पर बहुत निर्भर है. इनमें अपरिष्कृत और तरल हाईड्रोकार्बन का आयात, शोधित उत्पादों का निर्यात, समुद्र से दूर स्थित क्षेत्रों का विकास तथा पूरी दुनिया में आर्थिक साझेदारी शामिल है.” माना जाता है कि विदेशों से होने वाले व्यापार का करीब 90 प्रतिशत (मात्रा के हिसाब से और 70 प्रतिशत मूल्य के हिसाब) से समुद्र के रास्ते ही होता है.


लेकिन इसका तात्पर्य ये कतई नहीं है की भारतीय नौसेना सिर्फ कूटनीति तक ही सीमित है. मेरीटाइम स्ट्रेटेजी में साफ़ तौर से युद्ध और किसी दूसरे भी संघर्ष के दौरान क्या और कैसे करना है साफ़ तौर से लिखा है. 

यही वजह है कि भारत की समुद्री सुरक्षा का लक्ष्य और उद्देश्य है:
·         भारत के खिलाफ युद्ध, संघर्ष तथा बल के प्रयोग को रोकना.
·         समुद्री सैन्य अभियान का संचालन इस प्रकार करना जिससे भारत के हितों के पक्ष में संघर्ष की स्थिति शीघ्र समाप्त हो.
·         भारत के समुद्री हितों के क्षेत्रों की सम्पूर्ण सुरक्षा बढ़ाने के लिए अनुकूल और सकारात्मक समुद्री माहौल बनाना.
·         भारत की तटवर्ती और तट से दूर स्थित परिसंपत्तियों की समुद्र से या समुद्र पर उठने वाले हमलों और खतरों से रक्षा करना.
·         आवश्यक समुद्री सैन्य शक्ति का विकास तथा भारत की समुद्री सुरक्षा की जरुरतों को पूरा करने की क्षमता को कायम रखना.

 ‘सुरक्षित सागर सुनिश्चित: भारतीय समुद्री समुद्री सुरक्षा रणनीति’ में ना केवल ये बताया गया है कि भारतीय नौसेना का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है बल्कि ये भी विस्तृत रुप से दिया गया है कि इसे पूरा करने के लिए क्या रणनीति अपनाई जाये.

        

Friday, October 16, 2015

क्या खूब लड़ पाएगी मर्दानी ?

एनएसजी की महिला कमांडो गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू द्वारा सम्मानित

एनएसीजी की महिला कमांडो भी आतंकियों से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं और जरूरत हुई तो उन्हे भी 'कॉम्बेट-रोल' में शामिल किया जा सकता है। ये कहना है एनएसजी के महानिदेशक आर सी तायल का। आज एनएसजी के 31वे स्थापना दिवस के मौके पर देश की सर्वश्रेष्ठ एंटी-हाईजैकिंग बल, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के डीजी ने इस बात की घोषणा की.

एनएसजी का गठन 1984 में आंतक-निरोधी और एंटी-हॉस्टेज दस्ते के रुप में किया गया था. उसके बाद देश के दो सबसे बड़े आंतकी हमले और बंधक बनाए जाने वाली घटनाओं में एनएसजी के 'ब्लैक-कैट' कमांडो नें अपना दमखम पूरे दुनिया को दिखाया है. पहला, गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर हमला और दूसरा मुंबई के 26/11 हमले में.

एनएसजी का अपना कोई कैडर नहीं है. इसके कमांडो पैरा-मिलेट्री फोर्स, सेना और पुलिसबल से डैपयूटेशन पर आते हैं. लेकिन माना जाता है कि 'क्रीम-डि-ला-क्रीम' ही इस बल का हिस्सा बन पाते हैं, जिसका आदर्श वाक्य है 'सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा'.
वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल अरुप राहा

कुछ दिन पहले ही वायुसेनाध्यक्ष, एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने घोषणा की थी कि महिला पायलट अब फाइटर प्लेन भी उड़ा सकेंगी. अभी तक हमारे देश में महिलाओं को कॉम्बेट यानि लड़ाई में सीधी तौर से शामिल नहीं किया जाता रहा है. लेकिन वायुसेना प्रमुख के इस ऐलान के बाद की महिलाएं जल्द ही फाइटर प्लेन उड़ा सकेंगी, एनएसजी डीजी का ये बयान की उनके बल की महिला कमांडो किसी भी तरह से पुरुष कमांडो से कम नहीं है बेहद ही जोशिला बयान है. एनएसएजी के महानिदेशक ने 31वे स्थापना दिवस के जिस समारोह में ये घोषणा की उस मौके पर गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू भी मौजूद थे.

महिला सशक्तिकरण के इस दौर में महिलाएं किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है. ऐसे में महिलाएं युद्ध के मैदान में या फिर आंतकियों से लोहा लेने में पीछे क्यों रहें. कम ही लोग जानते हैं कि रशिया के जिन लड़ाकू विमानों ने हाल ही में सीरिया में आईएस के ठिकानों पर हमला कर 300 आंतकियों को ढेर किया था, उन्हे महिला फायटर पायलट ही उड़ा रहीं थीं.

इस साल जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबाम हमारे देश आए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सीधे तौर पर तीनों सेनाओं को आदेश दिया कि गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल टुकड़ियों का नेतृत्व महिला सैन्यकर्मी ही करेनी चाहिए. पीएम दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स के सामने अपने देश की महिला सशक्तिकरण का उदाहरण पेश करना चाहते थे. यहां तक की पहली बार ऐसा हुआ कि एक महिला सैन्य अधिकारी (विंग कमांडर पूजा ठाकुर) ने किसी दूसरे देश के राष्ट्रध्यक्ष (बराक ओबामा) को दी गई सलामी परेड का नेतृत्व किया.

दरअसल, ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन है कि महिलाओं को भी सेनाओं में बराबरी का मौका दिया जाए. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि वायुसेना प्रमुख बनने के तुरंत बाद ही अरुप राहा ने साफ तौर से महिला पायलटों को उनकी (शारीरिक) क्षमता पर सवाल उठाकर लड़ाकू विमान उड़ाने में ना-सार्मथ करार दिया था. लेकिन नई (मोदी) सरकार के सत्ता में आने के एक साल में ही वायुसेनाध्यक्ष ने अपनी सोच महिला पायलट के प्रति पूरी तरह बदल दी है. उनका मानना है कि महिलाओं को "ट्रैनिंग के जरिए शारीरिक-फिट" बनाया जा सकता है.

हमारे देश की महिलाकर्मियों और कमांडो देश से बाहर भी अपना नाम कमा चुकी हैं. अफ्रीकी देश लाईबेरिया  की महिला-राष्ट्रपति की अंगरक्षक के तौर पर हमारी पैरा-मिलेट्री फोर्स की महिला-कमांडो कई सालों से तैनात हैं. दरअसल, लाईबेरिया में काफी समय से गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है, और वहां पर हमारे अर्द्धसैनिक बलों की टुकड़िया संयुक्त-राष्ट्र की शांति-सेना में तैनात हैं. जिसके चलते लाईबेरिया की महिला-राष्ट्रपति की सुरक्षा में हमारे देश की महिलाकर्मियां तैनात हैं. 

इसके अलावा, प्रधानमंत्री और दूसरे वीवीआईपी की सुरक्षा करने वाली एसपीजी में भी काफी समय से महिला कमांडो शामिल हैं. ऐसे में महिलाओं को आंतकियों से दो-दो हाथ करने का मौका भी मिलना चाहिए. वो भी ऐसे समय में जब इस तरह की खबरें लगातार मिलतीं रहती हैं कि आतंकी संगठन महिलाओं को भी अपने दस्ते में शामिल कर रहें हैं और उनके साथ मिलकर किसी भी बड़े हमले को अंजाम दे सकते हैं. बीएसएफ की महिला-विंग पाकिस्तान सीमा पर तैनात है. लेकिन उसकी तैनाती ऐसी जगह ( पंजाब में अंतर्राष्ट्रीय सीमा) पर है जिसे  लगभग 'शांत' क्षेत्र माना जाता है. बीएसएफ ने महिला-जवानों को जम्मू और आरएसपुरा जैसे उन इलाकों में  तैनात नहीं किया हैं जहा से सीमा पर सबसे ज्यादा आंतकियों की घुसपैठ या फिर पाकिस्तान की तरफ से फायरिंग होती है.

हालांकि, वायुसेना में लड़ाकू विमान उड़ाने का मौका महिला पायलट को मिल सकता है. लेकिन महिलाओं को थलसेना में योद्धा के तौर पर शामिल करना बेहद मुश्किल भी हो सकता है. सेना इस बात से आशंकित है कि क्या महिलाएं दूर-दराज के जंगलों, दुर्गम पहाड़ियों, बर्फ की चोटी और रेगिस्तान, जहां दूर-दूर तक कोई घर या मकान तो दूर कोई झोपड़ा भी नसीब नहीं होता, वहां कैसे काम करे पायेंगी--काम तो दूर रह भी पाएंगी ? और अगर युद्ध हुआ और सेना को बॉर्डर पर कर दुश्मन के इलाके में घुसना का ऑर्डर मिला तो क्या  वहां भी महिलाओं को भेजा जा सकेगा. अगर हमारी महिला-योद्धा दुश्मन के हाथों में पड़ गईं तो उसका क्या अंजाम होगा. ये सब कुछ ऐसी आशंकाएं हैं जो सेना को महिलाओं को सीधे कॉम्बेट-रोल में शामिल करने में अड़चन पैदा कर रहीं हैं.

खुद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर तीनों सेनाओं के प्रमुखों से लगातार इस बात पर चर्चा कर रहें हैं कि महिलांओं को सेनाओं में कितना और कैसा रोल दें. हालांकि अभी भी महिला अधिकारी सेना में काम कर रहीं है. लेकिन वे सभी नॉन-कॉम्बेट यूनिट जैसे इंटेलीजेंस, शिक्षा, लीगल, मेडिकल इत्यादि में कार्यरत हैं. इसी तरह से वायुसेना में भी महिला पायलट अभी ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर या फिर विमान ही उड़ा सकतीं हैं. नौसेना में अभी भी महिला अधिकारियों को युद्धपोत पर कम ही तैनात किया जाता है.  एक ठोस चर्चा के बाद ही महिलाओं को देश की सेना या फिर पैरा-मिलेट्री फोर्स में कॉम्बेट-रोल मिल सकता है.

Monday, October 12, 2015

सेना का 'मिशन-ओलंपिक'

जनरल दलबीर सिंह कमांडरर्स कांफ्रेंस में वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ

भारतीय सेना अब सरहदों की रक्षा करने के साथ साथ ओलंपिक में पदक जीतने का लक्ष्य भी रखेगी। इस बारे में आज सेना की सबसे बड़ी सभा, कमांडरर्स कांफ्रेंस में फैसला लिया गया। इस सम्मलेन की अध्यक्षता खुद थलसेना प्रमुख, जनरल दलबीर सिंह ने की।

        सेना के एक प्रवक्ता ने बताया कि आज शुरू हुई आर्मी कमांडरर्स कांफ्रेंस में इस बात की समीक्षा खास तौर से की गई कि सेना के खिलाड़ियों की अगले साल रियो (ब्राजील) में होने वाले ओलंपिक की तैयारी कैसी चल रही है। इसके लिए जनरल दलबीर सिंह ने सेना में गठित की गई 'मिशन ओलंपिंक' विंग की तैयारियों का जायजा लिया। 

सेना का शूटर, जीतू राय
        सूत्रों के मुताबिक, सेना अगले साल होने वाले ओलंपिक के लिए देश के लिए कम से कम तीन (03) पदक जीतने का लक्ष्य रख रही है। सेना के शूटर जीतू राय से सेना को पूरी उम्मीद है कि वो ओलंपिक में देश के लिए मेडल जरूर जीतकर लायेगा। जीतू राय ने काॅम्नवेल्थ और एशियाड में पदक जीतकर भारत की उम्मीदें काफी बढ़ा दी हैं।

       सेना के प्रवक्ता के मुताबिक आज हुई कमांडरर्स कांफ्रेंस में माउंटन स्ट्राइक कोर के गठन की समीक्षा के साथ-साथ एयर डिफेंस, आर्टेलरी, एंटी टैंक मिसाइल, बीएमपी टैंकों, गोला-बारूद के भंड़ार पर भी चर्चा हुई। साथ ही सेना प्रमुख ने गोपनीय जानकारी लीक ना होने और साइबर सिक्योरिटी के लिए खास कदम उठाने पर जोर दिया। 16 अक्टूबर तक चलने वाले इस सम्मलेन में एक पूरा दिन सेना के ऑपरेशन विंग, डीजीएमओ के लिए रखा गया है।

         मंगलवार से वायुसेना की कमांडरर्स कांफ्रेंस भी शुरू होगी (13-16 अक्टूबर), जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर करेंगे।

        गौरतलब है कि इस साल का साझा कमांडरर्स कांफ्रेंस (तीनो सेनाओं का) बिहार चुनाव के चलते टल गया है। 10 अक्टूबर से कोच्चि के करीब अरब सागर में आईएनएस विराट पर होने वाला सम्मलेन अब नबंबर में होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यस्त रहने और बिहार चुनाव के चलते ये फैसला लिया गया है। साझा कांफ्रेंस की अध्यक्षता पीएम करते हैं।

चीन के साथ 'हैंड इन हैंड' या अमेरिका-जापान के साथ ?



भारत-चीन साझा युद्धभ्यास 'हैड इन हैंड' युनान में शुरु

भारत और चीन के बीच साझा युद्धभ्यास 'हैंड इन हैंड' आज से शुरु हो गया. चीन के युनान प्रांत में कुनमिंग मिलेट्री एकेडमी में आज शुरु हुआ ये युद्धभ्यास 23 अक्टूबर तक चलेगा. ये युद्धभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जब भारतीय नौसेना बंगाल की खाड़ी में अमेरिका और जापान के साथ आज से ही साझा युद्धभ्यास , 'मालाबार' शुरु कर रही है. भारत के अमेरिका और जापान के साथ इस गठजोड़ का चीन हमेशा से विरोध करता आया है. 

          चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और भारतीय सेना की टुकड़िया अगले 12 दिनों तक काउंटर-टेरिरज्म और प्राकृतिक आपदा के दौरान दोनों देशों की सेनाएं किस तरह साझा सहायता अभियान चला सकती हैं उसकों लेकर युद्धभ्यास करेंगी. पिछले पांच सालों से दोनों देशों की सेनाएं इस युद्धभ्यास को अंजाम देती हैं. ये य़ुद्धभ्यास एक साल भारत में होता है और एक साल चीन में होता है. इस साल भारतीय सेना की कमान संभाली है लेफ्टिनेंट जनरल सुरेन्द्र सिंह ने और चीन की लेफ्टिनेंट जनरल चूओ शियोचूओ ने.

        युद्धभ्यास के शुभारंभ समारोह में आज दोनों सेनाओं के जवानों ने मार्शल आर्ट्स और योग क्रार्यक्रम का आयोजन किया. 
भारत और चीन की सेनाओं के जवान हैंड इन हैंड युद्धभ्यास में

        इस बीच आज से ही बंगाल की खाड़ी में भारत-अमेरिका और जापान का साझा नौसैनिक युद्धभ्यास भी शुरु हो गया है. करीब आठ साल बाद तीनों देश एक साथ मिलकर भारत में साझा युद्धभ्यास कर रहे हैं. 2007 में जब तीनों देशों ने एक साथ मालाबार नाम की इस एक्सरसाइज को किया था, तो चीन ने भारत से अपना विरोध दर्ज कराया था. चीन को लगता है कि भारत का अमेरिका और जापान से ये गठजोड़ उसके खिलाफ है. उसके बाद से भारत ने जापान को इस युद्धभ्यास में आमंत्रित करना बंद कर दिया था. हालांकि अमेरिका के साथ भारत का युद्धभ्यास हर दो साल में होता था. लेकिन एक बार फिर भारत ने जापान को मालाबार एक्सरसाइज का हिस्सा बनाया है. 

        दरअसल, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान से नजदीकियां किसी से छिपी नहीं रहीं हैं. यही वजह है कि जापान को इस साल युद्धभ्यास में शामिल करने में कोई दिक्कत नहीं आई. चीन के भारत के साथ-साथ जापान से हमेशा से ही तल्ख रिश्ते रहे हैं. साथ ही अमेरिका दक्षिणी चीन सागर में चीन के बढ़ते संप्रभुत्व के खिलाफ है. दरअसल, चीन दक्षिणी चीन सागर में किसी दूसरे देश की नौसेना को देखना नहीं चाहता है. लेकिन अमेरिका इसके खिलाफ है. भारत भी अमेरिका का साथ दे रहा है. इस साल गणतंत्र दिवस के मौके पर जब अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के दौरे पर आए थे तो पीएम मोदी ने अपने भाषण में खासतौर से दक्षिणी चीन सागर में फ्री-मूवमेंट पर जोर दिया था. यही वजह है कि चीन  भारत-अमेरिका-जापान के गठजोड़ को तिरछी निगाहों से देखता है. अभी इस युद्धभ्यास पर चीन की प्रतिक्रिया आनी बाकी है.
 
यूएस न्यूकिलर एयरक्राफ्ट कैरियर, 'रुजवेल्ट'
       खास बात ये है कि इस बार मालाबार युद्धभ्यास में अमेरिका अपने सबसे बड़े न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट कैरियर, रुजवेल्ट को लेकर भारत आया है. निमिट्ज क्लास का ये परमाणु विमानवाहक युद्धपोत करीब एक लाख टन का है और इसपर एक साथ नब्बे (90) लड़ाकू विमानों को तैनात किया जा सकता है. इसके अलावा अमेरिकी नौसेना की सेंट्रल कमांड (सेंटकोम) के तीन और युद्धपोत इस अभ्यास में हिस्सा ले रहे हैं. 

       अमेरिका नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी और ताकतवर नौसेना मानी जाती है. अमेरिका की थलसेना और वायुसेना भी इतनी ताकतवर नहीं मानी जाती हैं जितना उसकी नौसेना का पूरी दुनिया में दबदबा माना जाता है. गौरतलब है कि अमेरिका नौसेना के पास निमिट्ज क्लास के करीब 10 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. ये विमानवाहक युद्धपोत दुनिया के हर कोने में तैनात रहते हैं. रुजवेल्ट भी सेंटकोम के तहत पारस की खाड़ी में तैनात रहता है. हाल ही में आईएस (इस्लामिक स्टेट) के लड़ाकूओं के खिलाफ ईराक और सीरिया में रुजवेल्ट ने अहम भूमिका निभाई थी. 

       अमेरिका नौसेना दुनिया की एकमात्र ऐसी नौसेना है जिसके पास एक-दो नहीं बल्कि 10-10 एयरक्राफ्ट कैरियर है. अमेरिका के बाद इटली और भारत ही ऐसे दो देश हैं जिनके पास दो विमानवाहक युद्धपोत हैं (भारत का एक एयरक्राफ्ट कैरयिर अगले साल रिटायर होने वाला है). यहां तक की रशिया, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन के पास भी एक-एक ही एयरक्राफ्ट कैरियर है.
 
      भारतीय नौसेना के भी करीब आधा-दर्जन युद्धपोत और एक पनडुब्बी, सिंधुध्वज इसमें शामिल हो रही है. जापान का एक युद्धपोत, फुयोजुकी मालाबार-युद्धभ्यास में भाग ले रहा है.

     मालाबार एक्सरसाइज के पहले चार दिन यानि 12-15 अक्टूबर तक तीनों देशों की नौसेनाएं चेन्नई के तट पर ही युद्धभ्यास करेंगी. 15 अक्टूबर को चेन्नई में तीनों देशों के बड़े सैन्य अधिकारी मीडिया को एक साथ संबोधित भी करेंगे. इसके बाद यानि 16-19 अक्टूबर तक तीनों देशों की नौसेनाएं बंगाल की खाड़ी में युद्धभ्यास करेंगी.