Tuesday, February 17, 2015

डिजिटल-आर्मी




प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सत्ता संभालने के बाद डिजिटल-इंडिया का जोरदार नारा दिया था. इसका उद्देश्य है पूरे देश को आईटी से जोड़ने और इंफोर्मेशन-टेक्नोलॉजी का लाभ दूर-दराज में रहने वाले हर भारतवासी तक पहुंच सके. डिजिटल-इंडिया से  ही जुड़ा हुआ है पीएम मोदी का डिजिटल-आर्मी का विचार. आखिर क्या है डिजिटल-आर्मी और किस तरह से सेना इसे लागू करने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रही है उससे पहले दो-तीन घटनाओं को जानना बेहद जरुरी है.

    सबसे पहली हुई 15 फरवरी को. सेना की आंख-कान समझे जाने वाले सिग्नल-कोर ने इस दिन (यानि 15 फरवरी) को अपना 105वां स्थापना दिवस मनाया. किसी भी संस्था के लिए एक शताब्दी से भी ज्यादा का सफर अपने-आप में कई मायने रखता है. दूरसंचार, रेडिया और सैटेलाइट फोन या फिर सेक्योर-लाइन के जरिए 13 लाख की सेना को एक सूत्र में बांधने का काम करता है सिग्नल-कोर. साथ ही दुश्मन को हमारी खुफिया जानकारी हाथ ना लगने पाए, इसकी जिम्मेदारी भी सिग्नल कोर की ही होती है.

       दूसरी घटना अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की हाल ही में गणतंत्र-दिवस परेड में मुख्य-अतिथि के दौर पर भारत यात्रा से जुड़ी है. ओबामा के भारत दौरे पर आने पर उनका खास तरह का मोबाइल फोन खासा चर्चा में रहा था. जो जानकारी मिल पाई थी उसके मुताबिक, उनका फोन अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी यानि एनएसए ने इस तरह तैयार किया था कि कोई भी ना तो इस फोन को टैप कर सकता था और ना ही उसे हैक कर सकता था. ये खास फोन एनएसए ने इसलिए तैयार किया था क्योंकि, दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स किससे और क्या बातचीत करता है इसका दुश्मन को कतई पता नहीं चलना चाहिए.

     तीसरी घटना थोड़ी पुरानी है. लेकिन इतनी भी पुरानी नहीं है कि आमजन उसे भूल गए हों. वैसे इस घटना ने जितना नुकसान भारतीय सेना का किया था उतना तो शायद चीन से हार के बाद भी नहीं हुआ था. वो था, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह का उम्र-विवाद. ये विवाद जनरल और सेना के दस्तावेजों में हेरफेर के चलते हुआ था. इन दस्तावेजों में कैसे गलती हुई या किसकी वजह से गलती हुई, अब इस पर विचार करने से कोई फायदा नहीं है. इस (उम्र) विवाद और जनरल को एक अतिरिक्त साल नौकरी करने के मुद्दे से भारतीय सेना की साख पर बट्टा जरुर लग गया. लेकिन अब इसे सुधारने का तो नहीं, लेकिन इससे सीख लेना का समय जरुर आ गया है. कैसे, आईये हम जान लेते हैं. और फिर ऊपर की तीनों घटनाओं के समन्वय करने की कोशिश करेंगे, जो पीएम मोदी के डिजिटल-इंडिया या फिर फिर डिजिटल-आर्म्ड फोर्सेज के नारे को स्वरुप देने में कारगर सिद्ध होता दिखाई देता है.
एकीकृत कमांडर कांफ्रेस को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी


     देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सत्ता संभालने के बाद जब पहली बार तीनों सेनाओं के साझा सम्मेलन को संबोधित किया, तो उन्होनें सेनाओं को डिजिटिल-आर्मड फोर्सेजबनाने पर जोर दिया था. डिजिटिल-सेना का मतलब ये है कि सेनाएं ज्यादा से ज्यादा काम कम्पयूटर के जरिए करें, ताकि गलती की गुजाइंश कम हो जाए. साथ ही काम भी कम समय में पूरा कर लिया जाए.
     लेकिन डिजिटल-आर्मी का अर्थ सिर्फ इतना ही नहीं है. इसका मतलब ये है कि सेना के शीर्ष नेतृत्व से लेकर सबसे नीचे काम करने वाले जवान तक इसका सीधा-सीधा असर या फिर प्रभाव दिखाई देना चाहिए. इसके लिए सेना ने रेजीमेंटल सेंटर से लेकर फॉरमेशन-लेवल पर सीटीएल यानि कम्प्यूटर ट्रैनिंग लैब को स्थापित किया है. ताकि सेना के सभी जवानों को यहां कम्पयूटर की बेसिक शिक्षा जरुर दी जाये-चाहे वो पहले से जानता है या नहीं.

     वैसे, डिजिटल-आर्मी का काम सिर्फ इतना नहीं है कि हरेक जवान को कम्प्यूटर चलाना आता हो. बल्कि इससे कहीं ज्यादा है. इसका अर्थ ये है कि उसकी जिंदगी—निजी और सरकारी—में उसका उपयोग भी होना चाहिए. इसके लिए सेना ने सबसे पहला काम ये किया है कि ऊपर से लेकर नीचे तक सभी अधिकारियों और जवानों के शैक्षिक और सरकारी दस्तावेजों को डिजिटाईज्ड करना शुरु कर दिया है. यानि अब किसी भी जवान को अपने दस्तावेजों को एक जगह से दूसरी जगह लेकर घूमने की जरुरत नहीं पड़ेगी. वो अब एक ही जगह यानि अपने रेजीमेंटल सेंटर में दस्तावेजों को डिजिटली-स्टोर करवा सकता है. यहां रखवाने के बाद वो अपना रिकॉर्ड-सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकता है और जहां भी उसकी पोस्टिंग हो उसे साथ लेकर जा सकता है. इससे एक तो उसके मूल दस्तावेज खोने का डर खत्म हो जायेगा. दूसरा ये कि कहीं पर भी उसके दस्तावेजों को लेकर कोई परेशानी खड़ी नहीं होगी—जैसा कि जनरल वी के सिंह के समय आई थी.

     दरअसल, जनरल वी के सिंह का दावा था कि उनके सरकारी (सेना के) दस्तावेजों में उनकी उम्र एक साल बढ़ा दी गई थी. जबकि उनके स्कूल-सर्टिफिकेट में उम्र कुछ और दी हुई थी. लेकिन इस गड़बड़ी को समय रहते सुधारा नहीं गया, जिसके चलते इतना बड़ा बवाल खड़ा हो गया कि एक साल नौकरी बढ़वाने के लिए सेना प्रमुख ने सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटा दिया था. खैर, जनरल वी के सिंह मनमसोस कर रह गए थे. लेकिन इस घटना से सबक लेते हुए सेना ने अपने सभी रैंक एंड फाइल के दस्तावेज डिजीटाईज्ड करने शुरु कर दिए. ताकि समय-समय पर कोई भी अधिकारी अपने दस्तावेज सेना के दस्तावेज से मेल करा सकता है और गड़बड़ी पाने पर समय रहते सुधार करा सकता है.

     अभी तक सेना के सभी अधिकारियों और जवानों का रिकॉर्ड दिल्ली में सेना मुख्यालय स्थित एमएस यानि मिलेट्री-सैकेटरी ब्रांच में होता था. लेकिन देश के दूर-दराज और बॉर्डर इलाकों में ड्यूटी होने के चलते अधिकारियों के लिए एमएस ब्रांच से संपर्क करने में खासी दिक्कत आती थी. लेकिन अब ये रिकॉर्ड-रुम हर रेजीमेंटल सेंटर में स्थापित किए जाएंगे. ताकि अपनी उम्र और द्स्तावेजों या फिर सर्विस-रिकॉर्ड को लेकर किसी के मन में कोई दुविधा या गलतफहमी पैदा ना हो.

     ये सभी रेजीमेंटल-रिकॉर्ड-रुम सेना मुख्यालय से भी जुड़े होंगे. इसके लिए भारतीय सेना ने दिल्ली में एवॉल यानि आर्मी वाइड एरिया नेटवर्क, लॉकल एरिया नेटवर्क और कैंपस वाइड नेटवर्क स्थापित किया है.

   साथ ही सेना के सभी छोटे-बड़े सेटंर्स पर एटीएम-बूथ की तर्ज पर इंफो-कियोस्क स्थापित किए जाएंगे. ताकि कोई भी जवान इन कियोस्क से सेना से जुड़ी जानकारी, कोर्स, नए पाठ्यक्रम इत्यादि किसी भी वक्त ले सकता है. आईएमए, एनडीए और वॉर-कॉलेज जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में नेशनल नॉलेज नेटवर्क स्थापित किए जाएंगे, जो कि ई-लाईब्रेरी की तरह काम करेंगे.

    इसके अलावा छुट्टी पर जाने वाले जवानों को अब यात्रा में इस्तेमाल होने वाले वारंट भी इलेक्ट्रोनिकली दिए जाएंगे. अभी तक इन वारंटस को लेने के लिए जवान को रेलवे स्टेशन पर एमसीओ दफ्तर में लंबी लाइन में लगना पड़ता था. लेकिन अब ये ई-वारंट उसे छुट्टी पर जाने से पहले ही मुहैया करा दिए जाएंगे.

     यानि सेना में क्लॉउड-कम्प्यूटिंग का कार्य युद्ध-स्तर पर जारी है. ताकि कोई भी डाटा वर्चूयली कही भी उपलब्ध किया जा सके.

    
ऐसा नहीं है कि सेना में कम्प्यूटरीकरण की शुरुआत नई सरकार बनने के बाद हुई है. सेना पहले से ही अधिकारियों के कैरियर मैनेजमेंट, सर्विस-रिकॉर्ड, वेतन-भत्ता और हथियारों (और मशीनों) के रखरखाव का पूरा डाटा ऑनलाइन अपडेट करती रही है. साथ ही सेना का मैसेज सिस्टम यानि (सामरिक) संदेश भेजने की पूरी प्रणाली डिजिटल माध्यम से बेहद ही गोपनीय तरीके से की जाती रही है. सेना की मिसाइल से लेकर परमाणु हथियारों तक के ऑपरेशन पूरी तरह कम्प्यूटराइजड है.

     अब फर्क ये आया है कि ज्यादा से ज्यादा काम ऑनलाइन किया जाने लगा है. और इसकी उपयोगिता को हर सिपाही और जवान तक पहुंचाये जाने की कोशिश तेज हो गई है.

    डिजिटल-आर्मी का दूसरा सबसे बड़ा पड़ाव है पूरी सेना को सेक्योर-लाइन के जरिए जोड़ना. इसका अर्थ ये है कि अभी तक सेना के सिर्फ सीनियर अधिकारी ही ऐसे फोन इस्तेमाल करते थे, जो पूरी तरह से सेक्योर यानि सुरक्षित थे. यानि की ना तो इन फोन-कॉल्स को कोई डिकोड कर सकता है और ना ही आसानी से हैक कर सकता है. पिछले 15 सालों से सेना का शीर्ष-नेतृत्व इस तरह के संचार माध्यमों को इस्तेमाल कर रहा है. लेकिन डिजिटल-सेना के तहत इस सेक्यूर-लाइन को सभी अधिकारियों के साथ-साथ सभी जवानों तक पहुंचाने का है. इसके लिए सेना की सिग्नल-कोर ने अपनी अलग फोन-लाइन स्थापित की है. जो कि प्राईवेट या फिर दूसरी सरकारी संचार सेवाओं से कहीं ज्यादा सुरक्षित है.

     सेक्योर-लाइन से जुड़ा हुआ है एमसीसीएस सिस्टम यानि मोबाइल सेल्युलर कम्यूनिकेशनस सिस्टम. इस सिस्टम के तहत सेना के लिए सार्वजिनक कंपनी बीईएल (भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड) ने एक खास मोबाइल फोन डिजाइन किया है, जो ना तो हैक किया जा सकता है और ना ही टैप किया जा सकता है.
इस हैंडसेट से जवान सिर्फ सेना के लोगों से ही फोन पर बातचीत (मैसेज या फिर एमएमएस भेज) सकते हैं. ये फोन ठीक वैसा ही जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इस्तेमाल करते हैं. सेना की दो कोर यानि लेह स्थित 14 कोर और श्रीनगर स्थित 15 कोर यहीं फोन इस्तेमाल कर रही है. एक कोर के लिए इस फोन को मुहैया कराने का खर्चा करीब-करीब 250 करोड़ रुपये है. जल्द ही सामरिक-दृष्टि से महत्वपूर्ण तीन और कोर में ये (ओबामा जैसे) खास फोन सभी अधिकारिओं और जवानों के हाथों में होंगे. इन हैंडसेट और सेक्यूर लाइन से किसी दूसरी कंपनी के फोन या फिर सर्विस-प्रोवाइर से बात नहीं की जा सकती है.
  
    सेना के डिजिटल-आर्मी प्रोजेक्ट का जिम्मा डीजीआईएस यानि डायेरेक्टरेट-जनरल ऑफ इंर्फोमेशन सिस्टम के जिम्मे है. लेकिन इतने बड़े और अहम प्रोजेक्ट को कार्यंवित करने के लिए मूलभूत ढांचा तैयार किया है सिग्नलस कोर ने. वही सिग्नल कोर जिसे सेना का आंख और कान कहा जाता है और जिसने अपनी स्थापना के सौ स्वर्णिम साल पूरे कर लिए हैं.

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