Monday, November 17, 2014

तैयार हैं भारतीय यूएवी ड्रोन

अमेरिकी फौजों ने जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान में तालिबानी आतंकियों और उनके ठिकानों को अपने ड्रोन से चुन-चुनकर निशाना बनाया, तो हर कोई हैरान था कि आखिर ये ड्रोन नाम की बला है तो है क्या. अमेरिकी ड्रोन ने पाकिस्तान में तालिबानी आतंकियों पर इतने हमले किए कि खुद पाकिस्तानी सरकार को अमेरिका से मिन्नत करनी पड़ी कि वो ड्रोन से किये जा रहे हमले बंद कर दे. दुनिया को पहली बार पता चला कि अमेरिका ने ड्रोन नाम का ऐसा घातक हथियार तैयार किया है जिसका सैन्य-दुनिया में कोई सानी नहीं है. दुनिया को पहली बार पता चला कि ड्रोन दरअसल एक तरह का मिलेट्री-एयरक्राफ्ट है जो बिना पायलट के चलता है. यानि अनमैन्ड एरियल व्हीकल या यूएवी.
अमेरिकी ड्रोन: निशाने पर दुश्मन

               सवाल ये था कि अगर ये विमान पायलट-रहित है तो फिर मिसाइल और बमों से इतने सटीक निशाने कैसे लगाता है. यकीनन, यूएवी का पायलट तो होता है, लेकिन वो विमान के अंदर बैठकर उसे नहीं उड़ता है. वो जमीन पर रहकर कम्पयूटर और रिमोट के जरिए उसे अपनी दिशा-निर्देश के अनुसार उड़ाता है. जमीन पर बने कंट्रोल-रुम से पायलट यूएवी से ली जा रहीं तस्वीरें देखता रहता है. यूएवी की खासयित ये है कि इस तरह के विमान खास तरह के सर्विलांस टेक्नॉलोजी से लैस होते है. इसमें खास तरह के लंबी दूरी के कैमरे, रडार और सेंसर लगे होते हैं. इन उपकरणों के मदद से ये जिस भी क्षेत्र के ऊपर उड़ता है उस इलाके की एक-एक तस्वीर अपने कैमरों में कैद कर लेता है.

           इन तस्वीरों के माध्यम से पायलट जमीन पर बने कंट्रोल-रुम से पता लगा लेता है कि दुश्मन का ठिकाना कितनी दूरी पर है और कहां पर है. बस इसके जरिए वो यूएवी को आसमान में उड़ाता है और उसका टारगेट फिक्स कर मिसाइल और बमों की बौछार कर देता है. दुश्मन को संभालने तक का मौका नहीं मिलता. यहां तक की यूएवी की मिसाइलों तक में जीपीआरएस जैसी तकनीक लगी होती है. यानि पायलट चाहे तो हवा में उड़ती मिसाइल को किसी भी दिशा में मोड़ सकता है. ये तकनीक चलते (या दौड़ते) हुए दुश्मनों के टैंक के लिए काफी प्रभावी होती है.
    जानकारों की मानें तो, मिलेट्री-एयरक्राफ्ट के मुकाबले यूएवी के कई फायदे हैं. पहला तो ये कि इससे पायलट और दूसरे सैन्य-अधिकारियों की जान को कोई खतरा नहीं होता है. दरअसल, अगर लड़ाकू-विमान दुश्मन की रडार की पकड़ में आने से उसपर दुश्मन अपनी मिसाइलों से हमला बोल सकता है. ऐसी स्थिति में एयरक्राफ्ट, पायलट और उसमें बैठे दूसरे अधिकारियों की जान जोखिम में पड़ सकती है. लेकिन यूएवी क्योंकि पायलट-रहित एयरक्राफ्ट है इसके पायलट की जान को कोई खतरा नहीं होता. जो कि किसी भी युद्ध में बेहद जरुरी है. साथ ही लड़ाकू-विमान की तुलना में यूएवी बहुत छोटा होता है. इसलिए दुश्मन की नजर से दूर रहता है. साथ ही इसकी कीमत भी मिलेट्री-एयरक्राफ्ट से काफी कम होती है. इसलिए अगर इस पर हमला हो भी जाये तो नुकसान बेहद कम होता है.
अमेरिकी ड्रोन उड़ने के लिए तैयार

            अमेरिकी ड्रोन की तर्ज पर अब लगभग हर बड़ा देश इस तरह के यूएवी तैयार कर रहा है. भारत ने भी अपने कई यूएवी तैयार किए हैं. इनमें प्रमुख हैं निशांत, रुस्तम,  लक्ष्य और अभय. भारत की सबसे बड़ी सैन्य-सरकारी संस्था, डीआरडीओ ने इन सभी यूएवी को तैयार किया है. साथ ही कुछ प्राईवेट कंपनियां भी अब भारत में इस तरह की यूएवी तैयार कर रहीं हैं.

निशांत--इस मानव-रहित टोही विमान यानि यूएवी का मुख्य काम है किसी भी इलाके की निगरानी और सर्वेक्षण करना यानि सर्विलिएंस और रिकोनिसेशंस.
निशांत
भारतीय सेना निशांत का फिलहाल उपयोग बॉर्डर इलाकों में करती है. इसके जरिए बॉर्डर पर नजर रखी जाती है कि कही दुश्मन हमारी सीमा में घुसपैठ तो नहीं कर रहा है. या दुश्मन को कोई विमान हमारी एयर-स्पेस में तो नहीं घुस आया है. 
  करीब साढ़े चार मीटर लंबा और 180 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से उड़ने वाला निशांत चार घंटे से ज्यादा तक हवा में उड़ सकता है. ये 10 से 12 किलोमीटर तक की किसी भी इमारत का पता लगा सकता है. साथ ही 4-5 किलोमीटर दूर जा रहे ट्रक या टैंक को भी आसानी से कैच कर लेता है. इसके जरिए हमारी सेना की तोपें किसी भी निशाने पर आसानी से टार्गेट कर सकती हैं.

 रुस्तमरुस्तम निशांत का एडवांस वर्जन है. डीआरडीओ ने रुस्तम के भी दो वर्जन तैयार किए है. रुस्तम-I और रुत्मस-II. रुस्तम-II ज्यादा एडवांस है.
रुस्तम-
अगर इसमें एरियल-टारगेट फिट कर दिया जाये तो ये अमेरिकी ड्रोन की तर्ज पर काम करने लगेगा. फिलहाल डीआरडीओ ने इस विकल्प को खुला रखा है.

अभय—अभय नाम का यूएवी सही मायने में अमेरिकी ड्रोन की तरह काम करता है. इस यूएवी में मिसाइल फिट होती हैं. इससे जमीन या फिर समुद्री-जहाज से भी लांच किया जा सकता है. 

लक्ष्य—लक्ष्य अपने नाम की तरह ही अपने लक्ष्य को टार्गेट करता है. ये एक तरह से अभय का एडवांस वर्जन है जिसमें मिसाइल फिट होती हैं.
लक्ष्य
जमीन पर बैठा इसका पायलट लक्ष्य लेकर लक्ष्य को कहीं भी लांच कर सकता है. भारतीय सेना, एयरफोर्स और नेवी लक्ष्य का इस्तेमाल कर रहीं हैं. ये 5 से 9 किलोमीटर तक का टार्गेट कर सकती है.

एयरोस्टेट सिस्टम—ये एक तरह का बहुत बड़ा गुब्बारा होता है. करीब डेढ़ किलोमीटर की उंचाई से ये गुबारा, जिसे एयरोस्टेट कहा जाता है, 150 किलोमीटर के दायरे तक की निगरानी कर सकता है. इसमें लगे खास तरह के कैमरे दुश्मन के यूएवी और मिसाइल को टारगेट पर पहुंचने से पहले ही डिटेक्ट करने की क्षमता है.

नेत्रा—जैसा की इस यूएवी का नाम है, ठीक वैसे ही ये आंखों की तरह काम करती है. ये बेहद ही छोटा उपकरण है.
नेत्रा
जैसा कि थ्री इडियट्स नाम की फिल्म में दिखाया गया था. चार-पांच पंखुड़ी वाला एक छोटा सा उपकरण जिसमें एक कैमरा फिट रहता है. करीब आधा-किलोमीटर की उंचाई से ये 4-5 किलोमीटर तक की निगरानी रख सकता है और तस्वीरें खीच कर जमीन पर बने कंट्रोल सिस्टम में कैद करता रहता है. इस यूएवी को भारत की पैरा-मिलेट्री फोर्स बड़ी तादाद में नकस्ली-प्रभावित इलाकों में इस्तेमाल कर रही हैं.

एक्यूलोन—भारत की प्राईवेट कंपनी, टाटा-नोवा ने इस यूएवी को तैयार किया है. ये भी निशांत और रुस्तम की तरह ही निगरानी और सर्वेक्षण का काम करती है. लेकिन इसकी उड़ने की क्षमता निशांत और रुस्तम से कहीं कम है.

               साफ है कि भारत भी अब दूसरे बड़े देशों की तरह यूएवी के क्षेत्र में अपने कदम जमाने की स्थिति में पहुंच गया है.

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