Wednesday, May 22, 2019

नौसेनाध्यक्ष के पद के लिए वरिष्टता ही नहीं योग्यता भी जरूरी: एएफटी


आर्म्ड फोर्स ट्राईब्यूनल यानि एएफटी ने सरकार को आदेश दिया है कि 29 मई को नए नौसेनाध्यक्ष बनाए जाने से जुड़ी प्रक्रिया के सारे दस्तावेज कोर्ट के सामने पेश करे. ये आदेश एएफटी ने वाईस एडमिरल बिमल वर्मा की उस याचिका पर दिया जिसमें उन्होनें अपने से जूनियर अधिकारी को नया नौसेना प्रमुख बनाए जाने पर ऐतराज जताया था. एएफटी ने अपील मंजूर करते हुए कहा कि अगर जरूरत हुई तो नए नौसेनाध्यक्ष की 31 मई को होने वाली नियुक्ति पर भी रोक लगाई जा सकती है.

आपको बता दें कि सरकार ने नौसेना के सबसे सीनियर अधिकारी, वाईस एडमिरल बिमल वर्मा की अनदेखी कर उनसे छह महीने जूनियर अधिकारी, वाईस एडमिरल करमबीर सिंह को नया नौसेना प्रमुख घोषित कर दिया है. करमबीर सिंह 31 मई को रिटायर हो रहे मौजूदा नौसेनाध्यक्ष एडमिरल सुनील लांबा की जगह लेंगे.

अपने को नजरअंदाज करने पर बिमल वर्मा ने एएफटी के कहने पर रक्षा मंत्रालय में अपील की थी. लेकिन रक्षा मंत्रालय ने मेरिट यानि योग्यता का हवाला देकर बिमल वर्मा की अपील खारिज कर दी थी. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, नौसेनाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए सीनियोरिटी यानि वरिष्टता ही मापदंड नहीं हो सकता है. साथ ही तीन आधार पर बिमल वर्मा को इस पद के लिए योग्य नहीं माना गया. इसमें पहला है वर्ष 2008 में उनके खिलाफ नौसेना द्वारा जारी किया एक डिस्पेलजर-लैटर जिसमें नौसेना के ओपरेशन्स-डायेरेक्टरेट में तैनाती के दौरान संवेदनशील दस्तावेजों का लीक होना (नेवल वार रूम लीक मामला). दूसरा, नौसेना की कोई ओपरेशनल कमांड की कमान ना संभालना और तीसरा, परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) ना मिलना.

एएफटी की मुख्य (प्रधान) बेंच के चैयरपर्सन, जस्टिस वीरेन्द्र सिंह ने जनरल करियप्पा से लेकर जनरल वैद्य और मौजूदा थलसेनाध्यक्ष, जनरल बिपिन रावत का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले भी ऐसा देखा गया है कि सैन्य-प्रमुख की नियुक्ति के दौरान वरिष्टता को नजरअंदाज कर दिया गया. लेकिन इस बार एक वाईस एडमिरल रैंक के अधिकारी ने सरकार की नियुक्ति प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं. इसलिए हम इसे एक गंभीर मामला मानकर जांच करना चाहते हैं कि क्या वाकई योग्यता ही मापदंड रखी गई है नए नौसेनाध्यक्ष की नियुक्ति के दौरान. जस्टिस वीरेन्द्र सिंह ने अंडमान निकोबार कमांड के कमांडिंग इन चीफ, बिमल वर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि वे नहीं चाहते कि रिटायरमेंट के बाद वे (वर्मा) नींद के लिए एल्प्रैक्स की गोली खाएं।

इस बेंच में जस्टिस वीरेन्द्र सिंह के अलावा थलसेना के पूर्व सहसेनाध्यक्ष, लेफ्टिनेंट जनरल फिलीप कंपोस भी सदस्य‌ के तौर पर मौजूद थे। अब इस मामले की सुनवाई 29 मई को होगी।

सुनवाई के दौरान एएफटी ने कहा कि नौसेनाध्यक्ष के पद के लिए केवल वरिष्टता को आधार नहीं बनाया जा सकता। अगर ऐसा हुआ तो फिर ये एक क्लर्क का पद बन जायेगा। इसके लिए योग्यता भी जरूरी है। 

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