Wednesday, May 15, 2019

पैरा-एसएफ, गरूड़ और मार्कोस कमांडोज़ अब मिलकर करेंगे सर्जिकल-स्ट्राइक


देश की पहली स्पेशल फोर्स कमांडोज़ की एक अलग (और खास) डिवीजन को हरी झंडी मिल गई है. स्पेशल फोर्स ऑपरेशन्स डिवीजन नाम की इस यूनिट का पहला चीफ, मेजर जनरल अशोक ढींगरा को बनाया गया है. खास बात ये है कि एसएफओडी यूनिट में थलसेना के पैरा-एसएफ कमांड़ोज़ के साथ साथ वायुसेना के गरूड़ और नौसेना के मरीन कमांड़ोज़ यानि मार्कोस भी हिस्सा होंगे. ये यूनिट देश के लिए जरूरी खास मिशन को अंजाम देगी. युद्ध की स्थिति में इसे दुश्मन देश की सीमा में घुसकर सर्जिकल-स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन करने के लिए इस्तेमाल किया जायेगा.

देश के बेहतरीन कमांडोज़ वाली ये यूनिट रक्षा मंत्रालय के अंर्तगत सीधे काम करने वाले इंटीग्रेटड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) के तहत ऑपरेट करेगी. आईडीएस का चीफ एक लेफ्टिनेंट-जनरल रैंक का अधिकारी होता है. पिछले साल तीनों सेनाओं के साझा सैन्य-कमांर्डस कांफ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस खास डिवीजन को बनाने का रास्ता साफ किया था. इसके अलावा तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल और समन्वय के लिए एक साझा डिफेंस साईबर एजेंसी और एक स्पेस एजेंसी बनाने को भी मंजूरी मिल चुकी है. 

एसएफओडी का चीफ थलसेना से होगा, तो साईबर एजेंसी की मुखिया नौसेना से होगा और स्पेस एजेंसी का नेतृत्व वायुसेना का एक टू-स्टार अधिकारी करेगा. हाल ही में नौसेना ने इस ट्राई-सर्विस साईबर एजेंसी का चीफ, रियर एडमिरल मोहित गुप्ता को नियुक्त किया था. माना जा रहा है कि जल्द ही वायुसेना भी स्पेस एजेंसी का चीफ, एयर वायस मार्शल एस पी धरकड़ को बनाया जायेगा।

जानकारी के मुताबिक, यूएस और दूसरे देशों की तर्ज पर ही एसएफओ़डी को तैयार किया जायेगा. मेजर-जनरल अशोक ढींगरा को इस साल के अंत तक अपनी खास ऑपरेशन डिवीजन का हेडक्वार्टर संरचना, ट्रैनिंग, हथियार और दूसरी मूल-भूत सुुविधाओं के बारे में पूरी रिपोर्ट आईडीएस मुख्यालय में पेश करनी है.
माना जा रहा है कि इसका मुख्यालय दिल्ली से बाहर आगरा, नाहन या फिर बेलगाम में हो सकता है जहां पर पहले से ही थलसेना के पैरा-एसएफ ट्रैनिंग सेंटर हैं (बहुत हद तक मुमकिन है कि मुख्यालय आगरा में होगा, जहां कमांडो़ज़ की हवाई ट्रैनिंग भी आसानी से हो सकती है). मेजर जनरल ढींगरा खुद एक पैरा कमांडो हैं और आगरा स्थित पैरा-ब्रिगे़ज की कमान संभाल चुके हैं. इसके अलावा वे यूएस में भारत के डिफेंस-अटैचे रह चुके हैं. श्रीलंका में आईपीकेएफ (शांति सेना) का भी हिस्सा थे.

एक लंबे समय से देश के स्पेशल फोर्स कमांडोज़ की साझा यूनिट की जरूरत थी. जैसाकि कश्मीर में वूलर-लेक और मणिपुर की लोकटक लेक में मरीन कमांडोज़ की जरूरत पड़ती थी, जबकि वहां थलसेना की मौजूदगी है. ऐसे में एसएफओडी ऐसी जगह पर काम करेगी (देश के भीतर और जरूरत पड़ने पर बाहर भी) जहां कही पैरा-एसएफ के साथ साथ मार्कोस की भी जरूरत पड़ती हो. इसके लिए ही हाल में अंडमान निकोबार द्वीप पर तीनों सेनाओं के कमांडो़ज़ ने बुल-स्ट्राइक नाम का एक साझा युद्धभ्यास किया था. अंडमान कमान भी आईडीएस के अंतर्गत काम करती है. 

माना जा रहा है कि एस डिवीजन में तीनों सेनाओं का अनुपात 5:3:2 का होगा. यानि 50 प्रतिशत थलसेना के कमांजोज़ होंगे, तो तीस प्रतशित वायुसेना (के गरूड़) और 20 प्रतिशत नौसेना के मार्कोस.शुरूआत में माना जा रहा है कि इस डिव में करीब 3000 कमांडोज़ होंगे, जिसमें करीब करीब दो हजार पैरा-एसएफ से होंगे और बाकी एक हजार नौसेना और वायुसेना से होंगे (आपको बता दें कि वायुसेना ने पठानकोट आतंकी हमले के बाद ही अपनी गरूड़ कमांडो टीम को खड़ा करने में तेजी लाई है). फिलहाल थलसेना में करीब करीब 6000 पैरा-एस कमांडोज़ है और नौसेना और वायुसेना में करीब करीब एक-एक हजार कमांडोज हैं. 

आपको बता दें कि पैरा-एस कमांडो़ज़ ने ही वर्ष 2106 में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल-स्ट्राइक की थी और 2015 में म्यांमार सीमा पर उग्रवादी कैंपों के खिलाफ क्रॉस-बॉर्डर रेड की थी. एसएफओडी के बनने के बाद भी तीनों सेनाओं की स्पेशल फोर्सेज़ यूनिट्स अपना अपना काम करती रहेंगी. क्योंकि तीनों सेनाओं के अपने अपने कार्य-क्षेत्र हैं. एसएफओडी के कमांडोज़ तभी ऑपरेशन करेंगे जहां एक साथ दो या दो से ज्यादा तरह के कमांडो़ज़ की जरूरत होगी. जैसाकि किसी झील में या फिर समंदर में या फिर किसी आईलैंड पर कोई ऑपरेशन करना होगा, तभी एसएफओडी के कमांडोज़ की क्रेक-टीम अपने मिशन को अंजाम देंगी. 

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